पृथ्वी की निगरानी के लिए नासा और इसरो के संयुक्त अभियान निसार का उद्देश्य हमारे ग्रह की सतह पर होने वाले बदलावों के आकलन के अलावा प्राकृतिक आपदाओं और वैश्विक पर्यावरण में परिवर्तनों का अध्ययन करना भी है।
सितम्बर 2020
उस दुनिया की कल्पना कीजिए जहां वैज्ञानिक ग्लेशियरों, समुद्र तल, फसलों, नदियों के जल स्तर और यहां तक कि ज्वालामुखियों में होने वाले छोटे से छोटे बदलाव को देख सकें और वह भी इससे पहले कि उनसे बड़े पैमाने पर कोई आपदा आए।
ऐसा शायद जल्दी ही हकीकत में तब्दील हो जाए। नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) के बीच भागीदारी से ऐसा संभव हो सकता है। इन दोनों अंतरिक्ष संस्थानों ने मिलकर नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रेडार (निसार) का डिज़ाइन तैयार किया है। यह दोहरी फ्रीक्वेंसी वाला अपने किस्म का पहला रेडार सिस्टम है जो किसी सेटेलाइट में लगाया जाएगा और उसके जरिए आपदाओं और वैश्विक पर्यावरण परिवर्तनों का अध्ययन किया जाएगा। सिंथेटिक एपर्चर रेडार उस तकनीक की तरफ इशारा करती है जिससे सीमित रिजोल्यूशन वाले रेडार सिस्टम से बेहतरीन रिजोल्यूशन वाली तस्वीरों को हासिल किया जा सकेगा। निसार के माध्यम से पृथ्वी की बदलती पारिस्थितकी, गतिमान सतहों और बर्फीले क्षेत्रों, बायोमास के बारे में सूचनाएं, प्राकृतिक आपदाओं, समुद्र स्तर के उठने, भूजल के अध्ययन के अलावा तमाम दूसरी चीजों को समझने में भी मदद मिलेगी। निसार को वर्ष 2022 में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपित किए जाने की योजना है।
नासा के पृथ्वी विज्ञान डिविज़न के निदेशक कैरेन एम. सेंट जर्मेन के अनुसार, ‘‘नासा और इसरो के बीच सहभागिता का एक समृद्ध इतिहास रहा है। शुरुआती दिनों में 1960 के दशक के प्रारंभ में नासा ने इसरो के पूर्वगामी संस्थान (इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च) के वैज्ञानिक अध्ययन के लिए साउंडिग रॉकेट के प्रक्षेपण में मदद की थी। उसके बाद से नासा और इसरो ने विभिन्न क्षेत्रों में एक दूसरे का सहयोग किया जिसमें चंद्रमा पर भेजा गया एक मिशन भी शामिल है।’’
निसार इन दोनों अंतरिक्ष संस्थानों में सहयोग की पटकथा का अगला अध्याय है। जर्मेन के अनुसार, ‘‘नासा का अधिकतर अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक गतिविधियों में जहां भी जुड़ाव है, वहां एक मुख्य भागीदार और एक सहयोगी भागीदार होता है। लेकिन निसार इस मामले में अपवाद है।’’ वह बताते हैं, ‘‘नासा और इसरो एक-दूसरे के साथ बराबरी की भागीदारी के साथ काफी निकटता से काम कर रहे हैं और दोनों ही एजेंसियां मिशन के लिए महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। ऐसे बड़े और इतनी जटिलताओं से भरे प्रोजेक्ट में सफल होने का एक ही रास्ता है और वह है दोनों एजेंसियों का प्रोजेक्ट और एक-दूसरे के प्रति पूर्ण प्रतिबद्धता का भाव।’’
इस मिशन के लिए नासा एल-बैंड सिंथेटिक एपर्चर रेडार, वैज्ञानिक डेटा हासिल करने के लिए हाई-रेट कम्युनिकशन सबसिस्टम, जीपीएस रिसीवर, सॉलिड स्टेट रिकॉर्डर और पेलोड डेटा सबसिस्टम उपलब्ध करा रहा है जबकि इसरो स्पेसक्राफ्ट बस, एस-बैंड रेडार, लांच व्हीकल और लॉंचिंग से जुड़ी दूसरी सेवाएं मुहैया करा रहा है।
इसरो के निसार प्रोजेक्ट के निदेशक वी. राजू सागी का कहना है कि, रेडार सिस्टम पूरी पृथ्वी से जुड़े डेटा को सभी मौसमों में हासिल कर सकता है, चाहे दिन हो या रात। इसके चलते वैज्ञानिकों को जलवायु में बदलाव और पारिस्थितिकी में खलल के अलावा प्राकृतिक आपदाओं को समझने में आसानी होगी।
सागी इस मामले में जर्मेन से सहमत हैं कि यह एक आदर्श सहभागिता है। सागी के अनुसार, ‘‘हांलाकि दोनों टीमें एक-दूसरे से काफी दूर है, लेकिन वे एक-दूसरे के टाइमजोन के हिसाब से तालमेल बैठाते हुए अच्छा काम कर रही हैं। इसके अलावा वे संचार के उपलब्ध साधनों ईमेल, फोन और इंटरनेट के जरिए रोजाना एक-दूसरे के संपर्क में बनी हुई हैं।’’ वह बताते हैं, ‘‘टीमों में इस बात को लेकर इत्मीनान है कि उनके प्रोजेक्ट पर 24 घंटे काम चल रहा है। एक टीम जब सोने जाती है, दूसरी टीम पृथ्वी के दूसरे छोर पर काम में जुट जाती है। इसके अलावा, कभी-कभी इसरो और जेपीएल (नासा की जेट प्रपल्शन लैबोरेटरी) के बीच अच्छे माहौल में आमने-सामने की बैठक भी हो जाती है, जहां दोनों ही टीमें इस बात को स्वीकार करती हैं।’’
कैलिफ़ोर्निया में नासा के जेपीएल में निसार मिशन के प्रोजेक्ट साइंटिस्ट पॉल ए रोज़न के अनुसार, ‘‘मैं इस सहभागिता से बेहद उत्साहित हूं। यह एक बेहद महत्वाकांक्षी मिशन है। यह अंतरिक्ष में शायद भारत और अमेरिका के बीच सबसे बड़ी सहभागिता है।’’
सहभागिताएं तो करीब एक दशक से चल रही हैं। रोज़न के अनुसार, जेपीएल ने बहुत से देशों के साथ सहभागिताओं की कोशिश की लेकिन ‘‘बात कारगर नहीं रही।’’ वह बताते हैं, ‘‘तभी जेपीएल में हमारे एक प्रबंधक ने अपने भारतीय संबंधों के कारण हमें सुझाव दिया कि क्यों नहीं आप उनसे बात करके देखते हैं कि उनकी दिलचस्पी इसमें है या नहीं।’’ इस तरह, दिसंबर 2011 में मैं अकेले ही भारत की अपनी पहली यात्रा पर निकल पड़ा और वहां मैंने अपने मिशन के बारे में प्रजेंटेशन दिया। उनका कहना था कि, ‘‘हां, हम ठीक यही चीज़ करना चाह रहे थे।’’ इसकी विस्तृत रूपरेखा तैयार करने में दो से तीन साल लग गए। वह बताते हैं, ‘‘राष्ट्रपति बराक ओबामा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच मुलाकात के बाद इस समझौते पर अंतिम मुहर लग गई।’’
रोज़न का मानना है कि, उपग्रह की व्यवस्था को समग्रता में समझना अहम है। वह कहते हैं, ‘‘हम पृथ्वी पर रहते हैं तो हम यह समझते हैं कि हम पृथ्वी के बारे में सब कुछ जानते हैं लेकिन वास्तव में ऐसा है नहीं। निसार हमें रेडार की नज़र से गतिमान अवस्था में पृथ्वी की अभूतपूर्व तस्वीरें उपलब्ध कराएगा। यह वास्तव में बेहद दिलचस्प होगा। यह अपनी किस्म का पहला मिशन होगा जिससे समाज को काफी फायदा होगा।’’
लगातार डेटा मिलने से वैज्ञानिकों को तो फायदा होगा ही, साथ ही आपात सेवाओं से जुड़े लोगों को इससे जानकारी मिल सकेगी। इसके अलावा जिस किसी की भी दिलचस्पी होगी, उन्हें अपने प्रोजेक्ट के लिए निसार का डेटा का मिल सकेगा। रोज़न के अनुसार, ‘‘निसार खुद से इतना डेटा हासिल कर सकेगा जितना नासा ने अब तक दूसरे मिशनों से अपने पूरे इतिहास में हासिल नहीं किया होगा।’’
हालांकि कोरोना वायरस के कारण इसकी प्रगति पर असर पड़ा है, लेकिन इसके भविष्य को लेकर रोज़न अभी भी काफी आशान्वित हैं। वह कहते हैं, ‘‘यह कोविड-19 की स्थिति वास्तव में दुर्भाग्य से एक बाधाजनक वक्त है। हम बस इसरो के मुख्य हार्डवेयर को अपने मुख्य हार्डवेयर के साथ लाने की स्थिति में आने वाले थे।’’ उनका कहना है, ‘‘लेकिन हम इस मिशन के लिए काफी वक्त से इंतजार कर रहे थे और ऐसे में एक और साल का लगना, इसे कम महत्वपूर्ण नहीं बना पाएगा।’’
कैनडिस याकोनो पत्रिकाओं और समाचारपत्रों के लिए लिखती हैं। वह दक्षिणी कैलिफ़ोर्निया में रहती हैं।
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