लहरों का सामना

अमेरिकी सरकार के एक्सचेंज प्रोग्राम के प्रतिभागियों की एक अभिनव परियोजना से केरल में लोगों को उच्च ज्वार की स्थिति से मुकाबले के लिए तैयार करने में सहायता मिल रही है।

माइकल गलांट

अप्रैल 2024

लहरों का सामना

एल्‍युमनी इंगेजमेंट इनोवेशन फंड प्रोजेक्ट के तहत कुंबालांगी, केरल में एक ऑटोमेटिक टाइडल गेज को स्‍थापित किया जा रहा है। (फोटोग्राफः साभार इक्विनॉक्ट)

मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज़ (टीआईएसएस) के स्कूल ऑफ हैबिटेट स्टडीज़ की प्रोफेसर और डीन मंजुला भारती के अनुसार, ‘‘वैश्विक जलवायु परिवर्तन केरल के तटीय इलाकों में कई तरह की समस्याएं पैदा करता है। इनमें सबसे कम जिस बात पर ध्यान दिया जाता है, लेकिन जो है सबसे गंभीर मसला, वह है समुद्र की ऊंची लहरों यानी ज्वार से आने वाली बाढ़।’’

भारती बताती हैं, ‘‘केरल तट पर मौसमी उच्च ज्वार पहले साल में केवल दो महीनों के लिए आता था लेकिन अब उसकी आवृत्ति और दिनों की संख्या दोनों में बढ़ोतरी हुई है।’’ उच्च ज्वार से आने वाली बाढ़ की स्थिति अब आधे साल से अधिक समय तक बढ़ सकती है, इससे 30 किलोमीटर भीतर तक के इलाकों में तबाही आ सकती है और लाखों लोगों का जीवन तबाह हो सकता है। वह कहती है, ‘‘पर्यावरण में आ रहे इन बदलावों को स्वीकार करना और उससे निपटने के लिए समग्र दृष्टि से कदम उठाना एक महत्वपूर्ण निवारक उपाय है।’’

फुलब्राइट-नेहरू फेलो भारती उन विशेषज्ञों में से एक थीं, जिन्हें ‘‘को-क्रिएटिंग कम्युनिटी रेजिलियंस टू क्लाइमेट चेंज एग्रेवेटेड हाई-टाइड ़फ्लडिंग इन कोस्टल केरला’’ यानी तटीय केरल में जलवायु परिवर्तन के कारण उच्च ज्वार से पैदा होने वाली बाढ़ से निपटने के लिए समुदाय को साथ लेकर प्रयास करने से संबद्ध परियोजना का नेतृत्व करने के लिए सूचीबद्ध किया गया था। इस परियोजना को अमेरिकी कांसुलेट जनरल चेन्नई के एल्युमनी इंगेजमेंट इनोवेशन फंड (एईआईएफ) के माध्यम से सहायता दी गई जिसे एम.एस. स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन संचालित करता है। इसका नेतृत्व सी. जयरमन करते हैं जो फुलब्राइट-कलाम फेलो और समुदाय आधारित पर्यावरण अनुसंधान फर्म इक्विनॉक्ट के सह-संस्थापक हैं। अमेरिकी सरकार के एक्सचेंज कार्यक्रमों के पूर्व प्रतिभागियों के नेतृत्व में एईआईएफ परियोजनाओं ने प्रतिभागियों के आपसी सहयोग को बढ़ाते हुए दुनिया भर को समुदायों को इससे फायदा पहुंचाया है।

विशेष रूप से केरल के निवासियों और पर्यावरण की मदद के लिए बनाए गए इस अभिनव सहयोग के लिए ज्ञान और कार्रवाई दो सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य थे। जयरमन के अनुसार, टीम ने तटीय बाढ़ के बारे में जागरूकता फैलाने और निवासियों को अपने अधिकारों की जानकारी देकर एवं मदद के लिए कार्रवाई करने की दृष्टि से सशक्त बनाया। टीम में ह्यूबर्ट हंफ्री फेलो के.पी. मोहम्मद बशीर के साथ इक्विनॉक्ट के सी.जी. मधुसूदनन, के.जी. श्रीजा और ए.पी. शाजन शामिल थे। उन्होंने साथ मिलकर लुप्तप्राय समुदायों को सशक्त बनाने के लिए कई उल्लेखनीय पहलें कीं।

Tidal flooding in Puthenvelikkara. (Photograph courtesy EQUINOCT)

पुथेनवेलिककारा में उच्च ज्वार के कारण बाढ़। (फोटोग्राफः साभार इक्विनॉक्ट)

कला के माध्यम से संदेश

टीम के सबसे प्रभावशाली प्रयासों में से एक ‘‘फ्रॉम द ब्रिंक’’ नामक तीन मिनट की डॉक्यूमेंट्री का निर्माण था जिसे दुबई में 2023 के संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (सीओपी28) में प्रदर्शित किया गया था। यह वीडियो जो अब सार्वजनिक रूप से यूट्यूब पर उपलब्ध है, बाढ़ से हुए नुकसान के ज्वलंत फुटेज दिखाता है और प्रभावित ग्रामीणों की हृदयविदारक और प्रेरक दोनों तरह की कहानियां बताता है। डॉक्यूमेंट्री जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों से जूझने में डेटा संग्रह और बाढ़-अनुकूल कृषि के महत्व पर भी प्रकाश डालती है।

परियोजना की दूसरी आकर्षक अभिव्यक्ति ‘‘चेविटोर्मा’’ थी, जो केरल के त्रिशूर में स्कूल ऑफ ड्रामा एंड फाइन आर्ट्स के डीन श्रीजीत रामानन द्वारा निर्देशित एक मंचित नाटक था। रामानन ने ज्वारीय बाढ़ से प्रभावित गांव पुथेनवेलिककारा के निवासियों के साथ साझेदारी में पटकथा लिखी। कहानी पर्यावरणीय आपदाओं से निपटने की उनकी यादों और अनुभवों को साझा करती है। भारती बताती हैं, ‘‘चेविटोर्मा’’ का प्रदर्शन कई जगहों पर किया गया जिसमें टीआईएसएस में उसका प्रदर्शन भी शामिल था और वहां इसने खूब तालियां बटोरीं। बाद में इस नाटक को नई दिल्ली में राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव के लिए चुना गया। भारती ने दिल्ली के प्रदर्शन का वर्णन करते हुए कहा, ‘‘यह निजी गौरव का क्षण था, एक विचार जिसे मूल रूप से मैंने सोचा था, जो सीमाओं से परे गया और ऐसा ही मैंने सपना देखा था।’’

“Chevittorma,” co-created by the tidal flood-affected people of Puthenvelikkara was staged at the National School of Drama in New Delhi as a part of the Bharat Rang Mahotsav 2024. (Photograph courtesy EQUINOCT)पुथेनवेलिककारा में उच्च ज्वार से आई बाढ़ से प्रभावित लोगों द्वारा तैयार “चेविट्टोर्मा।” इसे भारत रंग महोत्सव 2024 के तहत नई दिल्ली में मंचित किया गया। (फोटोग्राफः साभार इक्विनॉक्ट)

समुदाय पक्षधरता

ऐसे रचनात्मक प्रयासों के अलावा टीम के अधिकांश कार्यों में स्थानीय समुदायों को संगठित करना, उनके ज्ञान और कौशल का निर्माण करना और उन्हें आगे बढ़ने और सुरक्षित रहने में मदद करने के लिए संसाधन प्रदान करना शामिल है। स्थानीय महिलाओं को क्षेत्र में उच्च ज्वार वाली बाढ़ के दौरान विस्तृत डेटा एकत्र करने के लिए प्रशिक्षित किया गया था ताकि शोधकर्ताओं के पास बाढ़ से होने वाले नुकसान की सटीक तस्वीर उपलब्ध हो सकें। महिला समुदाय की सदस्यों को फिल्म निर्माताओं द्वारा लघु वीडियो बनाने के लिए भी प्रशिक्षित किया गया था जिससे कि यह दर्शाया जा सके कि जलवायु परिवर्तन से उनका जीवन कैसे प्रभावित होता है। स्थानीय निवासियों को अपने इलाके के इतिहास को संरक्षित करने और बाढ़ की बढ़ती घटनाओं से होने वाले नुकसान के बारे में सार्वजनिक समझ को बदलने के लिए स्वयं के सामुदायिक थिएटर तैयार करने के लिए भी प्रशिक्षित किया गया था।

प्रशासनिक स्तर पर, जयरमन स्थानीय सरकारों की जिला योजना बैठकों में अपनी टीम के द्वारा अपने निष्कर्षों और विचारों की प्रभावी प्रस्तुति के बारे में रोशनी डालते हैं। वह बताते हैं कि इन प्रयासों के परिणामस्वरूप ज्यादा नुकसान की आशंका वाले गांवों को बाढ़ से निपटने में मदद करने के लिए अलग से प्रावधान किया गया और प्रस्ताव पारित किए गए कि ‘‘ज्वारीय बाढ़ को आपदा घोषित किया जाए, ताकि उससे निपटने के लिए उन्हें राज्य आपदा कोष से पैसा दिया जा सके।’’ ॒

जयरमन इस परियोजना को समग्र रूप से एक ‘‘बड़ी सफलता’’ बताते हैं और विशेष रूप से इस बात का जिक्र करते हैं कि कैसे इसने सफलतापूर्वक स्थानीय, राज्य और राष्ट्रीय सरकार का ध्यान आकर्षित किया और उन्हें ‘‘पूरी तरह से उपेक्षित की जाने वाली ज्वारीय बाढ़’’ के प्रति सचेत किया।

आगे की राह

भारती के अनुसार, ‘‘स्थानीय महिलाओं और समुदायों के साथ-साथ मैं भी इन परिणामों को लेकर बहुत उत्साहित हूं। हमने एक महिला नेटवर्क बनाया है: वाइकैन- वुमेन इन क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क और हम ऐसे सामुदायिक समूहों के साथ जलवायु परिवर्तन से जुड़े मसलों पर चर्चा जारी रखेंगे और उनके संपर्क में बने रहेंगे।’’

भारती बताती हैं कि, परियोजना समाप्त होने के बाद भी केरल में बाढ़ पीडि़तों की मदद करने के प्रयास समाप्त नहीं हुए हैं और भारत में युवा वर्ग के लोग समुदाय और जेंडर का ध्यान रखते हुए इस विषय पर चर्चा में शामिल होकर सहायता कर सकते हैं।

जयरमन का कहना है कि इस मामले में तकनीकी दृष्टिकोण भी खासा महत्वपूर्ण है। वह कहते हैं, ‘‘वैश्विक अध्ययनों से पता चलता है कि समुद्र के बढ़ते जल स्तर के कारण भारत और चीन जैसे देश विश्व स्तर पर सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। और अब समय आ गया है कि युवा प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, माप और निगरानी व्यवस्था एवं व्यावहारिक तंत्र विकसित करने के लिए अभिनव और नए विचारों के साथ सामने आएं।’’ वह मानते हैं कि जीवनरक्षण के क्षेत्र में नवाचारों के लिए बहुत संभावनाएं मौजूद हैं।

माइकल गलांट लेखक, संगीतकार और उद्यमी हैं। वह न्यू यॉर्क सिटी में रहते हैं।


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