डिजिटल खाई को पाटने की कोशिश

वुमेनकनेक्ट चैलेंज इंडिया के माध्यम से महिलाओं को अपना कारोबार बढ़ाने में सहायता मिलती है और वे खुद के अलावा अपने समुदाय को सशक्त बनाने में सक्षम बनती हैं।

बर्टन बोलाग

मार्च 2022

डिजिटल खाई को पाटने की कोशिश

डिजिटल एडवोकेट द्वारा प्रशिक्षण  दिया जा रहा है कि स्मार्टफोन का इस्तेमाल किस तरह से करना है। फोटोग्राफः साभार टेक्‍ नोसर्व इंडिया 

पूरी दुनिया में, लोग अपने छोटे कारोबारों को बेहतर बनाने के लिए स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हुए सूचनाओं के अलावा ऑनलाइन भुगतान और बैकिंग तक पहुंच बना कर अपने जीवन को आसान बना रहे हैं। लेकिन तमाम तरह की सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के कारण महिलाएं इन फायदों से वंचित रह जाती हैं।

वुमेनकनेक्ट चैलेंज (डब्ल्यू.सी.सी.) एक विश्वस्तरीय पहल है जो तकनीक के इस्तेमाल और उस तक महिलाओं की पहुंच को बदल कर रोजाना की जिंदगी में उनकी भागीदारी को बेहतर बनाती है। डब्ल्यूसीसी इंडिया के माध्यम से, युनाइडेट स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डवलपमेंट (यूएसएड) ने रिलायंस फाउंडेशन के साथ सहभागिता में 2021 में 10 संगठनों को अनुदान दिया। ये संगठन, सामाजिक और सांस्कृतिक रूढि़यों को चुनौती देते हुए कौशल विकास और आर्थिक सक्षमता, तकनीक के इस्तेमाल को लेकर आत्मविश्वास में बढ़ोतरी,  समुदाय की बात को सामने लाने वालों का उत्साह बढ़ाकर और महिला केंद्रित तकनीक के प्रारूप को विकसित करके, डिजिटल खाई को पाटने के क्षेत्र में काम कर रहे हैं।

महिलाएं जब खुद कमाती हैं तो उनके परिवार और समाज के फैसलों में उनकी बात की  अहमियत बढ़ती है। डब्ल्यूसीसी इंडिया से अनुदान हासिल करने वाले और ओडिशा स्थित सेंटर फॉर यूथ एंड सोशल डवलपमेंट के प्रोग्राम मैनेजर नीलाद्रि साहू के अनुसार, ‘‘हमने देखा है कि जब महिला आर्थिक रूप से सशक्त होती है तो उसका और उसके बच्चों का शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों की दृष्टि से जीवन भी बेहतर बनता है।’’ उदाहरण के लिए, डब्ल्यूसीसी इंडिया की एक प्रतिभागी, संपा अब पैसे ट्रांसफर करने के अलावा ऑनलाइन भुगतान करने में पूरी तरह सक्षम बन गई है। वह मोबाइल फोन रीचार्ज करा लेती है और ईकॉमर्स से जुड़े काम भी निपटा लेती है। संपा की इस डिजिटल पहुंच और शिक्षा ने पांच किलोमीटर की दूरी को तय करके बैंक जाने की उसकी फालतू की कवायद को कम कर दिया है और अब वह अपने समाज में डिजिटल साक्षरता बढ़ाने के लिए दूसरों की मदद कर रही है ताकि रोजाना के कामों के लिए दूसरों पर उनकी निर्भरता को सीमित किया जा सके।

डब्ल्यूसीसी इंडिया प्रोजेक्टों के माध्यम से भारत के 17 राज्यों की तीन लाख महिलाओं को स्मार्टफोन के इस्तेमाल के लिए इस तरह से प्रशिक्षित किया जा रहा है जिससे कृषि और छोटे कारोबार संबंधी उनकी गतिविधियों से उनकी आय बढ़ाई जा सके। बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में जहां महिला साक्षरता दर काफी कम है, वहां महिलाओं को ऐप प्रतीकों को पहचानने और वॉयस रिकॉग्निशन सिस्टम का इस्तेमाल करना सिखाया जा रहा है।

इन प्रोजेक्ट का मकसद स्मार्टफोन रखने वाली और इस्तेमाल करने वाली महिलाओं के प्रति सामाजिक सोच में बदलाव का भी रहा क्योंकि कई रूढि़वादी समुदायों में आज भी इसके इस्तेमाल को लेकर महिलाओं को प्रतिरोध झेलना पड़ता है। उदाहरण के लिए, ललिता जो अपने समुदाय में कुछ चीजों को बेचने का काम करती है, यह सोचती रही कि वह अंग्रेजी नहीं बोल पाती, इस कारण वह कभी भी डिजिटल तकनीक के इस्तेमाल में सक्षम नहीं हो पाएगी। हालांकि, डिजिटल साक्षरता प्रशिक्षण के बाद अब उसने अपने फोन के बेसिक फंक्शन सीख लिए हैं और वह सोशल मीडिया और दूसरे कम्युनिकेशन ऐप पर सक्रिय है। अब वह अपने बेटे से बात कर सकती है, लिहाजा वह पहले से कहीं ज्यादा सुरक्षित और आत्मविश्वासी बन गई है। इसके अलावा उसे किसी को पैसा भेजने के लिए बैंक भी नहीं जाना पड़ता, खासकर कोविड-19 जैसी महामारी के दौर में।

फ्रेंड्स ऑफ वुमेन्स वर्ल्ड बैंकिंग, भारत

मोबाइल इंटरनेट के साथ स्मार्टफोन के तेजी से बढ़ते चलन और स्मार्टफोन की घटती कीमत ने लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में डिजिटल तकनीक के गंभीरता से इस्तेमाल की कल्पना को हकीकत बना दिया। गुजरात स्थित फ्रेंड्स ऑफ वुमेन्स वर्ल्ड बैंकिंग, इंडिया (एफडब्ल्यूडब्ल्यूबी) की प्रोग्राम प्रमुख नेहा कंसारा के अनुसार, ‘‘यह प्रोग्राम वास्तव में एकदम सही समय पर आया। खासतौर पर महामारी के साथ, तकनीक का इस्तेमाल बहुत तेजी से बढ़ा।’’ यह संगठन, महिलाओं के छोटे कारोबारों के लिए लघु कर्जों को प्रोत्साहित करता है। डब्ल्यूसीसी से मिली सहायता का इस्तेमाल यह गुजरात, महाराष्ट्र और मणिपुर की 3500 मौजूदा और भावी महिला उद्यमियों के लिए अपनी मौजूदा तकनीक के विस्तार में कर रहा है।

एफडब्ल्यूडब्ल्यूबी 10 से 15 प्रतिभागियों के समूहों के लिए कक्षाओं का आयोजन करती है जिसमें स्मार्टफोन और ऐप के इस्तेमाल के अलावा, बिजनेस प्लानिंग, फाइनेंशियल प्लानिंग और मार्केटिंग के बारे में समझाया जाता है। पाठ्यक्रम में ऑनलाइन पेमेंट, स्थानीय सोशल मीडिया ग्रुप पर फोटो पोस्ट और अपने कारोबार को प्रमोट करने के साथ रिकॉर्ड सहेजने के लिए मु़फ्त में मिलने वाले ऐप के इस्तेमाल की शिक्षा दी जाती है। इसके अतिरिक्त, विभिन्न लघु कारोबारों जैसे बुनाई, खानपान, सिलाई, सौंदर्य प्रसाधन और हस्तशिल्प के क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञ उनकी मदद करने के लिए निजी तौर पर उपस्थित होकर बाजार की मांग को बेहतर तरीके से समझने में उनकी मदद करते हैं।

उदाहरण के लिए, एफडब्ल्यूडब्ल्यूबी के प्रशिक्षण के जरिए पारंपरिक रूप से जेवर का काम करने वाले सुनार को इस बात की जानकारी दी जाती है कि, डिजिटल तकनीक के इस्तेमाल के माध्यम से वह कैसे अपने उत्पाद के लिए बाजार की तलाश कर सकता और कैसे ग्राहकों तक अपनी पहुंच बढ़ा सकता है। प्रशिक्षण के साथ ही, उसने इंस्टाग्राम और व्हाट्सअप पर अपना बिजनेस एकाउंट बना लिया जहां पर वह अपने भावी ग्राहकों के अपने डिजिटल कैटेलॉग को साझा करने लगी। उन्होंने अपनी कारोबारी आय और खर्चों का भी डिजिटल लेखाजोखा रखना शुरू कर दिया।

स्थानीय निजी संस्थाओं और प्रभावविस्तारकों के साथ मिलकर काम करते हुए एफडब्ल्यूडब्ल्यूबी ने समुदायों को लगातार यह समझाने का प्रयास किया कि जब महिलाओं की आय बेहतर होती है तो इसका फायदा परिवार को भी पहुंचता है। कंसारा का कहना है, ‘‘हमें पता है कि, कम आय वर्ग से आने वाली महिला के लिए तुरंत से स्मार्टफोन का खर्च उठा पाना मुश्किल होगा। लेकिन अगर उनके परिवार में किसी एक स्मार्टफोन तक उनकी पहुंच है तो हमें उन्हें शिक्षित करके खुशी मिलेगी।’’

सेंटर फॉर यूथ एंड सोशल डवलपमेंट (सीवाईएसडी)

डब्ल्यूसीसी इंडिया से अनुदान पाने वाला यह संगठन खासतौर पर ओडिशा के  आदिवासियों के बीच काम करता है। यह आदिवासी महिलाओं को डिजिटली सक्षम उद्यमी के रूप में बदलने के काम में जुटा है। यह 6600 ऐसी महिलाओं के साथ कार्य में जुटा है जो लकड़ी रहित वन उत्पाद जैसे इमली, जंगली आम और साल वृक्ष के बीज और उनकी पत्तियों से जुड़े हैं। इन पत्तियों का इस्तेमाल इको फ्रेंडली डिनर प्लेट और कटोरे बनाने के काम में होता है।

ये महिलाएं उन 22 भारत सरकार प्रायोजित इकाइयों का हिस्सा हैं जिनमें से प्रत्येक में 300 महिलाएं हैं और इन्हें वन धन विकास केंद्र (फॉरेस्ट वेल्थ डवलपमेंट सेंटर) कहा जाता है। सीवाईएसडी ने 44 ऐसे स्थानीय चैंपियंस को प्रशिक्षित किया है जो साप्ताहिक आधार पर इन इकाइयों का दौरा करते हैं और स्मार्टफोन के इस्तेमाल के माध्यम से इसके सदस्यों को बिजनेस प्लानिंग और मार्केटिंग के काम में प्रशिक्षित करते हैं।

सीवाईएसडी की तरफ से विकसित किया गया बनश्री ऐप महिलाओं को बाजार भाव और सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य के बारे में जानकारी उपलब्ध कराता है। पहले उनके पास ऐसी जानकारियों का अभाव होता था और जैसा कि सीवाईएसडी के साहू का कहना है कि, ‘‘वे अपना उत्पाद औनेपौने दाम में बेच देती थीं।’’

इस ऐप के माध्यम से स्टॉक संबंधी जानकारियों को भी वेंडरों से साझा किया जा सकता है और ये बिक्री के नए अवसरों की दृष्टि से इंटरनेशनल मार्केटिंग साइट के लिंक भी उपलब्ध कराता है। इसके अतिरिक्त, इस ऐप पर फसल कटाई के सदाजीवी तरीकों के बारे में सूचनाएं और वीडियो भी उपलब्ध होते हैं और उन तरीकों बारे में जानकारियां होती हैं जिसमें उत्पादक अपनी उपज के भाव में इन खर्चों को भी जोड़ सकते हैं। उदाहरण के लिए, इमली से अगर उसके बीज को निकाल दिया जाए तो उसका बाजार भाव चार गुना बढ़ जाता है, इससे महिला विक्रेताओं की वित्तीय स्वतंत्रता बेहतर होती है और सामूहिक रूप से महिलाओं को बनश्री ऐप अपनाने के लिए प्रोत्साहन मिलता है।

सीवाईएसडी में प्रोजेक्ट लीड आशीष कुमार जल्ली के अनुसार, ‘‘हम इन आदिवासी महिलाओं की इस डिजिटल लहर का फायदा उठाने में मदद करना चाहते हैं, मध्यवर्गीय भारतीय पहले ही अपने आर्थिक सशक्तिकरण के लिए इसका इस्तेमाल कर चुके हैं।’’

टेक्नोसर्व इंडिया

वर्जीनिया स्थित मुख्यालय वाले इस अलाभकारी संगठन की भारतीय शाखा, उद्यमशीलता, सदाजीवी स्थानीय आर्थिक विकास, मूल्य शृंखलाओं को मजबूत बनाने और जेंडर इनक्लूसिव कम्युनिटी को प्रोत्साहन देने के लिए विशेष तौर पर ग्रामीण इलाकों में काम करती है। टेक्नोसर्व इंडिया को डब्ल्यूसीसी इंडिया से जो अनुदान मिला है, उसका इस्तेमाल वह राजस्थान के बीकानेर के प्रोजेक्ट में डिजिटल खाई को पाटने के काम में कर रही है। यह प्रोजेक्ट ग्वार या क्लस्टर बींस के छोटे उत्पादकों की सहायता के लिए चल रही मौजूदा परियोजना का विस्तार है जिसका उपयोग अन्य उत्पादों के साथ सौंदर्य प्रसाधन, खाद्य उत्पादन और दवाएं तैयार करने में किया जाता है।

इस पहल के तहत 1600 महिला ग्वार किसानों को प्रशिक्षण और सहायता उपलब्ध कराई जाती है। टेक्नोसर्व में प्रोग्राम डायरेक्टर जसप्रीत गुर्म के अनुसार, ‘‘इनमें से अधिकतर महिलाएं कुछ भी पढ़ पाने में असमर्थ थीं और उन्होंने कभी भी कोई स्मार्टफोन इस्तेमाल नहीं किया था।’’ इस प्रोजेक्ट में 80 महिला डिजिटल एडवोकेट है जिसमें से हरेक पर 20 प्रतिभागियों का दायित्व है। इन एडवोकेट को हर महीने एक दिन का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। इसके बाद वे घर-घर जाकर दूसरों को स्मार्टफोन के इस्तेमाल और सूचनाओं तक पहुंच बनाने के बारे में बताती हैं। जैसे कि, इससे उन्हें रोजाना उत्पाद के भाव का पता चल सकता है और वे यह तय कर सकती हैं कि उन्हें कब बाजार अपने उत्पाद को लेकर जाना है। इसी तरह से मौसम संबंधी ऐप से मिली जानकारी के बाद वे यह तय कर सकती हैं कि किस चीज़ की बुआई करनी है और फसल कब तक काट लेनी है।

एडवोकेट, प्रत्येक प्रतिभागी को तमाम तरह के ऐप प्रतीकों को पहचानने के बारे में शिक्षित करते हैं और सूचनाएं हासिल करने के लिए वॉयस रिकॉग्निशन के इस्तेमाल के बारे में बताते हैं। गुर्म का कहना है, ‘‘हमने बहुत-सी महिलाओं को वॉयस टाइपिंग का इस्तेमाल करते हुए देखा है। मसलन, वे विभिन्न तरीकों की सिलाई के फोटो और वीडियो तलाशने के लिए ऐसा करती मिल जाएंगी, ताकि वे अपने सिलाई के छोटे-से कारोबार को और बेहतर बना सकें।’’ कुल मिलाकर कहा जाए तो, इससे प्रतिभागियों को आत्मनिर्भर होने की अपनी क्षमताओं पर ज्यादा भरोसा पैदा होता है। प्रशिक्षण प्रतिभागी गायत्री के अनुसार, ‘‘यह देखकर बहुत सुखद अहसास होता है जब मैं किसी महिला को बिना किसी से मदद लिए स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते देखती हूं।’’

प्रोजेक्ट में महिला प्रतिभागियों के परिवारों से जुड़े 800 पुरुष भी शामिल थे। उन्हें भी समान कौशल के बारे में शिक्षित करते हुए बताया जाता है कि किस तरह से स्मार्टफोन के प्रयोग से महिलाओं की सामाजिक स्वीकार्यता में बढ़ोतरी होती है।

कोविड-19 महामारी के दौरान, ग्वार उत्पादकों को कृषि संबंधी सलाह देने के लिए सेलफोन का इस्तेमाल किया गया। गुर्म के अनुसार, महिला किसानों और छोटे कारोबारियों तक इस तरह की मदद पहुंचाने में ‘‘जीवन को बेहतर बनाने की बड़ी क्षमता मौजूद है।’’

पूरे देश में, डब्ल्यूसीसी इंडिया से अनुदान हासिल करने वाले संगठन, महिलाओं के लिए आर्थिक अवसरों की तलाश और उनके सशक्तिकरण और उनके सामाजिक समावेश की कोशिशों के अलावा डिजिटल जेंडर खाई की दीवार तोड़ने और उससे पैदा हुए फासले को पाटने की कोशिश में जुटे हैं।

बर्टन बोलाग स्वतंत्र पत्रकार हैं। वह वॉशिंगटन,डी.सी. में रहते हैं।



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