पुलित्ज़र विजेता कवि के अनुभव

नामी पुरस्कार हासिल करने वाले लेखक विजय शेषाद्रि लेखन प्रक्रिया और अपनी चर्चित कविताओं के पीछे छिपे रहस्य के बारे में बता रहे हैं।

माइकल गलांट

नवंबर 2018

पुलित्ज़र विजेता कवि के अनुभव

विजय शेषाद्रि न्यू यॉर्क के सारा लॉरेंस कॉलेज में अध्यापक हैं। फोटोग्राफ: बिल माइल्स

‘एक लेखक लिखने के बारे में सपना नहीं देखता। लेखक लिखता है।’’—विजय शेषाद्रि

विजय शेषाद्रि जैसे सधे हुए लेखक के बारे में कोई यही सोचेगा कि वह अपनी उंगलियां का इशारा करेंगे और खाली हवा से शानदार शब्द बुला लेंगे। पर वास्तव में, जैसा कि वह बताते हैं, एक कविता या लेख लिखना या किताब की पांडुलिपि तैयार करना रहस्य कम, कठिन परिश्रम ज़्यादा है।

शेषाद्रि कहते हैं, ‘‘जब लिखने की बात आती है, तो मैं कोई और तरीका नहीं खोज पाया हूं, सिवाय इसके कि शब्दों की दीवार से तब तक लगातार अपना सिर टकराऊं, जब तक कि मैं इससे कुछ हासिल न कर लूं। एक सफल लेखक बनने के लिए आपको एक मुश्किल समस्या के साथ तब तक जूझने का धैर्य दिखाना होता है तब तक कि आप कुश्ती करते हुए उस पर जीत हासिल न कर लें- वह कविता भी हो सकती है, निबंध भी या लघु कथा भी- और यह एक ऐसा कौशल है, जिसे आप समय के साथ हासिल करते हैं।’’

लेखन के प्रति शेषाद्रि में इस तरह की धारणा अपने अनुभव पर आधारित है। शेषाद्रि का जन्म बेंगलुरु में 1954 में हुआ और कम उम्र में ही माता-पिता के साथ ओहायो के कोलंबस में आ गए। 14 साल की उम्र में ही वह लेखक बनने की इच्छा रखते थे। वह कहते हैं, ‘‘मैं लेखक बनना चाहता था, क्योंकि मैं सिर्फ पढ़ता और पढ़ता ही रहता था। उस दौर में मेरी उम्र के तमाम बच्चे यही करते थे। हमारे पास तब कंप्यूटर या इंटरनेट नहीं था कि हम उन पर निर्भर रहें।’’ कॉलेज में जाने के दौरान शेषाद्रि ने समकालीन कविताओं से नाता जोड़ा और उसी सेमेस्टर में उन्होंने अपनी पहली कविता लिखी।

वर्ष 1982 में शेषाद्रि  न्यू यॉर्क सिटी चले गए और कोलंबिया यूनिवर्सिटी से मास्टर ऑफ फाइन आर्ट्स की डिग्री ली और भारतीय भाषाएं सीखने लगे। उसी दौरान उनकी कुछ कविताएं राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित कई पत्रिकाओं में छपीं। कोलंबिया में रहते हुए उन्होंने मध्य-पूर्व की भाषाओं और साहित्य के पीएच.डी. प्रोग्राम में दाखिला लिया, जिसमें उन्होंने फारसी और उर्दू की पढ़ाई की। दक्षिण एशिया में एक स्टडी ट्रिप के तहत वह लाहौर, पाकिस्तान गए। उस यात्रा से उन्हें महसूस हुआ कि पीएच.डी. प्रोग्राम से बदलाव की ज़रूरत है। शेषाद्रि कहते हैं, ‘‘मैं दक्षिण एशिया की राजनीति, और खासकर विभाजन के इतिहास में दिलचस्पी रखता था, लेकिन उस ट्रिप में मैंने फैसला कर लिया कि मैं पढ़ाने का कॅरियर नहीं चुनूंगा।’’

शेषाद्रि बिना किसी रोज़गार हासिल किए न्यू यॉर्क लौट गए। उन्हें अपने अगले कदम के बारे में पता नहीं था। सौभाग्य से उन्हें द न्यूयॉर्कर में, जो एक साहित्यिक और सांस्कृतिक पत्रिका थी और जिसने उनकी कई कविताएं छापी थीं, एक अवसर मिल गया। शेषाद्र्रि ने इस पत्रिका में कॉपी एडिटर के रूप में 1993 से 2000 तक काम किया। उसी समय उन्होंने न्यू यॉर्क क्षेत्र के विभिन्न संस्थानों में कविताओं के बारे में पढ़ाना शुरू किया। इस दौरान उनकी कविताएं छपती और प्रसिद्ध होती रहीं। 1998 में वह ब्रांक्सविल, न्यू यॉर्क के सारा लॉरेन्स कॉलेज में पहले अतिथि शिक्षक के तौर पर, फिर वर्ष 2000 में नियमित शिक्षक के तौर पर चले गए। तब से वह वहां नए लेखकों को लेखन के बारे में सिखा रहे हैं।

अपने पूरे कॅरियर में शेषाद्रि  को अपनी रचनात्मकता, नज़रिये और पेशेगत नैतिकता के कारण जितनी सफलता मिली है, उतनी कम ही लेखकों को मिलती है। दूसरी उपलब्धियों के साथ 2014 में उन्हें कविता के लिए पुलित्ज़र पुरस्कार मिला, जो इस तरह का प्रसिद्धतम पुरस्कार है। उन्हें अपनी काव्य कृति ‘‘3 सेक्शंस’’ के लिए पुलित्ज़र पुरस्कार मिला, जिस पर पुलित्ज़र कमेटी ने लिखा, ‘‘यह कविताओं का ऐसा सम्मोहक संग्रह है, जिसमें जन्म से स्मृतिलोप तक की मानव चेतना की कविताएं हैं, और ऐसे भावों में हैं, जो कभी मज़ाकिया हैं, तो कभी गंभीर, कभी दयालुता से भरी हैं तो कभी निष्ठुर हैं।’’

उन्हें जॉन साइमन गगनहीम मेमोरियल फाउंडेशन, न्यू यॉर्क फाउंडेशन फॉर द आर्ट्स और द नेशनल इन्डाउमेंट फॉर द आर्ट्स से अनुदान भी मिले हैं।

युवा लेखकों के लिए, जो अपनी रचनात्मकता के जरिये ऐसी ही सफलता हासिल करना चाहते हैं, शेषाद्रि की सलाह बहुत सीधी है: ‘‘पढ़ना शुरू करें।’’ वह कहते हैं, ‘‘अपनी कल्पना को मूर्त रूप देने का अभ्यास करने के लिए लिखें और कल्पना को मूर्त रूप देना सीखने के लिए पढ़ें। पाठक बने बगैर आप लेखक नहीं बन सकते।’’ इससे आगे शेषाद्रि जोर देते हुए कहते हैं, ‘‘उन्हीं लोगों की उम्मीदें सफल होती हैं, जो उसके लिए काम करते हैं। लेखक को हमेशा कुछ न कुछ रचने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए। उन्हें अपने जैसी समान सोच वाले लेखकों के संपर्क करना चाहिए, क्योंकि लेखक एकांत में नहीं लिखता, बल्कि छोटे और बड़े समुदायों के साथ संबंधों के आधार पर ही लिखता है। और इन तमाम लेखकों को अपना-अपना लेखन साझा करना और प्रकाशित करना चाहिए।’’

जब लेखन की बात आती है, तो शेषाद्रि कहते हैं कि दृढ़ता, धैर्य और लचीलेपन से ही यह संभव है। मैं अब भी यह नहीं समझ पाता कि कोई कैसे कविता लिखता है। वह हंसते हुए कहते हैं, ‘‘कई बार आप इस पर सिर्फ काम करते रहते हैं, बल्कि कई बार तो एक ही चीज बार-बार लिखते रहते हैं, जब तक कि यह पूरा नहीं हो जाता। कभी यह इतना सहज होता है जैसे कि डिक्टेशन ले रहे हों। लेकिन यह हमेशा एक जैसा नहीं होता।’’

लेखन की प्रक्रिया लंबी, कठिन और दर्द भरी हो सकती है, शेषाद्रि कहना जारी रखते हैं। ‘‘लेकिन कई बार यह उस संतुलन को बनाए रखने का जरिया भी होता है, जो कुछ मानवीय अनुभवों के चलते आपसे दूर हो गया है। यह अनुभव राहत पहुंचाने वाला, संतुलन बहाल करने वाला और वाकई उत्साहित करने वाला होता है।’’

अगस्त 2019 में शेषाद्रि को पेरिस रिव्यू का 12वां काव्य संपादक घोषित किया गया। इस साहित्यिक पत्रिका में मूल लेख, कला और जानेमाने लेखकों के साथ गहन इंटरव्यू प्रकाशित किए जाते हैं। अपनी नियुक्ति के बाद एनपीआर से बातचीत में उन्होंने कहा कि संपादन से किसी के सौंदर्य बोध को वाकई विस्तार मिल सकता है। “दोहराव की कमी और परिचय की कमी कुछ मायनों में दिलचस्प और विस्मयकारी होती है।” वह ऐसा कहते हैं, खासकर जब वे रिव्यू में बिना मंगाए भेजी गईं रचनाओं को देख रहे होते हैं और दिलचस्प स्वरों को खोजते हैं। “आप ऐसा महसूस करते हैं कि कुछ नया हो रहा है, इस अस्त-व्यस्तता और खलबली के बीच, हम सभी में।”

वर्ष 2020 में शेषाद्रि ने अपने नए कविता संग्रह “दैट वाज नाऊ, दिस इज देन” को जारी किया।

माइकल गलांट गलांट म्यूज़िक के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं। वह न्यू यॉर्क सिटी में रहते हैं।



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