जल संसाधनों के लिए उपग्रह तकनीक

नेक्सस प्रशिक्षित स्टार्ट-अप ऑमसेट टेक्नोलॉजीज़, पाइपलाइन रिसाव और भूजल संसाधनों का पता लगाने के लिए उपग्रह से मिले आंकड़ों का इस्तेमाल करती है।

गिरिराज अग्रवाल

जून 2024

जल संसाधनों के लिए उपग्रह तकनीक

ऑमसेट ने 2600 जगह पाइपलाइन में रिसाव का पता लगाया है और 15,000 किलोमीटर लंबे पाइपलाइन नेटवर्क का डिजिटलीकरण किया है। इससे पानी के संरक्षण में मदद मिली है और पानी की बर्बादी से होने वाले आर्थिक और पर्यावरणीय नुकसान में कमी आई है। (ग्राफिकः साभार ऑमसेट)

साफ पानी लोक स्वास्थ्य, समुदायों और अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है। सिंचाईं, पशुधन, कृषि प्रबंधन और उपज के संरक्षण सहित कृषि उत्पादन के विभिन्न पहलुओं के लिए भी पानी एक ज़रूरी संसाधन है। दुर्भाग्य से जल आपूर्ति करने वाले पाइपों में रिसाव के चलते रोजाना लाखों लीटर पानी बर्बाद हो जाता है और पेयजल में नुकसान पहुंचाने वाले संदूषक भी जा मिलने की अशंका हो जाती है। मुंबई स्थित स्टार्ट-अप ऑमसेट टेक्नोलॉजी पानी की पाइपलाइन में रिसाव का पता लगाने और भविष्य में कहां इस बात की आशंका है, इस बात का पता लगाने के लिए उपग्रह आधारित डेटा का उपयोग करता है, और साथ ही संभावित भूजल स्रोतों की पहचान भी करता है।

पानी के पाइपलाइनों में रिसाव का पता लगाने के साथ-साथ पृथ्वी की सतह के नीचे पानी के स्रोतों की पहचान करने के काम में सैटेलाइट स्कैन का उपयोग करने का विचार भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में चंद्रयान-2 मिशन पर एक वैज्ञानिक के रूप में काम करने के दौरान स्टार्ट-अप के संस्थापक  रिद्धीश सोनी के दिमाग में आया।

चंद्रयान-2 पर सोनी की मूल ज़िम्मेदारी मिशन के उद्देश्यों के विकास में योगदान देने की थी, विशेष रूप से उन्हें चंद्रमा पर आवश्यक संसाधनों की खोज पर ध्यान केंद्रित करना था। इसमें पानी, हीलियम-3, रेडियोआइसोटोप के साथ लौह और टाइटेनियम के भंडारों की खोज शामिल थी जो भविष्य में चंद्रमा पर होने वाले अन्वेषण और उसके संभावित उपनिवेशीकरण के प्रयासों के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं।

सोनी के अनुसार, ‘‘इस मिशन पर काम करते समय मुझे अहसास हुआ कि अगर हम चंद्रमा पर पानी का पता लगा सकते हैं तो पृथ्वी पर भूजल संसाधनों का पता लगाने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल क्यों न किया जाए, खासकर सूखे से प्रभावित क्षेत्रों में।’’

इसी सोच ने उस बुनियाद का काम किया जो बाद में ऑमसेट के रूप में परवान चढ़ा। अपने सह संस्थापक चेतन के साथ सोनी ने जल  संसाधनों को लक्षित करने, उनकी निगरानी करने और पूर्वेक्षण करने के मकसद से सिस्टम तैयार करने के लिए सैटेलाइट डेटा का उपयोग करना शुरू किया। स्टार्ट-अप का शुरुआती ध्यान किसानों के लिए प्रौद्योगिकी विकसित करने, सिंचाई दक्षता और फसल की उपज में सुधार के लिए भूजल का पता लगाने की सुविधा प्रदान करने पर था। पाइपलाइनों में रिसाव का पता लगाने के लिए इस तकनीक को और अधिक परिष्कृत और हाइपरलोकलाइज़ किया गया।

सोनी कहते हैं, ‘‘हमारा ध्यान विशेष रूप से भारत के सूखाग्रस्त इलाकों में पानी की  किल्लत को कम करने पर रहा है। और साथ ही स्मार्ट वॉटर सेक्टर में अभिनव प्रयोगों को आगे बढ़ाने के लिए जियोमैटिक्स, प्रेडिक्टिव एनलेटिक्स, रिमोट सेंसिंग, ऑब्जेक्ट डिटेक्शन और सांख्यिकी जैसे विषय क्षेत्रों के एकीकरण का रहा है।’’

नेक्सस प्रशिक्षण

ऑमसेट अमेरिकन सेंटर नई दिल्ली में नेक्सस स्टार्ट-अप हब के 15वें समूह का हिस्सा था। अमेरिकी दूतावास नई दिल्ली और अलायंस फॉर कॉमर्शियलाइनजेशन एंड इनोवेशन रिसर्च (एसीआईआर) के बीच साझेदारी में नेक्सस, स्टार्ट-अप, आविष्कारकों और निवेशकों को आपस में जोड़ता है जिससे उन्हें नेटवर्किंग, प्रशिक्षण और फंडिंग में सहायता मिलती है।

नेक्सस स्टार्ट-अप हब में प्रशिक्षण के बारे में सोनी का कहना है, इसने ज्ञान का वह खजाना दिया है जो ऑमसेट टेक्नोलॉजीज़ की उड़ान को आकार देने में सहायक बना। संभावित निवेशकों और भागीदारों के समक्ष उन महत्वपूर्ण क्षेत्रों में जहां खासतौर पर मदद मिली, उनमें दीर्घकालिक सोच के साथ वित्तीय प्रबंधन, स्टार्ट-अप के मिशन को बताने के लिए प्रभावी वृतांत और आत्मविश्वास एवं विश्वसनीयता को बनाने के लिए बॉडी लैंग्वेज और धन जुटाने की तकनीक शामिल है।

सोनी के अनुसार, ‘‘समस्या समाधान सत्रों ने जटिल चुनौतियों से निपटने की हमारी क्षमता में वृद्धि की, जबकि हमारे नवाचारों की हिफाजत और प्रतिस्पर्धी बढ़त को बनाए रखने के लिए इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी स्ट्रेटेजी को समझना भी ज़रूरी था। कुल मिलाकर प्रशिक्षण ने हमें आवश्यक कौशल से सुसज्जित किया जिससे सैटेलाइट प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल में हमारी प्रभावी और प्रतिस्पर्धी स्थिति में ठोस वृद्धि देखने को मिली।’’

ऑमसेट टेक्‍नोलॉजीज के संस्‍थापक रिद्धीश सोनी (बाएं से दूसरे) एसीआईआर के निदेशक एरिक एज़ुलाई (मध्य में) के साथ। (फोटोग्राफः साभार रिद्धीश सोनी )

तकनीक और उसका प्रभाव

ऑमसेट जापान के एल बैंड सैटेलाइट की अत्याधुनिक क्षमताओं का उपयोग करता है जो इसे कंक्रीट में 10 मीटर और सूखी मिट्टी में 60 मीटर अंदर तक की सटीक जानकारी देने के अलावा भूमिगत विशेषताओं का पता लगाने में सक्षम बनाता है।

इस काम में जिन प्रमुख तकनीकों का इस्तेमाल किया गया है उनमें भूजल का पता लगाने के लिए रेडार पोलेरिमेट्री और पृथ्वी की सतह के नीचे होने वाले बदलावों की पहचान के लिए रेडार इंटरफेरोमेट्री हैं। सोनी बताते हैं, ‘‘रेडार पोलेरिमेट्री पानी और अन्य पदार्थों के बीच फर्क को जाहिर करता है जिससे भूजल संसाधनों के बारे में सटीक जानकारी मिल पाती है।’’

सोनी कहते हैं, ‘‘रेडार इंटरफेरोमेट्री हमें सतह के नीचे के वातावरण में समय के साथ होने वाले बदलाव का पता लगाने में सक्षम बनाता है। अलग-अलग समय पर ली गई कई रेडार छवियों की तुलना करके हम पाइपलाइन रिसाव, जमीन धंसने या परिदृश्य में दूसरे बदलावों के संकेत देने वाले छोटे से छोटे बदलावों की पहचान कर सकते हैं। यह तकनीक हमारे पाइपलाइन रिसावों का पता लगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है जिससे हमें सटीकता और दक्षता के साथ किसी निष्कर्ष पर पहुंचने में मदद मिलती है।’’

2019 में अपनी स्थापना के बाद से ऑमसेट ने 44000 हेक्टेयर से अधिक भूमि को स्कैन किया है और 3800 वॉटर पॉइंट बनाए हैं जिससे ग्रामीण भारत के हजारों छोटे किसानों के परिवारों पर सकारात्मक असर पड़ा है। सोनी कहते हैं, ‘‘इन किसानों के पास अब सिंचाई के लिए पानी की बेहतर सुविधा है जिससे उनकी कृषि उत्पादकता और सदाजीविता में उल्लेखनीय सुधार दिखाई दिया है।’’

ऑमसेट ने 2600 जगह रिसाव का भी पता लगाया है और लगभग 15000 किलोमीटर पाइपलाइन नेटवर्क को डिजिटल बनाया है जिसके नतीजे में हर महीने लगभग 17000 किलोलीटर पानी की बचत हुई है। इस प्रयास से न केवल जल संरक्षण में मदद मिली बल्कि जल हानि से जुड़ी आर्थिक और पर्यावरणीय लागत में भी कमी आई।

सोनी के अनुसार, ‘‘हमारी तकनीक और सेवाओं ने विविध उपभोक्ताओं को आकर्षित किया है जिसमें उदयपुर, इंदौर और गांधीनगर जैसे स्मार्ट शहर भी शामिल हैं।’’ ऑमसेट भारत के 29 जिलों में काम कर रहा है जिससे जल संसाधनों को अधिक प्रभावी तरीके से प्रबंधित करने में मदद मिल रही है। वह बताते हैं, ‘‘उदयपुर में  हमारे हालिया प्रोजेक्ट में हमने 50 किलोमीटर जमीन को स्कैन किया और 47 जगहों पर रिसाव का सफलतापूर्वक पता लगाया। इससे न केवल जल राजस्व में 200,000 डॉलर की बचत हुई बल्कि 38000 किलोलीटर पानी भी बचाया जा सका।’’

ऑमसेट की तकनीक कार्बन डाइऑक्साइड का पता लगाने और गैस उत्सर्जन के बारे में जानकारी देने में मददगार हो सकती है। यह बात बहुत अहमियत रखती है क्योंकि दुनिया भर के  देश गेलोबल क्लाइमेट चेंज से निपटने के लिए कार्बन फुटप्रिंट पर निगाह रखने और उसे कम करने का प्रयास कर रहे हैं। सोनी के अनुसार, ‘‘उन उत्सर्जनों की सटीक पहचान और मात्रा निर्धारित करके हम आवश्यक डेटा प्रदान कर सकते हैं जो नीतियों के निर्माण और अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण मानकों के अनुपालन के लिए भी सहायक बन सकते हैं।’’

स्टार्ट-अप ने विविध प्रकार की परियोजनाएं कार्यान्वित की हैं जिनमें व्यावहारिक इस्तेमाल के लिए उन्नत सैटेलाइट तकनीक का फायदा मिलता है। इनमें सिंचाईं क्षेत्र में विस्तार के लिए भूजल का पता लगाने में 3800 किसानों की मदद करना, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भूमिगत सुरंगों की पहचान करने की दृष्टि से भारतीय सेना के साथ सहयोग और पनडुब्बियों की टोह लेने में भारतीय नौसेना की सहायता करना शामिल है।

अगला चरण

सोनी का लक्ष्य पूरे भारत में सभी पाइपलाइन नेटवर्कों को डिजिटल बनाना है जो देश में बुनयादी ढांचे के विकास की सरकार प्रतिबद्धता को गति देगा। उनका कहना है, ‘‘बर्बाद हुए पानी को एक आर्थिक संपत्ति में बदल कर हमारा उद्देश्य सतत विकास के लक्ष्यों के अनुरूप 2030 तक प्रत्येक ग्रामीण परिवार को रोजाना कम से कम 55 लीटर पानी उपलब्ध कराने में मदद करने का है।’’ उनकी कंपनी नए तकनीकी क्षेत्रों में भी कदम रख रही है, जैसे कि वह क्लाउड सीडिंग के लिए मौसम संबंधी रॉकेट विकसित कर रही है एवं रोबोटिक्स और इंटरनेट ऑफ थिंग्स में विस्तार के प्रयास कर रही है।

सोनी के अनुसार, ‘‘ये प्रयास सामाजिक लाभ के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के हमारे व्यापक मिशन का हिस्सा हैं। हम यह सुनिश्चित करते हैं कि सैटेलाइट और रेडार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हमारी प्रगति सीधे तौर पर जीवन की गुणवत्ता और पर्यावरणीय प्रबंधन को बेहतर बनाने की दिशा में काम करे।’’


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