एक-दूसरे देशों की जनता के बीच मज़बूत संबंधों का इतिहास 200 सालों से भी ज़्यादा पुराना है। यह अमेरिका के शुरुआती दिनों और भारत की आज़ादी से काफी पहले की दास्तां है। जनवरी 2020
जनवरी 2021
फ़र्स्ट लेडी मेलानिया ट्रंप (2020) और फ़र्स्ट लेडी मिशेल ओबामा (2010) ने क्रमश: नई दिल्ली और मुंबई में भारतीय बच्चों के साथ वक्त बिताया। आधिकारिक व्हाइट हाउस फोटो/एंड्रिया हैंक्स (बाएं) और आधिकारिक व्हाइट हाउस फोटो/पीट सूज़ा (दाएं)
अमेरिका और भारत वैसे तो हिंद-प्रशांत क्षेत्र के दो विपरीत छोरों पर स्थित हैं, लेकिन दोनों देशों के लोगों के बीच निजी संपर्कों और आपसी मेल-मिलाप के कारण संबंधों में प्रगाढ़ता लगातार बढ़ती रही है। दुनिया में कम ही ऐसे देश हैं, जिनके साथ जनता के स्तर पर संपर्क इतने मज़बूत और सकारात्मक हैं। ऐसे संपर्कों से हमारे देशों को सीधा फायदा पहुंचता है जिसमें कारोबार और निवेश का बढ़ना तो शामिल है ही, साथ ही इसमें विभिन्न क्षेत्रों की श्रेष्ठ परंपराओं को बांटना, संस्कृति और धर्म को साझा करना और अध्ययन और शोध के अवसरों का मिलना भी शामिल है।
लोगों के बीच आपसी संबंधों का लंबा एवं विविध इतिहास
एक-दूसरे देशों की जनता के बीच मज़बूत संबंधों का इतिहास 200 सालों से भी ज़्यादा पुराना है। यह अमेरिका के शुरुआती दिनों और भारत की आज़ादी से काफी पहले की दास्तां है। अमेरिकियों और भारतीयों के बीच शुरुआती संबंधों का कारण व्यापार रहा जिसकी बुनियाद कैप्टेन थॉमस बेल की दिसंबर 1784 में पुदुच्चेरी और चेन्नई यात्रा से पड़ी। उन्होंने अमने समुद्री जहाज का नाम युनाइटेड स्टेट्स रखा था। कैप्टेन बेल अपने जहाज में तंबाकू, वर्जीनिया की औषधीय वनस्पति जिनसेंग और हार्डवेयर का कुछ सामान लेकर आए थे। तब अरकॉट, जिसे आज तमिलनाडु के नाम से जाना जाता है, के नवाब ने उनका मैत्रीपूर्ण स्वागत किया था। दरअसल, वह यात्रा इतनी बेहतरीन रही कि जहाज के चालक दल के एक सदस्य विलियम मूर ने भारत में ही रुक कर पुदुच्चेरी में एक वेयरहाउस के प्रबंधन का फैसला कर लिया।
19 वीं सदी में, ज्यादातर अमेरिकियों ने कारोबार के लिए भारत की यात्रा की लेकिन धार्मिक, शैक्षिक और चिकित्सा के उद्देश्यों से भी यात्राएं की गई। सदी के बाद के वर्षों में, भारतीयों ने कई दूसरी वजहों के अलावा, उच्च शिक्षा, आर्थिक अवसरों की खोज और पारंपरिक भारतीय औषधियों को बेचने के लिए अमेरिका की यात्रा करनी शुरू की। 1893 में शिकागो में विश्व धर्म संसद में हिंदुत्व पर स्वामी विवेकानंद के भाषण से दुनिया को भारत के बारे में जानने में मदद मिली। उन्होंने अपनी दो अलग-अलग यात्राओं में दो साल अमेरिका में एक छोर से दूसरे छोर की यात्रा की और इस दौरान उन्होंने वहां वेदांत दर्शन केंद्रों की स्थापना की और अमेरिकियों को योग से परिचित कराया।
भारतीय प्रवासियों की पहली बड़ी खेप अमेरिका में 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में देखने को मिली। पंजाब से बहुत से लोग कृषि कार्यों के लिए कैलिफ़ोर्निया गए। दूसरे प्रवासियों में बंगाली मुसलमान कारोबारी थे जो न्यू यॉर्क और न्यू ऑर्लिएंस जैसे शहरों में पहुंचे। बहुत-से भारतीयों ने सामाजिक बेडि़यों को तोड़ा और उन्होंने अमेरिका में नागरिक अधिकारों में योगदान दिया। वर्ष 1913 में कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी, बर्कली में पढ़ाई के लिए पहंचे भगत सिंह थिंड इस मामले में अग्रणी रहे। वह पहले विश्व युद्ध में अमेरिकी सेना में शामिल हुए और उन्होंने सेवा के दौरान पगड़ी पहनने की अनुमति हासिल की। उन्होंने पीएच.डी. करने के बाद वहीं मेटाफिजिक्स और धर्म अध्ययन विषय में व्याख्याता बन कर शिक्षण कार्य किया।
19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में अमेरिकी बहुत से कारणों से भारत आने लगे जिसमें, कारोबार के मौकों की तलाश, मिशिनरी के रूप में सेवा करना, भारत की संस्कृति और धर्म को समझने और स्वास्थ्य और दूसरे मसलों पर काम जैसे विषय शामिल हैं। बहुत-से भारतीयों की अमेरिकियों से पहली बार मुलाकात द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुई जब करीब 4 लाख अमेरिकी सैनिक कोलकाता और भारत के उत्तर-पूर्व के इलाकों में तैनात थे।
भारत को आज़ादी मिलने और अमेरिकी इमिग्रेशन कानूनों में ढील के बाद दोनों देशों के लोगों के बीच संपर्कों में तेजी से बढ़ोतरी हुई। बड़ी तादाद में भारतीय पारिवारिक संबंधों, अध्ययन और पेशेगत अवसरों की तलाश में अमेरिका पहुंचे। भारतीय-अमेरिकियों ने खासतौर पर चिकित्सा, विज्ञान, कारोबार और लोक सेवाओं के क्षेत्र में नाम कमाया। कैलिफ़ोर्निया के दलीप सिंह सौंध पहले भारतीय-अमेरिकी थे जो 1956 में अमेरिकी कांग्रेस के लिए निर्वाचित हुए। इसी दौर में, पहले से ज्यादा अमेरिकियों ने कारोबार, पर्यटन और पारिवारिक संपर्कों के सिलसिले में भारत की यात्रा की।
अमेरिका और भारत की सरकारों ने लोगों के बीच इस तरह के पारस्परिक संपर्कों को प्रोत्साहन दिया। 1950 में शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग के लिए अमेरिका-भारत के बीच समझौता किया गया। समझौता पत्र पर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और अमेरिकी राजदूत लॉय हेंडरसन ने दस्तखत किए और इसी समझौते के तहत भारत में फुलब्राइट ़फेलोशिप शुरू की गई। अमेरिका के निजी विश्वविद्यालयों और फोर्ड और रॉकफेलर जैसी अलाभकारी संस्थाओं ने भारत में शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना में मदद की और साथ ही अमेरिकी समकक्षों के साथ सहयोग में मदद की। 1990 और 2000 के दशक में लोगों के बीच आपसी संबंधों को ऱफ्तार मिली जब भारतीय अर्थव्यवस्था को खोला गया और वैश्वीकरण ने यात्रा और संचार को सुगम बनाया।
यात्राएं बढ़ने के साथ लोगों के बीच संबंधों में में ताज़ा विस्तार
पिछले कुछ वर्षों में कई क्षेत्रों में लोगों के बीच संबंधों को विस्तार मिला है। अमेरिका और भारत के बीच यात्रा और पर्यटन के विकास से हमारे लोगों के बीच पहले के मुकाबले सीधा संपर्क काफी बढ़ गया है। साल 2019 में 15 लाख भारतीयों ने अमेरिका की यात्रा की और अमेरिकी अर्थव्यवस्था में 14 अरब डॉलर का योगदान किया। इसी दौरान, भारत की यात्रा पर आने वाले विदेशी पर्यटकों में 2019 में 14 लाख 60 हज़ार अमेरिकी भारत की यात्रा पर आए जो कि बांग्लादेश के बाद दूसरी सबसे ज्यादा संख्या थी। उनकी भारत यात्रा के कई कारण रहे जैसे कि, परिवार से मिलने, पर्यटन, अकादमिक शोध, योगाभ्यास और मेडिकल टूरिज्म आदि। दोनों ही सरकारों ने ऐसी यात्राओं को सुविधाजनक बनाने की कोशिश की और नई जगहों पर कांसुलेट खोले गए और कर्मचारियों की संख्या बढ़ाई गई।
आज, नई दिल्ली में दूतावास के अलावा, चेन्नई, हैदराबाद, कोलकाता और मुंबई में अमेरिका के कांसुलेट हैं। पिछले 10 वर्षों में दूतावास और कांसुलेट ने दो लाख 50 हजार इमिग्रेंट वीज़ा और 70 लाख से ज्यादा नॉन इमिग्रेंट वीज़ा जारी किए हैं जिसमें 5 लाख के करीब नॉन इमिग्रेंट विद्यार्जी वीज़ा भी शामिल हैं। पिछले सात वर्षों में भारत में अमेरिकी मिशन में तैनात कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने के साथ वीज़ा प्रक्रिया को तेज किया गया क्योंकि इस दौरान भारतीयों की तरफ से वीज़ा आवेदन में 45 प्रतिशत वृद्धि दज़र् की गई। वॉशिंगटन, डी.सी. में दूतावास के अलावा भारत के अटलांटा, शिकागो, ह्यूस्टन और सैन फ्रांसिस्को में कांसुलेट हैं।
अमेरिका और भारत की बीच पेशेगत यात्राएं भी काफी हैं। ऐसी यात्राओं में कारोबार से जुड़े लोग कभी बैठकों और बातचीत के लिए अपने कॉरपोरेट ऑफ़िस की यात्रा पर जाते हैं, वैज्ञानिक और डॉक्टर अपनी कॉंफ्रेंसों के लिए आते-जाते हैं, एथलीट और कलाकार प्रतिस्पर्धा और प्रस्तुतियों के सिलसिले में यात्रा करते हैं और शिप क्रू माल को लाने और ले जाने या क्रूज शिप को बंदरगाहों तक पहुंचाने के लिए जाते हैं। विमान सेवाओं और होटलों पर खर्च होने वाले डॉलरों और रुपयों से कहीं आगे ऐसी यात्राओं का विचारों को साझा करने, नवोन्मेष को प्रोत्साहन देने, ज्ञान के दायरे में विस्तार और हमारे लोगों के जीवन को परिष्कृत करने में योगदान होता है। अमेरिका और भारत के विश्वविद्यालय संयुक्त शोध को भी बढ़ा रहे हैं। दूसरी, उपलब्धियों के अलावा ऐसी सहभागिताओं ने अमेरिका में इलाज के खर्च को घटाने और भारत में वायु और जल प्रदूषण की निगरानी को बेहतर बनाने में योगदान दिया है।
भारतीय-अमेरिकी प्रवासी: दो संस्कृतियां साथ-साथ
अमेरिका-भारत के लोगों के बीच संपर्क में भारतीय-अमेरिकी प्रवासियों की अहम भूमिका रही है जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र के आरपार एक जीवंत सेतु का काम करते हैं। भारत के विभिन्न इलाकों से आने वाले ये लोग अमेरिका के विभिन्न क्षेत्रों में फैले हुए हैं और इस समुदाय के लोग दोनों देशों के प्रतिनिधित्व का काम कर रहे हैं। प्रतिभा और ऊर्जा से भरपूर ये लोग, विचार, संस्कृति, ज्ञान, वित्त और निजी संबंधों में प्रगाढ़ता के साझेदार होते हैं। अमेरिका-भारत सहभागिता की यही खूबसूरती है, यह दोनों देशों के लोगों पर केंद्रित है, न कि सरकारों से निर्देशित है।
हाल ही में अमेरिकी-भारतीय प्रवासियों की संख्या और उपलब्धियों में बढ़ोतरी ने द्विपक्षीय संबंधों पर गहरे तक असर डाला है। साल 2010 से 2020 के बीच अमेरिका में भारतीयों और भारतीय-अमेरिकियों की संख्या 40 प्रतिशत बढ़कर करीब 40 लाख तक पहुंच गई है। अमेरिकी-भारतीयों ने तकरीबन हर क्षेत्र में ज़बर्दस्त तरक्की की क्षमता का प्रदर्शन किया है और शिक्षा से लेकर चिकित्सा, कानून से लेकर कारोबार और कला से लेकर लोकसेवा तक सभी में कामयाबी हासिल की है।
एक समूह के रूप में भारतीय-अमेरिकियों को अमेरिका में आमतौर पर सबसे ज्यादा पढ़ा-लिखा, शिक्षित, और खूब पैसे कमाने वाला माना जाता है। अमेरिका में जिन प्रवासियों ने स्टार्ट-अप की स्थापना की, उनमें से 33 प्रतिशत अकेले भारतीय- अमेरिकी हैं और यह संख्या किसी भी दूसरे देश के प्रवासी समूहों के मुकाबले बहुत ज्यादा है। बहुत-से सफल भारतीय-अमेरिकियों ने भारत लौटकर यहां कंपनियां शुरू करके और स्टार्ट-अप में निवेश करके रोज़गार के मौके पैदा किए और ज्ञान का विस्तार किया। उन्होंने शोध के क्षेत्र में सहभागिता के अलावा भारतीय विश्वविद्यालयों के साथ विद्यार्थियों के आदान-प्रदान की पहल की।
भारतीय-अमेरिकियों ने इस बात को प्रदर्शित किया है कि उन्होंने एक समूह के रूप में संगठित होकर अमेरिका की सिविल सोसायटी में अपना योगदान दिया है। इसमें स्थानीय सरकारों में अमेरिकी परंपराओं के अनुरूप नागरिक सहभागिता की बात हो, या भारतीय परंपराओं के हिसाब से ग्राम परिषदें या पंचायत हों या फिर आर्यसमाज जैसे आंदोलन हो। भारतीय-अमेरिकियों ने राज्य आधारित समूहों जैसे कि, नॉर्थ अमेरिकन पंजाबी एसोसिएशन के अलावा प्रोफेशनल एसोसिएशन जैसे कि, एशियन अमेरिकन होटल ऑनर्स एसोसिएशन और युनाइटेड स्टेट्स इंडिया पॉलिटिकल एक्शन कमेटी जैसे राजनीतिक समूह का गठन भी किया है।
भारतीय अमेरिकियों ने काफी मात्रा में भारत को सहायता सामग्री उपलब्ध कराई है जो दोनों देशों में उनके कठिन परिश्रम और चैरिटी की परिचायक है। ऐसी सहायता में सबसे बड़ा हिस्सा निजी तौर पर पैसे भेजने का है। लेकिन इसके अलावा भी दूसरे रास्तों से मदद की गई है जैसे कि, भारतीय स्टार्ट-अप के लिए वेंचर कैपिटल फंड और अमेरिकन इंडिया फाउंडेशन जैसे परोपकारी संगठनों की सहायता के लिए संसाधनों को जुटाना। साल 2017 में, अमेरिका से भारत में 11.7 अरब डॉलर से ज्यादा रकम भेजी गई।
शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ते संबंध
हाल के वर्षों में अमेरिका और भारत के शिक्षा संपर्कों में उल्लेखनीय विस्तार देखने को मिला है। इसमें उच्च शिक्षा में पंजीकरण, संयुक्त स्कॉलरशिप, संस्थागत सहयोग और शिक्षा क्षेत्र में सरकारों के स्तर पर बातचीत शामिल है। इन संपर्कों के कारण हमारी अर्थव्यवस्थाओं को मज़बूती मिली, विभिन्न क्षेत्रों में हमारी जानकारियों में इजाफा हुआ, एक-दूसरे के प्रति समझ बेहतर बनी और हमारे समाज भी परिष्कृत हुए।
अमेरिकी उच्च शिक्षा में भारतीय सहभागिता विशेष तौर पर बहुत मज़बूत है। बहुत-से अमेरिकी भारतीय नागरिकों से पहली बार अमेरिकी कॉलेज कैंपस में मिलते हैं जबकि बहुत-से भारतीयों को अमेरिका के बारे में जानकारी अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पढ़ाई कर रहे अपने रिश्तेदारों से व्हाट्सएप कॉल के जरिए मिलती है। पढ़ाई के लिए विदेश जाने वाले सबसे ज्यादा भारतीय विद्यार्थी अमेरिका आते हैं, जबकि अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पढ़ाई करने वाले विदेशी विद्यार्थियों में दूसरा सबसे बड़ा समूह भारतीय विद्यार्थियों का है।
वर्ष 2010 के बाद से अमेरिका में भारतीय विद्यार्थियों की संख्या लगभग दोगुनी हो चुकी है। साल 2018-19 में पहली बार यह संख्या 2 लाख से अधिक हो गई। अब अमेरिका में आने वाले हर पांच में से एक विदेशी विद्यार्थी भारतीय होता है। इसके अतिरिक्त, भारतीय विश्वविद्यालयों में अमेरिकी विद्यार्थियों की तादाद भी लगातार बढ़ रही है और वे तमाम विषयोें जिसमें भाषा, इतिहास, संस्कृति, लोक स्वास्थ्य और अर्थशास्त्र शामिल हैं, के अध्ययन के लिए पंजीकृत हो रहे हैं।
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में यह सहयोग सिर्फ विद्यार्थियों के पंजीकरण तक ही सीमित नहीं है। अमेरिका-भारत सहभागिता में इस क्षेत्र में संस्थागत सहयोग, शिक्षा पर आधिकारिक वार्ता भी महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। अमेरिकी विश्वविद्यालयों में अध्यापन करने या उनका नेतृत्व करने वाले भारतीयों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है, जैसे, कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी, सैन डिएगो के चांसलर डॉ. प्रदीप खोसला हैं, जबकि, डॉ. नितिन नोहरिया, हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल के डीन का दायित्व निभा रहे हैं। अमेरिकी विश्वविद्यालयों में शिक्षण और शोध के अवसरों में भारतीय कंपनियां, फाउंडेशन और सरकारी एजेंसियां भी मदद करती हैं।
भारत में भी ठीक ऐसा ही हो रहा है। बहुत-से अमेरिकी तमाम निजी विश्वविद्यालयों में प्रो़फेसर और एडमिनिस्ट्रेटर के रूप में काम कर रहे हैं। डॉ. सुंदर रामास्वामी, क्रिया यूनिवर्सिटी में वाइसस चांसलर हैं, जबकि डॉ. वनिता शास्त्री अशोका यूनिवर्सिटी में डीन, ग्लोबल एजुकेशन और स्ट्रेटेजिक प्रोग्राम का दायित्व निभा रही हैं। अमेरिका में भी भारत और दक्षिण एशिया से जुड़़े कई शैक्षिक कार्यक्रमों को शुरू किया गया, जबकि भारत में भी अमेरिकी अध्ययन से जुड़े प्रोग्राम शुरू किए गए। कई अमेरिकी और भारतीय विश्वविद्यालयों ने शिक्षकों, विद्यार्थियों, पाठ्यक्रम और श्रेष्ठ नीतियों के आदान-प्रदान के लिए सीधी भागीदारी या कंसर्शियम शुरु किए हैं।
साल 2012 से आयोवा यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी भारतीय विश्वविद्यालयों और सिविल सोसायटी संगठनों में अपने साथियों से सहयोग के लिए हर बार सर्दियों में भारत की तीन ह़फ्तों की यात्रा पर गए हैं। 2018 में उदाहरण के लिए, आयोवा के विद्यार्थियों ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की के साथ सहभागिता में जल सदाजीविता पर एक संयुक्त शोध प्रोजेक्ट पर काम किया। यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिनेसोटा स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के विद्यार्थियों ने विश्व स्वास्थ्य से जुड़े मसलों पर शोध के लिए पश्चिम बंगाल और कर्नाटक की यात्रा की और कोलकाता के जन सेवा स्कूल और मेंगलुरू के एनआईटीटीई (डीम्ड यूनिवर्सिटी) की लोक स्वास्थ्य शाखा के साथ सहभागिता की। इस तरह के संपर्क महत्वपूर्ण हैं, लेकिन अमेरिकी विश्वविद्यालयों की भारत में मौजूदगी के जरिये उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग के विस्तार की काफी गुंजाइश है।
एक्सचेंज प्रोगामों ने अमेरिका और भारत के नीति निर्धारकों, स्कॉलरों, विद्यार्थियों और विशेषज्ञों के बीच सीधा संवाद स्थापित करने में बेहद अहम भूमिका निभाई है। सफल एक्सचेंज प्रोग्रामों को दोनों ही देशों की सरकारों से मदद मिली है। शायद, इस संदर्भ में जिसे सबसे ज्यादा जाना जाता है, वह है 70 सालों से जारी फुलब्राइट-नेहरू प्रोग्राम। इस प्रोग्राम को साल 2008 से दोनों ही देशों की सरकारों की तरफ से संयुक्त रूप से फंड किया जा रहा है और इसके तहत दोनों ही देशों के सैंकड़ों स्कॉलर हर साल एक-दूसरे के देशों में जाकर वैयक्तिक, अकादमिक और पेशेगत विकास के अवसर हासिल करते हैं। फुलब्राइटट-नेहरू प्रोग्राम से जुड़े लोग जीवन के कई क्षेत्रों में अग्रणी स्थान पर हैं जिसमें कृषि, कला, कारोबार, शिक्षा, पर्यावरण, मानविकी और समाज विज्ञान, लोक स्वास्थ्य और तकनीक जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
अमेरिकी सरकार कई दूसरे एक्सचेंज प्रोग्रामों में भी सहायता देती है जिसमें इंटरनेशनल विजिटर लीडरशिप प्रोग्राम भी शामिल है जिसके अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े सैंकड़ों अग्रणी भारतीय हर साल अध्ययन के लिए लघु यात्रा पर अमेरिका जाते हैं। भारत सरकार ने भी हाल के वर्षों में अमेरिकी नागरिकों के लिए एक्सचेंज प्रोग्रामों में विस्तार किया है और इसमें निर्वाचित अधिकारी, स्कॉलर, राजनयिक और प्रवासियों को शामिल किया है। इसके अतिरिक्त, अमेरिकन इंडिया फाउंडेशन और रोटरी इंटरनेशनल जैसे अलाभकारी समूह भी एक्सचेंज फेलोशिप को प्रायोजित करते हैं।
पिछले पांच वर्षों में, भारत स्थित अमेरिकी मिशन ने एजूकेशन यूएसए के सलाहकार केंद्रों की संख्या में बढ़ोतरी की है। भारत में, नई दिल्ली, हैदराबाद, चेन्नई, कोलकाता, बेंगलुरू, अहमदाबाद और मुंबई जैसी जगहों पर ऐसे सात सलाहकार केंद्र स्थापित हैं। 2021 की शुरुआत में हैदराबाद में एक और सलाहकार केंद्र खोला जाने वाला है। इन केंद्रो से भारतीय विद्यार्थियों को अमेरिका में पढ़ाई के अवसरों से संबंधित सटीक और समग्र जानकारी उपलब्ध हो जाती है। अमेरिकी विदेश विभाग ने हाल ही में नेब्रास्का ओमाहा यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर पार्टनरशिप 2020 पहल शुरू की है। इस पहल के तहत भारतीय विश्वविद्यालयों के साथ गठजोड़ को विस्तार दिया गया है ताकि आर्थिक विकास के लिए उच्च शिक्षा माध्यम बन सके। ऐसा ही एक गठजोड़ है, साउथ कैरोलाइना की क्लैफलिन यूनिवर्सिटी और कोलकाता की विश्व भारती यूनिवर्सिटी के बीच। इसके तहत छोटे उद्यम चलाने वाली महिला उद्यमियों में प्रबंधकीय हुनर को विकसित करने में मदद देने की व्यवस्था है।
संस्कृति, खानपान और खेलों का सेतु
एक-दूसरे की संस्कृति, खानपान और खेलों से मेलजोल ने हमारे दोनों देशों को और करीब ला खड़ा किया है। अमेरिका में योग का अभ्यास बहुत तेजी से बढ़ा है और हर तीन में से एक अमेरिकी ने इसको आजमाया है। अमेरिकी भारतीय भोजन को पसंद करते हैं, चाहे बात वॉशिंगटन, डी.सी. स्थित रशिका या न्यू यॉर्क स्थित टैमेरिंड ट्रिबेका जैसे ऊंचे दज़र्े के रेस्तरां की हो या फिर बावर्ची बिरयानी जैसी कम खर्चे वाली शृंखला की। इंडियन एक्सेंट जैसे कई भारतीय रेस्तरांओं ने अमेरिका में अपनी शाखा खोल रखी है। पद्म लक्ष्मी और ़फ्लॉयड कार्डोज़ जैसे भारतीय-अमेरिकी शेफ आज राष्ट्रीय सेलेब्रिटी बन चुके हैं और उन्होंने भारतीय भोजन के बारे में अमेरिकियों को काफी कुछ सिखाया है।
अमेरिकियों को अरुंधती रॉय और चेतन भगत जैसे लेखकों के बारे में और दंगल जैसी फ़िल्म के बारे में भी जानकारी है। भारतीय अभिनेता भी वहां काफी लोकप्रिय है। प्रियंका चोपड़ा ने खुद को हॉलीवुड में स्थापित कर लिया है जबकि भारतीय अमेरिकी मिंडी कालिंग और काल पेन का नाम यहां घर-घर में जाना जाता है। भारत सरकार, कर्नाटक संगीत और कत्थक नृत्य जैसी भारतीय शास्त्रीय कलाओं से अमेरिकियों को परिचित कराने के लिए कई कार्यक्रमों को प्रायोजित करती है।
क्रिकेट और कबड्डी जैसे खेलों की लोकप्रियता अमेरिका में बढ़ी है। वर्ष 2016 में गुजरात में आयोजित कबड्डी विश्व कप प्रतियोगिता में अमेरिका ने अपनी टीम भेजी थी। वर्ष 2017 में अमेरिका की नेशनल बास्केटबॉल एसोसिएशन ने इस खेल में भारतीय प्रतिभाओं को निखारने और दिलचस्पी पैदा करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में एनबीए एकेडमी शुरू की। एनबीए खेलों की पहली शृंखला 2019 में मुंबई में आयोजित की गई और इसके लिए आंशिक तौर पर एक टीम के भारतीय-अमेरिकी मालिक को शुक्रिया अदा करना चाहिए।
स्ट्रीमिंग मीडिया के विकास ने लाखों भारतीय घरों तक अमेरिकी टीवी और फिल्मों के बेहतर चयन के विकल्प को पहुंचाया है। लोकप्रिय हॉलीवुड ब्लॉकबस्टर के अलावा नेट़िफ्लक्स, अमेजन, यूट्यूब, और डिज़्नी प्लस हॉटस्टार ने उपभोक्ताओं के सामने नए विकल्प रखे हैं। फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप जैसे अमेरिकी सोशल मीडिया मंच भारतीयों को एक-दूसरे से जोड़ने में मददगार तो बने ही, साथ ही उनके माध्यम से वे अमेरिका में अपने परिजनों और दोस्तों के संपर्क में भी बने रहते हैं। अमेरिकी सरकार ने ब्लू ग्रास संगीत, आधुनिक नृत्य, बीटबॉक्सिंग, हिपहॉप म्यूज़िक और स्टैंडअप कॉमेडी जैसे अमेरिकी संस्कृति के विभिन्न आयामों को भारत में पहुंचाने में मदद की है।
अमेरिकी दूतावास ने एंबेसेडर्स फंड फॉर कल्चरल प्रिज़र्वेशन (एएफसीपी) के माध्यम से भारत की सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित करने में मदद की है। एएफसीपी के जरिए अमेरिकी दूतावास ने स्थानीय संगठनों के साथ मिलकर भारत की कई मह्त्वपूर्ण इमारतों के संरक्षण और मरम्मत के प्रयासों में सहभागिता की है। इन इमारतों में यूनेस्को की विश्व धरोहरों की सूची में शामिल नई दिल्ली का सुंदरवाला बुर्ज और बताशेवाला मुगल मकबरा परिसर और वाराणसी का 18वीं सदी का बालाजी घाट शामिल है। एएफसीपी ने राजस्थान और पश्चिम बंगाल में लोक संगीत परंपराओं के दस्तावेज़ीकरण के प्रोजेक्टों और बेंगलुरू में ताड़ के पत्तों पर लिखी पांडुलिपियों और दुर्लभ पुस्तकों के संरक्षण में भी मदद दी है। एएफसीपी प्रोजेक्टों की वित्तीय सहायता भारत भर में साल 2000 में 5,000 डॉलर से बढ़कर अब 16 लाख डॉलर तक पहुंच गई है।
भाषाएं जो हमें जोड़ती हैं
भारतीयों के अंग्रेजी भाषा के जानकार होने से अमेरिका और दुनिया के दूसरे देशों के साथ उसके संबंधों को बेहतर बनाने में मदद मिली है। इसके चलते, लॉस एंजिलीस स्थित अमेरिकी कंपनियों को हैदराबाद में बैठी भारतीयों कंपनियों को बिज़नेस प्रोसेस के काम का अनुबंध देने में या वैक्सीन पर शोध के सिलसिले में वैज्ञानिकों को साथ-साथ काम करने में और दूसरी तमाम चीज़ों के अलावा दोनों देशों की सेनाओं को संयुक्त अभ्यास करने में सहायता मिलती है। वर्ष 2015 से भारत में अमेरिकी दूतावास ने भारत में अंग्रेजी भाषा से जुड़े अपने कार्यक्रमों के लिए मदद पांच गुना कर दी है। ये कार्यक्रम आमतौर पर केंद्रीय और राज्य सरकारों के साथ या शैक्षिक संस्थाओं की सहभागिता में आयोजित किए जाते हैं।
ठीक इसी तरह से अमेरिकी भी भारतीय अंग्रेजी के साथ-साथ भारतीय भाषाओं जैसे हिंदी और तमिल से भी परिचित हो रहे हैं। अमेरिकी शायद इस बात को जानते होंगे कि वे योग के माध्यम से आसन और भोजन के जरिए डोसा और रायता जैसे भारतीय भाषाओं से जुड़े शब्दों को समझने लगे हैं। लेकिन हो सकता है कि उन्हें भारतीय भाषाओं से आधुनिक अंग्रेजी में शामिल हो गए बहुत से शब्दों के बारे में नहीं पता हो जैसे, गुरु, पायजामा, चिट, जगरनॉट, पंडित और पराया।
धर्म, जिसने बहुतों के जीवन को अर्थ दिया
अमेरिका और भारत साझा धर्मों के अभ्यास से भी एक-दूसरे के करीब आए हैं। हम दोनों ही देश सेक्युलर देश हैं जहां बहुत से धर्मों का सक्रियता से पालन करने वाले लोग रहते हैं। जैसे-जैसे अमेरिकी लोग प्रवासियों के जरिए भारतीय संस्कृति के संपर्क में आए तो उन्हें पता चला कि भारत, हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख जैसे कई धर्मों की जन्मस्थली रहा है। उन्हें यह भी पता चला कि भारत मुसलमानों, ईसाइयों और यहूदियों के गर्वीले समुदायों का भी लंबे समय से घर रहा है। भारतीय-अमेरिकियों की तादाद बढने के साथ हिंद-प्रशांत के आरपार धार्मिक संबंधों का भी विकास हुआ है। बहुत से धार्मिक संगठन दोनों ही देशों में सक्रिय हैं और वे धार्मिक प्रशिक्षण, फंड एकत्र करने और धार्मिक जीवन से जुड़े दूसरे पहलुओं में तालमेल का काम करते हैं।
हिंदू समूह बोचासनवासी श्री अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था (बीएपीएस) जैसे समूहों ने हाल के वर्षों मे दोनों देशों में खूबसूरत मंदिरों का निर्माण कराया है जिसमें साल 2014 में न्यू जर्सी में बना अक्षरधाम मंदिर भी शामिल है। सितंबर 2018 में शिकागो में हुई विश्व हिंदू कॉन्फ्रेंस से दुनिया भर के हज़ारों हिंदुओं को एकसाथ आने का मौका मिला। युनाइटेड सिख मूवमेंट ने बर्कली, कैलिफ़ोर्निया में पांचवीं सिख विद्यार्थी एसोसिएशन कॉन्फ्रेंस नवंबर 2019 में आयोजित की। वर्ष 1904 में सेंट लुइस, मिसूरी में अमेरिका में पहला जैन मंदिर प्रारंभ हुआ। अब कैलिफ़ोर्निया, न्यू यॉर्क, एरिज़ोना, इलिनॉय और कलैराडो जैसी तमाम जगहों पर अमेरिका भर में जैन कैंद्रों को देखा जा सकता है। भारत के बहुत-से कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट और अन्य चर्चों के अमेरिकी ईसाई समूहों से संपर्क हैं। भारत में धार्मिक तीर्थाटन पर जाना भी अमेरिकियों में खासा लोकप्रिय है।
चिंतन समूहों, मीडिया और सिविल सोसायटी से जीवन स्तर में सुधार
हाल के वर्षों में अमेरिका और भारत के चिंतन समूहों, मीडिया और सिविल सोसायटी समूहों के बीच संबंध मज़बूत हुए हैं। एस्पन, ब्रूकिंग्स और कार्नेगी जैसे प्रतिष्ठित अमेरिकी चिंतन समूहों ने भारत में अपने द़फ्तर खोले हैं या संपर्कों को स्थापित किया है। बहुत-से अन्य अमेरिकी चिंतन समूहों ने दक्षिण एशिया कार्यक्रमों को शुरू किया है या भारत के बारे में जानने वाले विशेषज्ञों की सेवाएं ली हैं। अमेरिका स्थित सेंटर फॉर नेवल एनेलिसिस और भारत स्थित नेशनल मैरिटाइम फाउंडेशन शोध और कॉन्फ्रेंसों के लिए लगातार सहभागिता में रहते हैं। भारतीय चिंतन समूहों ने भी अमेरिका में अपने द़फ्तर खोलना शुरू कर दिया है। इसमें ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन जैसे चिंतन समूह शामिल हैं।
अमेरिकी और भारतीय पत्रकारों और मीडिया समूहों के बीच सहभागिता बढ़ी है जिससे हमारे दोनों देशों में स्वतंत्र मीडिया के महत्व का पता चलता है। उदाहरण के लिए, भारत में मिंट अखबार की शुरुआत वॉल स्ट्रीट जनरल के संपादक रहे राजू नारिसेत्ती ने की। हमारे दोनों ही देशों में बड़ी तादाद में गैरसरकारी संगठन काम करते हैं। इनमें, भारत में अमेरिकन चैंबर ऑफ कॉमर्स, यू.एस.-इंडिया बिजनेस काउंसिल, यू.एस.-इंडिया स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप फोरम, फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री और कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री जैसे कारोबारी समूहों के अलावा प्रथम और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन जैसे दान देने वाले संगठन भी शामिल हैं।
मज़बूत जनसमर्थन पर टिके द्विपक्षीय संबंध
लोगों के बीच पारस्परिक संबंधों के कारण अमेरिका और भारत दोनों ही देशों में एक-दूसरे के लिए बेहद सकारात्मक जनभावना मौजूद रही है। सर्वेक्षण बताते हैं कि एक देश का नागरिक दूसरे को सकारात्मक नज़रिए से ही देखता है। भारत के बारे में अमेरिकी नज़रिए को लेकर किए गए गैलप पोल में यह बात सामने आई है कि साल 2000 के बाद से अमेरिका में भारत को लेकर बहुत तेजी से सकारात्मक रुझान सामने आया है। साल 2018 में अमेरिकी जनता ने भारत को अपने 8 सर्वाधिक पसंदीदा शीर्ष देशों में रखा है।
2020 में राष्ट्रपति डॉनल्ड जे. ट्रंप की भारत यात्रा से पहले प्रकाशित प्यू रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, करीब 75 प्रतिशत भारतीय वयस्क अमेरिका-भारत के संबंधों का काफी आदर करते हैं। इसके अनुसार, समग्र रूप से मौजूदा संबंधों के अलावा दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों के भी अच्छे होने की बात कही गई। साल 2019 में शिकागो काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस ने एक सर्वे में पाया कि 63 प्रतिशत अमेरिकी मानते हैं कि भारत के साथ संबंधों से अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा मज़बूत हुई है। यह किसी भी दूसरे देश के मुकाबले ज्यादा मत हैं। साल 2019 में ब्रुकिं ग्स इंडिया द्वारा भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े विशिष्ट वर्ग में एक सर्वे में 75 प्रतिशत भारतीयों ने माना कि विश्व स्तर पर अमेरिका भारत का सबसे महत्वपूर्ण वैश्विक भागीदार है।
भविष्य पर निगाह
पिछले कुछ वर्षों में दोनों देशों की जनता के बीच पारस्परिक संबंधों में लगातार प्रगाढ़ता आई है। ऐसे संपर्कों से दोनों देशों के समाज को तो फायदा हुआ ही है, साथ ही इसने, अमेरिका-भारत समग्र वैश्विक रणनीतिक सहभागिता की बुनियाद तैयार करने का काम भी किया है, जिससे बड़े फलक पर दुनिया का भी फायदा हुआ। इससे हमें भविष्यको लेकर एक उम्मीद जगती है और साथ ही यह भरोसा भी होता है कि यह भागीदारी 21वीं सदी में एक निर्धारक भागीदारी होगी।
नागरिक कूटनीति
साल 1940 में, राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूज़वेल्ट ने एक जानेमाने अमेरिकी कारोबारी और राजनेता नेल्सन रॉकफेलर को अंतर-अमेरिकी मामलों का समन्वयक नियुक्त किया। उस हैसियत से, रॉकफेलर ने लैटिन अमेरिकी देशों के साथ लोगों के आदान-प्रदान का एक प्रोग्राम शुरू करने की पहल की। इसके तहत पश्चिमी गोलार्ध के देशों के साथ संबंधों को बेहतर बनाने के उद्देश्य से 130 लैटिन अमेरिकी पत्रकारों को अमेरिका आमंत्रित किया गया। आज 60 साल से ज्यादा वक्त गुजर जाने के बाद उन्होंने जिस प्रोग्राम को शुरू किया वह इंटरनेशनल विजिटर लीडरशिप प्रोग्राम (आईवीएलपी) का रूप ले चुका है और इसे मौजूदा समय में अमेरिकी विदेश विभाग प्रबंधित करता है। मौजूदा वक्त में, बेहतर पारस्परिक संबंधों और अंतरराष्ट्रीय सहभागिता के लिए आईवीएलपी प्रतिभागी के रूप में हर साल विभिन्न क्षेत्रों और राष्ट्रीयताओं से जुड़े करीब 5,000 उभरते लीडर अमेरिका की यात्रा करते हैं। आईवीएलपी ने अमेरिकी विदेश विभाग से प्रायोजित दूसरे शैक्षिक, सांस्कृतिक और प्रोफेशनल एक्सचेंज प्रोग्राम शुरू करने का रास्ता तैयार किया है और अमेरिका और दूसरे देशों के 10 लाख नागरिकों के बीच सेतु बनाने का काम किया है।
भारत में, अमेरिका के साथ इंटरनेशनल एक्सचेंज प्रोग्रामों की शुरुआत 1960 के दशक में हुई और यह हमारे दो देशों के बीच मज़बूत ऐतिहासिक रिश्तों का उदाहरण है। इन प्रोग्रामों में आईवीएलपी के तहत प्रोफेशनलों से लेकर, फॉरच्यून/यूएस स्टेट डिपार्टमेंट ग्लोबल वुमेन मेंटरिंग पार्टनरशिप और प्रोफेशनल ़फेलो प्रोग्राम- राजनीतिक रुख वाले- जैसे कि अमेरिकन काउंसिल ऑफ यंग पॉलिटिकल लीडर्स और नेशनल काउंसिल फॉर स्टेट लेजिस्लेचर शामिल हैं। इन कार्यक्रमों में शैक्षिक और सांस्कृतिक एक्सचेंज के प्रोग्राम भी शामिल हैं- जैसे कि, फुलब्राइट-नेहरू ़फेलोशिप, ह्यूबर्ट एच. हंफ्री ़फेलोशिप, स्टडी ऑफ युनाइटेड स्टेट इंस्टीट्यूट्स, द नीयर ईस्ट एंड साउथ एशिया अंडरग्रेजुएट प्रोग्राम और तिब्बतन स्कॉलरशिप प्रोग्राम। युवाओं पर केंद्रित कम्युनिटी कॉलेज इनीशिएटिव प्रोग्राम और कैनेडी-लुगार यूथ एक्सचेंज एंड स्टडी जैसे प्रोग्राम भी इसमें शामिल हैं। पिछले सालों में इन प्रोग्रामों के कारण विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े भारतीय प्रतिभागियों को अमेरिका की यात्रा करने का अवसर मिलता है, अक्सर पहली बार। उन्हें मेज़बान परिवारों के बीच अमेरिका की संस्कृति को अनुभव करने का मौका भी हासिल होता है। इसके अलावा, प्रो़फेशनल नेटवर्क को बनाने, श्रेष्ठ परंपराओं को साझा करने और अपनी दिलचस्पी वाले विषय क्षेत्र के बारे में और ज़्यादा जानने का मौका भी मिलता है।
शोध सहभागिता
पार्टनरशिप 2020 इस विश्वास से प्रेरित थी कि अमेरिकी और भारतीय विश्वविद्यालय एकसाथ मिलकर काम करें तो हमारे दोनों देशों के आर्थिक विकास में बेहद अहम भूमिका निभा सकते हैं। इसका मकसद एक ऐसा प्रोग्राम तैयार करना है जो 10 रणनीतिक क्षेत्रो में सहभागी शोध के लिए धन मुहैया करा सके। इन क्षेत्रों में लोक स्वास्थ्य, जल प्रबंधन, नवीकरणीय ऊर्जा, सदाजीवी कृषि, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और उद्यमिता शामिल हैं।
साल 2019 में प्रोजेक्ट के शुभारंभ के बाद से इसने 26 अमेरिकी और भारतीय विश्वविद्यालयों को फंड दिया है जो अहम क्षेत्रों में सहभागिता कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, नॉर्थ टेक्सस यूनिवर्सिटी से एक टीम और उत्तर प्रदेश में शिव नाडर यूनिवर्सिटी, मिलकर चिकित्सा उपकरणों में इस्तेमाल होने वाले बायोसिंथेटिक पदार्थ को विकसित कर रही हैं जिसका बायो इंप्लांट में प्रयोग होगा। इसका मकसद मानव शरीर के लिए ऐसे परिष्कृत पदार्थ तैयार करना है जिनमें मौजूदा इस्तेमाल में आ रहे उत्पादों के मुकाबले ज़ंग लगने की आशंका कम हो। इस प्रोजेक्ट के कारण स्टेंट जैसे बायो इंप्लांट की ज़रूरत वाले मरीजों के जीवन काल को और लंबा किया जा सकेगा।
इस कार्यक्रम में निजी क्षेत्रों की सहभागिता को सुगम बना कर आर्थिक अवसरों को भी तलाशा जा रहा है। ऐसी सहभागिताएं कई तरह से संभव हैं जिसमें प्रोटोटाइप का परीक्षण करने वाली और बाज़ार के लिए किसी उत्पाद की तैयारी परखने वाली स्थानीय कंपनियां भी हो सकती हैं या फिर उद्यमिता के माध्यम से महिला के आर्थिक सशक्तिकरण में मदद या टीबी के खतरे को कम करने के लिए नए तरह के फूड सप्लीमेंट बनाने की बात हो सकती है। पार्टनरशिप 2020 को अमेरिकी विदेश मंत्रालय और नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास से फंड उपलब्ध होता है जबकि कार्यान्वयन नेब्रास्का यूनिवर्सिटी ओमाहा से गठजोड़ में और परामर्श का ज़िम्मा वॉशिंगटन, डी.सी. स्थित सेंटर फॉर स्ट्रेटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज़ का होता है।
लोगों के पारस्परिक सहयोग से विज्ञान के दायरे में विस्तार
अमेरिका और भारत अपने देशों में मौजूद विज्ञान की प्रतिभाओं की सराहना करने के साथ, यह भी जानते हैं कि महान चीज़ें तभी आविष्कृत हो सकती हैं जब दोनों देशों के लोग एकसाथ मिलकर काम करें। इस सहभागिता का एक मंच यूएस-इंडिया साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंडॉवमेंट फंड (यूएसआईएसटीईएफ) है।
वर्ष 2009 में स्थापित यूएसआईएसटीईएफ ऐसी अभिनव तकनीकों के व्यवसायीकरण में सहायता करता है जो दोनों देशों के भागीदारों ने आपसी सहयोंग से मिलकर तैयार की हों। इस दृष्टि से जो सफलताएं उल्लेखनीय हैं, उनमें रीमोशन नी या घुटने की चर्चा की जा सकती है जो घुटने तक पैर कटने पर ऊपर के हिस्से को जोड़ने के लिए बढि़या काम करने वाला किफायती प्रोस्थेटिक है। इसके साथ, स्मार्टसीमॉट नामक एक पोर्टेबल बैटरी से चलने वाले उपकरण का उल्लेख भी किया जा सकता है जो फेफड़ों की बीमारी का पता लगाकर रोगियों के बीच संक्रमण के प्रसार के खतरे को कम करता है और साथ ही पांरपरिक जांच में आने वाले खर्च को 90 प्रतिशत तक घटा देता है। दोनों ही देशों की सरकारों ने यूएसआईएसटीईएफ की मदद का इस्तेमाल कोविड-19 की रोकथाम के लिए गए अभिनव प्रयासों में किया। कोविड-19 से लड़ाई में दुनिया की मदद के लिए यूएसआईएसटीईएफ ने 400 प्रस्तावों में से 11 भरोसेमंद तकनीक वाले प्रस्तावों को शुरुआती फंड उपलब्ध कराया। इन प्रोजेक्टों में कोविड-19 की त्वरित और सस्ती जांच के लिए तकनीक विकसित करने के अलावा नॉन-इनवेसिव नैसल वेंटिलेशन यंत्र को विकसित करने का प्रोजेक्ट भी शामिल है।
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