वुमेन इन इंडिया सोशल ऑंट्रेप्रिन्योरशिप नेटवर्क की प्रतिभागी जिज्ञासा लाब्रू की संस्था स्लैम आउट लाउड कलात्मक शिक्षा के माध्यम से वंचित वर्ग के बच्चों को सशक्त बनाने के काम में जुटी है।
अक्टूबर 2023
स्लैम आउट लाउड की सहसंस्थापक जिज्ञासा लाब्रू (मध्य में) स्लैम आउट लाउड प्रतिभागियों के साथ। (फोटोग्राफः साभार स्लैम आउट लाउड)
‘‘सभी जगहों पर व्यक्तियों के पास हमेशा एक आवाज़ मौजूद होती है जो उन्हें जीवन बदलने के लिए सशक्त बनाती है।’’ -यही मिशन वाक्य है अलाभकारी संस्था स्लैम आउट लाउड का। यह संस्था भारत में वंचित वर्ग के बच्चों की मदद के लिए कलात्मक शिक्षा का इस्तेमाल करती है।
स्लैम आउट लाउड संस्था की सह संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी जिज्ञासा लाब्रू का कहना है कि उनका संगठन पूरे भारत में वंचित बच्चों के लिए कलात्मक शिक्षा और सामाजिक-भावानात्मक शिक्षा के स्वरूप में बदलाव लाने के लिए समर्पित है। स्लैम आउट लाउड कला से जुड़े शिक्षकों को कम आय वाले समुदायों के स्कूलों में काम करने के लिए प्रशिक्षित करता है और कला सीखने के लिए ऑनलाइन संसाधन भी उपलब्ध कराता है। ऐसा करने का मकसद यह है कि बच्चों को कविता और कहानी के सूत्रों में शिक्षा के गुर मिल सकें और वे उनके साथ जीवन में आगे बढ़ सकें।
लाब्रू, अमेरिकी कांसुलेट, चेन्नई द्वारा वित्तपोषित वुमेन इन इंडियन सोशल ऑंट्रेप्रिन्योरशिप नेटवर्क (वाइसन )में भाग ले चुकी हैं। उनका कहना है कि कला के बारे में सीखने से बच्चों को जीवन की कठिन वास्तविकताओं से निपटने और खुद को अभिव्यक्त करने में मदद मिल सकती है। लाब्रू कहती हैं, ‘‘कला के बारे में शिक्षा बच्चों को हिंसा के बिना संघर्षों को सुलझाने, उनके आसपास की दुनिया का आलोचनात्मक मूल्यांकन करने और मानव अस्तित्व के विभिन्न पहलुओं में शामिल होने के लिए सशक्त बनाती है।’’ वह कहती हैं, ‘‘हमारा मानना है कि सामाजिक-भावनात्मक शिक्षा और कला के संपर्क वाले बच्चों में समाज के सभी क्षेत्रों में नेतृत्व, बदलाव लाने वाला और संस्कृति को संजोने वाला व्यक्ति बनने की क्षमता होती है।’’
स्लैम की नींव
दिल्ली में कम आय वाले समुदाय में एक माध्यमिक स्कूल में शिक्षक के रूप में सेवा करने के बाद लाब्रू स्लैम आउट लाउड की स्थापना के लिए प्रेरित हुईं। वह बताती हैं, ‘‘इस अनुभव ने उन्हें सत्ता और विशेषाधिकार के सवालों के आमने-सामने ला खड़ा किया।’’ अपने विद्यार्थियों को न केवल शैक्षणिक सफलता बल्कि संगीत और कविता से भी परिचित कराने की इच्छा से लाब्रू ने पूरे भारत में मौखिक कविता कार्यशालएं आयोजित करना शुरू कर दिया। उन्हीं कार्यशालाओं में से एक ने उनका जीवन बदल दिया।
लाब्रू का कहना है, ‘‘बच्चों के बीच कला आधारित अभिव्यक्ति के विकल्पों की असमानता को पाटने के लिए’’ उन्होंने 2017 में आधिकारिक तौर पर अपने अलाभकारी संगठन स्लैम आउट लाउड की शुरुआत की।
बदलाव के लिए जुड़ाव
लाब्रू के अनुसार, 2020 में वाइसन कार्यक्रम में भाग लेने के कारण, ‘‘ऐसी शानदार महिलाओं से मिलने में मदद मिली जो न केवल अपने काम से, बल्कि अपने जीवन से भी सामाजिक मानदंडों को चुनौती दे रही थीं।’’ इन संबंधों के माध्यम से उन्होंने नारीवादी नेतृत्व के बारे में और अधिक सीखा और यह भी जाना कि ऐसी टीमें बनाने के लिए क्या करना पड़ता है जो संगठन के नजरिए और मिशन के उद्देश्य में तालमेल बनाए रख सकें।
लाब्रू के अनुसार, वे समूह में महिलाओं की विविधता से भी प्रेरित थीं। प्रतिभागी भिन्न-भिन्न पृष्ठभूमि से आए थे और उन सभी के पास महिला नेतृत्व से संबंधित बारीक सोच थी।
आने वाले वर्षों में लाब्रू को उम्मीद है कि वे भारत में राज्य सरकारों को कला शिक्षा को सरकारी स्कूलों का मुख्य हिस्सा बनाने और 2025 तक दो करोड़ बच्चों तक कला सिखाने के अपने कौशल, अनुभव और नेटवर्क का उपयोग कर पाएंगी। इसके अलावा उन्हें उम्मीद है कि वे और अधिक लड़कियों और महिलाओं को सकारात्मक बदलाव लाते देखेंगी।
लाब्रू इस बात पर जोर देती हैं कि एक प्रभावशाली सामाजिक उद्यमी बनने के लिए ‘‘वर्षों की प्रतिबद्धता, आजीवन सीखने की तत्परता, विभिन्न क्षेत्रों के लोगों के साथ सहयोग और नेटवर्किंग, असीम आशावाद और विफलता को अंत के रूप में न देखने के साहस की आवश्कता होती है।’’
वह कहती हैं, ‘‘परिवर्तन दशकों में क्रमिक रूप से होता है और आपको एक लीडर और बदलाव वाहक के रूप में धैर्य और लचीला रुख अपनाने की आवश्कता होगी।’’
संभव है कि रास्ता आसान न हो, लेकिन फिर भी यह बेहद फायदेमंद हो सकता है। वह कहती हैं, ‘‘खुद को जानो, अपने जुनून को अपनाओ, खुद को शिक्षित करो, सहायक नेटवर्क बनाओ और भरोसे की छलांग लगाओ।’’
आज स्लैम आउट लाउड ने वंचित समुदायों तक कला शिक्षा लाने में जबरदस्त सफलता हासिल की है। लाब्रू कहती हैं, ‘‘हमारी जिजीविषा फेलोशिप अब चार शहरों में एक पूर्णकालिक कार्यक्रम है जिसका अर्थ है कि हमारे कलाकार साथी इस वर्ष 4000 से अधिक बच्चों के लिए कक्षा में सामाजिक-भवानात्मक शिक्षा और कला शिक्षा की सुविधा प्रदान करेंगी।’’ अपनी स्थापना के बाद से स्लैम आउट लाउड 23 भारतीय राज्यों और 19 देशों में एक करोड़ से अधिक बच्चों तक पहुंच चुका है।
लाब्रू का कहना है कि वे उन छोटे लेकिन महत्वपूर्ण बदलावों को देखना पसंद करती हैं जिन्हें स्लैम आउट लाउड माप सकता है, और समय के साथ उन प्रयासों का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। वह कहती हैं, ‘‘हम छह जीवन कौशलों का आकलन करके बच्चों के विकास की निगरानी करते हैं। 2021 और 2022 में हमारे आकलन में रचनात्मक आत्मविश्वास कौशल में 26 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई, संचार और आत्म सम्मान में सबसे अधिक सुधार हुआ, और रचनात्मकता एवं आलोचनात्मक सोच में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई।’’
माइकल गलांट लेखक, संगीतकार, और उद्यमी हैं और न्यू यॉर्क सिटी में रहते हैं।
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