तकनीक के सहारे महासागरों का संरक्षण

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस समाधानों से लेकर समुदाय आधारित पहलों तक, कोच्चि टेक कैंप में ऐसे प्रयास सामने आए हैं जो तकनीक के बूते सदाजीविता को प्रोत्साहित करेंगे।

पारोमिता पेन

अप्रैल 2024

तकनीक के सहारे महासागरों का संरक्षण

टेक कैंप में भाग लेने वालों ने समुद्री प्रदूषण, बढ़ते समुद्र जल स्तर, समुद्री जीवों की बिगड़ती हालत और अनियमित मछली पकड़ने की मुहिम जैसे मुद्दों पर विचार किया। (फोटोग्राफः रोमोलो तवानी/Shutterstock.com)

प्लास्टिक का उत्पादन और इस्तेमाल दुनिया भर में पर्यावरण के लिहाज से खास चिंता का विषय बनता जा रहा है। इस चिंता में भारत जैसा देश भी शामिल है जहां प्रतिदिन 26000 टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। इस कचरे का एक बड़ा हिस्सा लैंडफिल में चला जाता है जहां यह मिट्टी और जल संसाधनों में जहरीले पदार्थ छोड़ देता है।

एर्नाकुलम में कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के सीनियर रिसर्च स्कॉलर अखिल प्रकाश ई. का मानना है कि ‘‘हम जो कचरा पैदा करते हैं, उसमें निजी जिम्मेदारी तय करने पर जोर देना जरूरी है, तभी इस समस्या से निपटा जा सकता है। वह लिटरलॉग नामक एक परियोजना के हिस्सा थे जिसका उद्देश्य विभिन्न इलाकों में प्लास्टिक डंपिंग साइटों को मैप करने और पाए जाने वाले प्लास्टिक के प्रकारों की पहचान करने के लिए आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करके एक डेटाबैस तैयार करना है। वह कहते हैं, ‘‘इससे ध्यान देने की जरूरत वाले विशिष्ट क्षेत्रों को पहचानने में मदद मिलेगी, चाहे वे घरेलू या फिर मस्त्य अपशिष्ट से संबंधित हो।’’

अखिल ने इस परियोजना को अमेरिकी कांसलुट जनरल चेन्नई के सहयोग से कोच्चि स्थित सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी रिसर्च द्वारा आयोजित ‘‘टेक 4 ओशंस: इनोवेटिव सॉल्यूशंस फॉर ए सस्टेनेबल ़फ्यूचर’’ प्रौद्योगिकी शिविर में प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया, ‘‘भविष्य में हमारा लक्ष्य एआई और सेटेलाइट मैपिंग तकनीकों का इस्तेमाल करके इस परियोजना को विश्व स्तर पर विस्तारित करना है।’’

समुद्री जीवन की रक्षा करना

कोच्चि में आयोजित यह तकनीकी शिविर तीन दिनों का था जिसमें पूरे भारत से प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। शिविर में चर्चा समुद्र के बढ़ते स्तर, बर्बाद होते समुद्री जीवन. समुद्र और सतह के बढ़ते तापमान,अंधाधुंध मछली पकड़ने और समुद्री प्रदूषण जैसे मसलों पर केंद्रित थी। प्रतिभागियों ने महासागर प्रदूषण और जलमार्ग प्रबंधन को लेकर आठ परियोजनाएं तैयार की।

सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी रिसर्च के संस्थापक अध्यक्ष डी. धनुराज के अनुसार, ‘‘शिविर में अंतरराष्ट्रीय और स्थानीय विशेषज्ञ मौजूद थे और प्रशिक्षकों ने सस्टेनेबल डवलपमेंट गोल (एसडीजी)14 के उद्देश्यों को हासिल करने की दिशा में काम करके समुद्र के स्वास्थ्य और स्थिरता के बारे में जागरूकता बढ़ाने की दृष्टि से एक सहयोगी और बहुआयामी नजरिया अपनाया। एसडीजी का लक्ष्य है: महासागर, समुद्र और समुद्री संसाधनों का संरक्षण और सतत उपयोग।’’

इस काम में जुड़े पक्षों में नीति निर्माता, सरकारी विभागों के प्रतिनिधि, शिक्षा और अनुसंधान जगत के तकनीकी विशेषज्ञ, सामाजिक तकनीकी उद्यमी और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठन शामिल थे जो समुद्र के स्वास्थ्य, पर्यावरण से जुड़े मसलों और प्रशासन में भारत की क्षमता को मजबूत करने की दिशा में काम कर रहे थे। प्रतिभागियों को विशेषज्ञों के मिलेजुले प्रेजेंटेशन, संवादी सत्रों और ग्रुप डिस्कशंस के माध्यम से प्रशिक्षित किया गया।

समुदाय के लिए तकनीक

तकनीकी शिविरों में स्वस्थ और टिकाऊ मानव-पर्यावरण संपर्कों को बढ़ावा देने के लिए समुदायों और महासागर को जोड़ने से संबंधित विषयों पर जोर दिया गया। परियोजनाओं में जोखिम वाली प्रजातियों की पहचान, रियल टाइम डेटा का उपयोग, समुद्री संरक्षण और समुद्री प्रदूषण बढ़ाने में भागीदारी के आधार पर लोगों की सहायता करने जैसे विभिन्न पहलुओं को शामिल किया गया।

सृजन प्रवीण तायडे के स्टार्ट-अप अमलान रिवरकॉर्प ने जीपीएस सक्षम ऑनबोर्ड कैमरों का उपयोग करके समुद्री कूड़े के मानचित्रण पर डेटा एकत्र करने की एक परियजोना विकसित की है। तायडे के अनुसार, ‘‘हमारा कैटाक्लीन 2.0 देश में बना जल कचरा स्किमर है जो जल निकायों में दिखने वाले स्पष्ट प्रदूषण से लड़ने में वर्तमान की तुलना में अधिक कुशलता से मदद करेगा। हमारे ग्रह पर 73 प्रतिशत पानी है। चूंकि प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है, इसलिए हमें तुरंत कार्रवाई की जरूरत है, नहीं तो हम अपने जल स्रोतों को नुकसान पहुंचाएंगे और उन्हें जहरीला बना देंगे।’’॒

नागपुर स्थित अमलान रिवरकॉर्प एक समुद्री पर्यावरण संरक्षण स्टार्ट-अप है जो समुद्री पर्यावरण प्रदूषण से लड़ने और अपशिष्ट प्रबंधन की सुविधा के लिए समर्र्पित है। एक उभरते नौसैनिक वास्तुकार और एक मैरीन इंजीनियर से सीईओ बने तायडे जल प्रदूषण से निपटने के लिए समाधान की तत्काल आवश्कता को पूरा करने में मदद के इच्छुक समान विचारधारा वाले लोगों के साथ सहयोग को लेकर उत्सुक हैं।

धनुराज के लिए, तकनीकी शिविर जागरूकता पैदा करने और समुद्री प्रदूषण और समुद्री संसाधनों के कुशल उपयोग के समाधान खोजने के लिए प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल की जरूरत, क्षमता और प्रासंगिकता को समझने का अमूल्य अवसर था। वह कहते हैं, ‘‘इससे हमें समुद्री इकोसिस्टम में जटिलता को समझने में मदद मिली और यह भी समझने का मौका मिला कि यह कैसे एक जगह से दूसरी जगह पर इसमें फर्क आ जाता है, वह भी, खासकर दूरदराज के मछली पकड़ने वाले गांवों में।’’

आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस का उपयोग करके प्लास्टिक प्रदूषण पर नजर रखने जैसी उच्च तकनीक प्रणालियों से लेकर कम तकनीक वाले समुद्र तट सफाई और जागरूकता अभियानों तक टेक कैंप कोच्चि के नवाचारों ने जाहिर कर दिया है कि टिकाऊ समाधान किस तरह से असर डाल सकते हैं। भारत में अमेरिकी मिशन पर्यावरण की सुरक्षा के लिए इस तरफ लगातार मदद कर रहा है। जैसा कि अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने बताया, ‘‘अमेरिकी विदेश विभाग इस मामले में और प्रभावी कार्रवाई को ध्यान में रखते हुए सितंबर 2024 में पुणे में आगामी टेक कैंप पुणे का आयोजन करने की प्रतीक्षा कर रहा है। यह कैंप महाराष्ट्र में कचरे के हरित प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए तकनीकी समाधानों पर केंद्रित होगा।’’

पारोमिता पेन नेवाडा यूनिवर्सिटी, रेनो में ग्लोबल मीडिया स्टडीज़ विषय की एसोसिएट प्रो़फेसर हैं। 


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