अमेरिकन सेंटर, नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यशाला ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को लेकर विद्यार्थियों के मन में जिज्ञासा जगाई।
जून 2024
अमेरिकन सेंटर नई दिल्ली में एक कार्यशाला के दौरान विद्यार्थी अंतरिक्ष अभियानों के लिए हाइड्रॉलिक सिस्टम तैयार करने पर कार्य करते हुए। (फोटोग्राफः राकेश मल्होत्रा)
स्पेस इंडिया और अमेरिकन सेंटर नई दिल्ली के बीच एक गतिशील साझेदारी ने युवा मन में जिज्ञासा की अलख जगाने का काम किया है। साझेदारी के तहत मासिक तौर पर खगोल विज्ञान और अंतरिक्ष विज्ञान कार्यशालाओं का आयोजन किया जा रहा है। अंतरिक्ष अन्वेषण के प्रति जुनून को बढ़ावा देने के मकसद से मई 2024 में अमेरिकन सेंटर, नई दिल्ली में इस सिरीज की उद्घाटन कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला का शीर्षक था, ‘‘गेट सेट, मेक हाइड्रॉलिक सिस्टम फॉर स्पेस एप्लीकेशंस।’’
13 से 18 वर्ष की आयु के विद्यार्थियों के लिए तैयार दो घंटे की कार्यशाला में सैद्धांतिक ज्ञान और उसके व्यावहारिक कार्यान्वयन का मिश्रण पेश किया गया। स्पेस इंडिया के संस्थापक और अध्यक्ष सचिन बाहम्बा के अनुसार, ‘‘कार्यशाला का उद्देश्य महत्वपूर्ण अवधारणाओं, सेवाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से व्यावहारिक विज्ञान, खगोल विज्ञान और अंतरिक्ष विज्ञान को लोकप्रिय बनाना है।’’
संवादी प्रस्तुति
कार्यशाला के सैद्धांतिक खंड में हाइड्रॉलिक्स के बुनियादी सिद्धांतों को शामिल किया गया जिसमें पास्कल के नियम और हाइड्रॉलिक प्रणालियों में फोर्स मल्टिप्लिकेशन की अवधारणा शामिल है। मेंटर्स ने सरल लेकिन प्रभावी तरीके से उन मॉडलों को सामने रखा जिसमें वास्तविक दुनिया के अनुप्रयोगों के साथ हाइड्रॉलिक्स कैसे काम करती है, यह पता चला। विजुअल प्रजेंटेशन के कारण विद्यार्थियों को जटिल अवधारणाओं को समझने में आसानी हुई।
सैद्धांतिक खंड में एक मजबूत बुनियाद देने के बाद, दूसरे हिस्से में प्रतिभागियों को हाइड्रॉलिक सिद्धांतों के आधार पर अंतरिक्ष को ध्यान में रखते हुए एक फंक्शनल मॉडल बनाने की चुनौती दी गई। उन्हें हाइड्रॉलिक प्रणाली द्वारा नियंत्रित रोबोटिक भुजा के एक मॉडल और अंतरिक्ष यान लैंडिंग गीयर तंत्र का एक मॉकअप तैयार करने का काम सौंपा गया।
सिद्धांतों से परे
सैद्धांतिक ज्ञान को व्यवाहारिक कौशल के साथ पिरो कर प्रतिभागियों ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र को गहराई से समझा जिससे हाइड्रॉलिक्स और अंतरिक्ष मिशनों में इसकी प्रासंगिकता की बेहतर समझ हासिल हुई। अमन कहते हैं, ‘‘सबसे मजेदार हिस्सा निश्चित रूप से विभिन्न मशीनों के निर्माण का था। कक्षा के मुकाबले आज अवधारणाओं को समझना मुझे आसान लगा क्योंकि हमने हाइड्रॉलिक्स के व्यावहारिक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया।’’
टीमवर्क जरूरी था क्योंकि विद्यार्थियों ने समाधानों पर विचार-मंथन किया और निर्माण प्रक्रिया के दौरान आने वाली किसी भी समस्या का निवारण किया।
बाहम्बा का कहना है कि अमेरिकन सेंटर के साथ साझेदारी के दो प्राथमिक लक्ष्य हैं। सबसे पहले ‘‘विद्यार्थियों में यह विश्वास पैदा करना कि बड़ी समस्याओं को हल किया जा सकता है और साथ ही किताबों में प्राप्त ज्ञान को वास्तविक जीवन की स्थितियों में लागू किया जा सकता है।’’ दूसरा, उन्होंने महंगे उपकरणों या सुविधाओं की ज़रूरत के बिना प्रारंभिक चरण के डिजाइन सोच को बढ़ावा देने के महत्व पर बल दिया।
कार्य करो और सीखो
कार्यशाला में व्यावहारिक इंजीनियरिंग के अनुभवों का पाठ पढ़ाया गया जिसमें प्रतिभागियों को विभिन्न अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के मूलभूत सिद्घांत ़फ्लूड मैकेनिक्स की गहरी समझ हासिल हो पाई। नारायणी भारद्वाज के अनुसार, ‘‘इस आकर्षक गतिविधि ने न केवल सीखने में मदद की, बल्कि मुझे विद्यार्थियों से भी परिचित कराया जो महत्वाकांक्षी खगोल भौतिकीविद भी हैं।’’ इसी तरह प्रीति जायसवाल को इस कार्यशाला ने यह बताया कि एक अंतरिक्ष इंजीनियर बनने के लिए क्या करना होता है। वह पहले से ही स्कूल के खगोल विज्ञान क्लब का हिस्सा हैं। लेकिन जायसवाल मानती हैं, ‘‘एक रॉकेट को विभिन्न कोणों पर झुकाना सीखना और रॉकेट के विभिन्न घटकों को बनाने के लिए क्या चाहिए,’’ ये जानकारियां कक्षा की पढ़ाई में नहीं पता चल पाईं।
माता-पिता भी अपने बच्चों के साथ सीखने के इस अनुभव के साझीदार बनें। ऋतु डोगरा कहती हैं, ‘‘जिस आसानी से विद्यार्थियों को फ्लूड मैकेनिक्स, हाइड्रॉलिक्स और मैकेनिकल एडवांटेज के जटिल विज्ञान को स्पष्टता से समझाया गया, उसने एक कामकाजी मॉडल के प्रदर्शन के माध्यम से विद्यार्थियों को डेटा लॉगिंग के अधिक चुनौतीपूर्ण कार्य के लिए आकर्षित किया। यही अनुभवात्मक शिक्षा की सुंदरता है।’’
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