दिल्ली की अलाभकारी संस्था शक्ति वाहिनी ने हजारों बच्चों को शोषण और मानव तस्करी के खतरे से बचाने में मदद की है।
दिसंबर 2021
‘‘हर साल 35 से 45 हजार भारतीय बच्चे गायब हो जाते हैं। इनमें से कुछ को बरामद कर लिया जाता है और वे वापस अपने परिवारों में पहुंच जाते हैं जबकि बहुत से बच्चे कभी भी बरामद नहीं हो पाते।’’ यह कहना है शक्ति वाहिनी के सहसंस्थापक ऋषि कांत का। ऋषि ने जो संख्या बताई, उससे भारत के कुछ हिस्सों में व्याप्त गुलामी, अपहरण, मानव तस्करी और मानवाधिकारों के उल्लंघन के दुखद मामलों का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऋषि का कहना है, ‘‘यह किसी भी देश के लिए गंभीर चिंता का विषय हो सकता है जहां हर साल हजारों बच्चों के गायब होने का सिलसिला लगातार जारी रहता है।’’
ऋषि और उनके भाई निशिकांत और रविकांत ने मिलकर 2001 में नई दिल्ली में शक्ति वाहिनी नामक संस्था का गठन किया जो भारत में मानव तस्करी के खिलाफ लड़ाई के लिए समर्पित है। ऋषि मीडिया और कम्युनिकेशंस का काम संभालने के अलावा पूर्वी भारत में संस्था के प्रोजेक्ट और कार्यक्रमों को देखते हैं जबकि निशि ऑपरेशंस और रवि शक्ति वाहिनी के अध्यक्ष के तौर पर संस्था के नीतिगत और कानूनी मसलों को देखते हैं।
मानव तस्करी जैसे सामाजिक अभिशाप के खिलाफ अपने परिवार से मिली प्रेरणा को स्पष्ट करते हुए रवि कहते हैं, ‘‘मानव जीवन कोई वस्तु नहीं है जिसे खरीदा या बेचा जा सकता है। यह मानव अधिकारों का गंभीर उल्लंघन है। मानव तस्करी का शिकार व्यक्ति सालों शोषण और दुर्व्यवहार झेलता है और उसे न्याय नहीं मिल पाता और शोषक लगातार कानून से बचता रहता है।’’
मानव तस्करी को लेकर कानूनी एजेंसियों की प्रतिक्रिया भारत में ऐतिहासिक रूप से प्रभावहीन हैं। रवि स्पष्ट करते हैं, अभियोजन ऐसे मामलों को बाल शोषण से जुड़े अपराधी नेटवर्क की हरकत मानने और उसे खत्म करने की कोशिश करने के बजाय इसे महज एक घटना के रूप में देखता हैं। उनका कहना है, ‘‘इसके लिए सभी साझेदारों को मिलकर काम करने की जरूरत है, जो शायद ही कभी हो पाता है। इसीलिए यह अपराध लगातार बढ़ता जा रहा है।’’
इस समस्या से जूझने के लिए शक्ति वाहिनी कानून प्रवर्तन एजेंसियों और मानव तस्करी रोधी इकाइयों जैसी सरकारी संस्थाओं के साथ मिलकर काम करती है और जांच में मदद देती है। इस संस्था ने 2004 से अब तक 6000 से ज्यादा अपहृत बच्चों की बरामदगी में मदद की है और हर उस मामले के अभियोजन में सहायता दी है जिससे उसका जुड़ाव रहता है। शक्ति वाहिनी कानून प्रवर्तन और बाल सुरक्षा कर्मचारियों को बचाव और केस मॉनीटरिंग जैसे विषयों पर प्रशिक्षण देने में मदद भी करती है।
ऋषि के अनुसार, ‘‘इस धंधे से जुड़े लोग धन बल, भ्रष्टाचार और अपराधियों के नेटवर्क के कारण लगातार मजबूत होते जाते हैं।’’ वह बताते हैं, ‘‘यह एक संगठित अपराध है और पैसों के खेल का धंधा है। संगठित अपराध से निपटने के लिए विभिन्न साझेदारों को एक साथ आकर संगठित होना पड़ेगा।’’
इसी दिशा में कदम बढ़ाते हुए, शक्ति वाहिनी ने पिछले दशक में सम्मेलनों की श्रृंखला का आयोजन किया जिनमें कानूनी एजेंसियों, अभियोजन अधिकारियों, सरकारी एजेंसियों, युवा संगठनों और छात्रों को एकसाथ आमंत्रित करके इस विषय पर रणनीति तय करने के लिए चर्चा की गई।
इन सम्मेलनों में मानव तस्करी को रोकने और अपराधियों को दंड देने के लिए कानून को मजबूत बनाने पर बहुत जोर दिया गया। इसके अलावा जैसा कि रवि का कहना है, ‘‘अपराध को रोकने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति भी बहुत जरूरी थी जिसके परिणाम कार्ययोजनाओं में दिखे और बजट भी बढ़ाया गया।’’
सकारात्मक नतीजों की बात करें तो इसमें झारखंड में प्लेसमेंट एजेंसी कानून का ड्रा़फ्ट तैयार किया गया है जबकि बिहार के प्रवासी कामगारों की सुरक्षा संबंधी नीति बनाई गई और पश्चिम बंगाल में बाल शोषण के खिलाफ एक कार्ययोजना तैयार की गई है। इन सम्मेलनों में पूर्वी और उत्तर भारत के विश्वविद्यालयों में 50 मानव तस्करी रोधी क्लबों का गठन किया गया। ये वे स्थान हैं जहां भविष्य के एक्टिविस्ट मिलते हैं, सीखते हैं और संगठित होते हैं।
अपने प्रयासों को और ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए रवि और ऋषि ने अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा प्रायोजित प्रशिक्षण पहल इंटरनेशनल विजिटर लीडरशिप प्रोग्राम (आईवीएलपी) में हिस्सा लिया। रवि का कहना है, ‘‘आईवीएलपी के प्रतिभागी के रूप में, मैंने अमेरिका में मानव तस्करी रोकने के लिए तमाम विधिक और कानून पहलों के बारे में जानकारी हासिल की।’’ उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि, किस तरह से संस्थाएं गुलामी के इस अपराध को रोकने और दंडित करने के लिए खुद की हदों को तय कर सकती हैं। रवि ने बताया, ‘‘यहां से जो कौशल और जानकारी अर्जित की गई, उससे मुझे भारत में मानव तस्करी रोधी पहल को डिजाइन करने में सहायता मिली।’’
ऋषि भी अपने भाई की राय से सहमत हैं। उन्होंने कहा कि, आईवीएलपी ने उन्हें भारत में मानव तस्करी की समस्या के प्रति एक समग्र दृष्टिकोण की समझ विकसित करने में मदद दी। वह कहते हैं, ‘‘मैंने यहां मानव तस्करी को रोकने, उनकी जांच करने और अपराधियों को दंड देने के लिए सामाजिक उपायों के साथ कानून प्रवर्तन रणनीति के बारे में भी जाना-समझा।’’
और अब जबकि उम्मीद है कि महामारी का असर कम हो रहा है, शक्ति वाहिनी का ध्यान सामुदायिक सशक्तिकरण जैसे प्रयासों पर है ताकि अपराधी प्राकृतिक और लोक स्वास्थ्य के इस संकट भरे दौर का फायदा न उठा सकें। इसे देखते हुए कांत बंधु लगातार कानून प्रवर्तन एजेंसियों से विचार-विमर्श कर रहे हैं जिससे कि वे अपराधियों के नेटवर्क से प्रभावी तरीके से निपट सकें। उन्होंने मानव तस्करी के मामलों को रोकने के लिए इंटरनेट पर एक हेल्पलाइन भी शुरू की है। ऋषि के अनुसार, ‘‘महामारी के बाद के दौर में सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए ऐसे मामले ज्यादा सामने आ रहे हैं।’’
इस बीच, शक्ति वाहिनी ने भारत की राष्ट्रीय सरकार के साथ मिलकर मानव तस्करी को रोकने के लिए एक समग्र कानून बनाने और उसे पारित करने के लिए लगातार प्रयास को जारी रखा है।
हालांकि कांत बंधुओं को अपनी संस्था की प्रगति पर गर्व है लेकिन उनकी निगाह में अभी भी काफी काम बाकी है। रवि के अनुसार,
‘‘सिविल सोसायटी से मिले जबर्दस्त सहयोग के बाद भी समस्या बनी हुई है। हमारी दखल के बाद देश के कुछ इलाकों में इसमें कमी जरूर आई है। हम मिलकर देश भर में इस अपराध को रोकने के लिए लगातार अपनी मुहिम को जारी रखेंगे।’’
उनका कहना है, ‘‘एक बात तो तय है कि, इस अमानवीय कारोबार और शोषण के दोषियों का कानून से सामना होना जरूरी है। हम इन अपराधियों के दिमाग में कानून की दहशत भरने का काम करेंगे।’’
शक्ति वाहिनी के विशिष्ट कार्यों के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए shaktivahini.org पर जाएं। आप इंटरनेशनल विजिटर लीडरशिप प्रोग्राम में प्रतिभागी कैसे बन सकते हैं, इस बारे में जानकारी के लिए eca.state.gov/ivlp पर जाएं।
माइकल गलांट गलांट म्यूज़िक के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं। वह न्यूयॉर्क सिटी में रहते हैं।
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