अमेरिकी डिग्री से पूरे होते सपने

अमेरिकी विश्वविद्यालयों में शिक्षा भारतीय महिलाओं के लिए अच्छे कॅरियर की राह बनाती है। जानिए ऐसी तीन भारतीय महिलाओं की शिक्षा यात्रा के बारे में।

माइकल गलांट

मार्च 2023

अमेरिकी डिग्री से पूरे होते सपने

जेरूशा डिसूज़ा यूनिवर्सिटी ऑफ़ सदर्न कैलिफ़ोर्निया के कैंपस में, जहां उन्होंने लॉ की पढ़ाई की। (फोटोग्राफः साभार जेरूशा डिसूज़ा)

अमेरिका अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों का सर्वाधिक पसंदीदा शिक्षा स्थलों में से एक है। शिक्षा की उच्च गुणवत्ता और परिसर में विविधता से रचनात्मकता, स्वतंत्र विचार और समान अवसरों को बढ़ावा मिलता है। ऐसी तीन भारतीय महिलाओं से हमने संवाद किया जिन्होंने अमेरिका में अध्ययन किया और अपने कॅरियर को सफल बनाने के लिए परिसर में उपलब्ध व्यापक संसाधनों का लाभ उठाया। उन्होंने इस बारे में अपने विचार साझा किए कि कैसे अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थी वहां मौजूदअद्भुत अवसरों का फायदा उठा सकते हैं।

जेरुशा डिसूज़ा

मुंबई में संगीत, तकनीक और मनोरंजन से जुड़े क्षेत्र में अधिवक्ता डिसूज़ा सदर्न कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी (यूएससी) से ग्रेजुएट हैं। वह अपना खुद का लॉ ऑफिस चलाती हैं और अंतरराष्ट्रीय रॉक स्टार्स को महत्वपूर्ण अनुबंधों में बातचीत के लिए मदद करती हैं। लेकिन अनुबंध कराने से पहले डिसूज़ा को इस बात का पता था कि उन्हें अपने पसंदीदा कानून के विषय क्षेत्र की गहरी जानकारी हासिल करनी होगी।

वह कहती हैं, ‘‘मीडिया, मनोरंजन और बौद्धिक संपदा- ये वे क्षेत्र थे जिन पर मैं ध्यान केंद्रित करना चाहती थी, और मैं ऐसा नहीं सोचती थी कि मुझे जो भी सीखने की ज़रूरत है, वह भारत में सीख सकती हूं। मैंने अमेरिका में कुछ संस्थानों में दाखिले के लिए आवेदन दिया और यूएससी का चुनाव इसलिए किया क्योंकि यहां सर्वश्रेष्ठ फिल्म स्कूल था और यहां वे तमाम विषय उपलब्ध थे, जो मुझे चाहिए थे।’’

इस संस्थान की हॉलीवुड से निकटता और मनोरंजन जगत में इसके पूर्व विद्यार्थियों के सशक्त नेटवर्क ने भी उनके निर्णय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

एक प्रैक्टिसिंग लॉयर के रूप में डिसूज़ा लाइसेंसिंग से लेकर स्पॉंसरशिप और प्रदर्शन अनुबंधों और रिकॉर्ड अनुबंधों जैसे सभी तरह के काम करती हैं। वे अपने ग्राहकों को उनके रचनात्मक कामों के लिए रॉयल्टी एकत्र करने जैसे कारोबारी मामलों में भी सहायता उपलब्ध कराती हैं।

डिसूज़ा कहती हैं, ‘‘मुझे रचनात्मक लोगों के साथ काम करना पसंद है। कलाकारों से मिलना आपको मजेदार नज़रिए से जोड़ता है। अगर मैं किसी मीटिंग में बिजनेस सूट पहन कर आती हूं, तो मुझे कोई भी गंभीरता से नहीं लेगा- लेकिन अगर मैं टैंक टॉप और जॉर्डन्स पहनती हूं, तो हर कोई मुझसे बात करेगा। यह भी कारोबार का ही सिलसिला है, लेकिन यह अपने अद्भुत, दिलचस्प दोस्तों के साथ एक अनौपचारिक बातचीत जैसा अनुभव करा सकता है।’’

डिसूज़ा तहेदिल से विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करती हैं कि अगर उन्हें अमेरिका में पढ़ाई का मौका मिलता है तो उन्हें उसका फायदा उठाना चाहिए। वह कहती हैं, ‘‘ऐसा जरूर करें। एक अमेरिकी डिग्री की वजह से मुझे अपने कॅरियर में यह मुकाम हासिल हो सका। मैंने तो ऐसा कभी सोचा भी नहीं था कि मैं अपनी खुद की वकालत प्रैक्टिस करूंगी और मेरा काम इतना मजेदार होगा, लेकिन अमेरिका में हासिल ज्ञान और अनुभव से ही यह सब कुछ संभव हो सका।’’ डिसूज़ा के अनुसार, ‘‘कानून की दुनिया में जहां मैं काम करती हूं, अगर आपके काम में खासियत नहीं है तो आपको कोई सुनने वाला नहीं है। और यूएससी से मिली मेरी डिग्री ने मुझे इस मामले में खासियत दिलाई।’’

डिसूज़ा सुझाव देती हैं कि अमेरिका में अध्ययन की इच्छुक भारतीय महिलाओं को इस प्रक्रिया की शुरुआत में ही स्कॉलरशिप के विकल्पों की तलाश में जुट जाना चाहिए- बजाए इसके कि वे दाखिला लेने के बाद इसे तलाशना शुरू करें। वह बताती हैं कि आमतौर पर संस्थान अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों को वित्तीय मदद के मामले में सहायता देने के लिए तत्पर रहते हैं। उनके अनुसार, ‘‘अगर आप उनसे मदद मांगेंगे तो विश्वविद्यालय स्कॉलरशिप के सिलसिले में बात करने के लिए सही लोगों से आपका संपर्क करा देगा।’’

बहुत-से विद्यार्थियों को अपने परिवार से दूर होने पर अपनी सुरक्षा की चिंता सताती है। डिसूजा स्वीकार करती हैं कि लॉस एंजिलीस में सुरक्षा का मसला उनके लिए भी चिंता का कारण था, लेकिन उनका कहना है कि इस मामले में यूएससी ने उनकी चिंता के निवारण के लिए बहुत बढि़या काम किया। दूसरों उपायों के अलावा, संस्थान ने रात के समय आवाजाही के लिए मु़फ्त वाहन की सुविधा, परिसर में सुरक्षा अधिकारियों और इमरजेंसी कॉल बॉक्स की व्यवस्था और यहां तक कि लॉस एंजिलीस पुलिस की तरफ से आत्मरक्षा के लिए बुनियादी प्रशिक्षण की व्यवस्था भी की गई। वह बताती हैं, ‘‘कई बार मेरी कक्षाएं 9 बजे रात तक चलती थीं, लेकिन मैंने कभी भी खुद को असुरक्षित महसूस नहीं किया।’’

डिसूज़ा की दूसरी चिंताओं में रिहाइश का उचित बंदोबस्त और मनचाही कक्षाओं में दाखिले का था। इन दोनों के ही लिए, डिसूज़ा ने सक्रिय रूप से प्रोफेसरों, पूर्व विद्यार्थियों और प्रशासकों से सलाह और सहायता मांगी और उन सबसे मिली त्वरित सहायता से सभी मोर्चों पर उनकी समस्याओं का निवारण संभव हो सका।

सुजाना मायरेड्डी

युनाइटेड स्टेट्स-इंडिया एजुकेशनल फाउंडेशन (यूएसआईईएफ) में अमेरिकी और भारतीय विद्यार्थियों के एक्सेचेंज प्रोग्राम में मदद की भूमिका शुरू करने से काफी पहले मायरेड्डी ने समुद्रपार के अपने खुद के रोमांच को पूरा कर लिया था। वर्जीनिया टेक से ग्रेजुएशन करने वाली मायरेड्डी मौजूदा वक्त में हैदराबाद में यूएसआईईएफ में एक रीजनल ऑफिसर के रूप में काम कर रही हैं।

मायरेड्डी ने वर्जीनिया टेक में आवेदन के विकल्प को उसकी रैंकिंग और वहां मौजूद वित्तीय मदद के अवसरों की दृष्टि से चुना जिसके बारे में उन्हें विश्वविद्यालय की विस्तृत और सूचनात्मक वेबसाइट से पता चला। उनका कहना है, ‘‘मैंने अपने विभाग के विभिन्न शिक्षकों को निजी तौर पर इस बारे में पत्र लिखा और जानना चाहा कि क्या वहां इस तरह का कोई विकल्प मौजूद है जिसका हिस्सा मैं बन सकती हूं। एक प्रोफेसर के पास मेरी दिलचस्पी के हिसाब से एक ओपनिंग थी, और इस तरह से मुझे पूरे दो साल के लिए असिस्टेंसशिप उपलब्ध हो गई।’’

अमेरिका में अध्ययन ने मायरेड्डी को उस कॅरियर को शुरू करने में सहायता दी जिसे वह रोमांचक और संतोषप्रद मानती थीं। वह कहती हैं, ‘‘दुनिया भर में अमेरिकी डिग्री की मान्यता है और उसे सम्मान दिया जाता है। मेरे लिए, इसने मुझे एक मजबूत बुनियाद दी और ऐसे अवसरों का रास्ता खोला जो किसी दूसरे तरीके से संभव नहीं था।’’
सुजाना मायरेड्डी (इनसेट) वर्जीनिया टेक (ऊपर) से ग्रेजुएट हैं और इस समय यूएसआईईएफ़ हैदराबाद में रीज़नल ऑफ़िसर हैं। (फोटोग्राफः साभार सुजाना मायरेड्डी और एरिक टी. गुंथर/विकिपीडिया)

उदाहरण के लिए वर्जीनिया टेक में मास्टर्स करने के दौरान ही मायरेड्डी को स्विटजरलैंड में विश्व व्यापार संगठन के साथ इंटर्नशिप करने का मौका मिल गया। वह मानती हैं कि यहां मिले अनुभव का उन पर निजी तौर पर असर पड़ा, साथ ही, अकादमिक एवं पेशेवर दृष्टि से भी इसका व्यापक असर पड़ा।

उनका कहना है, ‘‘मैं मानती हूं कि, ऐसा सिर्फ इसलिए संभव हो पाया क्योंकि मेरी शैक्षिक पृष्ठभूमि अमेरिका में अध्ययन की थी। इससे मुझे स्वतंत्र, आत्मविश्वासी और परिस्थितियों के विभिन्न दृष्टिकोणों और अनुभवों से गुजरने का मौका मिला जिससे दुनिया और खुद को समझने के मेरे दायरे को और विस्तार मिला।’’

अमेरिका में उच्च शिक्षा की उम्मीद करने वाले भारतीय विद्यार्थियों को मायरेसी के उदाहरण से सीख लेनी चाहिए और अपनी दिलचस्पी और कॅरियर लक्ष्य से मेल खाने वाले विषयों से संबंधित कार्यक्रमों के बारे में खूब छानबीन करनी चाहिए। उनका कहना है, ‘‘सभी विश्वविद्यालयों की अपनी वेबसाइट होती हैं जिन पर आवेदन प्रक्रिया, स्कॉलरशिप और अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध संसाधनों से संबंधित जानकारी उपलब्ध होती हैं।’’

मायरेड्डी बताती हैं कि अमेरिका में अजनबी होना ही उनके डर का सबसे बड़ा कारण था। उनका कहना है, ‘‘चूंकि मैं पढ़ाई के लिए यहां आने से पहले कभी भी अमेरिका नहीं आई थी तो मेरे लिए यह सब कुछ नया था। शुरुआत में मुझे मेरे परिवार और दोस्तों से दूरी ने परेशान किया, लेकिन कुछ महीनों में, मै अपनी पढ़ाई और कार्यों में व्यस्त हो गई। गर्मी की छुट्टियों में भारत की पहली यात्रा की जरूरत बेहद महसूस हो रही थी। एक बार जब पहले दो सेमेस्टर पूरा करने के बाद भारत आई और वापस गई तो मुझे अच्छा लगा, और अब वह मेरे घर जैसा बन गया।’’

मायरेड्डी ने हमेशा परिसर में सुरक्षित महसूस किया, जिसके लिए वे वर्जीनिया टेक के बढि़या सुरक्षा प्रोटोकॉल को धन्यवाद देती हैं जिनमें अब एक ऐसा ऐप भी शामिल हो चुका है जो आपात स्थिति में विद्यार्थियों की तुरंत मदद के लिए कॉल करने की सुविधा उपलब्ध कराता है।

वह अमेरिकी शैक्षिक व्यवस्था के लचीलेपन को चुनौतीपूर्ण लेकिन फायदेमंद मानती हैं। वह बताती हैं, ‘‘अमेरिका में एक विद्यार्थी अपनी दिलचस्पी का कोई भी विषय पढ़ सकता है, अगर वह उस पाठ्यक्रम के लिए ज़रूरी अहर्ताओं को पूरा करता है। शिक्षकों की तरफ से विद्यार्थियों के लिए बहुत सारी मदद और सहायता उपलब्ध होती हैं ताकि वह अपने उद्देश्यों को हासिल कर सके।’’

मायरेड्डी इस तरफ ध्यान दिलाती हैं कि सीधे प्रोफेसरों से संपर्क करने से, जैसा कि उन्होंने किया, शैक्षिक विकास और वित्तीय सहायता के उन तमाम मौकों का पता चल जाता है जिनके बारे में किसी दूसरे तरीके से भावी विद्यार्थी के लिए जानकारी जुटा पाना बहुत मुश्किल होता है। वह कहती हैं, ‘‘अमेरिका में अध्ययन चुनौतीपूर्ण और फायदेमंद दोनों हो सकता है। लेकिन सही तैयारी, मनोस्थिति और संसाधनों के साथ यह निजी और पेशेवर विकास की दृष्टि से शानदार अवसर हो सकता है।’’

इशिता टिबरेवाल

जब टिबरेवाल ने कोलकाता में एक प्रतिस्पर्धी टेनिस खिलाड़ी के रूप में पहली बार सर्विस, स्लाइस और वॉली करना सीखा, तब उन्हें इस बारे में पता नहीं था कि वे अमेरिका में रोमांचक खेल संबंधी कॅरियर की बुनियाद रख रहीं हैं।

टिबरेवाल के पास माउंट होलियोक कॉलेज से अर्थशास्त्र में बैचलर डिग्री है और वे मेसाच्यूसेट्स युनिवर्सिटी (यूमास) एमहर्स्ट से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर्स डिग्री की पढ़ाई के साथ स्पोर्ट्स मैनेजमेंट में मास्टर्स ऑफ़ साइंस की पढ़ाई पूरी करने वाली हैं। उनके अनुसार, उन्होंने पहले ही कॉलेजिएट स्पोर्ट्स फील्ड में एक लीडरशिप पद को स्वीकार कर लिया है।

इशिता टिबरेवाल नेशनल एसोसिएशन ऑफ़ कॉलेजिएट डायरेक्टर ऑफ़ एथलेटिक्स, पोस्ट ग्रेजुएशन में अपना पूर्णकालिक काम शुरू करेंगीं। (फोटोग्राफः साभार इशिता टिबरेवाल)

ऐसे अवसर शायद टिबरेवाल के लिए संभव न हो पाते, अगर उनको अपनी इस यात्रा में विभिन्न तरह की स्कॉलरशिप की सहायता न मिलती। उनका सुझाव है कि इस मामले में शीघ्रता करनी चाहिए और उसके लिए सक्रियता से प्रयास करना चाहिए। वह बताती हैं, ‘‘बहुत-से परिसर विविधता के लिए काफी प्रयास कर रहे हैं और वे अपने यहां अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों की संख्या को बढ़ाना चाहते हैं। और माउंट होलियोक जैसे कॉलेज अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों की मदद के लिए और ज्यादा स्कॉलरशिप देने का बंदोबस्त कर रहे हैं।’’

चूंकि माउंट होलियोक एथेलेटिक प्रतिभा के आधार पर स्कॉलरशिप नहीं देता, इसलिए टिबरेवाल के अनुसार, उन्होंने खेल के क्षेत्र में अपने सपनों को पूरा करने के लिए जरूरत और मेरिट के आधार पर वित्तीय सहायता हासिल कर ली। उन्होंने माउंट होलियोक से बाहर से भी अतिरिक्त स्कॉलरशिप्स का बंदोबस्त कर लिया जिसमें नेशनल कॉलेजिएट एथलेटिक एसोसिएशन (एनसीएए) से मिलने वाली छात्रवृत्ति भी शामिल हैं।

टिबरेवाल के अनुसार, ‘‘माउंट होलियोक ने मेरे निजी और पेशेवर विकास के लिए अनंत अवसर दिए। इनमें स्टूडेंट एथलेटिक एडवाइज़री कमेटी का सक्रिय सदस्य बनाने से लेकर पेशेवर माहौल में कौशल विकास की दृष्टि से तमाम ऑन कैंपस जॉब और विद्यार्थी नेतृत्व से संबंधित तमाम अवसर शामिल हैं।’’ एक जूनियर के रूप में उन्हें चार-चार राष्ट्रीय एनसीएए स्टूडेंट एथेलेटक्सि कॉन्फ्रेंस के लिए चुना गया। उन्होंने बताया, ‘‘उन अनुभवों का फायदा यह रहा कि मुझे अमेरिका के दूसरे संस्थानों के एथलीट से मिलने का मौका तो मिला ही, साथ ही एनसीएए के नेशनल ऑफिस के ऐसे शीर्ष लोगों और एथलेटिक एडमिनस्ट्रेटर से सीखने का मौका भी मिला, जिन लोगों ने खेल उद्योग के बारे में मेरे वैश्विक नजरिए को तैयार करने में बहुत सहायता दी।’’

टिबरेवाल इसी वर्ष यूमास एमहर्स्ट के इसेनबर्ग स्कूल ऑफ मैनेजमेंट से अपनी ग्रेजुएट पढ़ाई पूरी करेंगी। इसेनबर्ग में उन्हें अपने पाठ्यक्रम और खेल उद्योग के बारे में गहरी समझ रखने वाले अनुभवी शिक्षकों से हुए संवाद से व्यावसायिक कौशल को धार देने का अवसर मिला। टिबरेवाल के अनुसार, ‘‘यूमास ने जमीनी प्रोजेक्ट और अनुभवजन्य सीख पर ध्यान दिया जिसके कारण न सिर्फ मैं अपनी सोच के दायरे को विस्तार दे पाई बल्कि मैं खेल उद्योग की बारीकियों को भी जान पाई और साथ ही यह भी समझ पाई मैं उस जगह में खुद को कहां देख पा रही हूं।’’ वह कहती हैं, ‘‘इसके अलावा, मुझे एक ऐसी मददगार व्यवस्था मिली जो रोजना मुझे चुनौती देती थी, प्रेरित करती थी और खुद को बेहतर बनाने में मदद करती थी। यूमास ने मुझे जो अवसर प्रदान किए मैं उनके लिए हमेशा कृतज्ञ रहूंगी और अब मैं नेशनल एसोसिएशन ऑफ कॉलेजिएट डायरेक्टर ऑफ एथेलेटिक्स, पोस्ट ग्रेजुएशन में अपनी पूर्णकालिक भूमिका का इंतज़ार कर रही हूं।’’

माइकल गलांट एक लेखक, संगीतकार और उद्यमी हैं और न्यू यॉर्क सिटी में रहते हैं।



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