आर्थिक आज़ादी की ओर

महाराष्ट्र और गुजरात की ऐसी चार महिला उद्यमियों से मिलिए, जिन्हें अमेरिकी विदेश मंत्रालय द्वारा प्रायोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम से आर्थिक स्वतंत्रता हासिल हुई।

कृत्तिका शर्मा

अक्टूबर 2023

आर्थिक आज़ादी की ओर

अमेरिकी विदेश मंत्रालय द्वारा प्रायोजित एकेडमी ऑफ वुमेन ऑंट्रेप्रिन्योर्स (एडब्लूई) उद्यमशील महिलाओं को अपनी प्रतिभा का दोहन करने और सफल कारोबार को शुरू करने और उसे आगे बढ़ाने में मदद करती है। (अबीर राय बर्मन/Shutterstock.com)

महिलाओं को अर्थव्यवस्था में भाग लेने के लिए सशक्त बनाने से उनके परिवारों के जीवन और समुदायों पर स्पष्ट प्रभाव पड़ सकता है और स्थायी आजीविका के साधन बनाने में मदद मिल सकती है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय द्वारा प्रायोजित एकेडमी ऑफ वुमेन ऑंट्रेप्रिन्योर्स (एडब्लूई) उद्यमशील महिलाओं का अपनी प्रतिभा को दोहन करने और सफल कारोबार को शुरू करने और उसे आगे बढ़ाने में मदद करती है। एकेडमी के माध्यम से प्रतिभागी व्यवसाय से संबंधी खास कौशल सीखते हैं, उन पर अमल करने वाले अनुभवी लोगों और स्थानीय परामर्शदाताओं से संवाद करते हैं और साथ ही अन्य व्यवसायियों के साथ नेटवर्क बनाते हैं।

सोनल पारेख, रशीदा सैयद, सविता डकले और मित्तलबेन प्रजापति गुजरात और महाराष्ट्र में  सेल्फ एंप्लॉयड वुमेन्स एसोसिएशन (सेवा) से जुड़ी वे चार महिला उद्यमी हैं जिन्होंने एडब्लूई के साथ अपनी उद्यम यात्रा शुरू की है। ये सभी अब महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण की मिसाल के तौर पर देखी जा रही हैं क्योंकि उन्होंने अपने समुदाय और उसके आसपास महिलाओं के लिए रोज़गार के नए मौके भी तैयार किए हैं।

संघर्ष की दास्तां

गुजरात में अहमदाबाद की रहने वाली मित्तलबेन प्रजापति तीन भाई-बहनों में सबसे बड़ी हैं। उनका परिवार मिट्टी के बर्तन बनाता और बेचता है। बड़े होते हुए प्रजापति ने अपने पिता को मिट्टी के बर्तन बनाते हुए देखा और यह भी देखा कि  वे कैसे कारोबार चलाते थे। इसी वजह से उन्होंने जल्दी ही ये सारे गुर सीख लिए। उनका कहना है कि उन्हें पता था कि वे अपने पारिवारिक व्यवसाय को आगे बढ़ाने में मदद करना चाहती हैं और ‘‘अपने पिता को गर्व का अहसास कराना चाहती थीं।’’

हालांकि उनकी मौत के बाद आजीविका कमाने का बोझ प्रजापति, उनकी मां और भाई-बहनों पर आ पड़ा। वह कहती हैं, ‘‘हमारा  व्यवसाय पारंपरिक है। उनकी मृत्यु के बाद मेरी मां, छोटी बहन और मैं अपना मिट्टी के बर्तनों का व्यवसाय चला रहे हैं और उसका विस्तार कर रहे हैं।’’ प्रजापति को एडब्लूई में जो प्रशिक्षण मिला, वह उन्हें प्रतिस्पर्धी बाजार में जीवित रहने के लिए जरूरी शर्तों को सिखाने में सहायक रहा।

वह कहती हैं, ‘‘मैंने सीखा  कि बिजनेस प्लान कैसे तैयार करें, अगर वह काम न करे तो क्या करें और प्लान बी पर कैसे जाएं।’’ प्रजापति एक उदाहरण के साथ अपनी कारोबारी रणनीति को समझाती हैं। वह बताती हैं कि, हमारा मिट्टी के घड़ों का व्यवसाय सिर्फ गर्मियों में ही फलता-फूलता है लेकिन सिरेमिक उत्पाद पूरे साल बेचे जाते हैं। इससे हमें अच्छा मुनाफा होता है। और अगर प्लान ए और बी, दोनों काम नहीं करते तो हमारे पास प्लान सी भी है। वह कहती हैं, ‘‘जो महिलाएं अपने व्यवसाय में कुछ नया करना चाहती हैं, उन्हें खुद पर भरोसा होना चाहिए, नए विचारों के साथ आना चाहिए और रचनात्मकता का उपयोग इस तरह करना चाहिए जिससे उन्हें फायदा हो।’’

महिला उद्यमियों को तैयार करना

सेवा की शुरुआत 1972 में ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए हुई थी। सेवा की लीड ऑफ ऑपरेशंस सोनल पारेख बताती हैं कि 2015 में ऐसे खाद्य पदार्थों को तैयार करने के लिए गांधीनगर में कमला बेकरी शुरू की गई जिन्हें लोग भुला बैठे थे। शुरुआत में पारेख और उनकी  टीम ने खाद्य क्षेत्र में बुनियादी प्रशिक्षण प्राप्त किया। उन्होंने रागी, गेहूं और जई से बिस्कुट बनाना शुरू कर दिया। 2021 में एडब्लूई के 13 प्रशिक्षण मॉड्यूल के माध्यम से टीम ने मार्केटिंग, ब्रांडिंग, प्रमोशन, उत्पादों को उपभोक्ताओं तक पहुंचाना सुनिश्चित करना, प्रेजेंटेशन और अपने व्यवसाय के लिए सोशल मीडिया मार्केंटिंग जैसी मूल बातों को सीखा।

19 वर्षों से सेवा के साथ बनी रहने वाली पारेख कहती हैं, ‘‘एडब्लूई का यह प्रशिक्षण मुझे गौरवान्वित महसूस कराता है। मैं 2004 में एक गृहिणी के रूप में सेवा में शामिल हुई थी और अब मैं दूसरी महिलाओं का व्यवसाय मालिक बनने के लिए मार्गदर्शन करने में सक्षम हूं। मैं इस सेटअप का हिस्सा बन कर यहां की अधिकतम महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना चाहती हूं।’’

 स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा

गुजरात के पाटन में रशीदा सैयद, सेवा की निदेशक रीमा नानावती  के सहयोग से 2012 में शुरू किए गए एक ग्रामीण उद्यम हरकी गारमेंट्स के संचालन का नेतृत्व करती हैं।

रशीदा बताती हैं कि वह अपने पिता और बड़ी बहन के कहने पर 1996 में सेवा में शामिल हुई थीं। जब उन्होंने काम शुरू किया तो उन्होंने केवल सिलाई के काम का केवल बुनियादी प्रशिक्षण लिया। दशकों बाद, जब सेवा ने एडब्लूई प्रशिक्षण की सुविधा मुहैया कराई, तो रशीदा और उनकी टीम ने विपणन और उत्पादन कौशल का काम सीखा और मार्केटिंग योजनाएं तैयार करने में सक्षम बनीं।

एडब्लूई प्रशिक्षण के बाद हरकी में प्रशिक्षक माहिरा को अपनी युवा टीम में एक अवसर दिखाई दिया। वह बताती हैं, ‘‘हमने सोचा क्यों न हरकी को सोशल माडिया पर प्रचारित किया जाए, हरकी में हमारे सहकर्मी बारी-बारी से मॉडलिंग करते हैं और एक-दूसरे की तस्वीरें खींचते हैं और ऐसा करके आनंदित होते हैं।’’

रशीदा के लिए हरकी की सफलता ही उनकी सफलता है। वह कहती हैं, ‘‘मैं बहुत सारी महिलाओं को प्रशिक्षण दे रही हूं और उन्हें रोज़गार के अवसर दे रही हूं। ऐसा करके मैं गौरव महसूस करती हूं। यहां हमारा एक सपना है, हमारे परिधान सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में पहने जाएं।’’

आज़ादी की डगर

सविता डकले महाराष्ट्र के औरंगाबाद में एक किसान और उद्यमी हैं। वह बताती हैं कि शुरुआत में परिवार की कम कमाई से घर चलाना और अपने बच्चों को पढ़ाना मुश्किल था। वह कहती हैं, ‘‘इसीलिए मैंने फैसला किया कि अन्य महिलाओ की तरह मैं भी एक व्यवसाय शुरू करूंगी।’’

डकले का परिवार मसूर की खेती करता है और अब वह एडब्लूई प्रशिक्षण की बदौलत कृषि उपज की पैकेजिंग, लेबलिंग और बिक्री करती हैं। वह कहती हैं, ‘‘मुझे नहीं पता था कि ये सब कैसे करना है। एडब्लूई प्रशिक्षण में मैंने बहुत कुछ सीखा- जैसे, एक व्यवसाय केंद्र ढूंढ़ना, अपने उत्पाद का विपणन करना और उसे बाजार तक पहुंचाना एवं उसका मूल्य निर्धारण करना आदि।’’

डकले को मिले प्रशिक्षण ने उसे एक व्यवसाय को तैयार करने और उसे सफल बनाने का अवसर दिया है। वह आर्थिक आत्मनिर्भरता की चाहत रखने वाली अन्य महिलाओं के लिए भी प्रेरणा हैं। उनका कहना है, ‘‘मेरे जैसी कई महिलाएं व्यवसाय चलाने के लिए प्रशिक्षण में शामिल हुईं और हम सभी एक-दूसरे की मदद करते हुए काम करते हैं- यह मेरे लिए गर्व की बात है। भविष्य में मैं अपने कारोबार का विस्तार करना चाहती हूं और साथ ही यह भी चाहती हूं कि सभी घरों में मेरी तरह स्वतंत्र महिलाएं हों।’’


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