विज्ञान, प्रौद्योगिकी, पर्यावरण और अंतरिक्ष

आने वाले दशकों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, और अंतरिक्ष खोज जैसे अवसरों और स्वच्छ हवा, स्वच्छ पानी तक पहुंच और वन्यजीवों को बचाने जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए मिलकर काम करने के साथ हमारे साझा नेतृत्व की महत्ता और बढ़ेगी।

जनवरी 2021

विज्ञान, प्रौद्योगिकी, पर्यावरण और अंतरिक्ष

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2015 में कैलिफ़ोर्निया की यात्रा के दौरान गूगल के सीईओ सुंदर पिचई से मुलाकात की। फोटोग्राफ: मैरिको जोस सांचेज ©एपी इमेजेज

अमेरिका और भारत ने लंबे समय से विज्ञान के माध्यम से दुनिया को समझने और अपने नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाने की साझा प्रतिबद्धता दिखाई है। इस प्रतिबद्धता का हमारे दोनों देशों की सरकारों, नॉन-प्रॉफ़िट संस्थानों जैसे विश्वविद्यालय, सिविल सोसायटी और फ़ाउंडेशन, निजी कंपनियों और दोनों देशों में अनगिनत व्यक्तियों ने समर्थन किया है। यह हमारे लोगों के द्वारा खोज और उपलब्धियों के इतिहास पर निर्मित है और भारत के मामले में हज़ारों वर्ष पीछे तक जाती है। हमारा सहयोग अपनी ज़मीनों, पर्वतों, हवा, नदियों और वन्यजीवों को बचाने के लिए है जो बहुत-से लोगों के लिए पावन है, और यह प्राकृतिक संसाधनों के लिए भी है जिन्हें ज़िम्मेदारी के साथ इस्तेमाल में लाया जाए तो वे हमारे विकास को शक्ति दे सकते हैं और प्राकृतिक आश्रय स्थलों को संरक्षित कर सकते हैं।

हमारे द्विपक्षीय संबंधों के विकास के साथ, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, पर्यावरण और अंतरिक्ष में हमारी साझा उपलब्धियां भी आगे बढ़ी हैं। इन क्षेत्रों में हमारे नेतृत्व ने दुनिया की बेहतरी के लिए ज्ञान की प्रगति में मदद की है। यह नेतृत्व हिंद-प्रशांत के साझा समुद्रक्षेत्र, वैश्विक जलवायु मसलों और अंतरिक्ष में हमारे सहयोग में खास तौर पर दिखाई देता है। हमारे गठजोड़ ने आर्थिक विकास को बढ़ाया है और हमारेन् लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर किया है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, और अंतरिक्ष खोज जैसे अवसरों और स्वच्छ हवा, स्वच्छ पानी तक पहुंच और वन्यजीवों को बचाने जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए मिलकर काम करने के साथ हमारे साझा नेतृत्व की महत्ता आने वाले दशकों में और बढ़ेगी।

विज्ञान और पर्यावरण के क्षेत्र में सहयोग का इतिहास

विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण के क्षेत्र में अमेरिका-भारत सहयोग 18वीं सदी में हमारे बेहद पहले के संपर्कों तक जाता है, जब व्यापारी हमारे साझा समुद्री क्षेत्रों के पार जाकर अपने प्राकृतिक संसाधनों, कृषि पद्धतियों, और कपड़ा बनाने के ज्ञान की सौगात के व्यापार के लिए जाते थे। अमेरिका आने वाले कुछ सबसे पहले के भारतीय आप्रवासी मल्लाह थे या बंदरगाहों पर काम करने वाले, जो राज्य के बंदरगाह पर अपने श्रम कौशल के इस्तेमाल के लिए मेसाच्यूसेट्स में बस गए। वर्ष 1851 में भारतीयों के एक दल ने सलेम, मेसाच्यूसेट्स में 4 जुलाई की परेड में भाग लिया। ये लोग ईस्ट इंडिया मरीन सोसायटी का बैनर लिए हुए थे। ये और अन्य भारतीय विज्ञान और खोज के प्रति भारतीय सभ्यता में गहन सराहना के भाव के प्रतीक थे, जिसके बारे में रामायण में पंडित जवाली, 5वीं सदी में गणितज्ञ आर्यभट्ट और छठी शताब्दी में खगोलविद वराहमिहिर ने बताया था।

उन्नीसवीं सदी के आखिर में और बीसवीं सदी के प्रारंभ में भारत के लोग विज्ञान के अध्ययन के लिए अमेरिकी विश्वविद्यालयों में आने लगे। वर्ष 1882 में केशव मल्हार भट्ट एडवांस्ड इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए पुणे से मेसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी पहुंचे। अमेरिका में विज्ञान का अध्ययन करने वाले बहुत-से भारतीय विद्यार्थियों को महात्मा गांधी और उनके सहयोगियों ने प्रोत्साहित किया, जो पढ़ाई के लिए वित्तीय मदद लेने हेतु भारतीय उद्योगपतियों को लिखे पत्रों को संपादित करते थे। गोविंद बिहारी लाल, जो बाद में पुलित्ज़र पुरस्कार पाने वाले सैन फ्रांसिस्को एक्जामिनर के विज्ञान संपादक बने, ने वर्ष 1912 में यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया, बर्कली से पढ़ाई की। येलाप्रागडा सुब्बाराव 1923 में आने के बाद हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में विख्यात जैवरसायनविद बने।

इस बीच निजी अमेरिकी समूह, जैसे अमेरिकन मराठी मिशन, पश्चिम भारत के संस्थानों में प्राकृतिक विज्ञान पढ़ा रहे थे। रॉकफेलर फ़ाउंडेशन ने वर्ष 1916 में भारत में काम शुरू किया और कोलकाता के उष्णकटिबंधीय औषधि संस्थान में आदिजंतुविज्ञान की पीठ को प्रायोजित किया और आने वाले दशकों में विज्ञान, चिकित्सा और कृषि से जुड़े प्रोजेक्टों में मदद की।

वर्ष 1947 में भारत की आज़ादी के बाद विज्ञान के क्षेत्र में सहयोग का विस्तार हुआ। शुरुआती सहयोग में अंतरिक्ष एक महत्वपूर्ण क्षेत्र था। वर्ष 1962 में भारत के आठ अंतरिक्ष इंजीनियरों की एक टीम, भविष्य में भारत के राष्ट्रपति बनने वाले राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम सहित, ने वालप्स आइलैंड लांच सेंटर समेत वर्जीनिया ओर मैरीलैंड में नासा के परिसरों में प्रशिक्षण लिया। इसके एक वर्ष बाद भारत ने अपना पहला राकेट प्रक्षेपित किया, जो नासा द्वारा उपलब्ध कराया गया नाइकी-अपाचे राकेट था। इससे भारत की अपनी अंतरिक्ष उपलब्धियों की शुरुआत हुई।

20वीं शताब्दी के दूसरे हिस्से में विज्ञान के क्षेत्र में गैरसरकारी सहयोग में भी वृद्धि हुई। विज्ञान, प्रौद्योगिकी और इंजीनियरिंग में सहयोग के लिए बहुत-सी अमेरिकी फ़ाउंडेशन, कंपनियों और विश्वविद्यालयों ने भारत में अपनी गतिविधियां शुरू कीं या फिर अपने भारतीय समकक्षों के साथ संबंध स्थापित किए। अमेरिका से पढ़ाई या काम कर लौटे भारतीयों ने अक्सर महत्वपूर्ण योगदान दिया। इनमें एस.एल. किर्लोस्कर भी शामिल हैं जिन्होंने एमआईटी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और बेंगलुरू में किर्लोस्कर इलेक्ट्रिक कंपनी और पुणे में किर्लोस्कर ऑयल इंजंस लिमिटेड की शुरुआत की।

अमेरिका में बहुत-से भारतीय प्रवासी विज्ञान, इंजीनियरिंग और संबद्ध क्षेत्रों में अग्रणी हो गए। उदाहरण के तौर पर, राकेश गंगवाल अपनी इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि के बूते वर्ष 1998 में यू.एस. एयरवेज के सीईओ बन गए। बाद में उन्होंने भारत लौटकर इंडिगो एयरलाइन की सह-स्थापना की। हरियाणा में जन्मी कल्पना चावला नासा में अंतरिक्ष यात्री बनीं और पहली बार वर्ष 1997 में अंतरिक्ष की यात्रा पर गईं। सुनीता विलियम्स भी नासा की अंतरिक्ष यात्री बनीं। उनके पिता का परिवार गुजरात से है। 1990 और 2000 के दशक में बहुत-से भारतीय सॉ़फ्टवेयर इंजीनियरों ने अमेरिका में सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग के विकास में योगदान दिया।

अमेरिका-भारत सरकारी सहयोग भी और गहन हुआ। इसमें विज्ञान और प्रौद्योगिकी गठजोड़ को बढ़ावा देने के लिए 11 करोड़ के फंड की शुरुआत शामिल है, जिसने 1987 में आकार लिया। वर्ष 2000 में यह इंडो-यू.एस. साइंस एंड टेक्नोलॉजी फ़ोरम के तौर पर सामने आया। वर्ष 2005 में अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडोलीज़ा राइस और भारत के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री कपिल सिब्बल ने मूल विज्ञान, अंतरिक्ष और अन्य क्षेत्रों में गठजोड़ बढ़ाने के लिए वृहद विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी समझौते पर हस्ताक्षर किए।

वर्ष 2005 में नागरिक अंतरिक्ष सहयोग को लेकर अमेरिका-भारत वर्किंग ग्रुप की स्थापना हुई। वर्ष 2008 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान (इसरो) के चंद्रयान-1 मिशन में नासा के भी दो पेलोड थे, जिन्होंने चंद्रमा पर पानी के अणु होने की पुष्टि करने में मदद की। वर्ष 2010 में अमेरिका और भारत ने अमेरिका-भारत कृषि वार्ता की पहली बैठक और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सहयोग के संयुक्त आयोग की बैठक आयोजित की। इसकी सह-अध्यक्षता विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी नीति पर व्हाइट हाउस ऑफ़िस के निदेशक जॉन होल्ड्रेन और भारत के विज्ञान-प्रौद्योगिकी एवं भू विज्ञान राज्य मंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने की।

2015-2020: उच्च स्तरीय समर्थन से विज्ञान एंव प्रौद्योगिकी सहयोग बढ़ा

पिछले कुछ वर्षों में विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण के क्षेत्रों में हमारा सहयोग और सशक्त हुआ है। इसमें हमारे लीडरों का समर्थन भी शामिल रहा है। राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपनी जनवरी 2015 की भारत यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ जलवायु परिवर्तन और वैज्ञानिक आदान-प्रदान समेत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग को और बढ़ाने के लिए संयुक्त प्रयासों पर चर्चा की। प्रधानमंत्री मोदी ने कैलिफ़ोर्निया में सिलिकॉन वैली की यात्रा की और गूगल, टेस्ला और ़फेसबुक के परिसरों को देखा। प्रधानमंत्री ने अमेरिका में अपनी डिजिटल इंडिया पहल और भारत में निजी क्षेत्र में कई तरह की तकनीकी गठबंधनों की संभावनाओं के अवसरों के बारे में चर्चा की। जून 2016 में प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका की यात्रा के दौरान उन्होंने और राष्ट्रपति ओबामा ने भारत में लेज़र इंटऱफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्जर्वेटरी बनाने में मदद के लिए अमेरिका-भारत संयुक्त निगरानी समूह गठित करने का स्वागत किया। इसके अलावा, राष्ट्रपति ओबामा और प्रधानमंत्री मोदी ने वाशिंगटन,डी.सी. में हमारे महासागर सम्मेलन में भारत के शामिल होने का स्वागत किया।

जून 2017 में राष्ट्रपति डॉनल्ड जे. ट्रंप और प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात पर चर्चा की कि वैश्विक भागीदारों के तौर पर दोनों देश किस तरह से ‘‘स्वास्थ्य, अंतरिक्ष, महासागर और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के अन्य क्षेत्रों में अपना गठजोड़ और सशक्त बना सकते हैं।’’ सितंबर 2019 में राष्ट्रपति ट्रंप और प्रधानमंत्री मोदी ने ह्यूस्टन, टेक्सस में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में भाग लिया, जहां प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात ऊर्जा, रसायन और इंजीनियरिंग क्षेत्र की अमेरिकी कंपनियों से हुई। राष्ट्रपति ट्रंप की फ़रवरी 2020 की भारत यात्रा के दौरान उन्होंने और प्रधानमंत्री मोदी ने फिर से विज्ञान ओर प्रौद्योगिकी पर चर्चा की और भू-प्रेक्षण, मंगल ग्रह खोज और सौरभौतिकी पर द्विपक्षीय सहयोग में प्रगति का स्वागत किया।

विज्ञान, पर्यावरण, प्रौद्योगिकी और संबद्ध विषयों पर सुनियोजित वार्ताओं से हमारे बढ़ते सहयोग को दिशा और संसाधन मिले हैं। अकेले वर्ष 2016 में ही अमेरिका और भारत ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए बने संयुक्त वर्किंग ग्रुप का सत्र आयोजित किया, वनस्पति स्वास्थ्य द्विपक्षीय बैठक आयोजित की, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सहयोग पर संयुक्त समिति बैठक का सत्र आयोजित किया और प्राणी स्वास्थ्य को लेकर द्विपक्षीय बैठक का आयोजन किया। हमने नई व्यवस्थाएं भी बनाईं, जैसे अमेरिका-भारत कृषि दृष्टिकोण मंच (जिसकी स्थापना वर्ष 2017 में कृषि नीति और खेती में तकनीक के इस्तेमाल पर चर्चा के लिए की गई) और अमेरिका-भारत महासागर वार्ता। आर्थिक विकास के लिए महासागरीय संसाधनों के सदाजीवी इस्तेमाल के साथ विश्व के महासागरों की सेहत के संरक्षण पर चर्चा के लिए महासागर वार्ता का शुभारंभ वर्ष 2017 में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद के गोवा स्थित राष्ट्रीय महासागर संस्थान (सीएसआईआर-एनआईओ) में हुआ।

मानवता के लाभ के लिए अंतरिक्ष की मिलकर खोज

हाल के वर्षों में अंतरिक्ष हमारे सहयोग का सर्वाधिक सफल क्षेत्र रहा है। इसमें गहन अंतरिक्ष खोज के लिए आधुनिक उपग्रह बनाने से लेकर निजी क्षेत्र में अंतरिक्ष गठजोड़ शामिल है। हमारी सरकारों ने अंतरिक्ष से जुड़े मुद्दों पर सफल वार्ताएं की हैं, जिनमें वर्ष 2015 और 2019 में अमेरिका-भारत नागरिक अंतरिक्ष संयुक्त वर्किंग ग्रुप की बैठकें शामिल हैं। हमने अंतरिक्ष में उभरते सुरक्षा मुद्दों पर ध्यान देने के लिए वर्ष 2015 में नई अमेरिका-भारत अंतरिक्ष सुरक्षा वार्ता का शुभारंभ कर अपने सहयोग का विस्तार किया और वर्ष 2016 और 2019 में वार्ताओं के और दौर हुए।

अमेरिका-भारत अंतरिक्ष सहयोग और विश्व के लिए इसके महत्व का बड़ा उदाहरण संयुक्त नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रेडार (निसार) है। भूप्रेक्षण करने वाले इसे 1.5 अरब डॉलर के अत्याधुनिक उपग्रह से हमारे ग्रह की कुछ सर्वाधिक जटिल प्रक्रियाओं को मापने और समझने में वैज्ञानिकों की योग्यता में बढ़ोतरी होगी। इसरो एस-बैंड रेडार उपलब्ध करा रहा है ओर नासा की जेट प्रपल्सन लैबोरेटरी (जेपीएल) एल-बैंड रेडार उपलब्ध करा रही है। इस पेलोड को वर्ष 2022 में इसरो द्वारा संभावित प्रक्षेपण के लिए भारत लाने से पहले इसे अमेरिका में जोड़ा जाएगा। जेपीएल ने अपने डीप स्पेस नेटवर्क की मदद से इसरो के चंद्रमा मिशन चंद्रयान और भारत के मार्स ऑरबिटर मिशन, जिसे मंगलयान के नाम से जाना जाता है, के लिए संचार व्यवस्था में भी मदद की है। इसके अलावा अमेरिका के यू.एस. नेशनल ओशिएनिक एंड एटमस्फरिक एडमिनिस्ट्रेशन और यू.एस. जियोलॉजिकल सर्वे ने क्रमश: वैश्विक मौसम और भू संसाधनों से संबद्ध आंकड़ों को साझा करने के लिए इसरो से गठजोड़ किया है।

अमेरिका का व्यावसायिक अंतरिक्ष उद्योग भारत के साथ सहयोग में बढ़ोतरी कर रहा है और निजी क्षेत्र की पहल के दोहन का मॉडल तैयार कर रहा है। वर्ष 2015 से, उदाहरण के तौर पर, भारत द्वारा प्रक्षेपित किए गए ज्यादातर विदेशी उपग्रह अमेरिकी कंपनियों के थे। जब इसरो ने एक राकेट से 104 उपग्रह प्रक्षेपित करने का विश्व रिकॉर्ड बनाया तो उनमें से 96 अमेरिका की निजी कंपनियों के थे। अमेरिका-भारत के इस गठजोड़ से संचार व्यवस्था की बेहतरी से लेकर वैज्ञानिक शोध तक कई तरह के वैश्विक लाभ मिले हैं।

प्रो़फेशनल और शैक्षिक आदान-प्रदान से वैज्ञानिक ज्ञान को बढ़ावा

हाल के वर्षों में अमेरिका और भारत के ज्यादा वैज्ञानिकों ने गठजोड़ किए हैं, जिसका श्रेय आंशिक तौर पर अमेरिका और भारत की सरकारों, नॉन-प्रॉफ़िट संस्थानों और निजी कंपनियों द्वारा आदान-प्रदान में की गई सहायता को जाता है। सितंबर 2014 में राष्ट्रपति ओबामा और प्रधानमंत्री मोदी ने जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दों के समाधान के लिए हमारी दीर्घकालीन क्षमता को सशक्त बनाने के लिए ़फुलब्राइट-कलाम क्लाइमेट ़फेलोशिप की घोषणा की। वर्ष 2016 में इसकी शुरुआत के बाद से 31 डॉक्टरल और पोस्ट-डॉक्टरल शोधकर्मी इस ़फेलोशिप से लाभान्वित हो चुके हैं। उदाहरण के तौर पर, वर्ष 2018 में कैलिफ़ोर्निया स्थित लॉरेंस बर्कली नेशनल लैबोरेटरी ने ़फुलब्राइट ़फेलो डॉ. जयरमन चिलायिल की मेज़बानी की। इसके बाद उन्होंने भारत में ऊर्जा दक्ष भवनों के डिज़ाइन, निर्माण और संचालन के लिए एक निर्देशिका प्रकाशित की।

भारत में अमेरिकी मिशन ने दज़र्नों भारतीय वैज्ञानिकों की इंटरनेशनल विजिटर लीडरशिप प्रोग्राम के तहत अमेरिका यात्रा को प्रायोजित किया है, जिससे कि वे अपने अमेरिकी समकक्षों से मिलकर सर्वश्रेष्ठ तौरतरीकों का आदान-प्रदान कर सकें। हाल ही के प्रोग्रामों में अन्य विषयों के अलावा जैवविविधता, स्वच्छ हवा, अंतरिक्ष और विज्ञान एवं तकनीकी नवप्रवर्तन पर ध्यान केंद्रित किया गया। यू.एस. इंडिया एजुकेशनल फ़ाउंडेशन ने ़फुलब्राइट-नेहरू प्रोग्राम के तहत भारतीयों को कई अनुदान उपलब्ध कराए हैं, जिससे कि अमेरिका में जैव-अभियांत्रिकी, जलवायु विज्ञान, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और फिज़िकल साइंस के क्षेत्र में शोध का काम कर सकें। अमेरिकी दूतावास ने विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की मदद और वायु प्रदूषण जैसे मुद्दों पर भारतीय समकक्षों से गठजोड़ के लिए अमेरिका के कई विज्ञान फेलो को भारत आकर काम करने में मदद की है।

वायु प्रदूषण से निपटने के लिए बढ़ता सहयोग

हाल के वर्षों में अमेरिका और भारत ने वायु प्रदूषण कम करने के लिए सहयोग का विस्तार किया है, जो दोनों देशों के लोगों के स्वास्थ्य और आर्थिक विकास के लिए गंभीर चुनौती है। अमेरिका ने वायु गुणवत्ता को बेहतर करने के अपने अनुभवों के आधार पर भारत के प्रयासों में, वैज्ञानिक आदान-प्रदान, तकनीकी गठजोड़ और आंकड़ों के संग्रह के जरिये, योगदान किया है जिससे कि वे वायु प्रदूषण के बारे में बेहतर समझ बना पाएं और उस पर नज़र रख सकें।

भारत में अमेरिकी मिशन ने नई दिल्ली स्थित अपने दूतावास और चेन्नई, हैदराबाद, कोलकाता और मुंबई के कांसुलेटों में एडवांस्ड एयर क्वालिटी मॉनिटर लगाए हैं और अब इस बारे में जानकारी भारतीय वैज्ञानिक समुदाय और लोगों के साथ साझा की जा रही है। अमेरिकी दूतावास ने आंकड़ों के संग्रहण में बढ़ोतरी के लिए उत्तर भारत के विद्यालयों और संस्थानों को 55 से भी अधिक कम लागत वाले एयर क्वालिटी सेंसर उपलब्ध कराए हैं और साथ ही, वायु प्रदूषण को लेकर विद्यर्थियों में दिलचस्पी प्रेरित करने का काम भी किया गया है। फ़रवरी 2020 में राजदूत केनेथ आई. जस्टर ने द मिंट में लिखे एक लेख में इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत किस तरह से वायु प्रदूषण से निपटने में अमेरिकी अनुभवों का लाभ उठा सकता है।

वायु गुणवत्ता के लिए अमेरिकी दूत डॉ. जेम्स शॉअर वायु प्रदूषण से जुड़ी श्रेष्ठ पद्धतियों के कार्यान्वयन और इसकी रोकथाम के बारे में भारतीय शोधकर्मियों, सरकारी अधिकारियों और नागरिक संगठनों के साथ चर्चा के लिए वर्ष 2018 और 2019 में भारत यात्रा पर आए। वर्ष 2015 में यू.एस. नेशनल इंस्टीट्यूट फ़ॉर एनवार्यनमेंटल हेल्थ साइंसेज के डॉ. श्री नदादुर वायु प्रदूषण और इसके स्वास्थ्य पर प्रभाव से जुड़े एक शोध प्रोग्राम पर भागीदारों के साथ काम करने के लिए तीन महीने तक दिल्ली में रहे। भारतीय घरों में खाना पकाने के लिए ठोस ईंधन के इस्तेमाल में कमी लाने और परिवेश में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए यू.एस. सेंटर्स फ़ॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ हेल्थ ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद और अन्य भारतीय भागीदारों के साथ काम किया है।

इन सरकारी कार्यक्रमों के अलावा बहुत-से अमेरिकी और भारतीय शिक्षाविद वायु गुणवत्ता पर शोध के लिए गठजोड़ कर रहे हैं। अटलांटा की एमॉरी यूनिवर्सिटी, उदाहरण के लिए, चेन्नई के श्री रामचंद्र उच्च शिक्षा एवं शोध संस्थान के साथ इस पर अध्ययन कर रही है कि घरों में खाना बनाने के लिए एलपीजी के इस्तेमाल से क्या लाभ हैं। यह शोध प्रधानमंत्री मोदी की उज्जवला योजना के संगत है जिसके तहत करोड़ों भारतीय घरों को एलपीजी के लिए सब्सिडी उपलब्ध कराई जाती है।

औद्योगिक उत्सर्जन में पारदर्शिता बढ़ाने में भारत के प्रयासों में मदद के लिए यूएसएड ने भारतीय भागीदारों के साथ मिलकर वर्ष 2017 में औद्योगिक संयंत्रों के लिए ‘‘स्टार रेटिंग’’ का शुभारंभ किया। महाराष्ट्र और गुजरात में इसकी सफल शुरुआत के बाद अन्य राज्यों ने भी अनिवार्य प्रदूषण घोषणा योजना को अमल में लाने के इरादे की घोषणा की है। यूएसएड ने सूरत, गुजरात में एक पायलट प्रोग्राम में मदद की है, जो प्रदूषण की रोकथाम के लिए बाज़ार आधारित नियमन को स्वीकृति देता है। इस प्रोग्राम को यूनिवर्सिटी ऑफ़ शिकागो के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट ने तैयार किया है और इसे गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का समर्थन है। यह भारत और विश्व का कणीय उत्सर्जन पर पहला ‘‘कैप-एंड-ट्रेड’’ प्रोग्राम है।

इसके अलावा, अमेरिकी कंपनियों ने कणीय उत्सर्जन में कमी लाने वाली और ऊर्जा दक्षता बढ़ाने वाली तकनीकें उपलब्ध कराकर वायु प्रदूषण से निपटने में योगदान दिया है। उदाहरण के लिए, भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड ने वर्ष 2018 में एक ताप बिजलीघर परियोजना के लिए जीई पॉवर से जुड़वां बॅयलर उपकरण हासिल किए हैं जससे ऊर्जा दक्षता बढ़ने के साथ ही प्रदूषण में भी कमी आएगी।

आजीविका के साथ वन्यजीवों और वनों का संरक्षण

हाल के वर्षों में अमेरिका और भारत ने भारत के अद्भुत राष्ट्रीय संसाधनों और वन्यजीवों के संरक्षण के लिए भागीदारी के लंबे इतिहास का विस्तार किया है। द यू.एस. फिश एंड वाइल्डलाइफ़ सर्विस (यूएसएफ़डब्ल्यूएस) के भारत में 19 सक्रिय प्रोग्राम हैं। ये हिम तेंदुओं के लिए सामुदायिक समर्थन तैयार करने से लेकर भारत के समुद्री कछुओं के पर्यावास के संरक्षण से जुड़े हैं। यूएसएफ़डब्ल्यूएस ने वर्ष 2019 में एशियाई हाथियों के लिए समर्थन जुटाने को तीन वर्ष का कार्यक्रम शुरू किया। इसके तहत भारत के पश्चिमी घाट में हाथियों के अभयारण्य से जुड़े संघर्ष वाले इलाकों में संरक्षण और शिक्षा की मुहिम की बात है। यूएसएफ़डब्ल्यूएस के अन्य अनुदानों के तहत बंगाली बाघ और असम एवं अरुणाचल प्रदेश में एक सींग वाले गैंडे और हुलूक लंगूरों के संरक्षण में मदद की गई है।

अमेरिका और भारत वन्यजीवों की तस्करी का मुकाबला करने के लिए भी भागीदारी कर रहे हैं। जीवों की प्रजातियों के लिए यह बड़ा खतरा है। वर्ष 2018 में अमेरिकी विदेश विभाग के ब्यूरो ऑफ इंटरनेशनल नारकोटिक्स एंड लॉ एन्फोर्समेंट अ़फेयर्स ने भारत की वन्यजीव संरक्षण सोसायटी और भारतीय वन्यजीव ट्रस्ट को भारत के स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर के अधिकारियों को वन्यजीवों की तस्करी से निपटने में श्रेष्ठ पद्धतियों के बारे में प्रशिक्षण के लिए 10 लाख डॉलर का अनुदान दिया। वन्यजीव संरक्षण सोसायटी के अनुसार इन कार्यक्रमों के शुरुआती आंकड़े संकेत देते हैं कि जिन क्षेत्रों में ये प्रोजेक्ट चल रहे हैं, वहां पर वन्यजीव तस्करी के अपराधों में सफलतापूर्वक अभियोग चलाने में 100 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।

वर्ष 2014 से 2019 तक यूएसएड ने मध्य भारत में बाघों की संख्या को बचाने के लिए टाइगर मैटर्स प्रोग्राम में मदद की। वन्यजीव संरक्षण ट्रस्ट के साथ कार्यान्वित इस प्रोग्राम के तहत हज़ारों वन और वन्यजीव कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया गया। इसके साथ ही बाघों के संरक्षण के लिए महाराष्ट्र के उमरेड-करहंडला और घोड़ाज़ारी वन्यजीव अभयारण्यों को नए क्षेत्रों के तौर पर स्थापित किया गया है।

अमेरिका और भारत ने भारत के वनों और पारिस्थितिकी तंत्र की अद्भुत विविधता के संरक्षण के लिए भी मिलकर काम किया है। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और कर्नाटक, मध्य प्रदेश, सिक्किम और हिमाचल प्रदेश के राज्य वन विभागों के साथ भागीदारी करते हुए यूएसएड ने भारत के वनों की पारिस्थितिकी सेहत और कार्बन भंडारण बेहतर करने और वनों पर आश्रित लोगों की आजीविका के लिए नई प्रबंध पद्धतियां विकसित की हैं। यूएसएड के फ़ॉरेस्ट प्लस प्रोग्राम के तहत भारत के वनों की हालत को जानने हेतु रिमोट सेंसिंग आंकड़ों और प्रोटोकोल के लिए भारतीय वन सर्वेक्षण के साथ मिलकर काम किया गया, जिससे कि कार्बन भंडारण और प्रवाह के बार में ज्यादा सटीक आकलन उपलब्ध कराए जा सकें।

स्वच्छ जल, स्वच्छ विश्व

अमेरिका और भारत की सरकारों ने नॉन-प्रॉफ़िट और निजी क्षेत्र के भागीदारों के साथ मिलकर स्वच्छ जल की बेहतर उपलब्धता के लिए सहयोग को बढ़ाया है। दिसंबर 2019 में यू.एस. जियोलॉजिकल सर्वे और भारत के जल शक्ति मंत्रालय ने जल सहयोग के मसले पर एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। अमेरिकी कांसुलेट जनरल चेन्नई ने वाटर मैटर्स नामक दो वर्षीय बहुआयामी अभियान के लिए वाशिंगटन, डी.सी. स्थित स्मिथसॉनियन इंस्टीट्यूशन से भागीदारी की, जिसके तहत टिकाऊ जल प्रबंधन के लिए जन जागरूकता को प्रोत्साहित किया गया। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा वर्ष 2015 में शुरू किए गए अटल नवीकरण और शहरी परिवर्तन मिशन को यूएसएड ने तकनीकी सहायता उपलब्ध कराई है, जिससे कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सक्रिय सीवेज नेटवर्क के साथ स्वच्छ जल आपूर्ति भी जुड़ी हो।

अमेरिकी सरकार ने नदियों और उनमें सदा पानी सुनिश्चित करने को वनों के जलग्रहण क्षेत्र के संरक्षण के लिए भारतीय भागीदारों के साथ काम किया है। यूएसएड इस समय भारत के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के साथ मिलकर केंद्रीय और स्थानीय अधिकारियों के लिए वन प्रणाली समेत नई वन प्रबंधन पद्धतियों के विकास पर काम कर रहा है। वन प्रणाली को केरल, तेलंगाना और बिहार में पहले ही कार्यान्वित कर 300,000 हैक्टेयर वन क्षेत्र के आंकड़े जुटाए गए हैं। इससे केरल वन विभाग को अपनी वन प्रबंधन पद्धतियों को नया स्वरूप देने में मदद मिली है।

अमेरिकी कंपनियों ने आधुनिकतम तकनीकों के जरिये इन प्रयासों में योगदान किया है, जिनमें पानी के आवासीय, कृषि और औद्योगिक उपयोग के लिए ज्यादा दक्ष तरीके शामिल हैं। मेन आधारित आइडेक्स लैबारेटरीज, उदाहरण के लिए, पानी की गुणवत्ता और सुरक्षा का पता लगाने के काम में विश्व में अग्रणी है और इसने बहुत-से भारतीय भागीदारों और ग्राहकों के साथ काम किया है। इसने हाल ही में बेंगलुरू में द़फ्तर खोलकर भारत में अपने कामकाज का विस्तार किया है, जिससे कि कई भारतीय राज्यों में पानी की जांच की सेवा उपलब्ध कराई जा सके।

विज्ञान में सहयोग से स्वच्छ, अधिक उत्पादक और अधिक टिकाऊ भविष्य

ज्ञान को साझा करने, दुनिया की खोज करने और प्रकृति के अचरजों को संरक्षित रखने के लिए अमेरिकी और भारतीय लंबे समय से गठबंधन करते रहे हैं। हमारे संयुक्त प्रयासों से हमारे लोगों, हमारे प्राकृतिक पर्यावरण और ग्रह को लाभ मिला है। बहुत-सी शैक्षिक, वैज्ञानिक और व्यावसायिक तकनीकें और उपलब्धियां इस बात की साक्षी हैं।

लेकिन काफी कुछ किया जाना बाकी है, हमारे विकास में योगदान के लिए और यह सुनिश्चित करने के लिए कि हम ऐसा स्वच्छ, नीतिगत और टिकाऊ तरीकों से करें। अग्रणी लोकतांत्रिक देशों के तौर पर यह हमारी ज़िम्मेदारी है, हमारे राष्ट्रों के प्रति और दुनिया के प्रति। हमें विश्वास है कि हम अपने लोगों की प्रतिभा और नवखोजी उत्साह के बूते इसमें सफल होंगे।

विज्ञान में समान अवसर सुनिश्चित करना

अमेरिका और भारत की विज्ञान एवं तकनीकी नवप्रर्वतनों को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता में यह सुनिश्चित करना शामिल है कि प्रत्येक को विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणित यानी स्टेम की शिक्षा और रोज़गार के लिए समान अवसर मिलें। जेंडर समानता के उद्देश्य से ऊर्जा क्षेत्र में महिला नेतृत्व को बढ़ावा देने के लिए यूएसएड ने एक मंच बनाने को यू.एस.-इंडिया स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप फ़ोरम के साथ भागीदारी की है। इसके अलावा अमेरिकी दूतावास ने लड़कियों को स्टेम शिक्षा के लिए प्रेरित करने को कई तरह की गतिविधियां आयोजित की हैं। वर्ष 2020 की शुरुआत में दूतावास ने एक कार्यक्रम आयोजित किया जिसमें नई दिल्ली की एक बस्ती में लड़कियों को सूक्ष्मदर्शी दी गई, जिससे कि वे उसका इस्तेमाल स्वच्छ और प्रदूषित पानी में अंतर जानने के लिए करें। वर्ष 2019 में ब्यूरो ऑफ़ ओशंस एंड इंटरनेशनल एनवायर्नमेंटल एंड साइंटिफिक अ़फेयर्स की प्रिंसिपल डिप्टी असिस्टेंट सेक्रेटरी मार्सिया बर्निकाट स्टेम क्षेत्र में रोज़गार में भारत में महिलाओं की स्थिति पर महिला लीडरों से मिलीं, जिनमें भारत सरकार और गैरसरकारी सगठनों की महिलाएं शामिल थीं। वर्ष 2016 में नासा की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स ने विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में सपने साकार करने के लिए लड़कियों को प्रेरित करने को स्टेम राउंडटेबल में भाग लिया।

मानसून को समझने के लिए मिलकर काम

वर्ष 2012 की शुरुआत से यू.एस. ऑफ़िस ऑफ़ नैवल रिसर्च ने समुद्र की सतह और वातावरण में मानसून के बादलों के बनने के बीच संबंध के अध्ययन हेतु 5 वर्षीय प्रोग्राम के लिए फंड उपलब्ध कराया। इस प्रोग्राम का संचालन भारत के भू विज्ञान मंत्रालय के साथ मिलकर हुआ। महासागरों के तापमान और मानसून को प्रभावित करने वाले कारकों की बेहतर समझ से मौसम के और सटीक पूर्वानुमान में मदद मिलेगी और प्राकृतिक आपदाओं के बारे में भी बेहतर तरीके से अनुमान लगाया जा सकेगा। इसके अलावा इससे कृषि योजनाओं और अन्य आर्थिक गतिविधियों में भी बेहतरी आएगी।

स्वच्छ भारत मिशन में मदद

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘‘10 करोड़ शौचालय’’ की विशिष्ट निर्माण परियोजना स्वच्छ भारत का साथ देते हुए यूएसएड गूगल और भारत सरकार की उस भागीदारी में शामिल हुआ जिसके तहत शौचालय संकेतक को विकसित करना था, जो नागरिकों को सार्वजनिक शौचालयों के स्थान और खास मौके पर उनकी हालत के बारे में जानकारी दे।



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