नृत्य नहीं, मन की दास्तां

प्रीति वासुदेवन पारंपरिक और समकालीन संगीत-नृत्य कला के माध्यम से भारत और अमेरिका के बीच एक सांस्कृतिक पुल बनाने में मदद कर रही हैं।

पारोमिता पैन

जनवरी 2019

नृत्य नहीं, मन की दास्तां

प्रीति वासुदेवन ने 2018 में छह भारतीय शहरों में अपनी एकल कला ‘‘स्टोरीज़ बाइ हैंड’’ प्रस्तुत की। फोटोग्राफ: मारिया बरानोवा

कला की सीमाओं और क्षमताओं की तलाश के लिए नृत्य को जरिया बनाना कोई नई बात नहीं है। लेकिन न्यू यॉर्क स्थित नृत्यांगना और नृत्य-निर्देशक प्रीति वासुदेवन अपने नए प्रॉडक्शन ‘‘स्टोरीज बाइ हैंड’’ के जरिये गति, कला, संस्कृति और लोगों के बीच टिकाऊ संवाद कायम करना चाहती हैं। वासुदेवन कहती हैं, ‘‘यह निजी दास्तानों के जरिये वैयक्तिता का उत्सव है।’’

उभरते कलाकारों को दिया जाने वाला प्रतिष्ठित ‘2018 लिंकन सेंटर अवॉर्ड’ प्रीति वासुदेवन को मिल चुका है और उन्हें न्यू यॉर्क पब्लिक लाइब्रेरी फॉर द परफॉर्मिंग आर्ट्स के जेरोम रॉबिन्स डांस डिविजन द्वारा 2018 डांस रिसर्च फेलोशिप से भी नवाजा गया है। लिंकन अवॉर्ड के विजेताओं को 7,500 डॉलर (लगभग साढ़े पांच लाख रुपये) की राशि मिलती है, ताकि इनके इस्तेमाल से वे अपने कॅरियर को और निखार सकें और एक डांस रिसर्च फेलो को वजीफे के तौर पर लगभग इतनी ही रकम मिलती है, ताकि वे अपनी रिसर्च पूरी कर सकें। वासुदेवन न्यू यॉर्क के ही लाबान/बारटेनिफ इंस्टीट्यूट ऑफ मूवमेंट स्टडीज से प्रमाणित मूवमेंट विश्लेषक हैं। वासुदेवन को नृत्य-निर्देशक टी. जोन्स की न्यू यॉर्क लाइव आर्ट्स से भी दो वर्षीय आर्टिस्ट इन रेजिडेन्स का न्योता मिला, जिसका सुफल नवंबर 2017 में ‘‘स्टोरीज बाइ हैंड’’ के रूप में सामने आया। एकल प्रस्तुति ‘‘स्टोरीज बाइ हैंड’’ की कल्पना और रचना करने का श्रेय वासुदेवन और मल्टीमीडिया कलाकार पॉल कैसर को जाता है। नृत्य और थिएटर का संयोग करते हुए यह प्रस्तुति भारत में उनके पैदा होने और एक महिला के तौर पर न्यू यॉर्क की उनकी जिंदगी की कहानी कहती है। हाल ही में भारत के छह शहरों में इसका प्रदर्शन हुआ और इसे भरपूर सराहना मिली।

भारत में वासुदेवन की कला-प्रस्तुतियों को देखने के बाद दर्शकों ने कहीं-कहीं खड़े होकर तालियों के जरिये उनकी सराहना की, तो कहीं-कहीं पर लोग उनसे अपनी निजी जिंदगी के बारे में बात करने के लिए आए। वह कहती हैं, ‘‘यही वह काम है, जिसकी अपेक्षा कला से की जाती है। इसका लक्ष्य है साझा करने और सहानुभूति जताने वाली प्रवृत्तियों को बढ़ावा देना।’’ वासुदेवन के लिए भारत हमेशा से घर रहा है, जहां पर उनकी आध्यात्मिक जड़ें हैं। अब वह ‘‘विशाल अप्रवासी कलात्मक आवाज’’ के एक अंग के रूप में अमेरिका में रहती हैं और अपनी वैश्विक पहचान तलाश रही हैं। वासुदेवन कहती हैं, ‘‘मैं हर साल भारत जाती हूं और मैं वहां के परफॉर्मिंग कलाकारों के संपर्क में रहती हूं।’’

प्रीति वासुदेवन अमेरिकी विदेश विभाग के ब्यूरो ऑफ एजुकेशनल एंड कल्चरल अफेयर्स के प्रोफेशनल डवलपमेंट प्रोग्राम- डांसमोशन यूएसए 2018 के लिए चयनित कलाकारों में एक हैं, जिन्हें बीएएम (ब्रुकलीन एकेडेमी ऑफ म्यूजिक) ने समकालीन अमेरिकी नृत्यों की खूबियों से दुनिया को रूबरू कराने के लिए सांस्कृतिक आदान-प्रदान के कार्यक्रमों के तहत पेश किया। वह ‘सिल्करोड’ संस्था से भी जुड़ी हुई हैं। सिल्करोड संस्था की स्थापना मशहूर सेलोवादक यो-यो मा ने कला के जरिये सांस्कृतिक कूटनीति को बढ़ावा देने के लिए की है।

बचपन से ही नृत्य

नृत्य हमेशा से ही वासुदेवन की जिंदगी का हिस्सा रहा है। वह कहती हैं, ‘‘बचपन में मैं जितना चलती थी, उससे कहीं ज्यादा नृत्य करती थी।’’ चेन्नई में जन्मी वासुदवेन ने यू.एस. कृष्णा राव के साथ-साथ वी.पी. धनंजयन और उनकी पत्नी शांता धनंजयन से भरतनाट्यम सीखा। उनके लिए नृत्य एकाग्रता और संतुलन की विधा है। वासुदेवन कहती हैं, ‘‘नृत्य बहुत कम उम्र में आपको ध्यान केंद्रित करने और जीवन कौशल पर काम करने करना सिखा देता है। नृत्य और खेलों में बहुत कुछ एक समान है। लेकिन खेल की प्रकृति ज़्यादा लक्ष्य केंद्रित है, जबकि नृत्य आत्माभिव्यक्ति का अनूठा माध्यम है। मेरी अब तक की जिंदगी के तमाम यादगार लम्हे नृत्य से जुड़े हैं।’’

वासुदेवन खुद को नृत्य क्रियाओं की एक विद्यार्थी मानती हैं। वह कहती हैं, ‘‘यह केवल भरतनाट्यम या बैले की बात नहीं है। नृत्य बेहद गतिशील होते हुए भी चिंतनशील और साधना वाली विधा है।’’ नृत्य को ‘‘एकालाप नहीं संवाद’’ मानते हुए वासुदेवन ने थ्रेश की नींव रखी। यह नृत्य-संगीत कलाओं की साझेदारी है, जिसके पारंपरिक भारतीय नृत्य शैलियों और मुद्राओं व भाव-भंगिमाओं के आधुनिक सिद्धांतों के मेल को दुनिया भर में सराहा गया है।

वासुदेवन के मुताबिक, ‘‘थ्रेश दरअसल अतीत और भविष्य के बीच की दहलीज की अनूठी अवधारणा पर आधारित है, जहां आप अतीत को छोड़कर अनजाने भविष्य की ओर बढ़ते हैं।’’ इसकी स्थापना उन्होंने 2004 में लंदन में अपनी मास्टर्स डिग्री के अंतिम दिनों में की थी।

प्रदर्शन और शिक्षण

भरतनाट्यम में वासुदेवन के प्रशिक्षण से इसके दास्तां को व्यक्त करने की क्षमता का कौशल सुनिश्चित हो जाता है। वह कहती हैं, ‘‘एक नृत्य शैली के तौर पर इसमें नाट्य-कला और अमूर्त गतिशीलता, दोनों है। यह एक विशुद्ध शैली की बजाय विकसित शैली है।’’ वह एक उत्साही कला शिक्षिका भी हैं। वासुदेवन ने एक इंटरएक्टिव मल्टीमीडिया वेबसाइट ‘डांसिंग फॉर द गॉड’ भी बनाई है, ताकि वह नई पीढ़ी को भरतनाट्यम सिखा सकें। इसके लिए उन्होंने अपने पति ब्रूनो के साथ दो साल तक गहन शोध किया। यह उसी का प्रतिफल है।

छात्रों और शिक्षकों के लिए बनाई गई वेबसाइट का अब न्यू यॉर्क के पब्लिक स्कूलों में भी इस्तेमाल किया जाता है। वासुदेवन बताती हैं कि ‘‘हम इस वेबसाइट को नई टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से और बेहतर बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए हम पार्टनर और साझीदार भी तलाश रहे हैं।’’

इस बीच थ्रेश का एक अन्य प्रोजेक्ट, जिसमें चेन्नई का संग्रहालय दक्षिणचित्र और न्यू यॉर्क पब्लिक लाइब्रेरी ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स की भी साझेदारी है, दुनिया भर के कलाप्रेमियों के लिए दक्षिण भारत के उन कलाकारों और कला रूपों को सहेजने का काम करेगा, जो खत्म होने के कगार पर पहुंच गए हैं। वासुदेवन बताती हैं, ‘‘लोगों को अपनी दास्तां सुनाने में सक्षम होना चाहिए और मुझे गर्व है कि मैं इस कवायद का एक हिस्सा हूं।’’

पारोमिता पेन पत्रकार हैं। वह ऑस्टिन, टेक्सास में रहती हैं।



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