रेणु खटोर ने अमेरिका में पढ़ाई के बाद एक प्रेरणादायी कॅरियर की शुरुआत की। आप भी ऐसा कर सकते हैं।
अक्टूबर 2022
रेणु खटोर ने यूनिवर्सिटी ऑफ ह्यूस्टन सिस्टम के चांसलर का दायित्व निभाने के साथ जनवरी 2008 से फ्लैगशिप ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी कैंपस के प्रेज़िडेंट की जिम्मेदारी भी निभाई है। खटोर, अमेरिका में शोध की दृष्टि से इस तरह की समग्रता वाली यूनिवर्सिटी का नेतृत्व संभालने वाली भारतीय-अमेरिकी मूल की पहली शख्स हैं। (फोटोग्राफः साभार यूनिवर्सिटी ऑफ ह्यूस्टन)
रेणु खटोर, तब सिर्फ 18 साल की थीं जब उन्हें दो ह़फ्ते से भी कम वक्त में एक अजनबी के साथ शादी के बंधन में बंधने का नोटिस मिल गया। इससे उनकी पढ़ाई छूट रही थी और उन्हें अमेरिका जाना था। यह भी तब जब उन्हें अंग्रेजी में एक वाक्य भी सही से बोलना नहीं आता था।
अचानक आए इस बदलाव के बाद भी, यह काबिलेगौर है कि आज खटोर बेहद सफल एकेडमिक लीडर और प्रशासक हैं। उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ ह्यूस्टन सिस्टम के चांसलर का दायित्व निभाने के साथ जनवरी 2008 से ़फ्लैगशिप ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी कैंपस के प्रेज़िडेंट की जिम्मेदारी भी निभाई है। खटोर, अमेरिका में शोध की दृष्टि से इस तरह की समग्रता वाली यूनिवर्सिटी का नेतृत्व संभालने वाली भारतीय-अमेरिकी मूल की पहली शख्स हैं। वह टेक्सस राज्य में पहली महिला चांसलर बनी हैं।
खटोर अपनी सफलता का श्रेय अपनी दृढ़ता, कड़ी मेहनत और अपनी शिक्षा और सपनों को पूरा करने की अपनी प्रतिबद्धता को देती हैं- ये सभी वे सिद्धांत हैं जो आज भी भारतीय विद्यार्थियों को अपने शानदार कॅरियर की शुरुआत के लिए मददगार बन सकते हैं।
इंडिया से इंडियाना
खटोर उत्तर प्रदेश के आगरा के पास छोटे से कस्बे में पली-बढ़ीं। वह बताती हैं कि वहां बहुत संरक्षित माहौल था। वकीलों के परिवार से आने वाली खटोर की पढ़ाई सिर्फ लड़कियों वाले स्कूलों में हुई और वह गर्मियों में अपने परिवार के साथ खूब घूमने जाया करती थीं। वह कहती हैं, ‘‘मेरा सपना बड़ी से बड़ी संभव डिग्री को हासिल करना था। पढ़ना-लिखना मुझे बेहद पसंद था और मुझे पता था कि मैं राजनीति विज्ञान पढ़ना चाहती थी।’’
वर्ष 1973 में कानपुर यूनिवर्सिटी से लिबरल आर्ट में बैचलर्स डिग्री लेने के बाद वह मास्टर्स डिग्री के लिए खुद को तैयार कर ही रही थीं कि उन्हें पता चला कि उनकी शादी एक ऐसे भारतीय इंजीनियर से होने जा रही है जो इंडियाना में पर्ड्यू युनिवर्सिटी में पीएच.डी. कर रहा था। 10 दिनों के भीतर, टूटे दिल के साथ खटोर अमेरिका पहुंच चुकी थीं। उन्होंने बताया, ‘‘मेरे पति ने मुझसे पूछा कि मैं क्यों उदास हूं। मैंने उन्हें बताया कि शिक्षा को लेकर मेरा एक सपना था जो मर चुका है।’’
खटोर और उनके पति ने मिलकर उस सपने को फिर से जीवंत किया। उन्होंने पर्ड्यू यूनिवर्सिटी में ग्रेजुएट स्तर की कक्षाओं में जाना शुरू कर दिया, जबकि वह अंग्रेजी नहीं बोल सकती थीं और कक्षा में क्या पढ़ाया जा रहा है, इसकी उन्हें कतई समझ नहीं थी। खटोर अंग्रेजी पढ़ सकती थीं लेकिन जैसा कि वह बताती हैं, ‘‘उनको कुछ समझ नहीं आता था।’’
उनके पति ने अंग्रेजी की समझ बढ़ाने के लिए उन्हें टीवी देखने की सलाह दी। इसके बाद उन्होंने ‘‘आई लव लूसी’’ और समाचारों को देखना शुरू किया। खटोर हंसते हुए बताती हैं, ‘‘मैं बहुत जिद्दी थी। हालांकि दिल ही दिल में मैं जबस्तदस्त पीड़ा झेल रही थी क्योंकि वह सब बहुत कुंठित करने वाला और कठिन लगता था, लेकिन फिर भी मैंने उसे जारी रखा।’’
यूनिवर्सिटी में हर ह़फ्ते लिखित असाइनमेंट होते थे। उनके जवाबों में काफी गड़बडि़यां होती थीं और वे लाल स्याही से रंगे वापस आते थे। वह बताती हैं, ‘‘उनमें बहुत गलतियां होती थीं, लेकिन मैंने सीखना शुरू कर दिया था।’’
खटोर के अनुसार, वह लेखन में अच्छी थीं, हालांकि भारत में उन्होंने हमेशा हिंदी में लिखा। वह कहती हैं, ‘‘इस तरह से विचार प्रक्रिया मौजूद थी।’’ उन्होंने अपनी कक्षाओं के लिए लिखने का ज़बर्दस्त अभ्यास किया। उन्होंने बताया कि, मेरे पति आइसक्रीम खरीदने के लिए मुझे बाहर ले गए ताकि मैं मुश्कि ल वक्त के बाद बेहतर महसूस कर सकूं। उन्होंने मेरे ट्यूशन के पैसों के बंदोबस्त में मदद के लिए एक दूसरी नौकरी भी की।’’
समय के साथ, वह यह समझ पाईं कि उनके प्रो़फेसर चाहते थे कि वह दिए गए विषय पर अपने नजरिए को पढ़ें बजाय इसके कि स्कॉलरों और विशेषज्ञों के नजरिए पर फोकस करें। इससे उन्हें मदद मिली क्योंकि भारत में पढ़ाई ने उन्हें सैद्धांतिक मामलों में बुनियादी तौर पर काफी मजबूत बना दिया था।
खटोर की कड़ी मेहनत ने रंग दिखाया। सेमेस्टर खत्म होते-होते वह अंग्रेजी बोलने में प्रवीण हो गईं और उन्होंने उन दोनों ही कक्षाओं में जहां वह पंजीकृत थी, सबसे ज्यादा अंक हासिल किए। वह कहती हैं, ‘‘जब मैंने यह समझ लिया कि वे कहीं ज्यादा प्रगतिशील और व्यावहारिक ज्ञान की अपेक्षा कर रहे हैं, उसके बाद मै बेहतर बनती चली गई क्योंकि मुझे पता चल चुका था कि मुझे करना क्या है।’’
नई शुरुआत
खटोर ने पर्ड्यू में अपनी मास्टर्स की पढ़ाई पूरी की, दो लड़कियों की मां बनी, भारत और अमेरिका के बीच यात्रा की और पर्ड्यू से ही उन्होंने राजनीति विज्ञान और लोक प्रशासन में पीएच.डी.डिग्री हासिल की।
ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी में नियुक्ति से पहले खटोर साउथ फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी में प्रोवोस्ट और सीनियर वाइस प्रेज़िडेंट थीं।
उन्हें उनके शानदार नेतृत्व के लिए कई सम्मान दिए गए, जिसमें 2014 में दिया गया प्रवासी भारतीय सम्मान भी शामिल है जो विदेश में बसे भारतीयों के लिए सर्वोच्च सम्मान है।
खटोर का कहना है कि उनकी सफलता के लिए उनके साथ उनके पति को भी त्याग करने की ज़रूरत थी, और उनके धैर्य और टीमवर्क ने इसमें सबसे अहम भूमिका निभाई। उन्होंने अपने कठिन अनुभवों को अपने विश्वविद्यालय समुदाय के साथ भी साझा किया। खटोर के अनुसार, ‘‘यहां ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी में पहली पीढ़ी के विद्यार्थियों की भारी तादाद है, जिन्हें काफी दिक्कतें झेलनी पड़ी हैं। मैं उनको सिर्फ यह बताती हूं कि उन्हें अपने सपनों के पीछे अपने जुनून को जिंदा रखना चाहिए और उन्हें कभी मरने नहीं देना चाहिए। अमेरिका अवसरों का देश है। कई बार चीजों में मुश्किलें आती है लेकिन अगर आपमें हिम्मत और प्रतिबद्धता है, तो आपके सामने रास्ते खुल जाएंगे।’’
विश्वास और कर्म
विपरीत हालात में खटोर की यात्रा और अविश्वसनीय उपलब्धियों से डरा महसूस करना आसान है। लेकिन वह इस बात पर जोर देती हैं कि प्रत्येक युवा में अद्भुत चीजें हासिल करने की क्षमता होती है। वह हंसते हुए कहती हैं, ‘‘हम सभी में प्रतिभा होती है और हम सभी खास होते हैं, और यह मत भूलिए कि मैं तो बहुत औसत किस्म की इंसान थी। आपको इस बात में भरोसा रखना होगा कि जीवन आपको मौके देता है। ऐसे दरवाजें होंगे जो आपके लिए खुलेंगे। दरवाजे नहीं तो खिड़कियां तो खुलेंगी ही। आगे बहुत बड़ा जीवन है। आपके पास अपने रास्ते खुद बनाने के मौके होते हैं और पथप्रदर्शकों से प्रेरणा लेने के भी।’’
खटोर अमेरिका को भारतीय विद्यार्थियों के लिहाज से एक उदार और स्वीकार्य स्थान बताती हैं और कहती है कि अमेरिका में अध्ययन एक शानदार अवसर की तरह है। विद्यार्थियों को विदेश में पढ़ाई का विकल्प चुनते समय सिर्फ पढ़ाई, शोध और संस्थान के नाम को ही नहीं देखना चाहिए। उनकी सलाह है, ‘‘महत्वपूर्ण यह है कि इस मामले में आप क्या महसूस करते हैं। अगर मैं बिना अंग्रेजी जाने अमेरिका आ सकती हूं और एक औसत इंसान के रूप में वह सब कुछ हासिल कर सकती हूं जो मैंने किया है, तो जरा यह सोचिए कि आप संभावनाओं और तकनीक के इस दौर में क्या-क्या नहीं हासिल कर सकते। मुझे आपमें भरोसा है और मैं आपको शुभकामनाएं देती हूं। मैं अगर आपकी किसी तरह से मदद कर सकती हूं तो मैं उसके लिए तैयार हूं।’’
माइकल गलांट लेखक, संगीतकार और उद्यमी हैं और न्यू यॉर्क सिटी में रहते हैं।
I am past student of University of Alberta, Canada. I did my Ph.D. there and returned to India. Though retired I do take interest in rural education at primary level.
Nice
Dr. Vilas N Kale
I am past student of University of Alberta, Canada. I did my Ph.D. there and returned to India. Though retired I do take interest in rural education at primary level.
Ashok patidar
Nice