अमेरिका-भारत व्यापार ने नई कंपनियों और उत्पादों को प्रेरित किया है, दोनों देशों में कामकाज वाली कंपनियों को सशक्त बनाया है और उन्हें 21वीं सदी में प्रौद्योगिकी में अग्रणी होने के लिए प्रोत्साहित किया है।
जनवरी 2021
मध्य प्रदेश में जॉन डीयर ट्रैक्टर कारखाना। फोटोग्राफ साभार: अमेरिकी कांसुलेट जनरल मुंबई
अमेरिका-भारत के संबंधों के मूल में लंबे समय से व्यापार और निवेश जैसे विषय रहे हैं। 200 सालों से ज्यादा समय से अमेरिकियों और भारतीयों ने असाधारण उद्यमिता की भावना का परिचय देते हुए हिंद-प्रशांत क्षेत्र को वस्तुओं और सेवाओं के आदान-प्रदान, संयुक्त उद्यमों में सहभागिता और नवप्रवर्तन की प्रेरणा का माध्यम बनाया। इसके पीछे पारस्परिक सद्इच्छा, एक-दूसरे के बाजार का आकार, खास किस्म के उत्पाद और तुलनात्मक लाभ के अलावा हमारे लोगों की रचात्मकता और उत्पादकता की क्षमता थी।
जैसे-जैसे यात्राएं आसान होती गई और तकनीक उन्नत, वैसे-वैसे व्यापार में बढ़ोतरी होती गई। इस तरह के विनिमय को प्रोत्साहित करने में हमारी सरकारों के प्रयासों की अहम भूमिका रही है। 200 वर्षों से भी ज्यादा समय से अमेरिका- भारत व्यापार का हमारे दोनों देशों की अर्थव्यवस्था और समाज पर विस्तृत और दूरगामी असर पड़ता रहा है। हमारे इतने पुराने संबंधों की छाप अमेरिका-भारत व्यापार रिश्तों की साक्षी रही हमारी ऐतिहासिक इमारतों, रोजमर्रा के जीवन में हमारे द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली सेवाओं और वस्तुओं और साथ ही वहां के निवासियों पर भी देखा जा सकता है।
आर्थिक सहयोग के चलते अमेरिका और भारत के लोगों का जीवन स्तर तो बेहतर बना ही है, साथ ही उच्च गुणवत्ता और कम कीमत में वस्तुओं और सुविधाओं की उपलब्धता से दुनिया के देशों को भी फायदा हुआ है। अमेरिका-भारत वाणिज्य ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र के माध्यम से सूचनाओं और सेवाओं के प्रवाह की वजह से नई कंपनियों और उत्पादों के जन्म को प्रेरित किया है और 21 सदी में हम दोनों देशों को तकनीकी नेतृत्व संभालने के लिए उत्साहित किया है।
व्यापार, निवेश और आर्थिक विकास में भागीदारी का लंबा इतिहास
अमेरिकियों और भारतीयों के बीच में पुरातन रिश्तों की शुरुआत व्यापार के जरिए हुई, जब दिसंबर 1784 में फिलाडेल्फिया से तमाम अमेरिकी वस्तुओं के साथ युनाइटेड स्टेट्स नाम का एक व्यापारिक समुद्री जहाज़ पुदुच्चेरी पहुंचा। यह समुद्री जहाज और उसक अमेरिकी चालक दल फरवरी 1785 में रवाना हुए और वे अपने साथ अमेरिका में बेचने के लिए भारतीय मसाले, चाय और शॉलें अपने जहाज़ में भर कर ले गए।
संभवत: व्यापार ही वह प्रेरक था जिसके चलते राष्ट्रपति जॉर्ज वॉशिंगटन ने 1792 में बेंजामिन जॉय को भारत में पहला अमेरिकी कांसुल नियुक्त किया। 1800 के बाद द्विपक्षीय व्यापार काफी हद तक सामान्य हो चला था और स्थानीय स्तर पर इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित होने लगी थी। भारतीय व्यापारियों ने अपने सामान को बेचने के लिए न्यू यॉर्क जैसी जगहों पर दुकानें और गोदाम स्थापित किए। अमेरिकी व्यापारियों ने ठीक यही काम भारत में किया। ऐसी ही एक बिल्डिंग चेन्नई में समुद्री तट पर 1842 में बनी जो आज भी मौजूद है। आइसहाउस नाम की यह बिल्डिंग अमेरिकी कारोबारी फ्रेडेरिक ट्यूडर ने बर्फ को रखने के लिए बनवाई थी जिसे वह न्यू इंग्लैंड से भारत में बेचने के लिए मंगवाते थे। स्वामी विवेकानंद अमेरिका की अपनी उस ऐतिहासिक यात्रा, जिसमें उन्होंने वेदांत और योग के भारतीय दर्शन को दुनिया के सामने रखा था, के चार साल बाद 1897 में इस भवन में आए थे। इस भवन में अब विवेकानंद के जीवन पर एक प्रदर्शनी लगाई गई है।
19 वीं सदी के खत्म होते-होते आर्थिक मौकों की तलाश में अमेरिका आने वाले भारतीयों की संख्या बढ़ने लगी। इनमें से बहुत से पंजाब के किसान थे जो मध्य कैलिफोर्निया में रहने लगे और उन्होंने अपनी जानकारी और हुनर का इस्तेमाल करके इस इलाके को कृषि उत्पाद में अग्रणी पंक्ति में खड़ा कर दिया।
निजी कारोबारियों और बड़े उपक्रमों के माध्यम से 20 सदी के पूर्वाद्ध में व्यापार का बढ़ना जारी रहा। साल 1902 में अमेरिका स्थित जनरल इलेक्ट्रिक (जीई) ने कर्नाटक में पनबिजली प्रोजेक्ट शुरू किया जिससे आने वाले दशकों में दक्षिण भारत में आर्थिक विकास को गति मिली। 1925 आते-आते फोर्ड मोटर कंपनी ड्रेटॉयट में मैनेजमेंट की शिक्षा देने के लिए हर साल 100 से ज्यादा भारतीयों को लाने लगी और पढ़ाने के बाद उन्हें विदेश में काम देने लगी। 1882 से 1947 के बीच मेसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से डिग्री हासिल करने वाले 100 भारतीयों में अधिकतर भारत वापस आ गए ताकि वे भारतीय उद्यमों में अपने इंजीनियरिंग कौशल का इस्तेमाल कर सकें।
भारतीय प्रवासियों ने भी अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दिया और अक्सर अपने मूल देश से भी रिश्ते बनाए रखे। साल 1920 में सखाराम गणेश पंडित कैलिफोर्निया में एक सफल अधिवक्ता बने और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में वकालत की। 1930 के दशक में जे. जे. सिंह भारत से न्यू यॉर्क कपड़ा आयात करने वाले समृद्ध कारोबारी बने और उन्होंने अमेरिका में इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स की स्थापना की। जैसे-जैसे भारतीय प्रवासियों की तादाद अमेरिका में बढ़ती गई उन्होंने अमेरिका के कई उद्योगों जैसे कि दवा, इंजीनियरिंग, हॉस्पिटलिटी और तकनीक में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1947 में भारत को आजादी मिलने के बाद व्यापार और निवेश में और बढ़ोतरी हुई और उसके बाद 1990 के दशक में जब भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था के दरवाजे खोले तो इसमें तेजी आई। उदाहरण कई हैं। चिकित्सा उपकरण बनाने वाली कंपनी मेडट्रॉनिक ने 1979 में भारत में अपना काम शुरू किया और साल 2020 आते-आते उसके शोध एवं विकास परिसरों में काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या 1100 तक पहुंच गई। व्हर्लपूल ने 1980 के दशक में एक संयुक्त उद्यम के रूप में भारत में प्रवेश किया और सालों के लगातार विस्तार के बाद वह घरेलू उपकरणों के मामलों में बाजार में अग्रणी ब्रांड बन गया है। आज व्हर्लपूल फरीदाबाद, पुदुच्चेरी और पुणे में आधुनिक मशीनें तैयार कर रही है। इसी तरह से कृषि उपकरण बनाने वाली कंपनी जॉन डीयर 1998 में भारत में आई और उसकी उपस्थिति का दायरा बढ़ रहा है।
अमेरिकी सरकार लंबे समय से भारत के आर्थिक विकास की समर्थक रही है। भारत के विकास की राह में अमेरिका एक अग्रणी सहयोगी रहा है और इसकी जड़ों की तलाश 1950 के दशक के शुरुआती सालों में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और अमेरिकी विदेश मंत्री डीन एकेसन द्वारा शुरू की गई पहल में की जा सकती है। इस पहल के तहत अमेरिका ने भारत में गेहूं उत्पादन के लिए फंड उपलब्ध कराया और भारत के आर्थिक विकास संबंधी प्रोजेक्टों का समर्थन किया। उसके बाद के सालों में यह सहयोग और बढ़ा और इसके दायरे में शिक्षा, ऊर्जा, स्वास्थ्य, बुनियादी सुविधाएं और दूसरे महत्वूर्ण क्षेत्र भी आ गए। आज, अमेरिका और भारत अपनी सीमाओं से कहीं आगे एकसाथ मिलकर एशिया और अफ्रीका में विकास कार्यों में सहभागी बने हुए हैं।
अमेरिका-भारत के आर्थिक रिश्तों में हाल में हुई प्रगति
1990 के दशक के शुरुआती वर्षों में जब भारत की अर्थव्यवस्था ने अपने द्वार खोलने शुरू किए तो आर्थिक संबंधों में तेजी से विस्तार होना शुरू हुआ। पिछले कुछ वर्षों में द्विपक्षीय व्यापार और निवेश काफी विस्तृत और गहरा हुआ है। ऐसा हमारे दोनों देशों की अर्थव्यवस्था और उद्योगों के साथ हुआ है। लघु, मध्यम, और बड़े आकार की कंपनियों ने इसमें मह्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। साथ ही अनगिनत निजी प्रयासों के चलते नए उत्पाद और सेवाएं विकसित हो सकीं, निवेश के निर्णय लिए गए या फिर हिंद-प्रशांत में संबंध बनाए।
पिछले दो दशकों में माल एवं सेवाओं के क्षेत्र में 2001 के 20.7 अरब डॉलर के कारोबार के मुकाबले 2019 में द्विपक्षीय व्यापार 146.1 अरब डॉलर तक पहुंच गया। इसके चलते अमेरिका अब भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया, जबकि भारत अमेरिका का 9वां सबसे बड़ा कारोबारी भागीदार बना।
2019 में, दोनों तरफ से 92 अरब डॉलर का माल का कारोबार किया गया जबकि सेवा क्षेत्र में 54.1 अरब डॉलर का कारोबार हुआ। दरअसल, आज भारत से होने वाले कुल निर्यात का 16 प्रतिशत अकेले अमेरिका को ही होता है। भारत से अमेरिका को जिन चीजों का सबसे ज्यादा निर्यात होता है वे हैं कीमती धातुएं और रत्न, दवाएं, मशीनें, खनिज ईंधन और कार्बनिक रसायन। अमेरिका से भारत को जिन चीजों का निर्यात होता है उनमें कीमती धातुएं और रत्न, खनिज ईंधन और कार्बनिक रसायन के अलावा विमान और उनके कलपुर्जे और बॉयलर और रिएक्टर जैसी मशीनरी शामिल हैं।
अमेरिका से वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात में बढ़ोतरी हुई है जिसके चलते उन्नत तकनीक, उपभोक्ता के सामने विकल्पों की अधिकता और भारतीय कंपनियों के लिए उत्पादन चक्र से जुड़े कलपुर्जे मिलते रहे हैं। इससे भारत वैश्विक अपपूर्ति शृंखला से जुड़ गया और यहां की कंपनियों की प्रतिस्पर्धा क्षमता में वृद्धि हुई।
अमेरिका से भारत को पैसा भेजने के काम में भी खासी बढ़ोतरी हुई है और यह 2017 में 11.7 अरब डॉलर के ऊपर पहुंच गया। इससे भी भारत की अर्थव्यवस्था को और मजबूती मिली है। यहां तक कि अमेरिकी नागरिकों ने निजी हैसियत में भी भारत के विकास और रोजगार के क्षेत्र को मजबूती दी है। भारत में आने वाले पर्यटकों में भी अक्सर सबसे ज्यादा तादाद में अमेरिकी समूह शामिल होते हैं। 2019 में करीब 15 लाख अमेरिकी भारत की यात्रा पर आए।
भारत में बढ़ता अमेरिकी निवेश
हाल के वर्षों में कई अमेरिकी कंपनियों ने भारत में अच्छा निवेश किया है या फिर अपने मौजदा कामकाज को विस्तार दिया है। अमेरिकी कंपनियां भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सबसे बड़ा माध्यम बन गई हैं। अमेरिकी ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक एनालिसिस के अनुसार, अमेरिका से संचयी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 2019 में 46 अरब डॉलर के करीब पहुंच गया था। हालंकि वास्तविक निवेश इससे कहीं ज्यादा है क्योंकि यह आंकड़ा तो अमेरिका से सीधे आने वाले प्रत्यक्ष निवेश को ही दर्शाता है और इसमें सभी प्रकार का अमेरिकी निवेश शामिल नहीं है।
अमेरिकी कंपनियों ने भारत के इतिहास में कुछ सबसे बड़े निवेश किए हैं, जैसे कि 2018 में वॉलमार्ट ने 16 अरब डॉलर में फ़्लिपकार्ट का अधिग्रहण किया और 2020 में विभिन्न अमेरिकी कंपनियों द्वारा रिलायंस जियो में 16 अरब डॉलर का निवेश। भारत में निवेश को लेकर अमेज़न की दिलचस्पी लगातार बनी हुई है। कंपनी ने 2016 में ई-कॉमर्स के क्षेत्र में 5.5 अरब डॉलर के निवेश के बाद साल 2020 में एक अरब डॉलर का अतिरिक्त निवेश किया। अमेज़न वेब सर्विस ने हाल ही में भारत में हैदराबाद में कंपनी के दूसरे डेटा सेंटर में 2.8 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की है। मास्टरकार्ड भारत में एक तेज़ डिजिटल पेमेंट इकोसिस्टम बनाने के लिए प्रतिबद्ध है और कंपनी ने 2014 से लेकर 2019 के बीच इस काम के लिए एक अरब डॉलर का निवेश किया है। कंपनी निकट भविष्य में भारत में अपनी क्षमताओं को बढ़ाने और अभिनव खोज के काम के लिए एक अरब डॉलर का अतिरिक्त निवेश करेगी। 2020 में मास्टरकार्ड ने लघु और मध्यम दर्जे के उद्यमों की मदद के लिए 330 लाख डॉलर की मदद देने की प्रतिबद्धता दर्शाई। जॉन डीयर ने भारत में लगातार अपने निवेश को बढ़ाया है और अब वह 8 उत्पादन और सेवा इकाइयों को यहां चला रही है, जिनमें 4000 से ज्यादा कर्मचारी काम कररते हैं। 2020 में मेडट्रॉनिक ने 16 करोड़ डॉलर के निवेश के साथ हैदराबाद स्थित अपने इंजीनियरिंग और इनोवेशन सेंटरों के विस्तार की घोषणा की। यह अमेरिका के बाहर उसका सबसे बड़ा शोध एवं विकास केंद्र है जहां के कर्मचारी रोबोट की मदद से सर्जरी जैसी आधुनिक तकनीक को केंद्र मे रख कर काम कर रहे हैं। जीई भी करीब एक सदी से भारत में मौजूद है और इस दौरान उसने अपने कार्य के दायरे को काफी बढ़ाया है। उसने भारत के पहले परमाणु बिजलीघर, अमेरिका-भारत संयुक्त गैस टरबाइन प्रोजेक्ट और भारत में परिवहन क्षेत्र में पहली पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मे भारत के साथ काम किया है। इस पार्टनरशिप में 2.5 अरब डॉलर के प्रोजेक्ट के तहत भारतीय रेलवे को 1000 ऐसे डीजल लोकोमोटिव सप्लाई हो रहे हैं जिनमें ईंधन की खपत कम होती है।
बहुत-सी और अमेरिकी कंपनियां भी भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ गहराई से जुड़ी हुई हैं और देश भर में अपनी सहयोगी कंपनियों और सप्लायरों के साथ मिल कर काम कर रही हैं। ऊर्जा उत्पादन से जुड़ी कंपनी कमिंस भारत में काफी बड़े पैमाने पर काम कर रही है और देश भर में उसके 21 केंद्रों पर 10,000 से ज्यादा कर्मचारी काम कर रहे हैं। कंपनी की कई इकाइयों में पर्यावरण को नुकसान से बचाने के लिए हरित उत्पादन तकनीक को अपनाया गया है। बोइंग ने पिछले 75 सालों से भारत से अपना नाता और कारोबार लगातार बढ़ाया है। वह आज देश में 200 से ज्यादा सप्लायरों के साथ काम कर रही है। कंपनी ने पिछले पांच वर्षों में भारत से सॉर्सिंग को चार गुना बढ़ा लिया है जिसमें 787 ड्रीमलाइनर एयरक्रा़फ्ट से जुड़ी संरचना सामग्री भी शामिल हैं। बोइंग ने भारत में सीधे तौर पर 3500 लोगों को रोजगार दिया है जबकि उसने अपने भारतीय सहयोगियों के साथ करीब 7000 लोगों को रोजगार दे रखा है। बोइंग, भारतीय विश्वविद्यालयों, प्रयोगशालाओं और विज्ञान और तकनीक मंत्रालय के साथ मिल कर शोध के काम में भी लगी है।
अमेरिका में भारतीय निवेश में बढ़ोतरी
अमेरिका में कारोबार और निवेश की दृष्टि से भारतीय कंपनियों की संख्या बढ़ती जा रही है। अमेरिकी वाणिज्य मंत्रालय के सेलेक्ट यूएसए डेटा के अनुसार, 2019 में अमेरिका में भारतीय निवेश 16.7 अरब डॉलर रहा जो 2018 के मुकाबले 20 प्रतिशत ज्यादा था और इसके चलते 67000 रोजगारों का सृजन हुआ।
टाटा स्टील का शिकागो में एक बड़ा कार्यालय है और दर्जनों उद्योगों के लिए इस्पात उत्पाद बनाकर वह हज़ारों अमेरिकी रोज़गार में मदद कर रहा है। आदित्य बिड़ला समूह की धातु उत्पादक कंपनी हिंडाल्को ने अमेरिका स्थित एल्युमिनियम उत्पादक कंपनी नोवेलिस और एलेरिस को खरीदने के लिए 8.8 अरब डॉलर का निवेश किया है। महिंद्रा भारी उद्योग के क्षेत्र में सक्रिय है और वह अमेरिका में पांच असेंबली प्लांटों में किसानों के इस्तेमाल में आने वाले ट्रैक्टर और दूसरे उपकरण तैयार करती है। डॉ. रेड्डीज़ लैबोरेटरीज़ लुइसियाना और न्यू यॉर्क में अपनी शोध और उत्पादन इकाइयों में किफायती जेनेरिक दवाएं बनाने का काम करती हैं। साल 2019 में भारत फोर्ज ने नॉर्थ कैरोलाइना में एक एल्युमिनियम उत्पादन संयंत्र में 17 करोड़ डॉलर के निवेश की घोषणा की। डैक्सटर टूल्स और पॉलीहोस समेत कई अन्य भारतीय कंपनियों ने अमेरिका में अपने काम का विस्तार किया है।
हाल के वर्षों में अमेरिका का भारत से वस्तुओं एवं सेवाओं का आयात भी काफी बढ़ा है और साल 2019 में यह बढ़ कर 87.4 अरब डॉलर का हो गया है। इनमें औद्योगिक सप्लाई और उपभोक्ता वस्तुएं एवं सेवाएं जिसमें परिवहन और सूचना एवं संचार तकनीक से जुड़ी सेवाएं शामिल हैं। इसके अलावा, हाल के वर्षों में भारतीय पर्यटकों और विद्यार्थियों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है और साल 2019 में ही इस क्षेत्र से अमेरिकी अर्थव्यवस्था में 16.4 अरब डॉलर का योगदान हुआ है।
सरकारों के प्रयास से आर्थिक विकास को प्रोत्साहन
अमेरिका और भारत की सरकारों ने व्यापार और निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए सुनियोजित वार्ता और उच्चस्तरीय विचार-विमर्श को विस्तार दिया। हमारे नेताओं ने हाल में व्यापार में हुई बढ़ोतरी को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित किया। अमेरिकी राष्ट्रपतियों बराक ओबामा और डॉनल्ड ट्रंप ने अपनी-अपनी भारत यात्राओं के दौरान व्यापारिक समुदाय के प्रतिनिधियों से मुलाकात की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपनी अमेरिका यात्राओं के दौरान नियमित तौर पर व्यापारिक जगत के अगुआ लोगों से मुलाकात की।
हमारे दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश को बढ़ाने के लिए अमेरिकी वाणिज्य मंत्री और भारतीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री के नेतृत्व में अमेरिका-भारत वाणिज्य वार्ता की शुरुआत साल 2000 में हुई। साल 2015-2016 में अमेरिका और भारत के बीच विस्तारित रणनीतिक और वाणिज्य वार्ता में अमेरिकी विदेश मंत्री और भारत के विदेश मंत्री भी शामिल हुए। साल 2017 और 2019 में अलग से वाणिज्य वार्ता फिर से हुई।
अमेरिका-भारत के बीच व्यापार और निवेश को लेकर वरिष्ठ अधिकारियों में लगातार बातचीत होती रहती है। साल 2015, 2016 और 2019 में अमेरिकी वित्त मंत्री और भारतीय वित्तमंत्री ने आर्थिक और वित्तीय सहभागिता संबंधी बैठकों की अध्यक्षता की। साल 2015, 2016 और 2017 में संपन्न अमेरिका-भारत व्यापार नीति फोरम में अमेरिकी वाणिज्य प्रतिनिधि और भारतीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री ने बैठकों की अध्यक्षता की। इसके अलावा, अमेरिका और भारत की सरकारों ने साल 2015, 2016 2019 और 2020 में एक-दूसरे के देशों में आर्थिक अवसरों को बेहतर बनाने के लिए उद्योग जगत के नेताओं के विचार जानने के लिए यूएस-इंडिया सीईओ फोरम की बैठकें आयोजित कीं। इस फोरम ने अमेरिका और भारत की सरकारों को व्यापार और निवेश बढ़ाने के लिए सुझाव दिए, जिनके तहत 2016 में भारतीय दिवालियापन और ऋणशोधन क्षमता संबंधी कानून बन पाया।
हमारी दोनों सरकारों, जिसमें नई दिल्ली और वॉशिंगटन डी.सी स्थित हमारे राजदूत भी शामिल हैं, ने उद्योग आधारित बैठकें करने के अलावा व्यापारिक प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व भी किया है। अगस्त 2018 में, भारत में अमेरिका के राजदूत कैनेथ आई. जस्टर और भारत के रेल एवं कोयला मंत्री पीयूष गोयल ने 15 अमेरिकी कंपनियों के साथ रेलवे से जुड़ी एक राउंड टेबल मीटिंग की। इस मीटिंग के माध्यम से तमाम पक्षों को बाजार तक पहुंच बनाने और वहां आने वाली समस्याओं से निपटने के उपायों को समझने का मौका मिला और साथ ही अमेरिकी कंपनियों को भारतीय रेलवे के ठेके हासिल करने के लिए जरूरी चीजों को समझने का भी मौका मिला। मई 2019 में अमेरिकी वाणिज्य मंत्री विल्बर रॉस के साथ 32 अमेरिकी राज्यों के लघु और मध्यम दर्जे के उद्योगों के 130 सदस्यों का प्रतिनिधिमंडल भारत आया ताकि व्यापारिक सहयोग के उपायों को और बेहतर तरीकों को खोजा जा सके। दिल्ली में एक शुरुआती बैठक के बाद इन कंपनियों के प्रतिनिधि भारतीय कारोबार जगत के नेताओं और सरकारी अफसरों से सीधी मुलाकात के लिए अहमदाबाद, बेंगलुरू, चेन्नई, हैदराबाद, कोलकाता और मुंबई भी गए।
विशिष्ट क्षेत्रों पर अमेरिका और भारत के बीच बातचीत से भी सरकारी नीतियों और व्यापारिक रिश्तों को बेहतर बनाने में मदद मिली है। हाल के वर्षों में अमेरिका-भारत का सूचना-संचार तकनीकी कार्यसमूह तेज गति के 5 जी नेटवर्क में सहयोग के साझा सिद्धांतों पर सहमत हुआ जिससे सुरक्षा और विकास के काम के लिए एक फ्रेमवर्क मिल सकेगा। इसके अतिरिक्त, यह कार्यसमूह ऐसे सरकारी और तकनीकी विशेषज्ञों को एकसाथ लाया जो हमारे साझा हितों और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के अनुरूप, साइबर स्पेस के बारे में हमारे नजरिए को विकसित कर सकें।
अमेरिकी सरकार से भारतीय उद्यमियों और क्षेत्रीय व्यापार को मदद
अमेरिकी सरकार ने भारत में लघु और मध्यम आकार की कंपनियों के विकास में सहयोग किया है जिन्हें विकास, रोजगार सृजन और अभिनव प्रयोगों का जनक माना जाता है। साल 2017 में अमेरिका और भारत ने मिलकर हैदराबाद में विश्व उद्यमिता सम्मेलन (जीईएस) का आयोजन किया। इस आयोजन से उद्यमियों को निवेशकों और अपने अंतरराष्ट्रीय समकक्षों से मिलने का मौका मिला। इस आयोजन का विशेष फोकस महिला उद्यमियों तक पूंजी की पहुंच को प्रोत्साहित करना था। इसी आयोजन में महिला उद्यमिता मंच (डब्ब्यू.ई.पी.) के विचार ने जन्म लिया, जहां महिलाएं अपनी कंपनी को आगे बढ़ाने के बारे में बेहतरीन विचारों को आपस में साझा कर सकें। डब्ल्यू.ई.पी. को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर 8 मार्च 2018 को भारत सरकार के विचार समूह नीति अयोग की सहभागिता में औपचारिक रूप से शुरू किया गया।
विश्व उद्यमिता सम्मेलन के लक्ष्यों को आगे बढ़़ाते हुए अमेरिकी दूतावास ने उद्यमियों में डिजिटल कौशल को बढ़ाने, जेंडर मसलों पर विशेषज्ञों के व्याख्यान और महिला उद्यमियों के लिए मेंटॉरशिप और नेटवर्किंग के मौके उपलब्ध कराने के लिए अनुदान देना शुरू किया। अमेरिकी दूतावास के इंटरनेशनल विजिटर्स लीडरशिप प्रोग्राम के तहत भारतीय महिला लीडरों ने अमेरिका की यात्रा की।
अमेरिकी दूतावास ने साल 2017 में नई दिल्ली स्थितअमेरिकन सेंटर में नेक्सस स्टार्ट-अप हब शुरू किया जिसके चलते भारतीय स्टार्ट-अप कंपनियों ने पूंजी निवेश के रूप में लाखों डॉलर हासिल किए। उनकी ग्राहक सूची में नए नाम जुड़े और घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के साथ उनकी सहभागिता बढ़ी। चारों अमेरिकी वाणिज्य दूतावासों ने उद्यमिता और खासकर महिला उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिए देशभर में कार्यक्रम किए।
पिछले कुछ वर्षों में यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डवलपमेंट (यूएसएड) ने व्हाइट हाउस के नेतृत्व में शुरू हुए वुमेन ग्लोबल एंड प्रॉस्पेरिटी इनीशिएटिव को भारत में कार्यान्वित करने में सहायता की है। इस पहल के तहत महिला सशक्तिकरण के काम को आगे बढ़ाया जा रहा है और महिलाओं का उद्यमी और लीडर के तौर पर कार्यबल में उभरना इसमें शामिल है। उदाहरण के लिए, यूएसएड ने पेप्सिको के साथ मिलकर पश्चिम बंगाल में लेज़ पोटेटो चिप्स सप्लाई चेन के तहत काम करने वाली महिला किसानों को पेशेगत मदद उपलब्ध कराई। यूएसएड ने ऊर्जा के क्षेत्र में महिला उद्यमियों के नेतृत्व को बढ़ाने के लिए टाटा पावर के साथ मिलकर काम किया।
अमेरिका के इंटरनेशनल डवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन (डीएफसी) ने कई बड़े प्रोजेक्ट में मदद की है जिसमें चेन्नई में महिलाओं की कृषि कंपनी के विकास और उत्पादन बढ़ाने के लिए उन्नत तकनीक के इस्तेमाल के लिए 50 लाख डॉलर की गारंटी दी गई। डीएफसी ने महिलाओं के 2एक्स वुमेंस इनीशिएटिव की भी मदद की है जिसके तहत भारत में 1200 महिलाओं के लिए सस्ते घरों हेतु कर्ज़ के लिए लिए निजी क्षेत्र को धन उपलब्ध कराने के लिए प्रेरित किया गया है।
अमेरिकी सरकार ने भारत को अपने पड़ोसियों से जोड़ने के लिए भी कई दूसरे प्रोजेक्ट में सहायता देने का अलावा क्षेत्रीय व्यापार को बढ़़ाने में मदद दी है। साल 2017 के बाद से अमेरिका ने भारत और अफगानिस्तान की सरकारों के साथ तीन प्रॉस्पेरिटी ट्रेड शो को प्रायोजित किया है। इसके कारण भारत और अफगानिस्तान की कंपनियों के बीच हर साल औसतन 3 करोड़ डॉलर से ज्यादा का कोरबार सुनिश्चित हो पाया जो कि प्राथमिक तौर पर कृषि उत्पादों से संबंधित था।
विकास को गति देने में उपराष्ट्रीय कूटनीति की भूमिका
हमारे दोनों देशों के शहरों और राज्यों ने भी हाल ही में व्यापार और निवेश में हुई बढ़ोतरी में सहायता की है। अमेरिका के गवर्नरों, मेयरों और राज्य विधायिकाओं के तमाम सदस्यों ने कारोबारी रिश्तों को बढ़ाने के लिए भारत की यात्राएं की हैं। दरअसल, 2019 के पूरे साल को देखा जाए तो आर्केंसा, कलैराडो, इंडियाना, केंटकी और न्यू जर्सी के गवर्नरों ने भारत की यात्रा की। भारत के कई मुख्यमंत्री भी अमेरिका की यात्रा पर आए और कई ने अपने राज्य में अमेरिकी निवेश के लिए अपने संपर्क प्रतिनिधि तय किए।
व्यापार और निवेश से भविष्य के विकास और समृद्धि की बुनियाद
अमेरिका-भारत कारोबार और निवेश के माध्यम से हम दोनों देशों के विकास का एक लंबा इतिहास रहा है और इसके चलते हमें एक-दूसरे के करीब आने में मदद मिली है। इन संबंधों के कारण हमारी अर्थव्यवस्थाएं, हमारे समाज और परिवार भी एक-दूसरे के करीब आए हैं। आर्थिक सुधारों में बढ़ोतरी और बाजारों तक और ज्यादा पहुंच से और बेहतर विकास की संभावनाएं हैं। जब हम भविष्य की तरफ देखते हैं, तो हमें हिंद-प्रशांत क्षेत्र में और ज्यादा आर्थिक एकीकरण और विकास की संभावनाएं नजर आती हैं।
क्षेत्र विशेष पर नज़र: डिजिटल क्रांति के भागीदार
अमेरिका-भारत के आर्थिक रिश्तों में सूचना एवं संचार तकनीक क्षेत्र सफलता की महान दास्तांओं में से एक है। हमारे संयुक्त प्रयासों ने हमारे दोनों देशों की अर्थव्यवस्था और समाज पर गहरा प्रभाव डाला है। भारत में 160 अरब डॉलर के इस उद्योग का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 8 प्रतिशत का योगदान है जबकि इसने करीब 37 लाख लोगों को प्रत्यक्ष तौर पर रोजगार दे रखा है। 30 साल पहले यह उद्योग एक तरह से अस्तित्वहीन था। इस क्षेत्र के विकास के लिए प्रतिभाओं के अलावा दोनों देशों द्वारा इस क्षेत्र में किए गए निवेश को श्रेय जाता है। वॉलमार्ट उन सबसे बड़ी और सबसे प्रतिष्ठित कंपनियों में शामिल है जिसने इस तरह का निवेश किया है। सबसे ज्यादा उल्लेखनीय है साल 2018 में बेंगलुरू स्थित फ्लिपकार्ट को 16 अरब डॉलर में खरीदना। यह भारत के इत्हिस में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का इकलौता सबसे बड़ा सौदा था। अमेज़न ने भारत में अपने कारोबार की पैठ को और गहरा बनाने के लिए एक अरब डॉलर का निवेश किया। इन दोनों अमेरिकी कंपनियों ने मिलकर भारत में तेजी से बढ़ते ई-कॉमर्स कारोबार में 23.7 अरब डॉलर से ज्यादा का निवेश किया है। विकसित अमेरिकी मंचों का इस्तेमाल करते हुए भारत के छोटे और मझोले उद्यमों ने इन दोनों ई-कॉमर्स कंपनियों के जरिए अपने निर्यात को तेज़ी से बढ़ाया है। अमेज़न के वैश्विक बिक्री प्रोग्राम के जरिये भारतीय विक्रेताओं ने दो अरब डॉलर से ज्यादा की बिक्री की है। उन्होंने भारतीय बाजार में इन कंपनियों के निवेश द्वारा प्रदान की गई भंडारण और परिवहन सुविधाओं का इस्तेमाल किया।
सिर्फ ई-कॉमर्स ही वह इकलौता तकनीकी क्षेत्र नहीं है जो अमेरिकी निवेश और सहभगिता को आकर्षित कर रहा है। टेलीकम्युनिकेशंस, एजुकेशनल टेक्नोलॉजी, फाइनेंशियल टेक्नोलॉजी और अन्य क्षेत्रों की तमाम दूसरी स्थापित कंपनियों ने एक वैश्विक डिजिटल ताकत के रूप में भारत को पहचाना है। रिलायंस जियो ने अभी हाल ही में फेसबुक, गूगल, क्वालकॉम और माइक्रोसॉ़फ्ट जैसी प्रतिष्ठित कंपनियों से 16 अरब डॉलर से ज्यादा का निवेश हासिल किया है। दूसरी अमेरिकी कंपनियों ने बाइजूज़, अनएकेडमी, आकाश और पेटीएम जैसे भारतीय स्टार्टअप में निवेश किया है।
कई भारतीय कंपनियों ने अमेरिका में निवेश किया है और वहां डिजिटल बदलाव में सहायक बन रही हैं। जो भारतीय कंपनियां अमेरिका में काम कर रही हैं, उनमें से 27 प्रतिशत सूचना-संचार तकनीक के क्षेत्र से संबंधित हैं। इनमें इनफोसिस, विप्रो, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़ और एचसीएल टेक्नोलॉजी ने अकेले दम पर 30000 से ज्यादा लोगों को रोजगार दे रखा है। अरबों डॉलर की इन कंपनियों ने अपने अमेरिकी ग्राहकों को सॉ़फ्टवेयर डवलपमेंट, आईटी कंसल्टिंग और कर्मचारियों की उपलब्धता के जरिये उनके कामकाज में कुशलता प्रदान कर बदलते माहौल में अमेरिकी प्रतिस्पर्धा को सुनिश्चित किया है।
इसके अतिरिक्त, अमेरिका और भारत के बीच सहयोग में मोबाइल कम्युनिकेशंस भी एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है और इस क्षेत्र की गतिशीलता और सुरक्षा सुनिश्चित की गई है। भारत के तीन बड़े नेटवर्क, जियो, एयरटेल और वोडाफोन ने एल्टियोस्टार, सिस्को और मावेनिर जैसी अमेरिकी कंपनियों से ओपन वर्चुवलाइज्ड रेडियो एक्सेस नेटवर्क (ओपन वीआरएएन) तकनीक को विकसित और प्रसारित करने के लिए सहभागिता कर रखी है। यह तकनीक पारंपरिक मानकों के मुकाबले कहीं ज्यादा सुरक्षित और किफायती है। जब इस तरह की तकनीक इस्तेमाल की जाती है- खासकर बहुत तेज गति वाले 5 जी नेटवर्क के साथ, तब भारतीय कंपनियां अपने उपभोक्ताओं, कंपनियों और सरकारों को डिजिटल कनेक्टिविटी के क्षेत्र में ऐसी सेवाएं दे पाएंगी, जो गैरभरोसेमंद तीसरे पक्ष की किसी भी तरह के दखलंदाजी की आशंकाओं से मुक्त हो और यह वैश्विक उदाहरण बनेगा।
अमेरिका-भारत आईसीटी वर्किंग ग्रुप ने आपसी सहमति के साझा सिद्धांतों के अनुरूप इस सहयोग पर अपनी रजामंदी जताई है जिसमें सुरक्षा और विकास को लेकर एक फ्रेमवर्क उपलब्ध है। वर्किंग ग्र्ुप ने कई तरह के सरकारी अफसरों और तकनीकी विशेषज्ञों को एकजुट करके एक-दूसरे के हितों और साझा लोकतांत्रिक सिद्धांतों के अनुरूप साइबरस्पेस के बारे में अपने संयुक्त दृष्टिकोण को सामने रखा है। अमेरिकी पेटेंट और ट्रेडमार्क ऑफिस ने इस क्षेत्र में शोध और नवप्रवर्तन में सहायता देने और दूसरे मसलों के लिए हाल ही में भारत के लिए एक अताशे को नियुक्त किया है।
यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डवलपमेंट (यूएससएड) भारत और अफगानिस्तान के बीच व्यापार को प्रोत्साहित करने के साथ ही निजी क्षेत्र के निवेश को प्रेरित करने के लिए कार्यरत है। दक्षिण एशिया में अफगानिस्तान के समर्थन में अमेरिकी रणनीति के तहत इस त्रिपक्षीय सहयोग से कई क्षेत्रों में आर्थिक मजबूती और क्षेत्रीय स्थायित्व को बल देने का प्रयास है।
अफगान कंपनियां उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद बनाती हैं लेकिन उन कंपनियों को संभावित खरीदारों से मांग और भारत समेत संभावित बाजारों से संपर्क की जानकारी का अभाव होता है। यूएसएड भारत के साथ मिलकर दक्षिण एशिया के साथ अफगानिस्तान के आर्थिक एकीकरण के लिए प्रयासरत है। साल 2017 से यूएसएड ने भारत और अमेरिका की सरकारों के साथ मिलकर तीन सालाना ट्रेड शो का आयोजन किया जिन्हें पैसेज टू प्रॉस्पेरिटी का नाम दिया गया। इन शो के नतीजे में अफगान और भारतीय कंपनियों के बीच सालाना औसतन तीन करोड़ डॉलर का कारोबार सुनिश्चित हो सका जो अधिकतर कृषि संबंधी वस्तुओं का था।
साल 2019 में, करीब तीन करोड़ 36 लाख डॉलर के करार पर दस्तखत किए गए। इनमें से अधिकतर कृषि क्षेत्र से संबंधित थे। इसके अलावा दो करोड़ 33 लाख डॉलर के संभावित कारोबार के बारे में विचार-विमर्श किया गया। 2019 के पैसेज टू प्रॉस्पेरिटी ट्रेड शो की एक विशेषता महिला कारोबारियों से संबंधित था जिसमें भारत और अफगानिस्तान की महिला उद्यमियों के मालिकाना हक वाली कंपनियों के बीच छह एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए। इस ट्रेड शो में कुल कारोबार का 24 फीसदी हिस्सा महिला उद्यमियों की कंपनियों के बीच हुआ।
महिलाओं की 2एक्स पहल
अमेरिका के इंटरनेशनल डवलपमेंट कॉरपोरेशन (डीएफसी) के 2एक्स वुमेन्स इनीशिएटिव के तहत दुनिया भर में महिलाओं के सामने आने वाली खास चुनौतियों का समाधान करने की प्रतिबद्धता के अलावा उनके सामने ह़जारों अरबों डॉलर की अर्थव्यवस्था के अवसरों को भी खोलना है। उदाहरण के लिए, कर्ज देने वाली कंपनी एवियम को 35 करोड़ रुपयों का वित्तपोषण, जिससे वह करीब 1200 महिलाओं को आवास के लिए कज़र् दे पा रही है। एवियम अधिकतर ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को कर्ज देने का काम करती है और उसने औसतन 4000 डॉलर के कर्ज उपलब्ध कराए हैं। एवियम से सहायता प्राप्त करने वाली बहुत-सी महिलाएं अनौपचारिक क्षेत्र में काम करती हैं, उनके पास आय के कोई प्रमाण नहीं हैं और उन्हें दूसरी किसी भी तरह से आवास ऋण मिलना संभव नहीं था। किफायती आवास ऋण के तौर पर मिली रकम से महिलाओं के लिए अपना घर बनाने के साथ एक क्रेडिट हिस्ट्री बना पाना भी संभव हुआ। डीएफसी के 2एक्स वुमेन्स इनीशिएटिवको आगे बढ़ाते हुए एवियम ने अपने मिशन और गतिविधयों में महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण को मूल में रखा है। इसके अलावा, एवियम ने जेंडर क्रेडिट गैप की खाई को पाटने में सहायता दी है। एवियम की स्थापना एक महिला उद्यमी ने की और इसके प्रबंधन मंडल का काम देखने वालों में भी बहुसंख्या में महिलाएं ही हैं।
कोविड-19 महामारी में सरकार और निजी क्षेत्र साथ-साथ
कोविड-19 महामारी के दौर में अमेरिका और भारत के बीच द्विपक्षीय सहयोग और महत्वपूर्ण हो गया है। अमेरिका और भारत दोनों ही देशों की सरकारों ने अपने-अपने नागरिकों को स्वदेश लाने में विमान सेवाओं, हवाई अड्डोंऔर दूसरी सेवा उपलब्ध कराने वालों के साथ मिलकर काम किया। लगभग 6000 अमेरिकी नागरिकों और उनके परिजनों को अमेरिकी दूतावास ने भारतीय अधिकारियों और निजी विमान सेवाओं के सहयोग से स्वदेश वापसी के लिए उड़ान सुविधा प्रदान कराई। भारत सरकार ने अपने हजारों नागरिकों को वापस लाने में मदद की। दोनों देशों की सरकारों ने विशेष उड़ानों और मालवाहक विमानों में सुरक्षा उपकरण, दवाइयां, और दूसरी जरूरी वस्तुओं और सेवाओं की सप्लाई को बनाए रखने के लिए निजी कंपनियों के साथ निकटता से संपर्क बनाए रखा।
इसके अतिरिक्त कोविड-19 के इलाज और वैक्सीन रिसर्च के संदर्भ में हमने दवा उद्योग और शोध संस्थाओं के साथ मिलकर काम किया। यूएससएड ने 200 उच्च गुणवत्ता वाले वेंटिलेटर भारत सरकार को प्रदान किए और एक वारंटीयुक्त पैकेज के लिए सहायता दी। यूएसएड ने भारत सरकार के साथ निकटता से काम करते हुए उन हेल्थ केयर सेंटरों की क्षमता को बेहतर बनाने के लिए काम किया जहां इन वेंटिलेटरों का इस्तेमाल हो रहा था। इन वेंटिलेटरों को लगाने में मदद के अलावा हेल्थकेयर कर्मचारियों को क्लीनिकल ट्रेनिंग उपलब्ध कराई गई।
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