अमेरिकी कृषि मंत्रालय का कोचरन फेलोशिप प्रोग्राम महिला कृषि उद्यमियों को सशक्त बनाने के साथ ही स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को भी मज़बूती देता है।
सितंबर 2024
भारत से आए कोचरन फेलोशिप प्रोग्राम के प्रतिभागी अमेरिका में एक खाद्य प्रसंस्करण इकाई में। (साभार: एलिज़ाबेथ यॉर्क)
कोचरन फेलोशिप प्रोग्राम अमेरिका के दिवंगत सीनेटर विलियम थाड कोचरन के नाम पर है और इसके तहत दुनिया भर के कृषि पेशेवरों को अमेरिका में अल्पकालीन प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। फेलोशिप का उद्देश्य प्रतिभागियों को अपने-अपने देशों में कृषि प्रणालियों को बेहतर बनाने के साथ उन्हें अमेरिका के साथ व्यापारिक संबंधों को मजबूत बनाने में योगदान देना है। कोचरन फेलोशिप प्रोग्राम अमेरिका के कृषि मंत्रालय (यूएसडीए) की विदेशी कृषि सेवा का हिस्सा है।
जुलाई 2024 में कृषि व्यवसाय से जुड़ीं भारतीय महिला उद्यमियों के एक समूह ने अमेरिकी कासुंलेट जनरल मुंबई और यूएसडीए के बीच साझेदारी के तहत इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया। प्रतिभागियों ने खाद्य प्रसंस्करण और पैकेजिंग के क्षेत्र में प्रशिक्षण हासिल किया। उन्होंने ओहायो, वर्जीनिया और वॉशिंगटन डी.सी. में विभिन्न कृषि उत्पादों और खाद्य व्यवस्थाओं के संचालन पर केंद्रित चर्चाओं और अनुभवों को साझा करने जैसे सीखने के अवसरों में भागीदारी की। इन गतिविघियों में अमेरिकी उद्यमियों और कंपनियों के साथ बातचीत, अनुसंधान केंद्रों एवं स्थानीय बाज़ारों का दौरा और विशेषज्ञों एवं सरकारी अधिकारियों के साथ बैठकें शामिल थीं।
जुलाई 2024 के इस कार्यक्रम ने महिला उद्यमियों को सशक्तिकरण, स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को मज़बूत बनाने और सदाजीवी कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देते हुए भारत में कृषि के क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका को प्रोत्साहित करने और उसे न्यायसंगत बनाने में मदद की। मिलिए, उन तीन भारतीय कृषि उद्यमियों से, जो उस समूह का हिस्सा थीं।
एलिज़ाबेथ यॉर्क
पर्यावरण अनुकूलता के तहत शुरू की गई पहल, सेविंग ग्रेन्स, बाईप्रॉडक्ट्स की अपसाइकलिंग पर केंद्रित है, और यह खासतौर पर शराब बनाने के काम आए अनाज को मूल्यवान सामग्रियों में बदलने पर फोकस करता है। शराब उत्पादन के काम में ज़रूरी चीनी के लिए आमतौर पर जो अनाज इस्तेमाल होता है, वह गर्म पानी में अंकुरित जौ होता है। चीनी निकाले जाने के बाद जो अनाज बचता है, उसे स्पेंट ग्रेन कहा जाता है।
इसी स्पेंट ग्रेन को बर्बाद होने देने के बजाए, सेंविंग ग्रेन्स इससे पौष्टिक खाद्य सामग्री जैसे उच्च प्रोटीनयुक्त आटा और दूसरे पर्यावरण अनुकूल उत्पाद तैयार करता है।बेंगलुरू स्थित इस कंपनी की संस्थापक एलिज़ाबेथ यॉर्क का कहना है, ‘‘मेरा पसंदीदा उद्धरण है, ‘‘बेकार उत्पाद तब बचता है जब हमारे सोचने की क्षमता खत्म हो जाती है।’’ बेंगलुरू में 70 से अधिक शराब बनाने की छोटी भट्टियां हैं। सेविंग ग्रेंस की वेबसाइट के अनुसार, शहर में ऐसी हर भट्टी रोजाना औसतन 200 किलोग्राम अनाज का इस्तेमाल करती है और जिसमें से अनुमानित रूप से रोजाना लगभग 12,000 किलोग्राम अनाज बर्बाद हो जाता है।
सेविंग ग्रेंस का मिशन इस तरह से इस्तेमाल हो चुके अनाज को एक मूल्यवान संसाधन के रूप में फिर से उपयोग करके खाद्य सामग्री तैयार करते हुए एक सर्कुलर इकोनॉनी यानी चक्रीय अर्थव्यवस्था को तैयार करना है।यॉर्क की टीम ऐसी छोटी शराब भट्टियों, कैफे और दूसरे खाद्य कारोबारों के साथ निकटता से काम करते हुए, मिलकर उत्पादों को तैयार करती है, विभिन्न आयोजनों की मेज़बानी करती है, और यहां तक कि साइट पर माइक्रो-अपसाइकलिंग यूनिटों को भी स्थापित करती है। ऐसी पहलों के माध्यम से सेविंग ग्रेंस अनाज की बर्बादी को रोकता है और साथ ही खाद्य उत्पादन और उपभोग को लेकर एक सदाजीवी और जागरूक दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करता है।
एलिज़ाबेथ यॉर्क (दाएं) बेंगलुरु में एक कैफे में सेविंग ग्रेन्स के पॉप अप स्टॉल में। (साभार: एलिज़ाबेथ यॉर्क)
जून 2024 में, बेंगलुरू में सेविंग ग्रेंस और लोफर एंड कंपनी ने संयुक्त रूप से एक अपसाइकल्ड पिज्जा नाइट पार्टी की मेज़बानी की जिसमें यॉर्क ने प्रदर्शित किया कि किस तरह से न्यूनतम प्रसंस्करण के साथ, बर्बाद समझे जाने वाले अनाज को ब्रेड, कुकीज़, बिस्कुट,, केक और ग्रेनोला जैसे पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य उत्पादों में बदला जा सकता है। कोचरन फेलोशिप प्रोग्राम से मिले अनुभव का यॉर्क के सेविंग ग्रेन्स के सदाजीवी नजरिए पर गहरा असर पड़ा। यॉर्क के अनुसार, ‘‘यह प्रोग्राम मेरे लिए एक परिवर्तनकारी अनुभव रहा है। कोचरन फेलोशिप ने मुझे नए तरीकों से विकास के बारे में सोचने के लिए प्रोत्साहित किया, और सेविंग ग्रेन्स के संभावित प्रभाव पर मेरे दृष्टिकोण को और विस्तार दिया।’’ उनका कहना है, ‘‘मौके पर मिलने वाली सीख और नेटवर्किंग के अवसरों के अनूठे संयोजन ने इस क्षेत्र और उद्योग की परिस्थितियों में भोजन की बर्बादी की चुनौतियों से जूझने की हमारी महत्वपूर्ण क्षमता को उजागर किया है।’’
यॉर्क, इच्छुक महिला उद्यमियों को दिमागी खुलेपन और अनुकूलनशीलता की सलाह देती हैं। उनका कहना है, ‘‘खाद्य प्रणालियों में विविधता है और इसमें मानकीकरण का अभाव है। ऐसे चुस्त मॉडल बनाना महत्वपूर्ण है जो विभिन्न चुनौतियों और अवसरों के अनुकूल साबित हों सकें। लचीला और उत्तरदायी होने से आपको उद्योग की जटिलताओं से निपटने में मदद मिलेगी।’’
रिची डेव
टुलुआ फूड्स, मुंबई स्थित कंपनी है जो मसालों और रेडी-टू-कुक पेस्टों की रेंज प्रस्तुत करती है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों के व्यंजनों से प्रेरित होकर इसकी संस्थापक रिची डेव और उनकी टीम देश भर के खेतों से सीधे उत्पादों को लेती है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे सबसे ताजे और सुगंधित मसाले उपलब्ध कराते हैं।
डेव के अनुसार, ‘‘चाहे आप नए स्वाद के कद्रदान घरेलू रसोइये हों या प्रमाणिक भारतीय व्यंजन बनाने का लक्ष्य रखने वाले पेशेवर शेफ हों, टुलुआ आपके खाना बनाने के अनुभव को बेहतर बनाने के लिए सामग्री के साथ प्रेरणा भी देता है।’’ उनके अनुसार, ‘‘हमारी टैगलाइन ‘ट्रू इंडियन फ्लेवर’ भारतीय खाना बनाने के सार को संरक्षित करने और इसे दुनिया के साथ साझा करने के प्रति हमारे समर्पण को दर्शाती है।’’
कोचरन फेलोशिप ने टुलुआ फूड्स से संबंधित डेव की विकास रणनीति पर स्थायी प्रभाव डाला। वह कहती हैं, ‘‘कोचरन फेलोशिप ने टुलुआ के लिए कई दरवाजे खोले। मुझे यूएसडीए और अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) जैसे प्रमुख संगठनों से जुड़ने का अवसर मिला जो निर्यात संबंधी हमारी महत्वाकांक्षाओं के लिहाज से ज़रूरी है।’’
इस प्रोग्राम से मिली महत्वपूर्ण सीखों में से एक तो यही थी कि, उत्पादों की प्रभावी तरीके से कैसे पोजीशनिंग की जाए, उसकी मार्केटिंग के लिए किस तरह से योजनाएं बनाई जाएं और एक उत्पाद की सफलता के लिए उसे कैसे लॉंच किया जाए। दूसरी चीज़, उन्नत कृषि तकनीकों के बारे में सीखना था। डेव कहती हैं, ‘‘कार्यक्रम ने नई कृषि पद्धतियों और सदाजीवी उपायों के बारे में मूल्यवान जानकारी प्रदान की, जिसे हमने अपनी सोर्सिंग और उत्पाद की गुणवत्ता पर लागू किया है। इसने सदाजीवी कृषि का सहारा लेते हुए उच्च गुणवत्ता वाले मसाले और पेस्ट उपलब्ध कराने की हमारी क्षमता को बढ़ाया है।’’
रिची डेव (बाएं से दूसरे स्थान पर), अदिति शर्मा त्रिवेदी (बाएं से चौथे स्थान पर) और एलिज़ाबेथ यॉर्क (बाएं से छठे स्थान पर) सहित कोचरन फेलोशिप प्रोग्राम के प्रतिभागी। (फोटोग्राफ साभार: एलिज़ाबेथ यॉर्क)
प्रोग्राम के माध्यम से डिस्ट्रीब्यूटरों और बिजनेस डवलपमेंट एजेंसियों के साथ बनाए गए रिश्तों ने टुलुआ फूड्स की पहुंच को विस्तार देने और बाज़ार में नए अवसरों को खोजने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। डेव कहती हैं, ‘‘इन रिश्तों ने अमेरिका को निर्यात और हमारी वैश्विक उपस्थिति बढ़ाने की कोशिशों में काफी मदद की है।’’
डेव का कहना है कि, किसी कृषि ब्रांड को शुरू करना सिर्फ एक व्यवसाय शुरू करना नहीं, बल्कि उससे कहीं अधिक है, यह अपने साथ एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी लेकर आता है। वह कहती हैं, ‘‘कृषि व्यवसाय शुरू करने में रुचि रखने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए मेरी खास सलाह अपने ग्राहकों के साथ पारदर्शिता और ईमानदारी को तरजीह देना है। आखिरकार आप उत्पाद लेकर आते हैं जो सीधे उनकी सेहत और कल्याण पर असर डालते हैं। साफगोई के साथ विश्वास बनाना और गुणवत्ता के उच्च मानकों को बनाए रखना दीर्घकालिक सफलता और ग्राहकों को जोड़े रखने के लिए महत्वपूर्ण है।’’
अदिति शर्मा त्रिवेदी
अदिति शर्मा त्रिवेदी अपने परिवार में पहली किसान उद्यमी हैं। उनका कहना है कि, साथी महिला किसानों के साथ काम करके, नए कौशल को सीखने हुए और आर्थिक रूप से स्वतंत्र रहने से उनके जुनून को धार मिलती है। मुंबई स्थित उनकी कंपनी टेंपल टाउन फार्म्स, घी शहद, सरसों का तेल, दाल और मसालों जैसे जैविक और स्वास्थ्यप्रद पैकेज्ड खाद्य पदार्थ बनाती है।
कोचरन फेलोशिप कार्यक्रम के माध्यम से त्रिवेदी यूएसडीए-प्रमाणित किसान बन गई हैं। उनका कहना है, ‘‘कोचरन फेलोशिप कार्यक्रम से मुझे जटिल खाद्य प्रक्रियाओं और नवीन कृषि तकनीकों के बारे में बहुमूल्य जानकारियां हासिल हुईं। मैंने कई खेतों और कोल्ड स्टोरेज संयंत्रों का दौरा किया और दूसरे उद्यमियों से भी जुड़ी। इस कार्यक्रम ने मुझे अपनी रणनीतियों और बिक्री को लेकर अपने दृष्टिकोण में फेरबदल करने में सहायता की।’’
प्रोग्राम ने अदिति शर्मा त्रिवेदी (बाएं) को खेती की नवप्रवर्तित विधियां सीखने और अन्य उद्यमियों से संपर्क बनाने में मदद की। (फोटोग्राफ साभार: अदिति शर्मा त्रिवेदी)
त्रिवेदी ने छह वर्षों से अधिक समय तक स्थानीय महिला किसानों के साथ काम किया और उन्हें जैविक खेती, वित्तीय प्रोत्साहन और स्वास्थ्य जागरूकता के बारे में प्रशिक्षित किया। इसकी वजह से कुछ महिला किसानों को अपना खुद का ब्रांड लॉंच करने में सहायता मिली।
कोचरन फेलोशिप प्रोग्राम से त्रिवेदी को जो जानकारियां हासिल हुईं, उससे स्थानीय महिला किसानों को भी बहुत लाभ हुआ। वह कहती हैं, ‘‘मेरे कोचरन फेलोशिप प्रोग्राम से मिले ज्ञान के बूते मेरी साथी किसानों में से एक ने प्लांट मैन्योर प्रोसेसिंग यूनिट शुरू कर दिया। कार्यक्रम ने एक किसान के रूप में मुझे बहुत आत्मविश्वास दिया है और मेरे ब्रांड के साथ विश्वसनीयता को जोड़ा है।’’
त्रिवेदी, कृषि व्यवसाय से जुड़ने वाली महत्वाकांक्षी उद्यमियों को पहले से चली आ रही धारणाओं और आग्रहों से मुक्त होकर खुले दिमाग से अपने उद्यम को अपनाने की सलाह देती हैं। उनका मानना है कि इस तरह की मानसिकता न केवल उन्हें हर क्षेत्र में सफलता देगी, बल्कि समाज के विकास में भी योगदान देगी। वह कहती हैं, ‘‘काश मैं अपनी उद्यमशीलता की यात्रा की शुरुआत के समय एक सलाह खुद को दे पाती, वह यह कि अगर आप जीवन या व्यवसाय में सफल होना चाहते हैं तो कोई ‘मैं’ नहीं है, यह हमेशा ही ‘हम’ है।’’
जैसन चियांग स्वतंत्र लेखक हैं और सिल्वर लेक, लॉस एंजिलीस में रहते हैं।
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