क्वॉड फेलोशिप विजेता तीन भारतीयों ने विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणित (स्टेम) विषयों की अपनी शिक्षा का इस्तेमाल समाज को बेहतर बनाने के अभिनव समाधान खोजने में किया।
मार्च 2023
क्वाड फ़ेलोशिप आस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिकी सरकारों की पहल है। यहां पर अमेरिकी वाणिज्य मंत्री जीना रायमोंडो (सामने की पंक्ति, मध्य में) की मेज़बानी में आयोजित एक उद्घाटन सत्र में क्वॉड फ़ेलोशिप पाने वाले पहले समूह के कुछ सदस्य हैं। इनमें तेजा वेंकटेश पेरूमल (दाएं से दूसरे) भी शामिल हैं। इस कार्यक्रम में क्वाड देशों के राजदूतों ने भी भाग लिया। (फोटोग्राफ साभारः तेजा वेंकटेश पेरूमल )
क्या स्वच्छ ऊर्जा को अधिक किफायती और सभी के लिए सुलभ बनाया जा सकता है? आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) के नए-नए उपयोगकर्ता इसे कैसे बेहतर तरीके से समझ सकते हैं? क्या मेडिकल डायग्नॉसिस को और ज्यादा बेहतर बनाया जा सकता है? ये ऐसे कुछ सवाल हैं जिनके जवाब को तलाशने में तीन भारतीय क्वॉड फेलो- तेजा वेंकटेश पेरूमल, ध्रुव अग्रवाल और शारिका जुत्शी जुटे हुए हैं। वे उन 100 फेलो के पहले समूह में शामिल हैं जिनके नामों की घोषणा दिसंबर 2022 में की गई थी।
फेलोशिप
अगली पीढ़ी के वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकीविदों के बीच आपसी संबंधों की स्थापना की दृष्टि से शुरू की गई क्वॉड फेलोशिप चार क्वॉड देशों- ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका की सरकारों की संयुक्त पहल है। इस़फेलोशिप को पाने वालों को 50,000 डॉलर की फंडिंग दी जाती है, जिसका इस्तेमाल अध्ययन, शोध, किताबों या दूसरे शैक्षणिक खर्चों के लिए किया जा सकता है।
अमेरिका में अपनी उच्च शिक्षा के दौरान पेरूमल, अग्रवाल और जुत्शी क्वॉड समूह की नेटवर्किंग गतिविधियों और वर्चुअल प्रोग्रामिंग में शामिल होंगे। जुत्शी के अनुसार, ‘‘क्वॉड फेलोशिप से न सिर्फ मेरी ग्रेजुएट पढ़ाई के खर्च का एक हिस्सा वहन हो पाएगा, बल्कि इससे मुझे क्वॉड देशों के वैज्ञानिकों और बदलाव लाने वालों से भी संवाद का मौका मिल रहा है, जिससे मुझे एक वैज्ञानिक, नवप्रवर्तक, भविष्य के शिक्षक और उद्यमी के रूप में विकसित होने में सहायता मिलेगी।’’
अग्रवाल का भी कहना है कि वह इस फेलोशिप से मिले धन का इस्तेमाल अपने शोध में मदद के लिए करेंगे। वह कहते हैं, ‘‘अपने विषय क्षेत्र में फंडिंग के अलावा, इससे मिलने वाले प्रोग्रामिंग और नेटवर्किंग लाभों के चलते मुझे विभिन्न देशों में वंचित समुदायों को भी अपने शोध का आधार बना कर उसे विविधता देने में मदद मिलेगी, जो शायद मैं अन्यथा कर पाने में सक्षम न हो पाता। इन का नतीजा यह होगा कि मैं सामाजिक बेहतरी पर केंद्रित गुणवत्तापूर्ण स्टेम शोध को पूरा कर पाऊंगा।’’
आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस
कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में पीएच.डी. के पहले वर्ष के विद्यार्थी अग्रवाल कंप्यूटर साइंस और ह्यूमन कंप्यूटर के बीच संवाद की अपनी पृष्ठभूमि का इस्तेमाल वंचित समुदायों के लिए तकनीक के डिजाइन, निर्माण और मूल्यांकन के लिए कर रहे हैं।
उनका कहना है, ‘‘फिलहाल मेरा ध्यान हाशिए पर रहने वाले व्यक्तियों और विशेष तौर पर स्वास्थ्य देखभाल के संदर्भ में उचित और जिम्मेदारी वाले एआई डिजाइन पर है। मेरा शोध ऐसे एआई उत्पाद तैयार करने पर है जो सीमित संसाधनों का इस्तेमाल करने वालों के लिए सहज हों और एआई पर कब उन्हें भरोसा करना है या नहीं करना है, इस बारे में वे खुद ही सूचना आधारित निर्णय ले सकें।’’
ध्रुव अग्रवाल कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में पीएच.डी. के वहले वर्ष के विद्यार्थी हैं। वह कंप्यूटर साइंस और मानव-कंप्यूटर संवाद में अपनी पृष्ठभूमि का इस्तेमाल वंचित समुदायों के लिए तकनीक डिज़ाइन करने, उनका विकास करने और उनका आकलन करने में कर रहे हैं। (फोटोग्राफ साभारः ध्रुव अग्रवाल)
कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में अग्रवाल का नवीनतम प्रोजेक्ट यह समझने का प्रयास है कि भारत में सामुदायिक स्वास्थ्यकर्मी किस तरह से एआई चालित हेल्थ डायग्नॉस्टिक एप्लीकेशन के आउटपुट को समझ पाते हैं। प्रोजेक्ट पर काम करने वाली टीम ने पाया कि ये एआई के आउटपुट पर कुछ उसी तरह से भरोसा करते हैं जैसे कि थर्मामीटर और एक्सरे मशीनों पर। अग्रवाल मानते हैं, ‘‘तकनीकी उपयोगकर्ता के रूप में हम समझते हैं कि एआई अस्पष्टता होती है और गलतियां हो सकती हैं, लेकिन कम स्तर की एआई साक्षरता वाले उपयोगकर्ता मशीन के आउटपुट में अनिश्चितता की थाह लेने में अक्षम होते हैं। अब हम इस अध्ययन से मिली जानकारियों का इस्तेमाल ऐसी एआई एप्लीकेशन बनाने में कर रहे हैं जो नौसिखिए एआई उपयोगकर्ता के लिए भी कहीं ज्यादा सहज हों।’’
नई दिल्ली के रहने वाले अग्रवाल 2022 में अमेरिका पहुंचे। अगले पांच सालों में पीएच.डी. की अपनी पढ़ाई के दौरान उन्हें उम्मीद है कि वह दुनिया भर में वंचित वर्ग की ऐसी जरूरतों और समस्याओं के बारे में एक समझ बना पाएंगे जिनका समाधान तकनीक के जरिए संभव है। उनका कहना है, ‘‘पीएच.डी. करने के बाद, मैं ऐसे डिजाइन और तकनीकी निर्माण को जारी रखना चाहता हूं जिनका समाज और नीतियों पर असर पड़ सके। इस दृष्टि से क्वॉड फेलोशिप मेरे दीर्घकालिक लक्ष्य के खांचे में एकदम फिट बैठती है।’’
सूक्ष्म समाधानों की तलाश
यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया, बर्कली में अंडरग्रेजुएट के चौथे साल में पढ़ रहीं जुत्शी बायोइंजीनियरिंग और डिजाइन इनोवेशन की पढ़ाई कर रही हैं।
वह विश्वविद्यालय के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग की सॉन लैब में रिसर्च असिस्टेंट के रूप में भी काम कर रही हैं। इसके अलावा, वह ऐसे प्रोजेक्ट आइडिया पर भी काम कर रही हैं जिनसे शुरुआती चरण में कैंसर का पता लगाने में मदद मिल सके और प्रारंभिक चिकित्सा के बाद किस तरह की सहायक चिकित्सा थेरेपी का इस्तेमाल किया जाए ताकि कैंसर के वापस आने के खतरे के कम किया जा सके।
जुत्शी का कहना है, ‘‘अपनी पूरी शैक्षिक यात्रा के दौरान, मेरी प्राथमिक शैक्षणिक दिलचस्पी विज्ञान, तकनीक, अर्थशास्त्र और लोकनीति में रही।’’ जुत्शी का जन्म बेंगलुरू में हुआ और उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा मुंबई में पूरी की। कम उम्र से ही उनकी दिलचस्पी जैवतकनीक प्रेरित डिज़ाइन और उसकी विभिन्न एप्लीकेशन से प्रेरित रही। उनका कहना है, ‘‘मैं एक ऐसे देश में मैं पली-बढ़ी हूं, जहां एक हजार मरीजों पर सिर्फ एक डॉक्टर की उपलब्धता है, मैं भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं के बुनियादी ढांचे में बदलाव लाने के लिए प्रतिबद्ध थी। इसी का नतीजा था कि, मैं चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में ऐसी एप्लीकेशन की डिजाइन को लेकर उत्सुक थी जो जैवतकनीक से प्रेरित थे।’’
शारिका ज़ुत्शी चौथे वर्ष में पढ़ रही अंडरग्रेजुएट विद्यार्थी हैं। वह यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफोर्निया, बर्कली में बायोइंजीनियरिंग और डिज़ाइन इनोवेशन का अध्ययन कर रही हैं। (फोटोग्राफ साभारः शारिका ज़ुत्शी)
उन्हें उम्मीद है कि वह कम संसाधनों वाली व्यवस्था में किफायती स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच की कमी को दूर करने के लिए कुछ कर पाएंगीं। जुत्शी के अनुसार, ‘‘खासतौर पर, मैं डॉक्टरों और चिकित्सा सुविधाओं पर बोझ को कम करने के लिए ऐसे अभिनव समाधान तैयार करने की आशा करती हूं ताकि इलाज में इस्तेमाल होने वाले चिकित्सा उपकरणों की दक्षता को और बेहतर बनाया जा सके।’’
उन्हें डायग्नॉस्टिक और चिकित्सकीय उपकरण के रूप में माइक्रो़फ्लूइडिक उपकरणों के इस्तेमाल से ऐसा कर पाने की उम्मीद है। माइक्रो़फ्लूइडिक उपकरणों को लैब ऑन ए चिप के नाम से भी जाना जाता है। इसमें कुछ लैब जांचों के लिए बहुत ही कम मात्रा में माइक्रोचिप पर फ्लूइड का इस्तेमाल किया जाता है।
जुत्शी का मानना है कि कैंसर जैसे रोगों में स्वास्थ्य सुविधाओं को रणनीतिक नवाचारों, खासकर डायग्नॉस्टिक तरीकों को अच्छा बनाकर बेहतर किया जा सकता है। वह कहती हैं, ‘‘रोग की पहचान और इलाज तक लोगों की पहुंच को बेहतर बनाकर, हम ऐसे लोगों के जीवन को बचा सकते हैं, जो अन्यथा बच नहीं पाते।’’
अपने पूरे कॅरियर में शोध, शिक्षा और उद्यमिता के क्षेत्र में कुछ नया करने की उम्मीद के साथ जुत्शी कहती हैं कि अमेरिका में अध्ययन का उनका अनुभव अविश्वसनीय रूप से फायदेमंद रहा। मेरा मानना है, ‘‘एक ऐसे माहौल में जहां अकादमिक क्षेत्र में बहस और विमर्श की बहुत महत्वपूर्ण जगह हो, वहां मुझे बतौर विद्यार्थी और शोधार्थी के तौर पर विकसित होने में बहुत सहायता मिली है। मैं इस तरह के तकनीकी रूप से प्रगतिशील और नवप्रवर्तन करने वाले देश में सीखने और आगे बढ़ने के अवसरों और विविध पृष्ठभूमियों से आने वाले प्रतिभाशाली अद्भुत लोगों के बीच सीखने के लिए बहुत आभारी हूं।’’
सभी के लिए स्वच्छ ऊर्जा
यूनिवर्सिटी ऑफ़ विस्कॉंसिन-मैडीसन में पीएच.डी. विद्यार्थी पेरूमल, महत्वपूर्ण रसायनों और ईंधन के सदाजीवी उत्पादन पर काम कर रही हैं। इसका नतीजा स्वच्छ ऊर्जा को और ज्यादा किफायती बनाना है, जिसका सीधा असर इस तक पहुंच पर पड़ेगा। पेरूमल के अनुसार, ‘‘मैं इसे संभव बनाने के लिए नई उत्प्रेरक प्रक्रियाओं और सामग्रियों को विकसित करती हूं। विशेष रूप से, मैं कार्बन डाइऑक्साइड के रूपांतरण और दवाइयों में इस्तेमाल होने वाले कार्बनिक रसायनों के उत्पादन में नवीकृत ऊर्जा के इस्तेमाल पर काम करती हूं।’’
पेरूमल चेन्नई में पली-बढ़ीं। उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि स्वच्छ ऊर्जा तक सभी की पहुंच न होने से जलवायु परिवर्तन और गरीबी की समस्या और विकराल बन रही है। उनके अनुसार, ‘‘इस दिशा में वैज्ञानिक अनुसंधान एक महत्वपूर्ण उपाय के रूप में काम कर सकता है। इसीलिए, मैं स्वच्छ ऊर्जा को सस्ता और सार्वभौमिक रूप से सुलभ बनाने के लिए अनुसंधान को लेकर बहुत उत्सुक थी।’’
पेरूमल अकादमिक क्षेत्र में अपना कॅरियर बनाना चाहती हैं और सार्वजनिक सेवा के क्षेत्र से जुड़ने की इच्छा रखती हैं। वह कहती हैं कि पीएचडी संबंधी शोध कार्य के हिस्से के रूप में उन्हें नीति निर्धारकों और इंडस्ट्री भागीदारों से संवाद के साथ ही अंतरविषयक एवं बड़े गठबंधनों पर काम करने का मौका मिला।
उनका कहना है, ‘‘मैं क्वॉड फेलोशिप के माध्यम से बहुत तरह के लोगों से संवाद को लेकर बहुत उत्साहित हूं। विशेष रूप से, उन लोगों से जो महत्वपूर्ण सरकारी नीतियों पर काम करने वाले हैं या फिर इंडस्ट्री में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
पारोमिता पेन यूनिवर्सिटी ऑफ़ नेवाडा, रेनो में ग्लोबल मीडिया स्टडीज़ विषय में असिस्टेंट प्रो़फेसर हैं।
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