एसिड हमले के बाद नई ज़िंदगी

एक्टिविस्ट लक्ष्मी अग्रवाल ने एसिड हमले से जुड़ी दास्तां को बदल दिया है। अब वह ऐसी पीडि़तों की ज़िंदगी को नए सिरे से संवारने में मदद करती हैं।

कृत्तिका शर्मा

दिसंबर 2022

एसिड हमले के बाद नई ज़िंदगी

एक्टिविस्ट और एसिड हमले की पीड़ित लक्ष्मी अग्रवाल को वर्ष 2014 में वाशिंगटन, डी.सी. में अमेरिकी विदेश विभाग के अंतरराष्ट्रीय साहसिक महिला पुरस्कार से सम्मानित किया गया।  

“किसी व्यक्ति पर कोई एसिड क्यों फेंकता है? चेहरे को निशाना क्यों बनाया जाता है? ऐसा इसलिए कि वे मानते हैं कि चेहरे को खत्म कर वे उस व्यक्ति को खत्म कर सकते हैं। लेकिन जब हम अपने लिए बोलते हैं, तो हम हमलावर से कहते हैं कि हमारी नियति यह नहीं है।”

यह कहना है एसिड हमले की शिकार लक्ष्मी अग्रवाल का, जो लक्ष्मी फ़ाउंडेशन की सहसंस्थापक हैं और जिन्हें वर्ष 2014 में अमेरिकी विदेश विभाग का अंतरराष्ट्रीय साहसिक महिला पुरस्कार मिला है।

अपने एनजीओ लक्ष्मी फ़ाउंडेशन के माध्यम से लक्ष्मी अग्रवाल पीडि़तों और हमलावरों को यह बताना चाहती हैं कि हालांकि एसिड हमला किसी को शक्तिहीन बनाने वाला घृणास्पद अपराध है, लेकिन इससे सपने नष्ट नहीं हो सकते।

उनके अनुसार, “हम उनके पुनर्वास और हर तरह से मदद के लिए काम करते हैं।“ वह स्पष्ट करती हैं कि फ़ाउंडेशन का ध्यान पीडि़तों का विश्वास बहाल करने और उनकी आकांक्षाओं के लिए काम करने में मदद करने पर है।

सपनों का साथ देना

ऐसी ही सफलता की एक दास्तां है 31 वर्षीय पुरुष प्रिंस साहू की, जो एसिड हमले का शिकार हुए। हमले से पहले वह फ्रीलांस मॉडल थे। वह कहते हैं, “मैं अक्सर अपने उन दोस्तों के लिए मॉडलिंग का काम करता था, जिनकी कपड़ों की दुकानें थीं।“ लेकिन ऐसी एक दोस्ती बिगड़ गई और साहू पर 2021 में हमला हो गया। साहू अब नई दिल्ली में एक वाणिज्यिक विमानसेवा समूह के साथ ग्राउंड स्टाफ सदस्य के तौर पर काम कर रहे हैं।

अग्रवाल अपना उदाहरण देते हुए कहती हैं, हमले से पहले और हमले के बाद, उनकी आकांक्षाएं बहुत हद तक समान ही हैं। वह प्रशिक्षित गायिका हैं और उन्होंने एच-टी यूट्यूब पर एक म्यूज़िक वीडियो भी जारी किया है, जिसे रैप आर्टिस्ट द्वारा लिखा गया है। वह मुस्करा कर कहती हैं, “मुझे पहले भी अच्छे कपड़े पहनकर तैयार होना पसंद था और अब भी मैं ऐसा करती हूं।”

मददगार व्यवस्था

अग्रवाल खुद एसिड हमले के बाद सर्जरी और फिर उससे उबरने की दर्दभरी प्रक्रिया से गुजरी हैं और पुनर्वास की पूरी प्रक्रिया के दौरान पीडि़तों और उनके परिवारों की ज़रूरतों का अंदाज़ा लगा सकती हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात, वह कहती हैं कि इलाज के लिए दिल्ली आने वाली पीडि़तों को फ़ाउंडेशन सुरक्षित जगह उपलब्ध कराती है। अग्रवाल स्पष्ट करती हैं, “रिकवरी संवेदनशील मसला है। इसलिए हम यहां साफ-सफाई रखते हैं। साथ ही, पीडि़त अत्यधिक मानसिक और भावनात्मक तनाव को भी झेलती हैं। वे अपने परिवारों के साथ आती हैं और वे भी तनाव में होते हैं। हम पीडि़तों और उनके साथ आए परिवारजनों को परामर्श देते हैं।”

उनके अनुसार, फ़ाउंडेशन के लिए सर्दियों का मौसम बहुत व्यस्त होता है। वह स्पष्ट करती हैं, “ठंडे मौसम में रिकवरी तेज़ी से होती है, इसलिए बहुत-सी पीडि़त इसी समय अपने इलाज की योजना बनाते हैं।“

फ़ाउंडेशन का शरण स्थल तीन बेडरूम के साथ रसोईघर वाला है। अपार्टमेंट में बिस्तरों के साथ पूरी सुविधाओं के साथ रसोईघर है। वह स्पष्ट करती हैं, “हम पीडि़तों और उनके परिवार के लोगों के लिए रसोई में स्टॉक रखते हैं, ताकि उन्हें यहां अपने भोजन के बारे में चिंता न करनी पड़े। अपार्टमेंट की दीवारों पर अग्रवाल या सफलता की दास्तां लिखने वाली अन्य पीडि़तों के फोटोग्राफ हैं।”

अग्रवाल इस बात पर ध्यान दिलाती हैं कि पीडि़तों को अक्सर अपने शरीर को पूर्ण तौर पर कार्यशील बनाने के लिए कई बार दर्द भरी सर्जरी से गुजरना पड़ता है। उदाहरण के तौर पर, हालांकि हमले के एक साल बाद अब साहू रोज़गार में जुटे हैं, लेकिन उन्हें अपनी दाईं आंख का इलाज कराना है जो बुरी तरह प्रभावित हुई थी। लक्ष्मी फ़ाउंडेशन इन सर्जरी के लिए फंड देने में पीडि़तों की मदद करती है।

एसिड हमले के बाद जब अग्रवाल संघर्ष के दौर में थी, तो वह खुद को अलग-थलग महसूस करती थीं। वह कहती हैं, “मुझे ऐसा महसूस होता था कि दुनिया में सिर्फ मैं ही एक ऐसी व्यक्ति हूं जिस पर हमला हुआ।“ लेकिन हमले के एक साल बाद, वर्ष 2006 में उन्होंने उच्चतम न्यायालय में जन हित याचिका पेश की, जिसमें एसिड की खुली बिक्री पर रोक की मांग की गई। ”यह बड़ी लंबी लड़ाई थी। लेकिन मुझे अपने जैसे बहुत-से पीडि़त मिले। और मैं अचरज करती कि हम कितने लंबे समय तक खामोश रहेंगे और बंद दरवाज़ों के पीछे जिएंगे?”

16 साल बाद अग्रवाल एसिड हमले की पीडि़तों के लिए रास्ता दिखाने की अगुवाई कर रही हैं। वह कहती हैं, “अब हमारी तरफ देखो। हम अपनी आवाज खुद उठा रहे हैं। और हम अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं।”



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