बायोजियोकेमिस्ट और लेखक गैब्रियल फिलिपेली ने जयपुर लिट्रेचर फेस्टिवल में अमेरिकी दूतावास द्वारा प्रायोजित सत्र में सदाजीविता और जलवायु अनुकूल अर्थव्यवस्थाओं को लेकर अपने दृष्टिकोण को साझा किया।
अप्रैल 2024
बायोजियोकेमिस्ट और लेखक गैब्रियल फिलिपेली के अनुसार जलवायु परिवर्तन की एक बड़ी चुनौती मौसम और बरसात के पैटर्न में तब्दीली आना है। (फोटोग्राफः बाई-स्टूडियो/आईस्टॉक/गेटी इमेजेज)
जयपुर लिट्रेचर फेस्टिवल (जेएलएफ) 2024 में जलवायु परिवर्तन केंद्रीय मुद्दे के रूप में उभरा। इसमें सभ्यताओं पर इसके प्रभाव और फौरी तौर पर इसका समाधान खोजने पर चर्चा की गई। ऐसे ही एक सत्र में बायोजियोकेमिस्ट और लेखक गैब्रियल फिलिपेली ने सदाजीवी, उचित और जयवायु अनुकूल अर्थव्यवस्था की दिशा में परिवर्तन पर फ़ोकस किया। अमेरिकी दूतावास नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित इस सत्र का विषय था, ‘‘चेजि़ंग सस्टेनेबिलिटी: पॉलिसी, इंडस्ट्री एंड एनवायरमेंट।’’
फिलिपेली के नाम पर 200 से अधिक प्रकाशन हैं, जिनमें से 2022 में प्रकाशित उनकी नवीनतम पुस्तक ‘‘क्लाइमेट चेंज एंड लाइफ’’ भी शामिल है। वह भू विज्ञान के प्रोफेसर हैं और इंडियाना यूनिवर्सिटी के एनवायरमेंट रेज़िलियंस इंस्टीट्यूट के कार्यकारी निदेशक हैं।
प्रस्तुत हैं उनसे साक्षात्कार के प्रमुख अंश :
आने वाले दशक में पर्यावरण को लेकर सबसे बड़ी चुनौतियां क्या हैं और बायोजियोकेमेस्ट्री किस तरह से उसके समाधान में मदद कर सकती है?
आने वाले दशक में हमारे सामने आने वाली कुछ सबसे बड़ी चुनौतियों में जलवायु परिवर्तन शामिल है। इससे निपटने के लिए हमें प्रकृति-आधारित समाधानों को लागू करना शुरू करना होगा जो हमारे उत्कृष्ट विज्ञान से अभिप्रेरित हों और समानता आधारित एवं टिकाऊ परिणाम पैदा करने वाले हों। जलवायु परिवर्तन की एक चुनौती मौसम और वर्षा के पैटर्न में महत्वपूर्ण बदलाव है- शहरों पर खासतौर से इसका गंभीर नकारात्मक असर देखा जा रहा है और उससे निपटने के लिए मौजूदा दौर में कई प्राकृतिक परिस्थितियां शहरी क्षेत्रों में मौजूद ही नहीं हैं। इसका एक उदाहरण, आर्द्रभूमि या ऐसे क्षेत्र हैं जो अस्थायी रूप से पानी को जमा कर सकते हैं जिससे बाढ़ की विभीषिका को कम किया जा सकता है। इसीलिए शहरों को जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने में मदद करने के लिए प्राकृतिक स्थानों को महत्व देना चाहिए और उन्हें अपनाना चाहिए।
हम जलवायु परिवर्तन के विज्ञान को जनता तक प्रभावी ढंग से कैसे पहुंचा सकते हैं?
सबसे पहले तो, नगरपालिका, राज्य और संघीय स्तर पर निर्णय लेने वालों को उस विज्ञान को महत्व देना होगा जिसे हम जलवायु वैज्ञानिक पैदा कर रहे हैं और इसे अपनी नीतियों और अमल किए जाने वाले फैसलों में शामिल करना होगा। दूसरा, हमें अधिक प्रभावी जलवायु संवादकर्मियों की जरूरत है जो न केवल नकारात्मक या क्राइसिस टाइप संदेशों को चित्रित कर सकें बल्कि वास्तविक और प्रभावी मौजूदा प्रौद्योगिकियों और प्रथाओं को भी, जो जलवायु परिवर्तन से लड़ सकती हैं और परखी हुई रचनात्मक प्रतिक्रियाओं के रूप में सामने रखें। लोगों को विनाश की आशंका के साथ और अधिक उम्मीदों की जरूरत है जो कि विज्ञान से मिलने वाला एक विशिष्ट संदेश भी है।
क्या आप जयपुर लिट्रेचर फेस्टिवल मे अपने सत्र की खास बातें साझा कर सकते हैं?
कई खास बातें हैं, कृषि समेत तमाम नीतियों के बारे में जलवायु को देखते हुए रणनीतियों को अपनाने की जरूरत है और समाज के साथ निजी क्षेत्र को भी जलवायु समाधान का हिस्सा बनने की जरूरत है। कार्बन उत्सर्जन को कम करने की कई प्रथाओं जैसे नवीकरणीय ऊर्जा की जरूरत, जिससे उत्सर्जन कम होता है और इस तरह से हवा साफ होती है। वायु प्रदूषण सार्वजनिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डालने के कारण बड़ी चिंता का विषय है।
जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों को कम करने के लिए अमेरिका और भारत मिलकर क्या कदम उठा सकते हैं?
कार्बन उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन को कम करने की तकनीकें पहले से उपलब्ध हैं। अमेरिका इस बात का एक बेहतरीन उदाहरण है कि कैसे एक देश बड़ा बदलाव लाने के लिए महत्वपूर्ण फंडिंग के साथ एक ठोस नीति का सामंजस्य बैठा सकता है। 2022 के इनफ्लेशन रिडक्शन एक्ट ने अकेले कार्बन उत्सर्जन को कम करने, जलवायु अनुकूल प्रथाओं को अपनाने और जलवायु अनुकूल समाज के निर्माण पर सैंकड़ों अरबों डॉलर खर्चने का प्रावधान किया है। जिम्मेदार जलवायु कार्रवाई के लिए जलवायु नीतियों को संसाधनों के साथ एकीकृत किया गया है ताकि इसे लुभावना बनाया जा सके। मेरा मानना है कि अमेरिका और भारत विज्ञान और व्यवसाय को आगे बढ़ाने और नवाचार से जुड़ने के लिए शोध और विश्वविद्यालयों की भागीदारी समेत जलवायु के मसले पर सीधे तौर पर जुड़ सकते हैं। यह सहयोग जलवायु संबंधी प्रथाओं के विकास औरकार्यान्वयन को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
अमेरिकी विदेश विभाग में एक वरिष्ठ विज्ञान सलाहकार के रूप में आपका अनुभव पर्यावरण नीति और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के प्रति आपके दृष्टिकोण को कैसे आकार देता है?
मैं ब्यूरो ऑफ ओशंस एंड इंटरनेशनल एनवायरमेंटल एंड साइंटिफिक अफेयर्स में एक वरिष्ठ विज्ञान सलाहकार था और मेरे पोर्टफोलियो में जलवायु नीति, पर्यावरण और विज्ञान सहयोग जैसे विषय शामिल थे। विशेष रूप से, मैंने अंटार्कटिका की जलवायु के बारे में अपने निष्कर्षों पर नीतिगत वक्तव्य का मसौदा तैयार किया, अंतरराष्ट्रीय समुद्री संरक्षित क्षेत्र के सहयोगियों के साथ साझेदारी का विस्तार किया और आर्कटिक परिषद के तहत अंतरराष्ट्रीय समझौते में विज्ञान सहयोग के अंतर एजेंसी विकास को बढ़ावा दिया जिसने बाद में कानूनी रूप ले लिया। मेरे अनुभवों से मुझे पता चला कि सभी क्षेत्रों और पक्षधरों के साथ स्पष्ट और वास्तविक संवाद मजबूत और स्थायी सहयोग वकसित करने और उसे लागू करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं।
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