सौर ऊर्जा के नए मित्र

भारतीय गांवों में बिजली की कमी से जूझ रहे घरों और छोटे उद्यमों को बेंगलुरू स्थित सिंपा नेटवर्क सौर ऊर्जा सेवा उपलब्ध करा रही है।

पारोमिता पेन

मई 2019

सौर ऊर्जा के नए मित्र

सिंपा के ग्राहक अपने यहां फोटोवोल्टेइक सिस्टम लगवाने के लिए कुछ शुरुआती भुगतान करते हैं। उसके बाद इसके प्रीपेड मीटर और मोबाइल भुगतान तकनीक की मदद से इसके इस्तेमाल के साथ-साथ भुगतान किया जाता है। फोटोग्राफ: साभार सिंपा नेटवर्क्स

वर्ष 2014 में जब पीयूष माथुर लंदन में प्राइवेट इक्विटी क्षेत्र में एक सफल कॅरियर के बाद भारत लौटे तो वे सामाजिक और विकासोन्मुख क्षेत्र में काम करना चाहते थे। वह बताते हैं, ‘‘वित्तीय क्षेत्र में मेरी एक विस्तृत पृष्ठभूमि है और मैंने सोचा था कि विकास के मोर्चे पर कोई बड़ा काम कर पाऊंगा, संभवत: किसी विकसात्मक वित्तीय संसथान के लिए। उसके बाद वह बेंगलुरू से काम कर रही कंपनी सिंपा नेटवर्क्स के संपर्क में आए।

वर्ष 2010 में सिंपा की स्थापना पॉल नीधम, जैकब विनिकी और माइकल मैकहार्ग ने की। ये तीनों ही जो वैकल्पिक ऊर्जा के क्षेत्र में जुनूनी उद्यमी थे। सिंपा घरों और दुकानों के लिए सौर ऊर्जा से चालित उपकरण बेचती है और उसके लिए पैसा भी उपलब्ध कराती है।  माथुर को सिंपा के सोच भा गई। उन्हें महसूस हुआ कि जितनी जरूरत कम लागत वाली सौर ऊर्जा की है उतना ही महत्व उस तक पहुंचने के लिए पैसों की भी है। उन्होंने इस कंपनी को बतौर चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर के रूप में ज्वाइन कर लिया। माथुर कहते हैं, ‘‘ऊपरी तौर पर देखने में यह सौर ऊर्जा का कारोबार-सा लगता है लेकिन यह एक ही समय पर ऊर्जा तक वित्तीय पहुंच बनाने के लिए एक समाधान के रूप में भी काम करता है। अगर लोगों की सामर्थ्य हो और उन्हें ग्रिड के जरिए सब्सिडी वाली बिजली नहीं मिल रही है तो  वे सीधे ही सौर ऊर्जा खरीद सकते हैं। हालांकि, सौर ऊर्जा के लिए एक मुश्त खर्च होने वाली राशि उनके बूते से बाहर होती है।’’ माथुर अब कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

सिंपा यानी सिंपल पेमेंट। यह इस सिद्धांत पर काम करती है कि सौर ऊर्जा तक पहुंच का काम सरल हो। साथ ही, बेहतरीन उपभोक्ता सेवाएं दी जाएं। उपभोक्ता को सौर उपकरण लगाने के लिए शुरुआत में थोड़ा भुगतान करना होता है और उसके बाद आप जैसे और जितनी बिजली खर्चेंगे उस हिसाब से भुगतान करना होगा। बिजली उपलब्ध कराने के बदले में जो भुगतान उपभोक्ता को करना होता है वह सौर ऊर्जा के लिए स्थापित उपकरण की कीमत में से कम होता जाता है और एक बार उपकरण की कीमत पूरी होने पर वह उपकरण उपभोक्ता का हो जाता है। वर्ष 2016 में सिंपा को ग्रामीण भारत में निम्न आय वर्ग के घरों और छोटे उद्यमों को सेवा देने के काम के विस्तार के लिए मिलेनियम एलायंस से ग्रांट भी मिली थी। मिलेनियम एलायंस अमेरिका और भारत की सरकारों के बीच नवोन्मेषियों की मदद के लिए बनी एक सहभागिता है।

सिंपा का लक्ष्य ऐसे घरों और संस्थानों को सौर बिजली उपलब्ध कराना है जो देश में बिजली ग्रिड से नहीं जुड़े हैं। सिंपा ने पिछले चार सालों में उत्तर प्रदेश, बिहार और ओडिशा के 42 हजार से ज्यादा घरों में सौर ऊर्जा के उपकरण स्थापित किए हैं।

माथुर का कहना है, ‘‘हम सौर ऊर्जा के उपकरणों के लिए बिक्री के समय मौके पर ही पैसा उपलब्ध कराते हैं। यह उपभोक्ता के लिए वहनीय होने के साथ-साथ आसान भी होता है। हमने इसे उपभोक्ता की सामर्थ्य के अनुरूप बना कर उसकी सौर ऊर्जा तक पहुंच के मसले का सामधान दिया है। हमने सीधी बिक्री का एक चैनल भी आजमाया जिसमें हम लोगों तक सीधे ही सौर उपकरण को लेकर गए और उनसे उनकी जरूरत और भुगतान की उनकी सामर्थ्य के बारे में जानकारी ले पाए। सभी उपभोक्ता किश्तों में भुगतान कर सकते हैं उन्हें एक साथ सारा पैसा नहीं देना होता है।’’

सिंपा अपने सेल्स एजेंट शहरों और क्षेत्रों में स्थानीय स्तर पर नियुक्त करती है और यही एजेंट कंपनी की रीढ़ होते हैं। माथुर कहते हैं, ‘‘हम अपने सेल्स एजेंटों का चयन बहुत ही सतर्कता से करते हैं। उन्हें स्थानीय होने के साथ, उनके अंदर यह भावना होना बेहद जरूरी होता है कि वे सामाजिक रूप से अपने क्षेत्र के लोगों को प्रभावित कर सकें और उन्हें सौर ऊर्जा को अपनाने के लिए प्रेरित कर सकें।’’

इन एजेंटों को ‘‘ऊर्जा मित्र’’ नाम से भी जाना जाता है। इनका काम ऐसे घरों या दुकानों की पहचान करना होता है जिन्हें सौर ऊर्जा से फायदा हो सकता है। वे उन लोगों से बात करते हैं और उनकी जरूरतों के बारे में और समझने की कोशिश करते हैं। उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति सूर्यास्त के समय अपनी दुकान सिर्फ इसलिए बंद कर देता क्योंकि उसके पास बिजली का कोई भरोसेमेंद साधन नहीं है तो सिंपा का एजेंट उसे इस मामले में सिंपा के सौर ऊर्जा पैनल के फायदों के बारे में समझा सकता है।

सिंपा की हर इकाई 15,000 से 35,000 रूपये के बीच होती है। माथुर बताते हैं, ‘‘शुरुआत में उपभोक्ता को 10 प्रतिशत तक भुगतान करना होता है और वह उत्पाद का इस्तेमाल शुरू कर सकता है। हमारी ग्राहक देखभाल टीम के सदस्य हर उस घर या संस्था में जाते हैं जहां उपकरणों का इस्तेमाल किया जा रहा है और यह सुनिश्चित करते हैं कि उनकी हर समस्या का तेजी के साथ समाधान निकल सके। इसी दौरान वे किश्तों का भुगतान भी उपभोक्ताओं से एकत्र करते हैं।’’

माथुर का कहना है कि सिंपा का वित्तीय मॉडल मजबूत और टिकाऊ है। वह बताते हैं, ‘‘आज ओपिक (ओवरसीज़ प्राइवेट इनवेस्टमेंट कॉरपोरेशन) और एडीबी (एशियन डवलपमेंट बैंक) जैसे संस्थानों से हमारी कंपनी के संबंध हैं। पहले, सिंपा एडीबी जैसे बैंकों से कर्ज लेकर उसे ग्राहकों को मुहैया कराती थी। आज सिंपा स्थानीय स्तर पर बैंको से सहभागिता करके इन सौर उपकरणों के लिए लोगों को पैसे उपलब्ध करा रही है।’’

उनका कहना है, ‘‘अगर आप मुझसे मेरी उपलब्धियों को परिभाषित करने को कहेंगे तो मैं कहूंगा कि इस क्षेत्र का विकास और इसे आर्थिक रूप से कारगर बनाना ही वे काम हैं जिन पर मैं गर्व करता हूं।’’

पारोमिता पेन यूनिवर्सिटी ऑफ़ नेवादा, रेनो में ग्लोबल मीडिया स्टडीज की असिस्टेंट प्रो़फेसर हैं।     



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