बरसात में संचय, गर्मी में सिंचाई

फुलब्राइट स्कॉलर तृप्ति जैन के सामाजिक उद्यम द्वारा विकसित भुंगरू सिंचाई प्रणाली एक ऐसा अभिनव प्रयोग है जो जलवायु में बदलाव का दंश झेल रहे किसानों को समृद्धि का मौका उपलब्ध करा रहा है।

माइकल गलांट

मई 2020

बरसात में संचय, गर्मी में सिंचाई

भुंगरू सिस्टम में शुष्क मौसम में किसान ज़मीन के अंदर एकत्र पानी का इस्तेमाल सिंचाई के लिए कर सकते हैं। फोटोग्राफ: साभार बिप्लब केतन पॉल

जलवायु में बदलाव का पूरी दुनिया के लोगों पर प्रभाव पड़ रहा है और इससे सबसे ज्यादा बुरी तरह से प्रभावित वे लोग हो रहे हैं जो दुनिया में सबसे ज्यादा गरीब हैं। इन्हीं में से एक हैं भारत में लाखों की तादाद में रहने वाले वे किसान परिवार जिन्हें मौसम की बदमिजाज़ी के साथ तालमेल बैठाना पड़ता है या फिर उसके नतीजे में बेशकीमती फसल और आय का नुकसान उठाना पड़ता है। इन किसानों में करीब बीस लाख ऐसे किसान हैं जो बरसात से इतर मौसम में पानी की कमी झेलते हैं जबकि बारिश के मौसम में उन्हें पानी के आधिक्य की मुश्किल झेलनी पड़ती है।

गुजरात स्थित एक सामाजिक उद्यम नैरीटा सर्विसेज़ ने ऐसे लोगों की समस्याओं से निपटने के लिए भुंगरू नाम कीएक अभिनव सिंचाई प्रणाली का विकास किया है। इस उद्यम के सह-संस्थापक, अगुआ और निदेशक बिप्लब केतन पॉल का कहना है, ‘‘पश्चिम बंगाल में अपने बचपन के दिनों में मैंने बाढ़ की विभीषिका को देखा है जबकि अपनी उम्र के बीस के दशक के अंतिम सालों में मैंने पानी की किल्लत से जुड़े मामलों और गुजरात में भयंकर सूखे के हालात को भी देखा है। इन दो परस्पर विरोधी हालात ने मुझे प्रकृति की ताकत को समझने का मौका दिया। इसके साथ ही इन मौंकों ने मुझे यह भी समझने का मौका दिया कि इंसान ने प्रकृति के साथ क्या-क्या गलतियां कीं और इंसानी समाज का प्रकृति के ऊपर किस तरह का असर पडा है।’’

नैरीटा सर्विसेज़ का यह आविष्कार करीब दो दशकों में विकसित और परिष्कृत हुआ है। भुंगरू जल प्रबंधन और सिंचाई की ऐसी प्रणाली है जो बेहद ही सीमित जगह लेती है और बारिश के मौसम में खेतों से अतिरिक्त पानी को निकाल कर उसे जमीन के नीचे प्राकृतिक जलाशयों में संरक्षित करती है। जब सूखे मौसम में किसानों को पानी की जरूरत पड़ती है तो वे अपनी फसलों की सिंचाई के लिए उस पानी का इस्तेमाल कर सकते हैं। इस प्रणाली के बहुत शानदार नतीजे सामने आ सकते हैं। इससे न सिर्फ बाढ़ और सूखे की विभीषिका को कम किया जा सकता है बल्कि फसल के विनाश को भरपूर उत्पादन में तब्दील किया जा सकता है।

पॉल का कहना है कि  भारत, बांग्लादेश, अफ्रीका और पूर्वी एशिया में करीब एक लाख ग्रामीण गरीबों को भुंगरू का लाभ मिला है। यही नहीं, पॉल और उनकी साथी सह-संस्थापक और निदेशक तृप्ति जैन ने भुंगरू की तकनीक को सार्वजनिक करने का असाधारण कदम भी उठाया। दूसरे शब्दों में कहें तो अब इस तकनीक को कोई भी पूरी दुनिया में कहीं भी कॉपी कर सकता है, उसे विकसित कर सकता है और उसका इस्तेमाल कर सकता है और वह भी मु़फ्त में। ऐसा करने का मकसद क्या है? जवाब सीधा  है, किसान कहीं भी हो उस तक पहुंचना और उसकी मदद करना।

नैरीटा सर्विसेज को शुरुआत में बहुत-सी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। सबसे बड़ी तकलीफ तो किसानों को इस बात के लिए राजी करने में आई कि उन्हें कम से कम इस प्रणाली को एक बार आजमाना तो चाहिए। पॉल का कहना है, ‘‘सचमुच लोगों को यह समझा पाना बहुत मुश्किल था कि उनके खेत में सिर्फ एक वर्गमीटर के क्षेत्र में वे उस तकनीक को लगा सकते हैं जिससे उन्हें अपने खेत में सारे अतिरिक्त पानी से निजात मिल जाएगी और उनके खेत में जलभराव की समस्या खत्म हो जाएगी। उनकी खालिस आशंका और बेबसी ने उन्हें किसी भी नई चीज़ पर भरोसा करने और लीक से हट कर सोचने के लायक नहीं छोड़ा था। इसलिए उनका भरोसा जीतना वाकई एक बड़ी चुनौती थी।’’

इस चुनौती का मुकाबला नैरीटा सर्विसेज़ ने किस तरह से किया? प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या। पॉल बताते हैं, ‘‘हमने अपने उत्पाद से काम करके दिखाया और उसके नतीजे बेहद उत्साहवर्धक रहे। नतीजा देखने के बाद किसी ने भी मुंह नहीं मोड़ा।’’

जैन ने नैरीटा सर्विसेज शुरू करने से पहले काफी इंजीनियरिंग दक्षता हासिल कर ली थी। इसके अलावा उन्होंने जेंडर और जलवायु में बदलाव के मसलों पर भी विशेषज्ञता हासिल की। जैन ने वर्ष 2012-13 में मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी में पर्यावरण और शासन में बतौर फुलब्राइट स्कॉलर हासिल ज्ञान, अनुभव और सहभागिता की विधाओं का इस्तेमाल नैरीटा सर्विसेज़ के उन प्रयासों में झोंक दिया जो हर हाल में भुंगरू को गरीब महिलाओं तक पहुंचाने के लिए था ताकि उन महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया जा सके और उन्हें अपने जीवन में इसका लाभ उठाने का मौका मिल सके। जैन को फुलब्राइट में मिले अनुभवों में पानी से संबंधित मसलों पर दूसरे देशों के उन विद्यार्थियों से विमर्श का मौका भी शामिल है जो जलवायु संबंधी चुनौतियों को भी झेल रहे थे।

नैरीटा सर्विसेज़ को भुंगरू की तकनीक के माध्यम से लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के प्रयासों को मिलेनियम एलायंस से मिले अनुदान से काफी बल मिला। मिलेनियम एलायंस विभिन्न सहभागियों का एक कंसॅर्शियम है जिसमें भारत सरकार, अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंसी (यूएसएड) और अन्य शामिल हैं। यह भारत के सामाजिक उद्यमों को फंडिंग, क्षमता निर्माण और कारोबार विकास सहायता उपलब्ध कराता है। पॉल का कहना है, ‘‘उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फार्म सेक्टर में मौकों को उजागर कर दिया। भारत के एक जिले से अब हम देश के 12 राज्यों के अलावा दक्षिण-पूर्व और पूर्व एशिया और अफ्रीका के देशों तक पहुंच गए हैं।’’

यूएसएड के खाद्य कार्यक्रम के लिए जल संरक्षण के काम से मिली मदद से नैरीटा सर्विसेज़, अपने प्रबंधकीय ढांचे को बेहतर बनाने, समय और खर्च घटाने और उच्च गुणवत्ता वाली तकनीक सहायता तक पहुंच बनाने में सक्षम बन पाई। पॉल का कहना है, ‘‘इससे हमें सभी मोर्चों पर तेजी के साथ सटीक फैसले लेने में मदद मिली।’’

कोरोनावायरस महामारी के मद्देनज़र नैरीटा सर्विसेज ने अपनी राज्य टीमों के माध्यम से पूरे भारत में जागरूकता सत्र संचालित किए। आठ राज्यों के 31,000 से अधिक सदस्यों को स्थानीय भाषाओं में जानकारी दी गई कि वायरस से किस तरह बचाव करना है। इसके अलावा भुंगरू महिला सदस्य और संगठन की महिला जलवायु लीडरों ने 210 महिला सेल्फ हेल्प ग्रुप सदस्यों की क्षमताओं में बढ़ोतरी की जिससे कि निगरानी और मदद का काम हो सके। इन्होंने गुजरात के पाटन जिले में 18,700 से अधिक ग्रामीणों की देखरेख में मदद की और उन्हें इस बात का प्रशिक्षण दिया कि गंभीर लक्षणों वाले मरीजों के बारे में किस तरह संबंधित अधिकारियों को बताना है। इस सामाजिक उद्यम ने लगभग 400 परिवारों को पीपीई किट भी उपलब्ध कराए और अपने भागीदारों को इस बात के लिए तैयार किया कि वे अधिक पलायन वाले इलाकों और बड़ी संख्या में गरीबों वाले इलाकों में राहत पैकेज का वितरण करें।

भुंगरू तकनीक के प्रसार के साथ, जैन और पॉल को उम्मीद है कि उनके प्रयास दुनियाभर में करोड़ों और गरीब, ग्रामीण परिवारों की मदद कर पाएंगे और उन्हें खाद्य सुरक्षा की गारंटी एवं जलवायु में बदलाव के मुताबिक ढलने का सुरक्षित मार्ग मिल पाएगा। उन्हें यह भी पता है कि तापमान में बढ़ोतरी और गरीबी जैसे मुद्दों से जूझने के लिए सभी पीढि़यों की भागीदारी की आवश्यकता है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी कानपुर में इनक्यूबेशन सेंटर के मेंटर और निर्णायक दल में होने के चलते पॉल ने बहुत-से युवा नवप्रवर्तकों के साथ काम किया है। वह बताते हैं वे नवप्रवर्तक सफल होते हैं जो ग्राहकों के दर्द को समझते हैं और गंभीर समस्याओं का हल सुझाते हैं। वह कहते हैं, ‘‘यदि इन बातों का सम्मान हो, तो किसी सामाजिक उद्यम के सफल होने की गारंटी रहती है। बाकी चीज़ें तो इसके बाद अपनेआप हो जाती हैं।’’

माइकल गलांट गलांट म्यूज़िक के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं। वह न्यू यॉर्क सिटी में रहते हैं।



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