एक्सेस प्रोग्राम के चार पूर्व भारतीय प्रतिभागियों ने अलाबामा यूनिवर्सिटी में एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत अंतरिक्ष की खोज के बारे में जानकारी हासिल की।
दिसंबर 2022
(बाएं से दाएं) नई दिल्ली स्थित जामिया मिलिया स्कूल के अरहम हयात, हुमायूं रशीद, मुबारक समर और हफसा फहद 12 दिनों के अंतरिक्ष एक्सचेंज प्रोग्राम के लिए हंट्सविल, अलाबामा गए।
नई दिल्ली के पहली पीढ़ी के चार शिक्षार्थी अमेरिका की अल्बामा यूनिवर्सिटी में 12 दिनों के एक्सचेंज प्रोग्राम के बाद भारत लौटे। हंट्सविल, अलाबामा के अमेरिकी यू.एस. स्पेस एंड रॉकेट सेंटर की स्पेस एकेडमी फॉर यूथ में विद्यार्थियों ने इस दौरान रॉकेट लॉंच किए, हॉट एयर बैलून को ट्रैक किया और पेशेवर संबंध स्थापित किए। इसके लिए फंड वियना स्थित यू.एस. मिशन टू इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशंस द्वारा दिया गया।
हफसा फहद, हुमायूं रशीद, अरहम हयात और मुबारक समर एक्सेस प्रोग्राम के हाल ही के प्रतिभागी हैं। यह अमेरिकी विदेश विभाग की सहायता प्राप्त दो साल का वैश्विक स्कॉलरशिप प्रोग्राम है। इस प्रोग्राम में 13 से 20 साल के प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को अंग्रेजी भाषा में दक्षता प्रदान की जाती है।
इनका चयन यूएनवीआईई यूथ स्पेस प्रोग्राम के लिए किया गया था और उन्होंने इस साल की शुरुआत में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। छह देशों के 12 एक्सेस प्रतिभागी अंतरिक्ष खोज में अमेरिकी भागीदारी और इस क्षेत्र में अमेरिकी शोधकर्ताओं द्वारा विकसित विशेषज्ञता को जानने-समझने के लिए इस कैंप में शामिल हुए। इस कार्यक्रम को अपोलो 11 मिशन की 50वीं वर्षगांठ के उपलक्ष में शुरू किया गया।
नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास में रीजनल इंगलिश लैंग्वेज स्पेशलिस्ट रचना शर्मा के अनुसार, ‘‘यूथ स्पेस प्रोग्राम एक नया कार्यक्रम है जिसे 2020 में शुरू किया गया।’’ वह बताती हैं कि यह कैंप अंग्रेजी भाषा के एक्सेस माइक्रोस्कॉलरशिप प्रोग्राम के उन पूर्व प्रतिभागियों के लिए है जो स्टेम विषयों में उच्च शिक्षा हासिल करना चाहते हैं।
चयन मानदंड
इस प्रोग्राम के चयन मानदंडों में सबसे महत्वपूर्ण अहर्ता आवेदक के एक्सेस एल्युमनी होने साथ-साथ स्टेम विषयों का विद्यार्थी होना था। शर्मा का कहना है, ‘‘2020 में, इस कार्यक्रम के तहत चयन के लिए बहुत ही कम समय मिला, इसीलिए इस अवसर के बारे में दिल्ली और उत्तर भारत के एक्सेस प्रोग्राम में ही बताया गया।’’
कोविड-19 प्रतिबंधों के कारण इस कार्यक्रम को मई 2022 तक के लिए स्थगित करना पड़ा। हालांकि, इस दौरान साप्ताहिक तौर पर वर्चुअल सत्र और सामूहिक संवाद जारी रहा और सभी उम्मीदवारों ने सामूहिक गतिविधियों में नियमित भाग लिया। शर्मा ने बताया, ‘‘भारतीय समूह ने अपनी असाधारण कर्मठता और प्रतिबद्धता से शिविर के आयोजकों को बहुत प्रभावित किया। और इसीलिए इसे परसिस्ट ग्रुप का नाम दिया गया।’’
अंतरिक्ष विज्ञान की समझ
विद्यार्थियों के चयन का आधार अंतरिक्ष और इससे संबद्ध विषयों के बारे में उनकी दिलचस्पी रहा। हयात गलगोटिया विश्वविद्यालय में कंप्यूटर साइंस के विद्यार्थी थे, जो गणित की पढ़ाई करना चाहते थे। उनका कहना है कि एक्सचेंज प्रोग्राम से उन्हें यह समझने में मदद मिली कि किसी भी सफल लॉंच के पीछे किस तरह से काम किया जाता है। उनके अनुसार, ‘‘मैंने जाना कि अंतरिक्ष में कोई भी मिशन भेजने के पीछे एक से ज्यादा टीमें काम करती हैं और शटल में जाने वाले लोग तो पूरे मिशन का एक छोटा-सा हिस्सा होते हैं।’’
एयरोनॉटिक्स इंजीनियरिंग के छात्र रशीद भी इस बात से सहमत हैं। उनका कहना है कि, इससे उन्हें मिशन पर जाने से पहले अंतरिक्ष यात्रियों की तैयारियों के बारे में गहन जानकारी मिली।
समर, इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी से बॉटनी में बैचलर डिग्री पूरी कर रही थीं। उनका कहना है कि, रिसर्च सेंटर की यात्रा काफी रोमांचक थी। उनका कहना है कि, उन्होंने इतिहास को अनुभव किया- पृथ्वी पर लौटे स्पेश शटल को छूना और उनके पुर्जों की पड़ताल एक अनोखा अनुभव था। वह बताती हैं कि वहां मौजूद इंस्ट्रक्टर विद्यार्थियों को हर पुर्जे के पीछे की दास्तां बताते हैं।
18 वर्ष की समर यह बताने के लिए बेहद उत्साहित थीं कि इस प्रोग्राम में बीते 12 दिन उनके लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण थे। दरअसल, शुरुआत में समर सुबह 4 बजे ही उठ जाया करती थीं, क्योंकि वह इतनी उत्साहित थी कि समय खराब नहीं करना चाहती थी।
उनका कहना है, ‘‘जब सभी प्रतिभागी वहां पहुंच गए और प्रोग्राम शुरू हो गया, तब उसके बाद दिनचर्या में हर चीज का समय निर्धारित था।’’ प्रतिभागियों को गतिविधियों की एक ऐसी सूची दी गई जिसे उन्हें अपने कौशल, टीमवर्क और एप्लीकेशन का इस्तेमाल करके पूरा करना था। प्रतिभागियों ने सिम्युलेटरों पर भी काम किया, स्पेस सूट और रॉकेट बनाए और एक प्रक्षेपण भी किया। उन्होंने बताया, ‘‘एक समय मैं आईएसएस कमांडर थी, और हमने इसे पूरी गंभीरता से पूरा किया। हमें ऐसा कतई नहीं लगा कि हम किसी सिम्युलेटर का हिस्सा है। मुझे तो सब कुछ बहुत वास्तविक लगा।’’
संस्कृतियों का सम्मिलन
एक्सेस प्रोग्राम से हयात को अपने अंग्रेजी बोलने के कौशल और आत्मविश्वास बढ़ाने में मदद मिली। लेकिन वास्तव में वह यूथ स्पेस प्रोग्राम ही था जिससे यह पता चल पाया कि वह कहां पर खड़े हैं और कितनी उपलब्धियां और हासिल की जा सकती हैं। उनका कहना है, ‘‘क्लाइमेट इमेज सिस्टम और सौर ऊर्जा के लिए बने विभिन्न केंद्र अद्भुत थे।’’ उनका यह भी कहना है कि उन्हें हॉट एयर बैलून को ट्रैक करने का मौका मिला। इसके अलावा विभिन्न देशों के प्रतिभागियों के साथ मुलाकात निश्चित रूप से अनूठा अनुभव था। वह कहते हैं, ‘‘इससे पहले मैं नहीं जानता था कि कभी अंग्रेजी में मजाक भी कर सकता हूं।’’
समर ने यह सोचा ही नहीं था कि वह कभी इस प्रोग्राम के लिए चुनी जाएंगी। वह कहती हैं, ‘‘हंट्सविल बेहद खूबसूरत था। हमने विभिन्न केंद्रों को देखा और मेरी इच्छा थी कि अमेरिका को और ज्यादा देख पाते।’’ दूसरे प्रतिभागियों के साथ काम करते हुए मजेदार अनुभव हुए। वह बताती हैं, ‘‘जब मुझे उनसे मिलने का मौका मिला तब मुझे लगा कि वे अद्भुत और बढि़या थे। बाद में मुझे अहसास हुआ कि वे भी मेरे बारे में कुछ ऐसी ही सोच रखते थे।’’
प्रतिभागियों को कला समारोहों और शॉपिंग मॉल की यात्रा से अमेरिकी संस्कृति और जीवन के बारे में अनुभव हासिल हुआ।
रशीद को इस प्रोग्राम से दूसरों के साथ सहयोग और एक टीम के साथ मिलकर काम करने के महत्व की सीख मिली। उनका कहना है, ‘‘यहां सरहदों और सीमाओं का कोई मतलब नहीं हैं, क्योंकि आप यहां कतिपय निर्देशों के तहत एक काम पूरा करने के लिए आए हैं।’’ वह कहते हैं, ‘‘हमने कैंप में ईद मनाई और सभी को चॉकलेट दी।’’
नेटवर्किंग के अवसर
प्रतिभागियों का मानना है कि इस कार्यक्रम ने उनके कॅरियर के भविष्य के रास्तों को खोल दिया। इस कार्यक्रम के जरिए नेटवर्किंग और पूर्व प्रतिगियों से संपर्क के अवसरों से दूसरे प्रोग्रामों तक पहुंच के रास्तों को खोलने में मदद मिलेगी। जैसा कि समर का कहना है, ‘‘पहले मैं अच्छे नंबरों के लिए पढ़ाई करती थी लेकिन अब मैं उत्कृष्ट बनने के लिए प्रेरित हूं।’’
पारोमिता पेन यूनिवर्सिटी ऑफ़ नेवाडा, रेनो में ग्लोबल मीडिया स्टडीज़ विषय की असिस्टेंट प्रो़फेसर हैं।
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