जलवायु समाधान: युवाओं की पहल

अमेरिकी कांसुलेट जनरल कोलकाता की पहल पर जलवायु परिवर्तन को लेकर शुरू हुआ प्रोजेक्ट द यंग अनहर्ड वॉयसेज़ फॉर एक्शन (युवा) अगली पीढ़ी के जलवायु नेतृत्वकर्ताओं को तैयार कर रहा है।

रंजीता बिस्वास

अप्रैल 2024

जलवायु समाधान: युवाओं की पहल

युवा प्रोजेक्ट का आखिरी कॉनक्लेव जनवरी 2024 में अंतरराष्ट्रीय कोलकाता पुस्तक मेले में आयोजित हुआ।
(फोटोग्राफः साभार अमेरिकी कांसुलेट जनरल कोलकाता)

एक ऐसी गतिशील पहल के बारे में सोचें, जहां युवा नवप्रवर्तक सकारात्मक परिवर्तन लाने और एक स्थायी भविष्य के निर्माण के लिए एक सोच विकसित करने की कमान संभालें। यह जलवायु परिवर्तन पर यंग अनहर्ड वॉयस फॉर एक्शन (युवा) परियोजना है जो दो महत्वपूर्ण दक्षिण एशियाई जीवमंडलों में जल निकायों और उनसे जुड़े इकोसिस्टम पर जलवायु कार्रवाई से जुड़ा है: सुंदरबन (भारत-बांग्लादेश) की सीमा पर डेल्टा प्रणाली और सीमा पार मानस की नदी प्रणाली (भारत-भूटान) है।

अमेरिकी कांसुलेट जनरल कोलकाता द्वारा समर्थित एवं गैर लाभकारी संगठन प्रोडिग्लस और उसके नॉलेज पार्टनर के  रूप में ब्रिज के साथ साझेदारी में कार्यान्वित युवा परियोजना का उद्देश्य भारत, भूटान और बांग्लादेश में युवाओं तक पहुंच और सलाह देने का कार्यक्रम शुरू  करना है।

परियोजना के पीछे की सोच शहरी और ग्रामीण समुदायों के जीवंत अनुभवों और युवाओं की आउट ऑफ द बॉक्स सोच को एकसाथ लाना था। मकसद था साथ मिलकर वे इन दो जीवमंडलों में हस्तक्षेप के लिए ठोस विचार विकसित करेंगे और साथ ही अभियान और उसकी मुखर पैरवी के लिए जमीन तैयार करेंगे।

युवा परियोजना के लिए अनुसंधान निदेशक के रूप में काम कर चुके, ब्रिज के निदेशक पृथ्वीराज नाथ के अनुसार, ‘‘युवा परिवर्तन के एजेंट हैं। पिछली पीढि़यों के कार्यों के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाले विभिन्न मुद्दों के साथ-साथ उन्हें यह दुनिया विरासत में मिली है। अक्सर हमें जलवायु परिवर्तन और उस पर कार्रवाई की जरूरत के बारे में विचार करने के लिए अधिक शहरी, महानगरीय शहरों से युवा मिलते हैं। लेकिन किसी भी वजह से हाशिए पर पड़े लोगों के विचार, आवाजें और दृष्टिकोण अक्सर अनसुने रह जाते हैं। युवा में प्रतिभागियों के विचार और समाधान वास्तविक जीवन के अनुभवों पर आधारित थे।’’

2023 में यह परियोजना बांग्लादेश, भूटान और भारत के युवाओं को लक्षित करने वाले विचारों के आह्वान के साथ शुरू हुई। प्रस्तुत किए गए 60 से अधिक विचारों में से 41 को शुरू में तीन देशों में आयोजित परामर्श सत्रों में भाग लेने के लिए चुना गया। इन परामर्श सत्रों का उद्देश्य युवाओं को अपने विचारों को विशेषज्ञों के सामने साझा करने और प्रस्तुत करने में मदद करना और उसमें सुधार के लिए मार्गदर्शन और इनपुट प्राप्त करना था। जनवरी 2024 में अंतरराष्ट्रीय कोलकाता पुस्तक मेले में अमेरिकी कांसुलेट जनरल कोलकाता द्वारा आयोजित सम्मेलन में सलाहकारों की एक जूरी ने शीर्ष आइडिया का चयन किया।

नाथ का मानना है कि ‘‘परामर्श कार्यक्रम ने प्रतिभागियों को अपने विचारों को ठोस रूप देने में मदद की। वह कहते हैं कि विभिन्न क्षेत्रों  के विशेषज्ञों और सलाहकारों, जैसे कार्यकर्ता, और नीतियों को प्रभावित करने वाले, डवलपमेंट पार्टनर्स, पर्यावरण शोधकर्ता और नेतृत्वकर्ताओं के अलावा निजी क्षेत्र के प्रतिनिधियों ने सबसे बेहतरीन आइडिया का चयन किया।’’

आगे चल कर, इन विचारों को अधिक मार्गदर्शन और पायलट प्रोजेक्टों के अवसर मिलेंगे। फाइनलिस्ट में से दो श्रबनी बेरा और तापस सरदार थे और ये दोनों ही पश्चिम बंगाल के थे।

जल संकट का मुकाबला  

‘‘जीबनामृत: ए कंप्लीट वॉटर सॉल्यूशन’’ बेरा के दिमाग की उपज है। वह सुंदरबन के एक हिस्से सागरद्वीप के नरहरिपुर गांव में रहती हैं और नेताजी सुभाष ओपन यूनिवर्सिटी से सामाजिक विज्ञान में मास्टर्स की पढ़ाई कर रही हैं।

बेरा बताती हैं, ‘‘हम पानी से घिरे रहते हैं। बार-बार आने वाले च्रकवातों ने हमारे क्षेत्र को खारे पानी और पीने के पानी की कमी से जूझने को मजबूर कर दिया है।’’ 2021 में आया चक्रवात विशेष रूप से विनाशकारी था। वह कहती हैं, ‘‘इसीलिए हमारा प्रस्ताव मानव उपयोग के लिए बारिश के पानी को एकत्र करने के बारे में था।’’

बेरा की टीम में दो अन्य सदस्य भी हैं। वे इस महत्वपूर्ण उपलब्धि के लिए युवा में विचारों को साझा करने और उसके बाद के परामर्श कार्यक्रमों को श्रेय देती हैं। वे कहती हैं, ‘‘निवेश के साथ, हम अपने विचारों को लंबी अवधि के लिए एक स्थायी व्यवसाय मॉडल में बदल सकते हैं। हम ये पहले नहीं जानते थे।’’ बेरा के मॉडल में घरों में एक बुनियादी संरचना उपलब्ध कराना था जिसकी मदद से बारिश के पानी को पीने योग्य बनाने के लिए फिल्टर किया जा सकता था, हां, इसके लिए उन्हें एक शुल्क अदा करना होता।

पुरानी प्रथाओं को फिर से आजमाना

सरदार का नजरिया सब्जियों और फलों की खेती के पारंपरिक पर्यावरण-अनुकूल तरीकों को फिर से जीवित करने का है। उनकी परियोजना का शीर्षक ‘‘सुजला: क्लाइमेट स्मार्ट एग्रीकल्चर’’ है। ये जैविक खेती के तरीके के रूप में स्थानीय स्तर पर उपलब्ध उर्वरकों और पानी एकत्र करने के उन तरीकों को फिर से शुरू करने पर जोर देती है जिन्हें किसान सदियों से अपनाते रहे हैं। सरदार के अनुसार, ‘‘बेहतर उपज पाने की उम्मीद में कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल हमारी मिट्टी की गुणवता को खराब कर रहा है। यहां तक कि हमारे पारंपरिक तालाबों का पानी भी खेती के लिए अनुपयोगी होता जा रहा है।’’ उन्होंने कहा कि वाणिज्यिक उर्वरकों की बेलगाम लागत ने कई किसानों को खेती से दूर कर दिया है।

सरदार के पास सामाजिक कार्य विषय में मास्टर्स डिग्री है और वह कोलकाता से लगभग 120 किलोमीटर दूर कुलतली नामक जगह पर रहते हैं। खेती की नई चुनौतियों को देखते हुए उन्होंने अपनी जमीन पर पिछली पीढि़यों की खेती के तरीकों को आजमाने का फैसला किया। उनकी कोशिशों के सकारात्मक नतीजे मिले जिसके चलते उन्होंने स्थानीय किसानों को उसका अनुसरण करने के लिए प्रेरित किया। वह बताते हैं, ‘‘हम सब्जियों के बेहतर बीज और गाय के गोबर एवं वर्मीकंपोस्ट जैसे प्राकृतिक उर्वरकों के साथ एक पैकेज पेश करते हैं। हम जल संरक्षण के लिए तटबंधों का निर्माण भी करते हैं ताकि सूखे मौसम में पानी उपलब्ध रहे।’’ मौजूदा समय में लगभर ढाई सौ किसान उनकी इस पहल में उनके साथ सहयोग कर रहे हैं।

सरदार बताते हैं, ‘‘युवा प्रोजेक्ट द्वारा प्रदान की गई कार्यशालाओं और सलाह ने मुझे पैसे कमाने के लिए अपने विचारों को एक व्यावसायिक मॉडल में बदलने में मदद की। इससे मुझे यह हौसला भी मिला कि मैं सही रास्ते पर हूं।’’

रंजीता बिस्वास पत्रकार हैं और कोलकाता में रहती हैं। वह उपन्यासों का अनुवाद करती हैं और लघु कहानियां भी लिखती हैं।


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