प्रकृति से प्यार की नई उड़ान

भारत के बटऱफ्लाई मैन इसाक केहिमकर ने फुलब्राइट फेलोशिप के दौरान अमेरिकी गैरसरकारी संस्थाओं का अध्ययन किया था। अपने काम के साथ ही वह यह भी बता रहे हैं कि इस दौरान उन्होंने क्या सीखा।

कैनडिस याकोनो

जनवरी 2020

प्रकृति से प्यार की नई उड़ान

इसाक केहिमकर कैलिफ़ोर्निया की ट्रीपीपल नामक गैरसरकारी संस्था में। उन्होंने फुलब्राइट फेलोशिप के दौरान अपना अधिकतर समय इसी संस्था के साथ बिताया। फोटोग्राफ: साभार इसाक केहिमकर

इसाक केहिमकर, भारत के बटऱफ्लाई मैन के रूप में जाने जाते हैं। पर्यावरण संरक्षण के इस मुखर व अनथक पैरोकार ने प्रकृति की खूबसूरती को अपनी दलीलों का जरिया बनाया है। वह कहते हैं, ‘‘तितलियां हमेशा से अपने रंगों, मनोहर उड़ान और कोमलता के कारण मोहित करती हैं। इसीलिए प्रकृति के सवालों पर ध्यानाकर्षण के लिए वे ही सबसे शानदार माध्यम हैं।’’

प्रकृति से केहिमकर का जुड़ाव बचपन से ही था। जब वह बच्चे थे और मुंबई में पल-बढ़ रहे थे, तभी उनके माता-पिता ने उन्हें जानवरों को पालने व जानवरों की तस्वीर वाली किताबों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया। जब वह आठवीं कक्षा में थे, तभी उनके माता-पिता ने उन्हें एक कैमरा दे दिया। वह कहते हैं, ‘‘प्रकृति की खूबससूरती को कैमरे में कैद करने की आदत ने मुझे इस शौक का आदी बना दिया।’’

केहिमकर ने मुंबई यूनिवर्सिटी से राजनीति विज्ञान और मनोविज्ञान में स्नातक डिग्री हासिल की। हालांकि उनका कहना है, ‘‘प्रकृति के प्रति मेरा जुड़़ाव लगातार मजबूत बना रहा।’’ उसके बाद उन्हें बॉंबे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (बीएनएचएस) के लिए स्वयंसेवा का मौका मिला और फिर वहीं बतौर लाइब्रेरी असिस्टेंट उन्हें काम करने का मौका मिला।

केहिमकर के लिए लाइब्रेरी तो एक जन्नत की तरह थी। वह वहां भारत के बर्डमैन कहे जाने वाले सलीम अली को देख कर बेहद खुश हुए। केहिमकर उनकी हैंडराइटिंग से बेहद प्रभावित हुए और उन्होंने उसकी तारीफ की। जवाब में सलीम अली ने जो कुछ कहा वह केहिमकर के लिए जीवन की बहुत बड़ी सीख बन गई।

केहिमकर के अनुसार, ‘‘उन्होंने कहा कि अपनी हैंडराइटिंग में वह स्टाइल लाने के लिए कड़ी मेहनत की है और साथ ही उन्होंने मुझे सलाह दी कि दुनिया को हमेशा अपने काम का सबसे बेहतरीन पक्ष ही दिखाओ। एक और बात. कुछ मौके सिर्फ एक बार मिलते हैं और उस समय लोगों को अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना चाहिए।’’

केहिमकर के लिए वह एक खास मौका था जब उस समय नई शुरु हुई सैंक्चुरी एशिया पत्रिका के संपादक बिट्टू सहगल ने उन्हें तितलियों के ऊपर एक लेख लिखने का प्रस्ताव दिया।

केहिमकर का कहना है, ‘‘उसके बाद तितलियों के पीछे मेरी दौड़ शुरू हुई।’’ उनकी यह दौड़ उन्हें भारत के बेहद दूरदराज के इलाकों तक ले गई। वह कहते हैं, ‘‘मुझे तभी इस बात का अहसास हुआ कि भारत कितना खूबसूरत और भिन्नताओं से भरा देश है। मुझे तभी यह भी महसूस हुआ कि इसे देखने और समझने के लिए सिर्फ एक जीवनकाल ही काफी नहीं है।’’

पत्रिका में लेख छपने के बाद वर्ल्डवाइड फंड फॉर नेचर-इंडिया (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया) ने उनसे शुरुआती जानकारी लेने वालों के लिए तितलियों पर एक किताब लिखने को कहा जो बेस्ट सेलर पुस्तक साबित हुई।

वह बताते हैं, ‘‘उसके बाद, बीएनएचएस ने मुझसे तितलियों के ऊपर एक विस्तृत किताब लिखने को कहा।’’ इस किताब ने बीएनएचएस की बिक्री के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। इसी के बाद केहिमकर को भारत के बटऱफ्लाई मैन के रूप में जाना जाने लगा।

वर्ष 2006 में बतौर फुलब्राइट फेलो, पर्यावरण संरक्षण और लोगों में इसके प्रति जागरूकता पैदा करने की दिशा में गैरसरकारी संगठनों के प्रयासों का अध्ययन करने वह अमेरिका गए। उन्होंने इसे आंखें खोल देने वाला अनुभव बताया जिसके चलते उन्हें टीम मैनेजमेंट, फंड जुटाने और मीडिया के साथ संबंधों के बारे में काफी जानकारी मिली।

केहिमकर का कहना है, ‘‘यह सब फुलब्राइट फेलोशिप की बदौलत ही संभव हो पाया और फेलोशिप के दौरान मुझे मिले मूल्यवान प्रशिक्षण के लिए मैं हमेशा आभारी रहूंगा।’’

उन्होंने बतौर फुलब्राइट फेलो जो कुछ भी वहां जाना-समझा, उसे भारत लौटने पर दूसरे गैरसरकारी संगठनों से साझा किया। वर्ष 2014 में उन्होंने एक अन्य फुलब्राइट फेलो डॉ. वी. शुभलक्ष्मी के साथ मिलकर आईनेचरवॉच फाउंडेशन नाम की संस्था बनाई। इस संस्था का फोकस शहरी जैव विविधता और सिटीजन साइंस पर था जिसके तहत कार्यशालाओं के आयोजन, नेचर वॉक, कैंपों के आयोजन और दूसरे पाठ्यक्रमों को शुरू किया गया। मुंबई स्थित इस संगठन ने बटऱफ्लाई गार्डन और तितलियों की रिहाइश के लिए स्थान विकसित किए। ये पर्यटकों के लिए लोकप्रिय स्थान बन गए।

केहिमकर जानकारी देते हैं कि, भारत में तितलियों की करीब 1500 प्रजातियां पाई जाती हैं। वह कहते हैं, ‘‘बटऱफ्लाई गार्डन का मकसद लोगों को प्रकृति के करीब लाना है। एक बार उन्हें जब प्रकृति से प्रेम हो जाएगा तो वे इसके संरक्षण के काम में जुट जाएंगे और यही तो वक्त की मांग है।’’

केहिमकर को इस बात की खुशी है कि युवा पीढ़ी प्रकृति के अध्ययन और उसके संरक्षण को लेकर दिलचस्पी दिखा रही है। जहां तक आईनेचरवॉच के योगदान की बात है तो उसने स्कूलों और कॉलेजों में कॉरपोरेट प्रायोजित ओपन एयर बटऱफ्लाई गार्डन की स्थापना का काम शुरू किया है जो एक तरह से विद्यार्थियों के लिए एक जीवंत प्रयोगशाला का काम करते हैं।

तितलियां इस बात का संकेत दे सकती हैं कि पर्यावरण स्वस्थ है या नहीं, वे जलवायु में बदलाव के पैटर्न के बारे में बता सकती हैं और फसलों में परागण प्रक्रिया कर सकती हैं। केहिमकर मानते हैं, ‘‘ये खूबियां ही उन्हें प्रकृति की दुनिया का सर्वश्रेष्ठ दूत बनाती हैं और साथ उन्हें आजादी, प्रेम, शांति और खूबसूरती का प्रतीक भी बनाती हैं।’’

कैनडिस याकोनो पत्रिकाओं और समाचारपत्रों के लिए लिखती हैं। वह दक्षिणी कैलिफ़ोर्निया में रहती हैं।


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