कचरे से फैशन उत्पाद

लिफाफा ने नवप्रवर्तित उत्पादन प्रक्रिया को अपनाते हुए, कचरा बीनने वालों से साझेदारी करके प्लास्टिक कचरे से स्टाइलिश हैंड बैग और दूसरे उत्पादों को तैयार किया है।

कैनडिस याकोनो

नवंबर 2019

कचरे से फैशन उत्पाद

लिफाफा द्वारा प्लास्टिक कचरे से बनाए गए उत्पाद। फोटोग्राफ: साभार लिफाफा

नई दिल्ली से संचालित एक उपक्रम भारत में कचरा बीनने वालों को गरीबी से निकालकर अमीर बनने में मदद कर रहा है। लिफाफा ने नवप्रवर्तित उत्पादन प्रक्रिया को अपनाते हुए, कचरा बीनने वालों से साझेदारी करके प्लास्टिक कचरे से स्टाइलिश हैंड बैग और दूसरे उत्पादों को तैयार किया है।

लिफाफा की संस्थापक कनिका आहूजा का कहना है, ‘‘लिफाफा को शुरू करने के दोहरे मकसद थे: गरीबी और कचरे का निपटारा। हमारा लक्ष्य भारतीय समाज के सबसे शोषित वर्ग कचरा बीनने वालों को आजीविका उपलब्ध कराना था। हमने यह महसूस किया कि उनके पास कचरा ही एक मात्र उपलब्ध संसाधन था और लैंडफिल ठिकानों के लिए प्लास्टिक कचरा बड़ी समस्या था।’’

आहूजा ने तय किया कि वे कुछ ऐसा रास्ता निकालेंगी जिससे कचरा बीनने वालों, बेघरों और शरणार्थियों की आय कम से कम 150 फीसदी तक बढ़ सके और इसके साथ ही लैंडफिल ठिकानों पर गैर बायो डिग्रेडेबल प्लास्टिक की बढ़ती मुसीबत से भी छुटकारा मिल सके।

आहूजा बताती हैं, ‘‘हमने ऐसी तकनीक को विकसित किया जिससे कि प्लास्टिक बैग, रैपर, चिप्स के पैकेटों और प्लास्टिक पैकेजिंग के कचरे से वीगन चमड़ा तैयार हो सके।’’ इस तरह से तैयार होने वाले फैब्रिक को हैंडमेड रीसाइक्लिड प्लास्टिक (एचआरपी) नाम से जाना जाता है। आहूजा बताती हैं, ‘‘हम अपनी सामग्री का इस्तेमाल फैशन से संबंधित चीजें बनाने में करते हैं जैसे कि हैंड बैग, बैकपैक, पाउच, लैपटॉप बैग या फिर आभूषण। लेकिन इसका इस्तेमाल फर्निशिंग, हाउसिंग टाइल्स, वॉलपेपर, ब्लाइंड, फुटवेयर और घर सजाने के काम में भी किया जा सकता है।’’ ऐसे सामानों की बिक्री से इस प्रोजेक्ट को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है।

लिफाफा, कंजर्व इंडिया नाम के उस गैरसरकारी संगठन का फैशन ब्रांड है जिसे आहूजा के अभिभावकों ने कचरा प्रबंधन के प्रभावी उपाय के साथ-साथ कचरा बीनने वाले समुदाय के सशक्तिकरण के उद्देश्य से स्थापित किया था। आहूजा का काम कंजर्व इंडिया को अब सोशल मीडिया के दौर में ले आया है।

कंजर्व इंडिया ने विभिन्न प्रकार के उत्पाद बनाने के लिए शुरुआत में लिफाफा जैसी अवधारणा को ही अपनाया। जैसे-जैसे दुनिया सदाजीवी उपायों के बारे में अपनी सोच पर केंद्रित होती गई, आहूजा ने इसे एक ऐसे मौके के रूप में देखना शुरू किया जिसमें ऐसा उपक्रम बनाया जाए जो समाज के सबसे निचले आय वर्ग के लोगों को उत्पाद के विकास के लिए सघन प्रशिक्षण और कारोबार की बुनियादी सीख के साथ सशक्त कर सके।

जब कंजर्व इंडिया ने इन समुदायों के साथ मिलकर काम करना शुरू किया तो महसूस हुआ कि उन्हें टिकाऊ कारोबार के लिए उस चीज़ का इस्तेमाल करना चाहिए जो कचरा बीनने वालों के पास आसानी से और बहुतायत में उपलब्ध है और वह था प्लास्टिक कचरा। आहूजा का कहना है, ‘‘इस तरह का प्लास्टिक का कचरा आज भी परिशोधन के नजरिए से सबसे निचले दर्जे में आता है और इसे आज भी भूमि भराव क्षेत्र तक पहुंचने के पहले कोई भी नहीं उठाता। हमने इस सिलसिले में एक तकनीक विकसित करके उसे पेटेंट कराया है जिसमें हम इस सस्ते प्लास्टिक को मोटे, चमकीले और टिकाऊफैब्रिक में तब्दील कर लेते हैं, जिसे हम महंगे उत्पाद तैयार करने के लिए इस्तेमाल में ला सकते हैं।’’

कंजर्व इंडिया कचरा बीनने वालों को संग्रहण और प्रोसेसिंग का प्रशिक्षण देता है। आहूजा का कहना है, ‘‘इनमें से कई समूहों ने खुद को स्वयं सहायता समूहों में संगठित कर लिया है और उनका अपना स्वयं का परिशोधन का कारोबार है और वे कंजर्व के अलावा दूसरे सगठनों को भी अपनी सामग्री दे रहे हैं।’’

कचरा बीनने वाले सूखे पतले लास्टिक बैगों को एकत्र करते हैं, फिर उनकी छंटाई, सफाई होती है और उन्हें सुखाया जाता है। उसके बाद उनकी तह बना कर उनको एक खास आकृति देने के लिए दबाया जाता है ताकि उसे एक शीट की शक्ल में तबदील किया जा सके। ऐसी हर शीट को बनाने में 150 ग्राम तक प्लास्टिक थैलियों का इस्तेमाल होता है। इसमें पारंपरिक परिशोधन की प्रक्रिया के मुकाबले काफी कम ऊर्जा की खपत होती है और इसमें किसी भी तरह की कोई जहरीली गैस नहीं निकलती। इसमें किसी भी तरह की कोई डाई या रसायन की भी कोई जरूरत नहीं पड़ती।

वह कहती हैं, ‘‘कंजर्व में हमने 5000 किस्म की डिजाइनों को श्रेणीबद्ध किया जिसे लेयरिंग के भिन्न-भिन्न तरीकों से तैयार किया जा सकता है।’’ इस प्रक्रिया को प्लास्टिक कचरे के तमाम स्रोतों में अपनाया जा सकता है जैसे कि घरों से निकलने वाले प्लास्टिक कचरे, औद्योगिक क्षेत्रों से निकलने वाले प्लास्टिक कचरे या फिर समुद्र से निकलने वाले प्लास्टिक कचरे के लिए।

 

कनिका आहूजा (मध्य में) लैक्मे फैशन वीक 2019 में। यहां उन्होंने सर्कुलर डिज़ाइन चैलेंज फ़ॉर सस्टेनेबिलिटी इन फैशन में लिफाफा के उत्पादों को प्रदर्शित किया। फोटोग्राफ: साभार लिफाफा

लिफाफा को नई दिल्ली के अमेरिकन सेंटर स्थित नेक्सस इनक्यूबेटर स्टार्ट-अप हब से प्रशिक्षण मिला। आहूजा का कहना है, ‘‘नेक्सस का हिस्सा बनना एक शानदार अनुभव था। उन्होंने एक्सीलरेटर प्रोग्राम के जरिये हमें एक स्टार्ट-अप को चलाने के लिए जरूरी तमाम चीजों से अवगत कराया। हमारी रणनीतियों का फिर से मूल्यांकन किया और हमें अपनी मज़बूती वाले पक्ष का इस्तेमाल करने को कहा। प्रशिक्षकों ने हमारे साथ मिल कर हमारी कमजोरियों को दूर करने के लिए काम किया।’’ लिफाफा को नेक्सस के मजबूत नेटवर्क और मददगार संगठनों का भी फायदा मिला। वह कहती हैं, ‘‘इस प्रोग्राम के दायरे से कहीं बड़ी बात है नेक्सस परिवार का हिस्सा बनना और मुझे इस परिवार का हिस्सा बनने की सचमुच बेहद खुशी है।’’

आहूजा भविष्य में कंपनी के इस विचार को अगले स्तर पर ले जाने को लेकर काफी आशान्वित नजर आती हैं। वह कहती है, ‘‘हमारे आगे ढेरों रोमांचक चीजें कतार में हैं। हम इच्छुक संगठनों को एचआरपी फैब्रिक बनाने के लिए अपनी पेटेंट की हुई तकनीक का लाइसेंस देने को तैयार हैं। इससे बेहतर क्वालिटी केफैब्रिक का पेटेंट कराने के लिए हमारी प्रक्रिया जारी है।’’

लेकिन यह उत्पाद अपनेआप में आहूजा की योजनाओं का सिर्फ एक पहलू भर है। वह बताती हैं, ‘‘हमारे पास खाका तैयार है, कुछ साझेदारियां भी मौजूद हैं और बेहद सफल पायलट प्रोजेक्ट का उदाहरण भी मौजूद है। साथ ही, वे तकनीकें भी हमारे पास हैं जिनकी जरूरत दुनिया को पहले की अपेक्षा आज कहीं ज्यादा है।’’ वह कहती हैं, ‘‘मैं इसे छोटे, सफल पायलट प्रोजेक्ट से कचरे की तब्दीली के वैश्विक मानकों तक ले जाना चाहती हूं।’’

कैनडिस याकोनो पत्रिकाओं और समाचारपत्रों के लिए लिखती हैं। वह दक्षिणी कैलिफ़ोर्निया में रहती हैं।



टिप्पणियाँ

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *