भारत की विरासत का उत्सव

सांस्कृतिक संरक्षण के लिए अमेरिकी राजदूत के कोष (एएफ़सीपी) ने 2022 में अपने प्रोजेक्टों की अवधि के 20 साल होने का उत्सव मनाया। भारत में अमेरिकी मिशन ने, एएफ़सीपी के माध्यम से, संरक्षण एजेंसियों से गठजोड़ किया जिससे कि ऐतिहासिक स्थलों और अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण और जीर्णोद्धार हो सके और भारत की विविध संस्कृति और परंपराओं का जश्न मनाया जा सके।

नवंबर 2022

भारत की विरासत का उत्सव

एएफ़सीपी प्रोग्राम ने पूरे भारत में ऐतिहासिक भवनों और स्मारकों, पुरा महत्व के स्थलों और अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में मदद की है। अमेरिकी मिशन ने 29 नवंबर 2022 को भारत में  एएफ़सीपी प्रोजेक्टों के 20 साल पूरे होने का उत्सव मनाया।

नई दिल्ली स्थित 16वीं सदी का बताशेवाला मुगल मकबरा परिसर तब तक उपेक्षा और बदहाली का शिकार था जब तक कि सांस्कृतिक संरक्षण के लिए अमेरिकी राजदूत के कोष (एएफ़सीपी) के ग्रांट प्रोग्राम से आगा खान सांस्कृतिक ट्रस्ट (एकेटीसी) को इसके ऐतिहासिक और मूल वास्तु की बहाली के लिए फंड नहीं मिला। एकेटीसी एक निजी लोकोपकारी संगठन है। बताशेवाला परिसर के जीर्णोद्धार की शुरुआत 2011 में हुई और इसे 2015 में लोगों के लिए खोल दिया गया।

एएफ़सीपी के माध्यम से भारत में अमेरिकी मिशन ने पिछले दो दशकों में ऐतिहासिक मूर्त और अमूर्त विरासत के दस्तावेज़ीकरण, संरक्षण और जीर्णोद्धार के लिए संरक्षण एजेंसियों के साथ मिलकर काम किया है। इसके तहत बताशेवाला मकबरा परिसर जैसे 23 अहम ऐतिहासिक स्थलों और विरासत स्थलों के जीर्णोद्धार के लिए फंड उपलब्ध कराया गया है।

बताशेवाला मकबरा हुमायूं मकबरा परिसर- यूनेस्को विश्व धरोहर- के साथ ही है। एएफ़सीपी की मदद से सुंदरवाला बुर्ज और अरब सराय कॉम्पलेक्स गेटवे का जीर्णोद्धार किया गया है। वर्ष 2022 में अमेरिकी मिशन ने भारत में एएफ़सीपी मदद के 20 साल होने पर सुंदर नर्सरी, जहां पर सुंदरवाला बुर्ज है, में स्मरणोत्सव का आयोजन किया।

एएफ़सीपी प्रोग्राम ने पूरे भारत में ऐतिहासिक भवनों और स्मारकों, पुरा महत्व के स्थलों, म्यूज़ियम संग्रहों, एथ्नोग्राफी से संबंधित चीज़ों, पेंटिंग, पांडुलिपियों, देसी भाषाओं और पारंपरिक सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के संरक्षण में मदद की है।

एएफ़सीपी फंड का इस्तेमाल पश्चिमी राजस्थान के लांगा और मंगानियार समुदायों के लुप्त होते लोक संगीत को रिकॉर्ड करने और उसे लिपिबद्ध करने के लिए किया गया है। इसका इस्तेमाल बेंगलुरु के युनाइटेड थियोलोजिकल कॉलेज में ताड-पत्रों की पांडुलिपियों और दुर्लभ पुस्तकों के संरक्षण के लिए भी किया गया है।

अमेरिका की प्रभारी राजदूत पैट्रिसिया लैसिना ने भारत में एएफ़सीपी के 20 साल पूरे होने के अवसर पर 29 नवंबर 2022 को आयोजित कार्यक्रम में कहा, “भारत की समृद्ध सांस्कृतिक पंरपरा का अमेरिका और विश्व पर बेहद प्रभाव पड़ा है। अमेरिका को भारत के साथ भागीदारी पर गर्व है। हम सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा, संरक्षण और बढ़ावा देने के लिए हमारे संयुक्त प्रयासों के लिए प्रतिबद्ध हैं और भविष्य में हमारे महत्वपूर्ण कार्य को जारी रखने को तत्पर हैं।”

मूर्त और अमूर्त विरासत के संरक्षण और जीर्णोद्धार के अलावा एएफ़सीपी प्रोजेक्टों का महत्वपूर्ण आर्थिक असर भी रहा है। वे पारंपरिक निर्माण उद्योगों को शक्ति देते हैं, भारतीय शिल्पकारों को रोज़गार देते हैं और महिलाओं और युवाओं से रूबरू होते हैं। एकेटीसी के सीईओ रतिश नंदा कहते हैं, “सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण आर्थिक लिहाज से उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है, जितना कि हम सोचते हैं। इससे न सिर्फ पर्यटन को बढ़ावा मिलता है, बल्कि स्थानीय समुदायों का रोज़गार, शिक्षा और स्वायत्तता के माध्यम से सशक्तिकरण भी होता है।” नंदा के नेतृत्व में ही एकेटीसी ने नई दिल्ली में हुमायूं मकबरे के बगीचे को उसका खोया वैभव लौटाया।

एएफ़सीपी की शुरुआत अमेरिकी विदेश विभाग ने अमेरिकी मूल्यों और दूसरी संस्कृतियों के प्रति आदर भाव को प्रदर्शित करने के लिए वर्ष 2001 में की थी। अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडियन स्टडीज (एआईआईएस) की महानिदेशक पूर्णिमा मेहता का कहना है कि एएफ़सीपी प्रोजेक्ट, “अमेरिका और भारत के नागरिकों के बीच परस्पर समझ को बढ़ावा देते हैं और आगे ले जाते हैं।”

वर्ष 2001 के बाद से अब तक विश्व भर में एएफ़सीपी के माध्यम से 1100 से अधिक प्रोजेक्ट की मदद की गई है। पिछले दो दशक में अमेरिकी जनता ने भारत में 20 लाख डॉलर से भी अधिक का निवेश किया है।


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