भविष्य के लिए प्रशिक्षण

कानपुर के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में 200 विद्यार्थी प्रतिदिन प्रशिक्षण, कोर्स प्रोजेक्ट और शोध के लिए कंप्यूटर केंद्र का इस्तेमाल करते हैं।

लिन एशर

अगस्त 1970

भविष्य के लिए प्रशिक्षण

आईआईटी कानपुर  का आधुनिक परिसर। फोटोग्राफ: अविनाश पसरीचा

जब आईबीएम 7044 कंप्यूटर की फोटो खींची जा रही थी, तब होसाकेरे महाबाला खुश होकर कहते हैं, ‘‘मैंने महीनों तक मेसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के एक प्रोजेक्ट के लिए बनाए जा रहे एक किस्म के कंप्यूटर-रोबोट पर काम किया और मैं कभी भी उससे इस तरह से काम नहीं करा पाया, जिस तरह से से मेरी दो साल की बेटी काम कर लेती है।’’

महाबाला, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर हैं और वह कंप्यूटर के साथ अपने रिश्तों को गंभीरता से लेते हैं लेकिन दिल पर बिना किसी बोझ के। उनका कहना है, ‘‘हमें हमेशा जो चीज याद रखनी चाहिए वह यह है कि कंप्यूटर मूर्ख होता है। वास्तव में वह इस तरह का मूर्ख है जो अपना काम बहुत तेजी से कर सकता है- कुछ मामलों में तो वह 10 सेकंड में दस लाख गणना कर सकता है। इसके बावजूद वह आपके आदेश के बिना कुछ भी नहीं कर सकता।’’

आईआईटी के 7044-1401 सिस्टम संस्थान के नए कंप्यूटर सेंटर में मिंल रहे आदेश को पूरा करने में व्यस्त है जो वास्तुकला के नियमों के हिसाब से एक आधुनिक संरचना है। यह किसी भी भारतीय शैक्षिक संस्थान में कंप्यूटर की सुविधा वाला सबसे बड़ा केंद्र है, जो न सिर्फ आईआईटी के विद्यार्थियों को कंप्यूटर प्रशिक्षित करता है बल्कि कम अवधि के लिए आने वाले तमाम दूसरे शैक्षिक संस्थानों के  अलावा शोध और औद्योगिक संस्थानों के लोगों को भी प्रशिक्षित करता है। बी.टेक. करने वाले सभी 300 विद्यार्थियों को पाठ्यक्रम के तीसरे वर्ष में कंप्यूटर के इस्तेमाल के बारे में बताया जाता है। 500 पोस्ट ग्रेजुएट में से अधिकतर कंप्यूटर का इस्तेमाल करते हैं और किसी विशेष दिन सेंटर पर 200 विद्यार्थियों के प्रोग्राम चलते हैं जो आमतौर पर उनके प्रोजेक्ट और शोध के कार्य से जुड़े होते हैं।

इंजीनियरिंग विभाग में एक ग्रेजुएट प्रोग्राम कंप्यूटर साइंस के साथ के विकल्प के तौर पर उपलब्ध कराया जाता है। इस पाठ्यक्रम में प्रोग्रामिंग तकनीक और कंप्यूटर डिजाइन तकनीक से जुड़े अध्याय शामिल होते हैं। इसके अलावा कंप्यूटर एप्लीकेशन के कोर्स भी होते हैं।

सेंटर अपनी कंप्यूटर सुविधाएं और सेवाएं शोध और विकास से जुड़ी संस्थाओं को किराए पर भी उपलब्ध कराता है, हालांकि, 90 प्रतिशत तक यह सेवाएं और सुविधाएं फैकल्टी और विद्यार्थियों के प्रोजेक्ट के लिए ही आरक्षित होती हैं। अब तक 1000 से ज्यादा बाहरी संस्थानों ने सेंटर की इस सुविधा का इस्तेमाल किया है। उनकी आवश्यकताएं खासतौर पर तीन प्रकार की होती हैं-इंजीनियरिंग डिजाइन जैसे कि टर्बाइन सिस्टम, बिजली के जनरेटर, पुल और भवन, ऑपरेशंस रिसर्च जैसे कि पेट्रोल वितरण केंद्रों की लोकेशन और पूर्वानुमान की मांग, और सर्वेक्षणों में एकत्र किए आंकड़ों की सारणी बनाना और उनका विश्लेषण जैसे कि, शहर नियोजन में और मार्केट रिसर्च में।

7044 कॉम्पलेक्स को काम करते देखना बहुत कुछ वैसे ही होता है, जैसे कि अस्पताल की नर्सरी में किसी बच्चे को देखना। देखने वाले इन मशीनों को खिड़कियों से निहारते हैं, जबकि गर्वित इंजीनियर टेप, डिस्क, मेमोरी बैंक, कैलकुलेटर, प्रोसेसर और प्रिटिंग से जुड़े उपकरण आदि की तरफ इशारा करते हैं। इनमें से हरेक कोई न कोई इलेक्ट्रॉनिक परिणाम का कारक होता है। मजबूत फर्श पर इन्हें कई दर्जन केसों और कंसोलों में सैकड़ों किलोमीटर लंबे वायरों से सज्जित करके खास तरीके रखा जाता है। इनका वज़न भी काफी होता है। इस व्यवस्था की देखरेख के लिए इंस्टीट्यूट की तरफ से नौकरी पर रखे गए हाई स्कूल ग्रेजुएट ऑपरेटर तैनात होते हैं। इस पद के लिए आवेदन करने वालों को एक परीक्षा देनी पड़ती है और अगर वे सफल होते हैं तब उन्हें नौकरी पर रहते हुए प्रशिक्षित किया जाता है।

7044 कंप्यूटर अकेले काम नहीं कर सकता, बल्कि इसे अपने सहयोगी आईबीएम 1401 के इनपुट-आउटपुट सेटेलाइट से संबंधित प्रथामिक डेटा चाहिए होता है। मानव प्रोग्रामर का बनाया हुआ पहला प्रोग्राम डेटा जिसे कार्ड पर पंच किया जा चुका है, उसे 1401 में डाला जाता है। प्रत्येक कार्ड में किसी समस्या के समाधान के बारे में जानकारी या समाधान संबंधी जरूरी निर्देश होते हैं। इसे संख्यात्मक तरीके  से समझाया जाता है क्योंकि कंप्यूटर सिर्फ गणितीय भाषा को ही समझता है। 1401 इन वक्तव्यों को एक मैग्नेटिक टेप पर रिकॉर्ड करता है जो प्रति 10 कार्ड जानकारी या टेप पर प्रति इंच 800 कैरेक्टर का होता है। 70 इंच प्रति सेकंड की टेप स्पीड के साथ 1401 को 10 कार्डों के रिकॉर्ड को पढ़ने और रिकॉर्ड करने में एक सेकंड से भी कम वक्त लगता है। 1401 उस पूरे हो चुके टेप के डेटा को 7044 में भेज देता है जिसमें समस्या और उससे संबंधित डेटा को संग्रहीत किया गया है। उसके बाद 7044 उसे अपनी मशीनी भाषा मे बदल कर उसकी गणना के काम में जुट जाता है। सेकंडों में वह जवाब तलाश लेता है और उस टेप पर लिख देता है जो 1401 के लिए होता है, जहां उसे रीड किया जा सकता है या फिर पेपर पर उसका प्रिंट भी लिया जा सकता है।

कंप्यूटर ज्यादा तेज़ी के साथ काम करता है, बजाय इसके ऑक्सिलेरी रीडर और प्रिंटर 1401 के। उदाहरण के लिए, 2400 लाइनों की गणना एक मिनट में की जा सकती है लेकिन इसी समयावधि में सिर्फ 600 लाइनो को ही प्रिंट किया जा सकता है। इसीलिए सारे कामों को इस तरह से पहले से प्रोग्राम किया जाता है कि 7044 को उन्हे लगातार भेजा जा सके। 7044 के कीमती इलेक्ट्रॉनिक मस्तिष्क सेल्स को कुछ सेकंडों के लिए भी रोकना काफी महंगा साबित होता है। दरअसल, कंप्यूटर को खुद ही अपने समय की अहमियत समझ मे आती है और वह खुद ही अगर किसी प्रोग्राम में ऐसी गड़बड़ी पाता है जो उसे गणना से रोक रहा है तो वह उसे रिजेक्ट करके दूसरी गणना की तरफ बढ़ जाता है।

महाबाला, अपनी इस कंप्यूटर फैमिली के बारे में चुटकी लेने से भी नहीं चूकते और ये समझा देते हैं कि मशीनें चाहे कितनी भी संजीदा क्यों न हों, लेकिन उनका सेंटर अभी भी बिजली देवता की कृपा पर ही आश्रित है। वह बताते हैं, ‘‘एक ऐसा भी वक्त था, जब एक ही दिन में दो या तीन बार बिजली जाती थी, लेकिन पिछले साल इंस्टीट्यूट ने कैंपस मे अपनी बिजली व्यवस्था को बेहतर बनाया है और अब पहले जैसे ब्लैकआउट बार-बार नहीं होते।’’

इस उत्साही इंजीनियर ने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा, ‘‘कंप्यूटरों के लिए कानपुर की गर्मी भी बहुत खतरनाक है। इसके अलावा और ये मशीने खुद भी बहुत गर्मी पैदा करती हैं।’’ इसी के चलते, शायद भारत में सबसे बड़े एयर कंडीशनिंग सिस्टम को यहां लगाया गया। इसे यहां तैयार करने में यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डवलपमेंट (यूएसएड) से आर्थिक सहायता प्रदान की गई।

7044 के क्षेत्र के कॉरिडोर को पार करने पर खिड़कियों  वाला एक छोटा  कमरा है, जहां इंस्टीट्यूट का पहला कंप्यूटर, आईबीएम 1620 रखा गया है, जिसे यूएसएड से मिली ग्रांट से 1963 में खरीदा गया था। 7044 के मुकाबले सौ गुना धीमा होने के बावजूद यह काफी उपयोगी है और आज भी इसका इस्तेमाल आईआईटी विद्यार्थियों और इंस्टीट्यूट से बाहर के कर्मचारियों को कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के तरीके सिखाने में किया जाता है। महाबाला के अनुसार, भारत में तकरीबन हर 1620 -कंप्यूटर सेंटर के स्टाफ में आईआईटी प्रशिक्षित लोग हैं।      किसी भी कंप्यूटर के लिए उसके पहले पांच वर्ष सबसे ज्यादा उत्पादक होते हैं, जिसके बाद उस पर खारिज होने का खतरा मंडराने लग जाता है। इसीलिए जैसे-जैसे नए कंप्यूटर आते गए, 1620 बेकार होता चला गया। महाबाला, बताते हैं कि ऐसा क्यों होता है। उनका कहना है, ‘‘कंप्यूटर में मौजूद इलेक्ट्रॉनिक सर्किटरी तो पुरानी नहीं पड़ती, लेकिन उसके मैकेनिकल पार्ट पुराने पड़ जाते हैं। और चूंकि, कंप्यूटर निर्माता लगातार नए मॉडल बनाते रहते  हैं तो कुछ  समय के बाद पुरानी मशीनों के लिए स्पेयर पार्ट मिलना भी मुश्किल हो जाता है। आप भारत में 1620 जैसे कंप्यूटर का इस्तेमाल कर सकते हैं, खासतौर पर इसलिए क्योंकि यहां कंप्यूटर का इस्तेमाल आम चलन में नहीं है। लेकिन इसका एक नुकसान भी है। पुरानी पड़ चुकी ऐसी मशीनरी से आप दूसरी कंप्यूटर फर्मों और संस्थाओं से संवाद नहीं बना पाते। आईआईटी में हम इस 1620 कंप्यूटर का इस्तेमाल विशेष तौर एक कैलकुलेटर की तरह से कर रहे हैं, लेकिन हम इसे पूरी तरह से 7044 के साथ तालमेल में इनपुट-आउटपुट गतिविधियों से जोड़ना चाहते हैं। मैं इसका इस्तेमाल टेलीविजन स्क्रीन पर प्रत्युत्तर को दर्शाने, संगीत तैयार करने और ग्राफिक डिजाइन के लिए करने मे दिलचस्पी रखता हूं।’’

हाल से नीचे एक सुव्यवस्थित ऑफिस में 36 वर्षीय डॉ. वी. राजारमन बैठते हैं। इस युवा डायरेक्टर की शैक्षिक डिग्रियां भी कम महत्वपर्ू्ण नहीं हैं। दिल्ली युनिवर्सिटी से शुरू होकर, बेंगलुरू के इंडियन इंस्टीय्टूट ऑफ साइंस, अमेरिका के मेसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, विस्कॉंसिन यूनिवर्सिटी, विस्क़ॉंसिन यूनिवर्सिटी और कैलिफ़ोर्निया में फैकल्टी और अब आईआईटी कानपुर।

क्या डॉक्टर राजारमन बताएंगे कि कंप्यूटर मोटामोटी कैसे काम करता है? उन्होंने अपने रोजमर्रा के काम जैसे ही खुशी- खुशी आम भाषा में उसके काम को समझाना शुरू कर दिया। उन्होंने बताया, ‘‘मूल रूप से कंप्यूटर को गणना करने वाली मशीन के रूप में सोचा गया था लेकिन बाद पाया गया कि इसका इस्तेमाल गणना से अधिक और भी तमाम कामों में किया जा सकता है। कंप्यूटर जटिल समस्याओं का समाधान निकाल सकता है बशर्ते प्रोग्रामर समस्या को सरल चरणों में बांट सके।’’

वह कहते हैं, ‘‘जैसा कि, डॉ. महाबाला कहते हैं कि, कंप्यूटर मूर्ख जैसे होते हैं। आम लोग कभी-कभी सोच लेते हैं कि उसमें इंसानी गुण हैं लेकिन मैं सोचता हूं कि किसी चीज़ को पूरी तरह से न समझ पाने की स्थिति में यह एक भावनात्मक प्रतिक्रिया भर है। जैसे उदाहरण के लिए केक को बेक करने की प्रकिया को लीजिए। रेसेपी तक बात पहुंचने से पहले कुछ प्राथमिक कार्य निपटाने होते हैं-जैसे कि इसके लिए दो कप आटा होना जरूरी है, बेकर को यह बताने की जरूरत नहीं होती कि उसे आलमारी तक जाना है, उसमें से आटा लेना है, उसके कंटेनर को खोलना है और नाप कर आटा उसमें से निकालना है। ये वे चरण है जो बेकर को पता है क्योंकि ऐसा आमतौर पर माना जाता है। अब लेकिन मान लीजिए कि मशीन के पास कॉमन सेंस जैसी कोई चीज नहीं है और वह किसी भी चीज़ का पहले से अनुमान नहीं लगा सकती। ऐसे में अगर कोई मशीन केक को बेक कर रही होती तो उसे निर्देश देना पड़ता कि उसे आटा आलमारी से मिलेगा और इसी तरह से बाकी के कामों के लिए भी उसे बताना होता। कंप्यूटर को काम करने के लिए, एक इंसान को उसे सटीक रेसेपी बताने के अलावा वह सब भी बताना होगा जो हम यह सोच लेते हैं कि फलां परिस्थिति में ऐसा होता होगा।

तो, जब आप यह तय करते हैं कि आपको कंप्यूटर को यह बताना है, तो लगे हाथ आपको यह भी तय करना होगा कि कंप्यूटर तक आपका संदेश कैसे पहुंचे। कंप्यूटर सिर्फ संख्या को ही समझता है। लेकिन वहीं दूसरी तरफ, इसको बहुत सी खास तरह की शब्द सूचियों को भी समझना चाहिए, जैसे कि, मेडिकल, लाइब्रेरी साइंस, कारोबार आदि। इस तरह इसमें से हरेक शब्द को एक विशेष तरह की गणितीय भाषा में अनूदित करना होता है। अधिकतर कंप्यूटरों में आंतरिक डिक्शनरी होती है और वे बहुत से भाषाओं के शब्दों को समझ लेते हैं। मशीन इस नई भाषा को अपनी संख्यात्मक भाषा में तब्दील कर लेती है और उस हिसाब से वह उसकी गणना करती है और समाधान के नतीजों को इनपुट की भाषा में वापस कर देती है। उदाहरण के लिए, 7044 एक बिल्ट इन शब्द सूची के साथ आया जो सिर्फ दो यूनिटों जीरो और एक का प्रयोग करता था। 7044 के लिए 20 शून्य के समूह का कुछ मतलब होता था। और यह अपनी मेमोरी में करीब 32000 शब्दों को स्टोर कर सकता है या फिर शून्य और एक के विन्यास में संग्रहण कर सकता था।

वह बताते हैं, ‘‘आज कंप्यूटर की सैकड़ों भाषाएं हैं, ये सभी प्राथमिक बीज गणितीय भाषा का ही रूप है जिनके माध्यम से प्रोग्रामर कंप्यूटर को संख्या की भाषा में कोई समस्या बता पाता है। लाइब्रेरियन स्नोबोल का इस्तेमाल करते हैं। एलगोल कंप्यूटर की अंतरराष्ट्रीय भाषा है जिसका इस्तेमाल वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग समस्याओं को अभिव्यक्त करने के लिए किया जाता है।’’

इसके बाद डॉ. राजारमन ने कंप्यूटर से जुड़े शब्दों हार्डवेयर और सॉ़फ्टवेयर के तात्पर्य को समझाया। जब शुरुआत में कंप्यूटर आए तो वे मूल रूप से अपने आप में एक मशीन थे, यानी हार्डवेयर, वे काफी महंगे थे। वे आज की तरह से ट्रांजिस्टर और इंटीग्रेटेड सर्किटरी से युक्त नहीं थे जो सुगठित और दीर्घकालिक होते हैं। और शुरुआती दौर में सापेक्ष रूप से अपरिष्कृत होने के कारण यह मशीन जटिल किस्म के प्रोगामों- सॉ़फ्टवेयर को हैंडल नहीं कर पाती थी।’’

डॉ. महाबाला के अनुसार, ‘‘बहुत संभव है कि भारत में कंप्यूटर सॉ़फ्टवेयर इंडस्ट्री विकसित की जाए। जिन देशों में प्रोग्रामिंग खर्चीली है और उन्हें उसकी जरूरत है तो उनकी मांग को यहां कम कीमत में तैयार करके वापस अमेरिका या यूरोप भेज दिया जाए। ऐसी स्थिति में भी भारतीय सप्लायर अच्छा-खासा मुनाफा कमा सकते हैं।’’

भविष्य के कंप्यूटर कितने बुद्धिमान होने जा रहे हैं? इस सवाल का जवाब डॉ. राजारमन कुछ इस प्रकार देते हैं, ‘‘प्राथमिक संबंध, मशीन की इंसान पर निर्भरता तो यथावत रहेगी। लेकिन मशीन काफी तेज और सटीक हो जाएगी, उस इंसान के मुकाबले जो इसे प्रोग्राम करता है। यह सेकंड के दो बटा दसवें हिस्से में ही हजार कंप्यूटेशन कर सकेगी। निकट भविष्य में कंप्यूटरों की बर्बादी को रोकने के लिए उसका इस्तेमाल 20 प्रोग्रामर एक साथ कर पाएंगे, ये सभी 20 प्रोग्रामरों के डेटा कुछ ही सेकंडों में ग्रहण कर लेगा और इन 20 समस्याओं पर 4 सकेंड काम करेगा- .2 सेकंड प्रत्येक पर – वह लगातार उसे समझने और उसकी गणना का काम तब तक जारी रखेगा जब तक कि कोई नतीजा न हासिल हो जाए। क्योंकि प्रत्येक प्रोग्रामर के बीच इनपुट और उस पर प्रतिक्रिया और फिर कं प्यूटर का समाधान दोनों ही व्याहारिक रूप से तात्कालिक हैं। प्रोग्रामर को वास्तव में कंप्यूटर के साथ अपने रिश्तों में किसी व्यवधान या बाधा के बारे में पता ही नहीं चलेगा।’’

‘‘तो हम कह सकते हैं कि तीसरी पीढ़ी के कंप्यूटर ज्यादा काम कर सकने में सक्षम होने के साथ पुराने मॉडलों के मुकाबले तेजी से काम भी कर पाएंगे। लेकिन कंप्यूटर की अपनी सीमाएं तो होंगी ही। उसके पास हर समस्या का निदान नहीं है। उदाहरण के लिए, यह केवल उन्हीं समस्याओं का समाधान खोज पाएगा जिन्हें बांट कर सीमित चरणों में प्रस्तुत किया जा सकेगा। इसे कुछ इस तरह से स्पष्ट किया जा सकता है कि कंप्यूटर चेकर्स में जीत सकता है लेकिन शतरंज की चालों में नहीं, जिसमें असीमित संभावनाएं हो सकती हैं।’’

इंजीनियरों ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सिनुलेटरों को भले ही बना लिया हो, लेकिन उनके सफलतापूर्वक काम करने के लिए जरूरी है कि मशीन को समाधान के तरीकों के और समाधान वाले उदाहरणों और प्रक्रिया के साथ सप्लाई किया जाए। जब तक कोई उदाहरण सामने नहीं होगा तब तक वह संग्रहित तरीकों में से सही का चुनाव नहीं कर पाएगा। कंप्यूटर को जब पहले चेकर्स खेलने को कहा गया तो उसे खेल के प्राथमिक नियमों के साथ उसे प्रोग्राम किया गया था। एक प्रोग्रामर इन नियमों के खिलाफ खेलेगा, इसीलिए कंप्यूटर शुरू में हारता दिखेगा क्योंकि उसके पास इस तरह का कोई अनुभव संग्रहीत नहीं होता। किन्हीं विशेष परिस्थितियों में जब कंप्यूटर पराजित हो जाता है तो उसकी कोशिशों के लिए प्रोग्रामर उसे नकारात्मक अंक देता। इसके बाद वह कभी भी हारने वाली चालों को फिर नहीं दोहराएगा। कई साल ऐसा खेल खेलने के बाद वह विभिन्न परिस्थितियों में ऐसी सभी चालों को खारिज कर देगा जो उसे हराती रही हैं और फिर उसके लिए जीत ही जीत है।’’

‘‘किसी भी स्थिति में इंसानों को इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए किकंप्यूटर उनकी जगह ले लेंगे। मैं सोचता हूं कि आप इसे एक पुराने मजाक से बेहतर समझ सकते है जिसमें  एक जनरल अपने सूचीबद्ध सैनिक को पोस्टऑफिस से कुछ स्टैंप लाने के लिए भेजता है। सैनिक स्टैंप लेकर वापस नहीं लौटता तो जनरल खुद उसे देखने के लिए पोस्टऑफिस जाता है। वह सैनिक वहां हाथों में स्टैंप लिए खड़ा था। स्वाभाविक था कि जनरल ने यह जानना चाहा कि वह स्टैंप लेकर वापस उनके पास क्यों नहीं आया। सैनिक ने जवाब दिया कि उनके आदेश में ऐसा कुछ नही था कि उसे टिकट लेकर उनके पास वापस लौटना है। कंप्यूटर भी इससे बहुत अलग नहीं हैं। वे हमेशा आपके आदेश का पालन करते हैं, लेकिन वे अपने आप कुछ भी करने के बारे में नहीं सोचते।’’

मूलत: प्रकाशित अगस्त 1970



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