मन बदलो, पर्यावरण बचाओ

ऐसे कौन से पूर्वाग्रह हैं जो संसाधनों और खासतौर पर जल और ऊर्जा संसाधनों के इस्तेमाल के बारे में लोगों के फैसले तय करते हैं? इंडियाना यूनिवर्सिटी में अपने शोध में शाहज़ीन ज़ेड. अट्टारी इसी विषय की पड़ताल कर रही है।

नतासा मिलास

नवंबर 2018

मन बदलो, पर्यावरण बचाओ

शाहज़ीन ज़ेड. अट्टारी जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संरक्षण पर ब्लूमिंगटन में अपना उद्बोधन देती हुईं। (फोटोग्राफ साभार इंडियाना यूनिवर्सिटी) ब्लूमिंगटन

शाहज़ीन ज़ेड. अट्टारी इंडियाना यूनिवर्सिटी ब्लूमिंगटन में स्कूल ऑफ पब्लिक एंड एनवायरमेंटल अफेयर्स में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। शोध और अध्यापन के जरिये वह इस बात की पड़ताल कर रही हैं कि हमारी सोच का पर्यावरण विज्ञान से किस तरह का रिश्ता है। उनकी दिलचस्पी मानव व्यवहार और संसाधनों के इस्तेमाल पर उनके काम से भी परिलक्षित होती है। उनका शोध कार्य कई शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ है जिनमें खासतौर पर जजमेंट एंड डिसीज़न मेकिंग, ग्लोबल एनवायरमेंटल चेंज और प्रोसिडिंग्स ऑफ़ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज शामिल हैं। उनके शोध को द न्यूयॉर्क टाइम्स और द इकोनॉमिस्ट ने भी प्रकाशित किया है।

अट्टारी को वर्ष 2018 में एंड्रू कार्नेगी फेलो जैसे विशिष्ट सम्मान के लिए चयनित किया गया। यह सम्मान विज्ञान, विधि, तकनीक, कारोबार या लोकनीति के क्षेत्र में काम करने वाले विद्वानों, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों और वैज्ञानिकों को दिया जाता है। उन्हें यह फेलोशिप ‘‘तथ्यों और भावनाओं के मिलाप से कैसे पर्यावरण समस्या के सामधान के लिए लोगों को प्रेरित किया जा सकता है’’ विषय पर मिली।

प्रत्येक फेलो को शोध और लेखन के लिए 200,000 डॉलर यानी लगभग एक करोड़ 48 लाख रुपये तक की राशि मिलती है। अट्टारी इंडियाना यूनिवर्सिटी के ‘‘प्रिपेयर्ड फॉर एनवायरनमेंटल चेंज’’ पहल से भी जुड़ी हैं।

उनसे साक्षात्कार के प्रमुख अंश:

आज पर्यावरण की दृष्टि से सबसे बड़ी चिंता क्या है?

हमारे सामने पर्यावरण के मसले पर बहुत-सी समस्याएं हैं, लेकि न जलवायु में बदलाव सबसे बड़ी समस्या और चुनौती है। जलवायु में बदलाव से पर्यावरण संबंधी और सामाजिक समस्याएं बढ़ेंगी और बदतर होंगी। इसका सिर्फ यह मतलब नहीं है कि मौसम और गर्म होता जाएगा बल्कि इसका मतलब यह भी है कि हमें मौसम के ज्यादा विकराल रूप को झेलना होगा, समुद्र के जल स्तर में बढ़ोतरी, गर्म हवाओं के थपेड़े, प्रजातियों का खात्मा, तेजाबी समुद्र, जंगलों में आग और कई अन्य तरह के प्रभाव।

निजी तौर पर लोग किस तरह से पर्यावरण संबंधी मुद्दों से रूबरू होते हैं?

पर्यावरण संबंधी समस्याओं से निपटने के लिए निजी तौर पर लोग कई तरीकों से रूबरू होते हैं। बहुत से लोग जो जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन एक समस्या है, लेकिन हो सकता है यह नहीं जानते हों कि वे क्या कर सकते हैं। हो सकता है कि वे सोचते हों कि उनके प्रयास सिर्फ समुद्र में एक बूंद की तरह से होंगे और उससे किसी खास बदलाव की उम्मीद करना बेकार है। हमें ऐसे तरीकों की पहचान करनी है ताकि छोटे-छोटे प्रयासों को एक किया जा सके और लोगों को अपने व्यवहार में बदलाव के लिए प्रेरित किया जा सके और ऐसी नीतियों के समर्थन में सामने आ सकें जो उन्हें यह समझा सके कि उन्हें पर्यावरण को बचाने के लिए किस तरह से ऊर्जा का इस्तेमाल करना है। हमें कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन पर भी कीमत रखनी होगी ताकि हम प्रदूषण फैलाने वाले चीजों को व्यवस्थित तरीके से कम करते हुए उसे एकदम खत्म कर सकें।

कृपया हमें पर्यावरण और संज्ञानात्मक विज्ञान के क्षेत्र के बारे में बताएं। 

शोध और शिक्षा की दृष्टि से यह क्षेत्र प्रगति कर रहा है लेकिन इन विषय क्षेत्रों की मौजूदगी तो कुछ दशकों पहले से ही है और मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, मानवशास्त्र, संज्ञानात्मक विज्ञान और अर्थशास्त्र के क्षेत्र से नेतृत्व करने वाले लोग लगातार आते रहे हैं। हम इस क्षेत्र में शोध से संबंधित जो सवाल पूछते हैं या जो जवाब देते हैं, वे बहुत हद तक अंतरविषयक होते हैं। मैंने अपने कॅरियर में जिन मुद्दों पर फोकस किया, वे हैं: लोग इसे किस तरह से लेते हैं कि विभिन्न उपकरण कितनी बिजली और पानी खर्चते हैं? जल प्रणाली के बारे में लोगों की समझ क्या है? हम लोगों को व्यवहार में बदलाव के लिए कै से प्रेरित कर सकते हैं? और लोग किस तरह से अपने व्यवहार में बदलाव लाने को तरजीह देंगे?

आपको हाल ही में एंड्रू कार्नेगी फेलो के रूप में चुना गया है। आपकी शोध परियोजना का क्या मकसद है? 

बतौर कार्नेगी फेलो मेरा लक्ष्य जलवायु बदलाव की समस्या के मसले पर कार्रवाई प्रेरित करने के लिए तीन मुख्य शोध चुनौतियों के जरिये अहम समाधानों की पहचान करने का है। मेरी योजना है:

* हमारी ऊर्जा व्यवस्था में कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए राजनीतिक तौर पर व्यावहारिक जलवायु समाधानों का विवरण और विस्तृत संग्रह।

* उन मानसिक बाधाओं की पहचान करना जो इन समाधानों को जन समर्थन मिलने में बाधा बनते हैं और उन प्रभावी व्यावहारिक और नीतिगत कदमों को निखारना जिनसे नए लोगों को भी कार्रवाई का साफ रास्ता नज़र आए।

* इस बात की पड़ताल कि कहानियों और विवरणों के माध्यम से लोगों को भावनात्मक और संज्ञानात्मक आधार प्रदान करते हुए, किस तरह से जलवायु परिवर्तन की रोकथाम से जुड़े कदमों के प्रति लोगों का व्यवहार बदले और उनमें सकारात्मक जन संवेदनाएं जगें। कहानियां लोगों के मन को छू जाती हैं, इसलिए मैं यह जानना चाहती हूं कि पर्यावरण को बचाने में इनका किस तरह से इस्तेमाल करें।

विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की उभरती भूमिका को आप किस तरह से देखती हैं?

हमें विज्ञान और शैक्षिक क्षेत्र में वास्तविक लैंगिक समानता की ज़रूरत है, और हम उससे कोसों दूर हैं। इसके लिए बहुत से जटिल कारक जिम्मेदार हैं और समाज को उसका समाधान निकालना होगा। हम कुछ बदलाव देख रहे हैं लेकिन शीर्ष पर समानता देखने के लिए तो अभी बहुत कुछ करने की ज़रूरत है। मेरे नज़रिए से तो महिलाओं और पुरुषों दोनों को ही इस तरह के बदलाव के लिए परामर्शदाताओं की जरूरत है। शुरुआत उन महिलाओं के साथ भेदभाव से बच कर की जा सकती है जिनके बच्चे हैं। उन्हें अपनी बात सामने रखने देना और उन्हें सुनना जरूरी है। साथ ही शोध और विज्ञान के क्षेत्र में जो महिलाएं हैं उनके खिलाफ आक्रामकता को अस्वीकार करना भी जरूरी है।

मुझे अपने जीवन में कुछ बेहद ही शानदार पुरुष और महिला परामर्शकों का साथ मिला, जिन्होंने मुझे कॉलेज जाने वाली विद्यार्थी के समय से लेकर प्रोफेसर बनने तक के सफर में लगातार परिष्कृत किया। मुझे किस्मत से एक बेहतरीन परिवार का साथ भी मिला जिसने लगातार मेरा साथ निभाया और तमाम सांस्कृतिक मान्यताओं के विरुद्ध होने पर भी शोध और शैक्षिक क्षेत्र में जाने के मेरे फैसले को समर्थन दिया। जब आप बच्चे होते हैं तो आपकी जिज्ञासाओं का समाधान करने वाले अभिभावक होना बहुत महत्वपूर्ण होता है। मैं अपनी सफलता का श्रेय उन्हीं को देती हूं।

नतासा मिलास स्वतंत्र लेखिका हैं। वह न्यू यॉर्क सिटी में रहती हैं।



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