खानपान का नया नज़रिया

पत्रकार और शिक्षक सिमरन सेठी भोजन के भावनात्मक और सांस्कृतिक महत्व को तलाशने के साथ दुनिया भर में उसकी विविधता पर मंडराते खतरों को भी उजागर कर रही हैं।

पारोमिता पेन

नवंबर 2018

खानपान का नया नज़रिया

सिमरन सेठी (दाएं) कैलिफ़ोर्निया में द डार्कर साइड ऑफ़ ग्रीन डिबेट में। (फोटोग्राफः कैरोलिना लोरेंज़ो/साभार फ़्लिकर)

जीवन के लिए भोजन जरूरी है लेकिन क्या इन दोनों का रिश्ता सिर्फ इतना भर ही है। सिमरन सेठी के लिए भोजन इससे कहीं आगे की चीज़ है। भोजन का रिश्ता लोगों और समुदायों से जुड़ा होता है- इसका स्वाद, गंध और वह कहां और कैसे पैदा होता है- ये सारे सवाल गहन पड़ताल का विषय हैं। एक पत्रकार और शिक्षक सेठी का फोकस खानपान, सदाजीविता और सामाजिक परिवर्तन पर है। सेठी को वैनिटी फेयर पत्रिका ने पर्यावरण के संवाहक या मैसेंजर के रूप में वर्णित किया है जबकि मैरी क्लेयर पत्रिका ने उन्हें उन शीर्ष 8 महिलाओं में शामिल किया है जो पृथ्वी की सुरक्षा के  महती प्रयासों से जुड़ी हैं।  वह ‘‘ब्रेड, वाइन, चॉकलेट द स्लो लॉस ऑफ फूड वी लव’’ पुस्तक की लेखिका हैं, जिसे स्मिथसॉनियन और चॉकलेट उद्योग के लोगों, स्थलों और प्रकियाओं की विशेषताओं को समर्पित ‘‘द स्लो मेल्ट’’ नामक पॉडकास्ट ने वर्ष 2016 की खानपान पर सर्वश्रेष्ठ पुस्तक माना है। भोजन में सेठी की दिलचस्पी उनके सामाजिक न्याय और लोक शिक्षा के विचारों में डूबी उनकी सोच का ही प्रतिरूप है।

भोजन और सामाजिक बदलाव के बारे में उनकी दिलचस्पी ने 1990 के दशक के अंतिम वर्षों में गति पकड़ी। सेठी का कहना है, ‘‘ओकलैंड इंस्टीट्यूट की कार्यकारी निदेशक अनुराधा मित्तल के एक लेख में भूख को सिर्फ भोजन की उपलब्धता न होना ही नहीं बल्कि उस अनुभव  का भी नतीजा बताया गया जो भूराजनीतिक हालात की देन होते है। उनके विचारों ने भोजन संबंधी न्याय और भूख के मसलों पर मेरी सोच को निर्धारित करने में काफी मदद की।’’

समाधान का माध्यम

सेठी का कहना है, ‘‘भोजन एक ऐसा चश्मा भी है जिसके माध्यम से दुनिया की तमाम मौजूदा समस्याओं के  समाधान की दिशा में काम किया जा सकता है, जैसे कि जलवायु परिवर्तन और दूसरी सामाजिक और सांस्कृतिक चुनौतियां।’’ खाद्य पदार्थों का उत्पादन, उससे भोजन तैयार करना और फिर उसे साझा करने की कला एक किस्म का भावनात्मक और अंतरंग अनुभव होता  है। ‘‘आज के इस आधुनिक दौर में दुनिया का कोई भी देश अपने लोगों के खानपान के मामले में आत्मनिर्भर नहीं है।’’ इसीलिए भोजन, लोगों को जोड़ने और मिलन का माध्यम बन सकता है।

शोध के एक क्षेत्र के रूप में भोजन का बहुत गहरा संबंध सामाजिक न्याय से है। सेठी का कहना है, ‘‘हमारा पेट भरने वाले छोटे किसान अन्न का उत्पादन तो करते हैं लेकिन कई बार वे सबसे गरीब लोगों में शामिल होते हैं और दूसरों को देने वाले अन्न के बजाय खुद कुछ और खाते हैं। ये समानता के सवाल हैं और इनके बारे में और पड़ताल की जरूरत है।’’

इस तरह की असमानता को दूर करने का एक रास्ता तो यह कि जनता को इस बात की जागरूकता होनी चाहिए कि खाद्यान्न उत्पादन में क्या करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, खाद्यान्न उत्पादन से जुड़ी दास्तां को कहीं ज्यादा निजी संदर्भ देकर। खाने की चीज़ें उगाना, उन्हें खाने के लिए तैयार करना और उन्हें फिर साझा करने का कार्य और कला बेहद भावनात्मक और आत्मिक अनुभव होता है। सेठी को पता है कि इस तरह के जुड़ाव कितने ताकतवर हो सकते हैं। जब उन्होंने आनुवंशिक क्षरण और भोजन के उत्पादन और खाने में विविधता के खात्मे पर अपनी किताब लिखनी शुरू की तब उन्हें जैविक विशेषताओं, निजी अभिरुचियों और भावनात्मक संबंधों की गहराई का अहसास हुआ। वह कहती हैं, ‘‘तभी मैंने रोजाना इस्तेमाल होने वाले खाद्य पदार्थों के बारे में सोचना शुरू किया, जैसे कि क़ॉफी जिससे हम दिन की शुरुआत करते हैं या चॉकलेट जो टूटे दिलों को जोड़ती है। जब हम दिन की शुरुआत कॉफी पीते हुए करते हैं तो क्या हम कभी उस किसान के बारे में सोचते हैं जो उसे पैदा करता है। हम कभी पर्वरण पर उसका क्या प्रभाव पड़ेगा इस बारे में सोचते हैं?’’ सेठी अपनी किताब के माध्यम से लोगों को अपने भोजन के प्रति अधिक जागरूक होने के लिए प्रेरित करना चाहती हैं। वह चाहती हैं कि लोग चिरपरिचित भोजन के साथ साथ नए भोजन के बारे में भी समझ विकसित कर सकें ताकि स्वाद की इस दुनिया को बेहतर तरीके से सहेजा जा सके।

पोषण और संपर्क

सेठी के लिए भोजन शरीर के पोषण का माध्यम है। वह कहती हैं, ‘‘जायका काफी महत्वपूर्ण है। और ़फ्लेवर का भी अपना महत्व है।’’

वह हमेशा उन अद्भुत लोगों से प्रेरणा लेती हैं जिनके बारे में वह लिखती हैं। उनके लेखन के विषय विविध होते हैं। उनमें कोको उत्पादन करने वाले छोटे किसानों से लेकर वे उत्पादक शामिल हैं जो उत्पादन में तकनीक का रचनात्मक इस्तेमाल करते हैं और उन शोधकर्मियों से नाता जोड़ते हैं जो इस बात की पड़ताल करते हैं कि कम आय वर्ग के समुदायों में बच्चों में वह खाना क्यों दिया जाता है जिसे दूसरे लोग स्वास्थ्य की दृष्टि से ठीक नहीं मानते। सेठी का कहना है, ‘‘हम जो कुछ भी हैं, भोजन उसके बड़े हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है। मेरे लिए तो यह लगातार बदलने वाली पहेली है।’’

विविधता को प्रोत्साहन 

सेठी स्पष्ट करती हैं कि वह लगातार इस बात को लेकर जागरूक थीं कि फलों, मीट और सब्जियों की कुछ प्रजातियां खत्म होने वाली है लेकिन समूचे पारिस्थितिकी तंत्र पर उसके असर के बारे में उन्हें तब पता चाला जब उन्होंने किताब को लिखते समय चीजों को समझना शुरू किया। वह कहती हैं, ‘‘मैंने अपनी किताब में इस बात को रखा है कि खाने को स्वादिष्ट बनाकर हम खाद्य सामग्री का संरक्षण कर सकते हैं।’’ जन शिक्षा में अहम बात यह है कि लोगों के समक्ष मुद्दों को मौजूदा परिप्रेक्ष्य में रखा जाए।

सेठी इस बात को जोड़ती हैं कि, कृषि विविधता को विस्तार देने और प्रोत्साहित करने के काम में हर किसी की भूमिका हो सकती है। वह कहती हैं, ‘‘यह काम उतना ही आसान है जैसे कि हम किसान बाजार से चीज़ें खरीदें और उन रेस्तरां का चुनाव करें जो स्थानीय स्तर पर उत्पादित वस्तुओं का ही इस्तेमाल करते हों। इसके अलावा फूड बैंक के लिए वॉलंटियर सेवा और संस्थाओं को अपनी पहुंच बढ़ाने में मदद के लिए अपने सोशल मीडिया ज्ञान या मार्केटिंग विशेषज्ञता का इस्तेमाल काफी महत्वपूर्ण हो सकता है।’’

पारोमिता पेन पत्रकार हैं। वह ऑस्टिन, टेक्सास में रहती हैं।



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