गेमिंग से सशक्तिकरण!

दुनिया भर में हो रहे विभिन्न शोधों से पता चलता है कि इंटर-एक्टिव गेमों से विद्यार्थियों का ध्यान खींचने और प्रभावी तरीके से उन्हें सीखने के लिए के लिए प्रेरणा मिलती है।

पारोमिता पेन

दिसंबर 2021

गेमिंग से सशक्तिकरण!

जीओसी गेम विकास की प्रक्रिया में गहन शोध और किशोरियों के साथ संवाद पर लगातार ध्यान दिया गया। फोटोग्राफ: साभार होवार्ड डेलाफ़ील्ड इंटरनेशन

युनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डवलपमेंट (यूएसएड) में किशोर स्वास्थ्य पर सलाहकार डॉ. शर्मीला नियोगी के अनुसार, ‘‘दुनिया भर में तमाम किशोरियां शिक्षा और कॅरियर को लेकर ढेर सारे सपने देखती हैं, लेकिन कम उम्र में शादी और फिर गर्भवती हो जाने के कारण उनका सपना सिर्फ सपना भर रह जाता है।’’ वह बताती है, ‘‘कई बार उन्हें सुरक्षित साधनों के बारे में सही जानकारी नहीं होती, वे खतरों से अनजान होती है और अपनी गतिविधियों के नतीजों के बारे में पहले से तैयार नहीं होती हैं।’’

किशोरियों में अनचाहे गर्भ के खतरों को कम करने और सेक्स और रिप्रॉडक्टिव हेल्थ के बारे में जानकारियों के विस्तार के लिए यूएसएड साल 2022 के बसंत में एकसंवादी डिजिटल पहल को शुरू करने जा रहा है। गेम ऑफ च्वाइस, नॉट चांस (जीओसी) नामक यह पहल सीधे उपभोक्ता से संवाद के मॉडल पर आधारित है और किशोरियों को इस तरह से सशक्त करती है कि वे खोज और गेमिंग के जरिए अपने जीवन के बारे में सक्रिय रूप से फैसले ले सकें।

जीओसी में संवाद का जरिया काफी हद तक ऐसी कहानियां होती हैं जहां जीवन से संबंधित अहम फैसले लेने के समय उन्हें अनुभवजनित जानकारियों का लाभ मिल सके । इस गेम में हिस्सा लेने वाले खिलाड़ी खेल में जैसे-जैसे आगे बढ़ते हैं, वे अपने खाते से जुड़े हेल्थ मीटर में स्वास्थ्य, संबंधों और आत्मविश्वास से जुड़े मामलों में अंकों को जोड़ते या घटाते जाते है। खिलाड़ी को अपने विकल्पों के नतीजों से अनुभव हासिल करने और फिर से खेलने का मौका भी दिया जाता है। इसके अलावा, तमाम संसाधनों के माध्यमों से हासिल सही जानकारी देने के लिए लर्निंग लूप्स बनाए जाते हैं जो सही निर्णय पर पहुंचने में मददगार बनते हैं।

यह पहल हॉवर्ड डेलाफील्ड इंटरनेशनल (एचडीआई) की संस्थापक सूज़न हॉवर्ड की प्रेरणा से शुरू हुई। जीओसी तीन खास बातों पर आधारित है- किशोरियों के साथ महत्वपूर्ण संवादों को प्रोत्साहन, एक ऐसा मंच तैयार करना जहां युवाओं की जरूरतों को ध्यान में रखा जा सके और इस मंच को और अधिक उपयोगी बनाने के लिए लक्षित वर्ग से फीडबैक लेना।

महत्वपूर्ण संवादों को प्रोत्साहन

जीओसी के लिए जब गेम को तैयार किया जा रहा था, तब इसे बनाने वालों ने शोध और किशोरियों से संवाद के जरिए अहम दृष्टि और जानकारियों के अभाव वाली स्थितियों को पहचानने का काम किया। उन्होंने अपने शोध में पाया कि लड़कियां अपनी किशोरावस्था के दौरान होने वाले अनुभवों को लेकर आमतौर पर खामोश रहती है और उसे साझा करने में शर्माती हैं। लड़कियों को अक्सर अपनी निजी जरूरतों, इच्छाओं और समाजिक-सांस्कृतिक परंपराओं में विरोधाभास महसूस होता है। लड़कियों ने इस बात के भी संकेत दिए कि उन्हें अपने जीवन से संबंधित मामलों में खुद का नियंत्रण चाहिए और वे ऐसे दबाव-खिंचाव को झेलती हैं जिससे उनकी महत्वाकांक्षाओं पर प्रभाव पड़ता है।

जीओसी को विकसित करने वालों ने इन संवादों और शोधों का इस्तेमाल इसके मुख्य आधारों के निर्धारण में किया। उन्होंने कई मुख्य मसलों की पहचान की जिसमें, लड़की की पहचान, सुरक्षा, गतिशीलता, माहवारी और उसके प्रबंधन के बारे में पर्याप्त जानकारी का अभाव, फर्टिलिटी साइकल के बारे में जानकारी और अंतरग संबंधों को लेकर रजामंदी जैसे महत्वपूर्ण आयाम शामिल है।

मानव केंद्रित रूपरेखा

सघन शोध और किशोरियों से संवाद से जुड़े विभिन्न आयामों के अलावा गेम के खिलाडि़यों से मिले फीडबैक ने भी जीओसी के गेम तैयार करने की प्रक्रिया में मदद दी। शुरुआत में लड़कियों ने चारित्रिक विकास से संबंधित संवाद, प्रतिक्रिया और खेल के हर एपिसोड में प्रस्तुत की गई परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अपना इनपुट दिया। उदाहरण के लिए, शर्मीला नियोगी के अनुसार, ‘‘लड़कियों से जो महत्वपूर्ण सुझाव आए, उनमें संबंधों के प्रबंधन के बारे में विषय को शुरू करने का सुझाव भी दिया गया, खासतौर पर अभिभावकों से संवाद, गतिशीलता या कॅरियर और गर्भनिरोधकों के बारे में जानकारी की अपेक्षा की गई, जिसके बारे में वे किसी से खुल कर बात करने में हिचकिचाती रही हैं।’’ इन्हीं सुझावों के आधार पर, एक ऐसे मोबाइल गेम को तैयार किया जा रहा है जिसमें खेल आधारित सीख तो दी ही जा रही है, साथ ही उसे इस तरह से डिजाइन किया गया है कि वह मानव केंद्रित बन सके।

महत्वपूर्ण इनपुट की अपेक्षा

जीओसी से संबंधित गेमों के विकास की प्रक्रिया के दौरान यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया कि सह-डिज़ाइन की अवधारणा को अपनाया जाए। डिजाइन वर्कशॉप में लगातार लड़कियों  को शामिल किया गया जिसमें, सामूहिक विमर्श और गतिविधियों के अलावा गेम प्लेइंग सेशन रखे गए ताकि गेम को डिजाइन करने के बारे में एक बेहतर समझ को विकसित किया जा सके और प्रतिभागियों के बीच में किस तरह से बात को रखना है, भाषा कैसी रखी जाए और सांस्कृतिक संदर्भों का कैसे उपयोग किया जाए, इसे भी समझा जा सके।

सह विकास के इस दौर के बाद, आंशिक रूप से विकसित समाधान का प्रोटोटाइप तैयार करना, उसका परीक्षण करना और उस पर फीडबैक लेने की प्रक्रिया अपनाई गई। अब जबकि गेम बन कर तैयार होने की स्थिति आ गया है, इसे बनाने वालों का ध्यान इस बात पर टिक गया है कि लड़कियां ये सुनिश्चित करें कि गेम से उनकी जरूरतें तो पूरी हो ही सकें, साथ ही, यह उनकी प्रत्याशाओं पर भी  खरा उतर सके।

बड़े स्तर पर शुभारंभ

डॉ. नियोगी के अनुसार, ‘‘गूगल प्ले स्टोर से इस गेम को मुफ्त में डाउनलोड किया जा सकेगा। हमारा शुरुआती प्रयास दिल्ली, राजस्थान और बिहार के शहरी और अर्द्धशहरी इलाकों में रहने वाली हिंदी भाषी लड़कियों पर फोकस करने का होगा।’’ टीम ने किशोर सेक्सुअल रिप्रॉडक्टिव स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाले निजी क्षेत्र के कई उद्यमों और अलाभकारी संस्थाओं से संपर्क कायम किया है और उनके उत्पादों, सूचनाओं और सेवाओं तक अपने गेमिंग लिंक को उपलब्ध कराने के लिए काम शुरू कर दिया है।

जीओसी की योजना भविष्य में 15 से 19 वर्ष के आयु वर्ग के लड़कों के सेक्सुअलल रीप्रॉडक्शन स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए इसी तरह का एक गेम विकसित करने की है। जैसा कि डॉ. नियोगी का कहना है, ‘‘इससे लड़कियों के लिए जारी हमारे प्रयासों को और मजबूती देने का आधार भी तैयार होगा।’’ टीम उन संभावनाओं का पता भी लगाने में जुटी है जिससे खिलाडि़यों को पुरस्कार, डिस्काउंट और वाउचर देकर और ब्रांड्स को गेम में सहभागी बनाकर और लिंकों को उपलब्ध करा कर, कैसे इसका मुद्रीकरण हो सकता है।

यह प्रोजेक्ट पांच साल में विकसित किया जाना है और इस समय तीसरा साल चल रहा है। इसकी अगुवाई एचडीआई कर रहा है, जो एक कंसर्शियम के के माध्यम से ऐसा कर रहा है, जिसमें भारत स्थित सहभागी हैं इंडसगीक्स, विहारा इनोवेशन नेटवर्क और गर्ल इफेक्ट जबकि अमेरिका से साइकिल टेक्नोलॉजीज़ और नाम ईआर टेक्नोलॉजी शामिल हैं। यह गेम दिल्ली, राजस्थान और बिहार में 15 से 19 वर्ष की आयु वर्ग की लड़कियों पर किए गए सघन शोध पर आधारित है। इस पहल के जुड़े महत्वपूर्ण लोगों में एचडीआई की सह संस्थापक और प्रोजेक्ट डायरेक्टर सूज़न हॉवर्ड और जीओसी की इंडिया टीम लीड और भारत में मुंबई स्थित एचडीआई की कंट्री डायरेक्टर कविता अय्यागरी शामिल हैं।

पारोमिता  पेन नेवादा यूनिवर्सिटी, रेनो में ग्लोबल मीडिया स्टडीज़ विषय में असिस्टेंट प्रो़फेसर हैं।



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