पोलियो: हर बच्चे तक पहुंच ज़रूरी

भारत में पोलियो का अंत दुनिया को इससे मुक्त करने की दिशा में होगा बड़ा कदम।

गिरिराज अग्रवाल

जनवरी/फ़रवरी 2011

पोलियो: हर बच्चे तक पहुंच ज़रूरी

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में रेलवे स्टेशन पर एक बच्चे को पोलियो की दवा पिलाते हुए एन ली हसी। फोटो्ग्राफ: साभार एन ली हसी

अर्शी और बिलाल दोनों लगभग दो साल के प्यारे बच्चे हैं, जो गाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश के धौलाना ब्लॉक में रहते हैं। वे मुस्कराते हैं, पहली बार कुछ बोलने का प्रयास करते हैं, गले से लिपट जाते हैं और तरह-तरह के करतब करने का प्रयास करते हैं। लेकिन इनमें से कोई भी बिना सहारे के अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो सकता।

एक साल पहले उनके परिवार के सदस्यों ने महसूस किया कि उनकी चाल सामान्य नहीं है और पैरों में कुछ गड़बड़ हो सकती है। प्रयोगशाला में जांच हुई तो आशंका सही साबित हुई- दोनों बच्चे पोलियो के शिकार हो चुके थे। जनसंख्या का बेहद अधिक घनत्व, खुले नाले, प्रदूषित पेयजल और कुपोषण के कारण उत्तर प्रदेश और बिहार के ऐसे स्थान पोलियो वायरस के सीधे निशाने पर आ जाते हैं। पोलियो बच्चों के स्नायु तंत्र पर हमला करता है और उन्हें जीवनभर के लिए अपंग बना सकता है।

पिछले साल 42 बच्चे पोलियो के शिकार बने। इनमें से बहुत-से बच्चों को चलने-फिरने के लिए कई बार सर्जरी की प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा। वैसे 2009 से 2010 के बीच पोलियो के शिकार बच्चों की संख्या में भारत में 90 फ़ीसदी की कमी आई है।

राष्ट्रीय पोलियो निगरानी परियोजना के परियोजना प्रबंधक हामिद जाफरी कहते हैं, ‘‘इस साल हमने असाधारण सफलता देखी है, जैसी कभी पहले नहीं दिखाई दी। भारत सरकार, विश्व स्वास्थ्य संगठन, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष और रोटरी इंटरनेशनल के बीच मज़बूत और बढि़या समन्वय के साथ भागीदारी के चलते यह सफलता मिली है।’’ जाफरी ने अटलांटा, जॉर्जिया स्थित यू.एस. सेंटर्स फ़ॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन की पोलियो उन्मूलन शाखा के प्रमुख के रूप में काम किया है।

रोटरी इंटरनेशनल ऐसा सेवा संगठन है जिसकी स्थापना आज से 105 साल पहले शिकागो, इलिनॉय में हुई। अब इसकी शाखाएं पूरी दुनिया में हैं और भारत में भी 106,000 सदस्य हैं। पोलियो के शिकार बाकी बचे चार देशों से भी इस बीमारी को खत्म करने के लिए रोटरी प्रतिबद्ध है। ये चार देश हैं: भारत, नाइजीरिया, अफगानिस्तान और पाकिस्तान। रोटरी सदस्य पोलियो टीकाकरण के लिए धन ही नहीं जुटाते, बल्कि वे मदद करने के लिए लंबी यात्राएं भी करते हैं।

रोटरी सदस्य एन ली हसी भी इन्हीं में से एक हैं। वह पशु चिकित्सा तकनीशियन हैं और अमेरिका के धुर उत्तरी-पूर्वी राज्य मेन की रहने वाली हैं। वह भी बचपन में पोलियो का शिकार हो गई थीं। वह पिछले 10 सालों से भारत आ रही हैं। नवंबर 200 में वह टीकाकरण अभियान में भाग लेने के लिए मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश आई थीं। इसके तुरंत बाद वह पोलियो के खिलाफ अभियान में शिरकत करने के लिए नाइजीरिया चली गईं।

उन्हें भारत में जनवरी 2010 में एक क्लीनिक की अपनी पहली यात्रा आज तक याद है जहां उनकी मुलाकात पोलियो के शिकार कई लोगों के साथ हुई। हसी कहती हैं, ‘‘एक लड़की पर मेरी नज़र विशेष रूप से पड़ी। वह नौ साल की थी। जब मैंने उसकी मुस्कराहट का जवाब दिया तो नीचे देखा कि उसका दायां पैर भी उसी तरह पतला था, उसी तरह भारी मेटल ब्रेस लगा था….जब मैंने उसके चेहरे की तरफ देखा तो मेरे गालों से आंसू गिर रहे थे, वह फिर मुस्कराई, जैसे कि मेरे निजी दुख को समझ रही हो। मैं उसके दुख को देख रोई, मैं अपने दुख को याद कर रोई, मैं उस सबके लिए रोई जो घाव पोलियो इतने लोगों को इतने समय से देता आ रहा है।’’

भारत उन चार देशों में शामिल है जो पोलियो वायरस को खत्म करने में अब तक कामयाब नहीं हो पाए हैं। इसका बड़ा कारण यह है कि अधिक जनसंख्या वाले दो राज्यों उत्तर प्रदेश और बिहार में इस वायरस को फैलने के लिए जगह मिलती रही। वर्ष 2009 में भारत में पोलियो के कुल 741 मामले सामने आए थे, जिनमें से 602 बिहार में और 117 उत्तर प्रदेश में थे।

जाफरी बताते हैं कि ये दोनों राज्य पोलियो के खिलाफ लड़ाई के लिहाज से दुनिया में सबसे मुश्किल जगह क्यों हैं। ‘‘उत्तर प्रदेश और बिहार, विशेषकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश और मध्य बिहार में जनसंख्या के अधिक घनत्व, गरीबी, सामान्य टीकाकरण में कमी, साफ-सफाई की ठीक व्यवस्था न होने के चलते कई तरह की चुनौतियां हैं। इन क्षेत्रों में अतिसार की बीमारी के व्यापक होने के कारण पोलियो टीका उतना प्रभावी नहीं हो पाता।’’ इन इलाकों से लोगों का अन्य इलाकों की ओर जाना भी एक और बड़ी चुनौती है। जाफरी कहते हैं, ‘‘इन लोगों के टीकाकरण अभियान से वंचित रहने की आशंका अधिक होती है। इसलिए जब ये दूसरी जगह जाते हैं तो अपने साथ वायरस को भे लेते जाते हैं।’’

इन राज्यों के कुछ इलाकों में माता-पिता का अंधविश्वास भी बच्चों को टीकाकरण से दूर रखने का कारण रहा है लेकिन जाफरी कहते हैं कि सामुदायिक भागीदारी बढ़ी है। ‘‘टीके के सुरक्षित होने से जुड़ी चिंताएं और अफवाहों के चलते टीका लेने से इनकार करने वाले कुछ मामले होते हैं, लेकिन हमने सभी समुदायों में टीके की स्वीकार्यता में बढ़ोतरी दज़र् की है। हिचकिचाहट या इनकार करने के मामले कम हुए हैं।’’

ताजिकिस्तान इस बात का उदाहरण है कि दुनिया से पोलियो वायरस को खत्म करना कितना ज़रूरी है। यह मध्य एशियाई देश वर्ष 1996 से पोलियो से मुक्त रहा है लेकिन जाफरी के अनुसार वर्ष 2010 में उत्तर प्रदेश से वहां फैले वायरस ने 458 बच्चों को अपना शिकार बना लिया।

जब तक पोलियो वायरस दुनिया में कहीं पर भी सक्रिय है, उसके चलते दुनिया के किसी भी और हिस्से में कभी भी पोलियो फैल सकता है। जाफरी के अनुसार, ‘‘दुनिया से पोलियो के खात्मे के लिहाज से भारत बहुत ही महत्वपूर्ण है। यहां की चुनौतियों, आकार, जनसंख्या और पोलियो से जुड़े जोखिम कारकों के चलते यदि पोलियो के खात्मे की लड़ाई भारत में सफल रहती है तो दुनिया में पोलियो के खिलाफ लड़ाई जीत ली जाएगी।’’

इसके लिए भारत समेत उन इलाकों में लगातार पोलियो के खिलाफ टीकाकरण अभियान चलाने की ज़रूरत है जो बहुत बड़ा काम है। जाफरी के अनुसार, ‘‘पिछले साल उत्तर प्रदेश और बिहार में बड़े पैमाने पर लोगों तक पहुंचा गया और टीकाकरण के 10 चक्र तक हुए। साल में हर घर का 8 से 10 बार दौरा किया गया। 6 करोड़ बच्चों को पोलियो की दवा पिलाई गई।’’ पोलियो से मुक्त देश में सामान्यत: सामान्य टीके की तीन खुराक पर्याप्त मानी जाती है लेकिन उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे पोलियो प्रभावित क्षेत्रों में ज़्यादा बार टीके देने की ज़रूरत पड़ती है।

जनवरी 2010 में दो टाइप के पोलियो टाइप 1 और टाइप 3 से बचाने वाले बाइवेलेंट टीके की शुरुआत की गई। इस टीके को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत में विकसित किया और यहीं इसकी जांच हुई और अब इसे पूरी दुनिया में इस्तेमाल किया जा रहा है। जाफरी के अनुसार, ‘‘हमने इस बाइवेलेंट टीके के इस्तेमाल के कारण टाइप 1और टाइप 3, दोनों ही तरह के पोलियो के मामलों में काफी कमी देखी है।’’

सामान्य टीकाकरण के दौरान आमतौर पर मानक ट्राइवेलेंट टीके का इस्तेमाल किया जाता है जो तीनों तरह के पोलियो वायरस से बचाव का कवच देता है। हालांकि टाइप 2 पोलियो पहले ही खत्म हो चुका है। इसका आखिरी मामला 999 में अलीगढ़, उत्तर प्रदेश में सामने आया था।

रोटरी इंटरनेशनल की इंडिया नेशनल पोलियोप्लस कमेटी के चेयरमैन दीपक कपूर कहते हैं कि उत्तर प्रदेश और बिहार में ‘‘असाधारण लामबंदी’’ इन दो राज्यों में हाल में मिली सफलता का दूसरा बड़ा कारण है। वह कहते हैं, ‘‘कमेटी ने राजनेताओं, प्रशासकों, स्थानीय लीडर, बॉलीवुड कलाकारों और जानेमाने खिलाडि़यों को इस कार्यक्रम में शामिल कर जन समर्थन जुटाया। कमेटी ने धार्मिक लीडरों से संपर्क कर टीके के सुरक्षित होने के बारे में किसी भी तरह की आशंका को दूर किया।’’

वैश्विक पोलियो उन्मूलन अभियान की अगुवाई राष्ट्रों की सरकारें चार प्रमुख भागीदारों के साथ मिलकर करती हैं, विश्व स्वास्थ्य संगठन, रोटरी इंटरनेशनल, अमेरिकी सेंटर्स ऑफ़ डिज़ीज कंट्रोल और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष यानी यूनीसेफ। बिल एंड मेलिंडा गेट्स फ़ाउंडेशन भी इसमें अहम भागीदार है। वर्ष 1988 में शुरुआत के बाद से अब तक प्रोग्राम ने जो कुछ काम किया है, वह असाधारण है। 200 देशों की मदद से और दो करोड़ स्वयंसेवियों का साथ लेकर 250 करोड़ बच्चों को टीका दिया गया है। इसके साथ था 8 अरब डॉलर का अंतरराष्ट्रीय निवेश। भारत इस पहल का अहम भागीदार और लाभार्थी है।

अमेरिका अपनी अंतरराष्ट्रीय विकास सहायता एजेंसी यूएसएड, मानव एवं स्वास्थ्य सेवा विभाग और यूएस सेंटर्स ऑफ डिज़ीज एंड कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के जरिये पोलियो के खिलाफ अभियान में बड़ा भागीदार और योगदान देने वाला देश है। सेंटर्स फ़ॉर डिज़ीज कंट्रोल भारतीय प्रयोगशालाओं को पोलियो से जुड़ी जांच और विश्लेषण के लिए तकनीकी मदद, तकनीक एवं जांच के तौरतरीके में भी मदद करता है।

भारत में यूएसएड पोलियो उन्मूलन के लिए हर साल 60 लाख डॉलर की सहायता करता है। यूएसएड निगरानी और सामाजिक लामबंदी की गतिविधियों में विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनीसेफ और कोर ग्रुप के जरिये योगदान करता है। कोर ग्रुप बहुत-से सरकारी संगठनों का नेटवर्क संगठन है। यूनीसेफ और कोर पोलियो के लिहाज से जोखिम वाले हज़ारों क्षेत्रों में सामुदायिक लीडरों के साथ व्यापक संपर्क रखते हैं और इस काम में पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पूर्वी बिहार के धार्मिक नेताओं और संस्थानों पर विशेष ध्यान देते हैं, जिससे कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पांच साल से कम उम्र के सभी बच्चों को पोलियो की खुराक मिल सके। यूएसएड विश्व स्वास्थ्य संगठन की राष्ट्रीय पोलियो निगरानी परियोजना पर अमल में भी मदद कर रहा है। लगभग 300 निगरानी चिकित्सा अधिकारियों और अतिरिक्त कर्मचारियों के लिए धन उपलब्ध कराया जा रहा है। ये कर्मचारी भारत भर में तैनात किए जा रहे हैं जिससे कि संदिग्ध मामलों में पोलियो का पता लगाने के लिए उच्च कोटि की निगरानी और जांच की जा सके, प्रयोगशालाओं को मदद की जा सके और पूरक टीकाकरण गतिविधियों के लिए तकनीकी परामर्श और नेतृत्व प्रदान किया जा सके। उल्लेखनीय है कि भारत अपने यहां पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम पर खर्च होने वाले धन का बड़ा हिस्सा खुद ही खर्च करता है, अमेरिका और अन्य प्राथमिक तौर पर तकनीकी सहायता उपलब्ध कराते हैं।

यूएसएड के पोलियो उन्मूलन समन्वयक एलिन ऑगडन कहते हैं, ‘‘भारत ने हर बच्चे तक टीका पहुंचाने में आने वाली बाधाओं को प्रतिबद्धता, कड़ी मेहनत, नए तौरतरीकों को अपनाकर और समन्वय के साथ दूर किया है। जन स्वास्थ्य सफलता का यह मॉडल है जो बाकी दुनिया को भी प्रोत्साहित करता है और पोलियो के संक्रमण के शिकार बाकी देशों को सभी ज़रूरी उपाय करने और पोलियो का फैलाव रोकने और दुनिया में पोलियो के आखिरी मामले के तीन साल बाद वैश्विक प्रमाणन का मार्ग तैयार करने को प्रोत्साहित करता है।’’

भारत में यूएसएड के मिशन निदेशक एरिन सोटो कहते हैं कि लगातार और व्यापक स्तर पर टीकाकरण न होने पर प्रतिरक्षण में खाई होने से पोलियो मामले बुरी तरह से फिर उभर सकते हैं। ‘‘… इस साल पोलियो के कम मामले वाकई आशा जगाते हैं। लेकिन हम अपने वैश्विक प्रयासों को ढीला नहीं छोड़ सकते और न ही भारत में आखिरी मील का सफर पूरा करने में कमी कर सकते हैं… पिछले साल ताजिकिस्तान में पोलियो का फैलना इस बात को बताता है कि मौजूदा निगरानी और प्रयास कितने ज़रूरी हैं।’’

यूएसएड भारत में राष्ट्रीय कार्यक्रम की मदद करने के लिए पोलियो की तीन अंतरसंबद्ध परियोजनाओं की मदद कर रहा है। पोलियो उन्मूलन (यूनीसेफ इंडिया), कोर ग्रुप पोलियो प्रोजेक्ट (वर्ल्ड विजन यूएस), और राष्ट्रीय पोलियो निगरानी परियोजना (डब्ल्यूएचओ)। इन परियोजनाओं का लक्ष्य टीकाकरण केंद्रों की संख्या में बढ़ोतरी कर और पोलियो की दवा लेने से वंचित रहने या इसमें हिचकिचाहट दिखाने वाले घरों की संख्या में कमी लाकर पोलियो का फैलाव रोकने का है। उत्तर प्रदेश के 44 जिलों में 4300 उच्च जोखिम वाले समुदाय हैं। इसी तरह बिहार के कोसी इलाके में 300 गांव ऐसे हैं जहां तक पहुंचना कठिन है। ये और पटना, खगडि़या के शहरी इलाके ऐसे हैं जहां सामाजिक लामबंदी के जरिये ज़्यादा ध्यान दिया जा रहा है। ये परियोजनाएं इस बात को भी सुनिश्चित करने का प्रयास करती हैं कि उन लोगों के बच्चों को भी पोलियो की खुराक पिलाई जा सके जो एक जगह से दूसरी जगह गतिमान रहते हैं। कोर ग्रुप पोलियो परियोजना पोलियो के शिकार बच्चों के परिवारों कौ भी मदद करती है। इससे पोलियो के समय से पता लगाने में मदद मिलती है।

अमेरिका में 1950 और 1960 के दशक में पोलियो ने जो कहर ढाया, उसकी यादें अब भी लोगों के दिलों में ताज़ा हैं और वे पोलियो उन्मूलन के प्रयासों में मदद करते हैं। रोटरी इंटरनेशनल के कपूर कहते हैं, ‘‘हर साल 300 से ज़्यादा अमेरिकी रोटरी सदस्य पोलियो टीकाकरण अभियानों में हिस्सा लेने भारत आते हैं। वे उत्साह बनाए रखते हैं, वे धन जुटाते हैं, अपनी जेब से योगदान करते हैं और पोलियो उन्मूलन में मदद के लिए मुश्किल जगहों पर रहते हैं।’’

सिमी वैली, कैलिफ़ोर्निया में भारतीय अमेरिकी वित्तीय सलाहकार और रोटरी सदस्य अनिल गर्ग हर साल भारत आते हैं। वह एक घटना को याद करते हैं, ‘‘वर्ष 2000 में मेरी पहली यात्रा की बात है। मैंने एक युवा महिला को अपने शिशु को पोलियो की दवा पिलाते देखा। दवा की खुराक के बाद मैंने उस मां की आंखों को देखा, उनमें कृतज्ञता भरी थी… इसने मेरे उस संकल्प को दृढ़ किया कि पोलियो के खात्मे तक मैं भारत जाता रहूंगा।’’

रोटरी सदस्य और सैन फ्रांसिस्को, कैलिफ़ोर्निया में अंतरराष्ट्रीय टूर कंपनी के मालिक ब्राड होवार्ड ने मार्च 2009 और पिछले साल नवंबर में मुरादाबाद में टीकाकरण अभियान में भाग लिया। वह कहते हैं, ‘‘मैंने केंद्रीय टीकाकरण केंद्र में काम किया, जहां पांच साल से कम उम्र के सैंकडों बच्चों को पोलियो की दवा पिलाई गई। अगले दिन हम घर-घर गए जिससे कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हर बच्चे को पोलियो की दवा पिलाई जा चुकी है।’’

होवार्ड कहते हैं, ‘‘दुनिया पोलियो से मुकाबले में भारत की सफलता को बड़े ध्यान और प्रशंसा के साथ देख रही है। जब तक पोलियो का भारत और पूरी दुनिया से खात्मा नहीं हो जाता, तब तक बच्चों पर खतरा मंडरा रहा है, अमेरिकी बच्चे खतरे में हैं, भारतीय बच्चे खतरे में हैं, सभी देशों के बच्चों पर खतरा मंडराता रहेगा।’’

मूलत: प्रकाशित जनवरी/फ़रवरी 2011



टिप्पणियाँ

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *