प्रदूषण से कलाकृतियां

ग्रैविकी लैब्स प्रदूषण फैलाने वाले खतरनाक कणों को कलाकारों के काम आने वाली चीज़ों में तब्दील कर देती है।

माइकल गलांट

मई 2019

प्रदूषण से कलाकृतियां

‘‘प्रदूषण से चित्रकारी’’ अभियान के तहत न्यू यॉर्क सिटी में एयर-इंक से तैयार एक भित्ति-चित्र। फोटोग्राफ: साभार ग्रैविकी लैब्स

वाहनों के इस्तेमाल, बिजली उत्पादन, मैन्युफैक्चिरिंग एवं खनन जैसी मानवीय गतिविधियों के चलते रोजाना भारी तादाद में वायु प्रदूषण करने वाले कण पैदा होते हैं।

लेकिन अगर इन अतिसूक्ष्म कणों की वजह से पैदा हुई जहरीली हवा में सांस लेने के बजाए इन्हें पकड़ कर किसी सुरक्षित चीज़ में बदला जा सके तो कितना बेहतर हो। ग्रैविकी लैब का मुख्य लक्ष्य यही है। यह एक तकनीकी स्टार्ट अप है जो वायु प्रदूषण के बारे में दुनिया की समझ और उसके संघर्ष को एक नई परिभाषा देने के काम में लगा है।

बेंगलुरू स्थित यह स्टार्ट अप जीवाश्म ईंधन के जलने पर निकलने वाले कार्बन के कणों से बनने वाले काले रंगद्रव्यों के जरिए एयर इंक नामक एक उत्पाद तैयार करता है। ग्रैविकी अपनी खुद की तैयार एक विशेष व्यवस्था के माध्यम से वायु प्रदूषक तत्वों को पकड़ता है जिसे कालिंक नाम दिया गया है। इसे डीजल जनरेटरों और जीवाश्म ईंधन की चिमनियों में लगाया जाता है जो उनके निकास को फिल्टर करने का काम करता है। कंपनी कार्बन की मात्रा के मुताबिक दूसरे स्रोतों से निकले प्रदूषकों को भी रीसाइकिल करने का काम करती है। ग्रैविकी इन अवयवों को साफ करके उसे एक प्रक्रिया के तहत और छोटे अवयवों में विभाजित करती है और फिर अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करने का काम करती है वे सभी चीज़ें इस्तेमाल के लिए सुरक्षित हों। फिर उसके नतीजे में क्या मिला? एक गहरी काली स्याही, जिसका इस्तेमाल शानदार कलाकृतियों और भित्ति चित्रों को बनाने के लिए दुनिया भर के 1,000 से ज्यादा कलाकारों ने किया।

अनिरुद्ध शर्मा ने मैसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) में पढ़ने के दौरान एयर-इंक के आइडिया पर सोचा। यह नौजवान वैज्ञानिक जब मुंबई अपने घर आया तो उसने देखा कि उसकी शर्ट पर पूरे दिन काले कण एकत्र होते रहते हैं।

शर्मा ने एमआईटी न्यूज़ को वर्ष 2017 में बताया, ‘‘मुझे इस बात का एहसास हुआ कि यह वायु प्रदूषण है या फिर वह काला पार्टिकुलेट मैटर जो वाहनों के ईंधन के जलने पर निकलता है। यह स्वास्थ्य संबंधी एक गंभीर मसला है।’’ वास्तव में वायु प्रदूषण भारत या कहें कि दुनिया भर के देशों में बढ़ती चिंता का विषय बना हुआ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि, हर साल लाखों लोग इसकी वजह से मौत के मुंह में समा जाते हैं।

हालात को भांप कर और मुंबई में प्रदूषण के काले रंग से अचंभित शर्मा ने एमआईटी लौट कर तमाम तरह के प्रयोग करने शुरू कर दिए।  उन्होंने पहले मोमबत्ती के काले धुएं को स्याही में तब्दील किया। इसके बाद की पड़ताल का नतीजा यह रहा कि जीवाश्म ईंधन के धुएं को एकत्र कर उसे कला के काम आने वाली चीज़ में तब्दील कर दिया गया। एमआईटी मीडिया लैब से निकल कर शर्मा ने वर्ष 2016 में भारत में ग्रैविकी लैब्स की स्थापना की और इसकी शुरुआती फंडिंग एक जोरदार किकस्टार्टर क्राउड फंडिंग कैंपेन के जरिए हासिल की। एक बीयर कंपनी से मिली स्पॉंसरशिप से ग्रैविकी को दुनिया भर के कलाकारों के बीच एयर-इंक को पहुंचाने में मदद मिली। इन कलाकरों ने इस स्याही का इस्तेमाल किया और उनकी कुछ कलाकृतियों पर लिखा गया, ‘‘इस कलाकृति में वायु प्रदूषण से बने पेंट का इस्तेमाल किया गया है।’’

ग्रैविकी के प्रयासों के चलते उसे तमाम प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया और उसकी तरफ अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान गया। हालांकि, वायु प्रदूषण को कलाकारों के लिए स्याही में तब्दील करना वैश्विक रूप से वायु प्रदूषण की समस्या की व्यापकता की तुलना में बहुत ही कमतर नज़र आ सकता है, लेकिन इसमें कोई दोराय नहीं कि ग्रैविकी के काम का वास्तविक असर है। उदाहरण के लिए, एयर-एंक से भरे किसी भी छोटे-से पेन में उतने प्रदूषण का इस्तेमाल होता है जितना कि कोई कार दो घंटे तक डीजल ईंधन जलाने पर पैदा करती है। कंपनी का कहना है कि 16 खरब लीटर वायु को उसके प्रयासों के  जरिए अब तक स्वच्छ किया जा चुका है।

वर्ष 2017 के शुरुआत में न्यू यॉर्क सिटी के नुक्कड कलाकार बफ मॉन्सटर ने एयर-इंक का इस्तेमाल कर शहर में सेवंथ एवेन्यू और ट्वंटी एट्थ स्ट्रीट पर विज्ञापनपट्ट पर चित्रकारी की। उन्होंने इससे पांच छोटे कैनवॉस और एक बड़स कैनवॉस भी चित्रित किया। एयर-इंक का यह इस्तेमाल इस आइडिया की पड़ताल था कि शहर में बदलाव संभव है। इन सभी कृतियों को बाद में पृथ्वी दिवस के अवसर पर सोहो में एक कला गैलरी में प्रदर्शित किया गया, जहां इस परियोजना की अवधारणा को स्पष्ट किया गया। अपनी वेबसाइट पर एक वक्तव्य में बफ मॉन्सटर कहते हैं, ‘‘मुझे श्वेत-श्याम कलाकृतियों पर काम करना पसंद है, और दुर्लभ ही ऐसे अवसर आते हैं जब मुझे अपनी चीज़ों में नई तकनीक के साथ काम करने का अवसर मिलता है। यह प्रोजेक्ट काम करने के लिए बढि़ससा था। यह एक अनूठा प्रयास था जहां नकारात्मक चीज़ (प्रदूषण) को सकारात्मक (कलाकृति) में तब्दील किया गया।’’

न्यू यॉर्क की एक और कलाकार क्लारा शेन कहती हैं कि उन्हें हाल ही में ग्रैविकी के प्रदूषण से कलाकृति अभियान के बारे में पता चला। उनका कहना है, ‘‘मेरा मानना है कि यह एक बेहतरीन विचार है बशर्ते इसे बनाना और इस्तेमाल करना सुरक्षित हो। मैं इसे लेकर बेहद जिज्ञासु हूं और यकीनन इसका इस्तेमाल अपनी कलाकृतियों में करने का प्रयास करने में दिलचस्पी रखती हूं।’’

हॉंगकॉंग के कलाकार क्रिस्टोफर हो सबसे पहले एयर-इंक का इस्तेमाल करने वाले लोगों में थे और उन्होंने अपने कई प्रोजेक्टों में इसका इस्तेमाल भी किया। हालांकि शुरुआत में उन्हें इस स्याही की गुणवत्ता और उसकी उपयोगिता को लेकर शंका थी लेकिन समय के साथ उनकी यह राय बदल गई। वह कहते हैं, ‘‘यह उत्पाद किसी मार्के टिंग कैंपेन से बेहतर साबित हुआ है। इसका रंग बेहद काला है और इसमेंसबहुत कम पाभासिता है, जिससे यह सभी तरह की सतह के लिए पूरी तरह से उपयुक्त है। यह स्याही बाजार में उपलब्ध अन्य स्याहियों के मुकाबले थोड़ी गाढ़ी है इसके कारण सूक्ष्मरंध्र वाली सतह पर भी इससे काम करने में कोई दिक्कत नहीं है- यह तेजी से सूख जाती है और बेहद टिकाऊ है।’’

ग्रैविकी लैब्स, पर्यावरण तकनीक के क्षेत्र में एक नया आयाम है। कुछ ऐसा जिसने न सिर्फ मानव की रचनात्मकता को ध्यान में रखा बल्कि साथ ही दुनिया भर में पर्यावरण से जुड़े अन्वेषणों के मामले में भी एक मिसाल पेश की। ग्रैविकी में इंजीनियर, शिक्षाविद और सलाहकार नेल वॉटसन का कहना है, ‘‘ग्रैविकी लैब्स हमारे समाज की कुछ सबसे कठिनतम समस्याओं के अनूठे समाधान के लिए अग्रिम मोर्चे पर है- धूल-मिट्टी को सोने में बदलने की कवायद।’’

माइकल गलांट गलांट म्यूज़िक के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं। वह न्यू यॉर्क सिटी में रहते हैं। 



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