भारत और अमेरिका में कानूनी और कारोबारी विशेषज्ञ विजित चाहर ने उन विशेषताओं को रेखांकित किया है जो अमेरिकी बाज़ार में सफल होने के लिए किसी स्टार्ट-अप में होनी चाहिए।
सितंबर 2021
विजित चाहर ने अपनी मास्टर क्लास का स्वरूप अमेरिकी कानून के परिप्रेक्ष्य में इस तरह से निर्धारित किया है ताकि वह भारतीय स्टार्ट-अप को उन चीजों के बारे में बता सकें जिन्हें जानना बहुत ज़रूरी है। इलस्ट्रेशन: कासिम रज़ा, फोटोग्राफ: ©गेटी इमेजेज
अमेरिका में कारोबार के इच्छुक भारतीय स्टार्ट-अप के लिए राह थोड़ी जटिल हो सकती है। अमेरिका और भारत दोनों ही जगहों पर लाइसेंस वाले एटर्नी विजित चाहर के अनुसार, ‘‘समस्या ज्ञात या अज्ञात के बारे में जानने की नहीं है, बल्कि अज्ञात के बारे में पता न होने की है।’’ विजित के पास कानून और अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट डिग्री है।
चाहर की मास्टर क्लास ‘‘डूइंग बिजनेस इन द यूएस: ए लीगल प्राइमर फॉर इंटरनेशनल ऑट्रेप्रिन्योर्स एंड स्टार्ट-अप्स’’ विषय पर अप्रैल 2020 में नई दिल्ली के अमेरिकन सेंटर में नेक्सस स्टार्ट-अप हब के जरिए वर्चुवल तौर पर आयोजित हो पाई। इसमें भारतीय स्टार्ट-अप के रास्ते में आने वाली अनजान दिक्कतों में किस तरह से मदद मिल सकती है, इस पर चर्चा हुई। इन उपायों में जहां अमेरिका में नियमों के उल्लंघन की स्थिति में पेनल्टी देने और नुकसान की भरपाई के लिए सिविल मुकदमे कायम हो जाते हैं, वहीं भारत में ऐसी स्थिति में छोटे-मोटे हर्जाने ही दिए जाते हैं। चाहर के अनुसार, ‘‘अमेरिका में तो कभी-कभी इतनी पेनल्टी लगाई जा जा सकती है जिसके कारण कंपनी ही दिवालिया हो सकती है।’’
कानून को जानना ज़रूरी
चाहर ने अपनी मास्टर क्लास का स्वरूप अमेरिकी कानून के परिप्रेक्ष्य में इस तरह से निर्धारित किया था ताकि वे भारतीय स्टार्ट-अप को उन चीजों के बारे में बता सकें जिन्हें उनका जानना बहुत ज़रूरी है। चाहर के अनुसार, ‘‘इनमें कॉरपोरेट ला (अगर अमेरिका में पंजीकृत हैं), बौद्धिक संपदा कानून, आयात-निर्यात नियम, प्रॉडक्ट दायित्व कानून, कर कानून और करार अधिनियम (लाइसेंसिंग और डिस्ट्रीब्यूटशन की दृष्टि से) शामिल हैं।’’ चाहर के अनुसार, कुछ दूसरे कारोबारों के लिए लागू होने वाले दूसरे नियमों की जानकारी भी जरूरी होती है जैसे कि वायरलेस उपकरणों पर लागू होने वाले फेडरल कम्युनिके शंस कमीशन के नियम।
लेकिन यही सब कुछ नहीं है
चाहर स्पष्ट करते हैं, ‘‘अमेरिका में भारत से स्थितियां काफी मिन्न हैं और वहां राज्य और स्थानीय कानूनों का दायरा काफी व्यापक है। इसका मतलब यह हुआ कि भारतीय स्टार्ट-अप को अपने कारोबार से संबद्ध संघीय, राज्य और स्थानीय कानूनों के बारे में और ज्यादा जानने और उसका पालन करने की जरूरत है। किसी सामान्य व्यक्ति के लिए इतना सब कुछ दुरुस्त रख पाना नामुमकिन है, इसलिए उचित कानूनी सलाह लेना जरूरी हो जाता है।’’
कानूनी दायरे की इसी व्यापकता को दिमाग में रखते हुए चाहर ने अपनी मास्टर क्लास में प्रतिभागियों का सामना ऐसे सवालों के जवाब से कराया जो उन्हें ऐसे मामलों में गलतियों से बचाने के लिए जरूरी हैं ताकि चाहर के शब्दों में ‘‘उन्हें अमेरिकी अदालतों से महंगी सीख मिलने से बचा जा सके।’’
अनुबंध पर मोलतोल
अमेरिका में कारोबार के लिए खासतौर पर महत्वपूर्ण है अनुबंध के विशेष प्रावधानों को समझना।
चाहर के अनुसार, ‘‘स्टार्ट-अप के लिए सबसे जरूरी यह जानना है कि कुछ कारोबारी अनुबंध तोलमोल वाले होते हैं और कुछ नहीं। उदाहरण के लिए, वॉलमार्ट जैसी बड़ी कंपनी अपने छोटे सप्लायरों के साथ अपने खरीदारी अनुबंधों की शर्ें पर कोई समझौता नहीं करती, जबकि कोई छोटी कंपनी अपनी जरूरतों के हिसाब से तमाम तरीके की शर्तों पर बातचीत के लिए तैयार रहती है।’’ ऐसे मामलों में, वह सलाह देते हैं कि क्लाइंट के साथ अपने क स्टमर कॉट्रेक्ट पर बातचीत के लिए कानूनी सलाह ली जानी चाहिए बजाए इसके कि ऐसे मामलों में किसी पहले से चलते आ रहे करारनामे को स्वीकार कर लिया जाए। अपने मकसद के हिसाब से ली गई कानूनी सलाह भिन्न कारोबारी संस्कृतियों की वजह से पैदा होने वाली समस्याओं से बचाती है। चाहर के अनुसार, ‘‘भारत के मुकाबले, अमेरिकी कारोबार करारनामे पर नए सिरे से बात करने को लेकर चौकन्ने रहते है।’’ उनके अनुसार, ‘‘करारनामे की शर्तों को पूरा न कर पाने के नतीजे में आपकी साख और फिर से कारोाबर मिलने पर असर पड़ता है।’’
अमेरिकी कैपिटल मार्केट से फंड
चाहर खासतौर से अमेरिकी सीड और वेंचर निवेशकों के साथ काम करते हैं जो विशेष तौर पर डेलावेयर सी कॉरपोरेशंस में निवेश करते हैं। ये कंपनियां शेयरों के जरिये शेयरहोल्डर के स्वामित्व वाली होती हैं। चाहर के अनुसार, ऐसे सीड और वेंचर निवेशक ‘‘सभी कानूनी औपचारकिताओं और मानक कारोबारी नियमों का अनुपालन’’ पर निगाह रखते हैं।
करारनामे पर ढंग से बातचीत निवेशकों को कई तरह की गलतियों से बचा जाती है। फटाफट काम को निपटाने के चक्कर में गलतियों की आशंका को दरकिनार नहीं किया जाना चाहिए। इसी कराण चाहर कहते हैं, ‘‘यह जरूरी है कि शुरुआत में ही संयम के साथ चीजों को समझते हुए सही तरीके से आगे बढ़ा जाए।’’ उनका कहना है कि भारतीय स्टार्ट-अप को अमेरिका में पंजीकरण कराना चाहिए, यदि ‘‘काफी राजस्व मिलने या फिर पार्टनरशिप बनने की बात हो, सिर्फ इसलिए नहीं कि उनका वैल्युएशन बढ़ जाएगा।’’ अगर अमेरिका में पंजीकरण कराने में कोई लाभ नहीं दिखे तो ‘‘अधिकतर अमेरिकी वेंचर कैपिटलिस्टों के भारत में कार्यालय हैं और इसलिए भारत में पंजीकृत तमाम स्टार्ट-अप्स की उनके संसाधनों तक पहुंच कहीं आसान है।’’
अनूठा रास्ता
चाहर के अनुसार, ‘‘अमेरिका में कारोबार करने वाले भारतीय स्टार्ट-अप की सबसे बड़ी दिक्कत उनकी खुद की तैयारियों में कमी और उनकी ढुलमुल निर्णय क्षमता को लेकर है।’’ तमाम भारतीय स्टार्ट-अप उनके पास ऐसी योजनाएं लेकर आते हैं जो अतीत में दूसरे संस्थापकों के काम पर आधारित होते हैं।
चाहर स्पष्ट करते हैं, ‘‘ऐसा कुछ बॉयलरप्लेट एग्रीमेंट वाले मामलों में ही संभव हो सकता है लेकिन कानूनी, कारोबारी और आर्थिक रूप से पूरी तरह से भिन्न परिवेश में ऐसा करना मुसीबत को न्यौता देने के समान है, खासतौर पर तब जब यह मामला एक अलग तरह का कारोबार करने वाले, एक अलग तरह के स्टार्ट-अप का हो।’’
उनका कहना है, ‘‘अमेरिका में कारोबार के विस्तार की एक ठोस योजना होना जरूरी है और ऐसी हर कंपनी को अमेरिकी कानून, कारोबारी तौरतरीके और अर्थव्यवस्था की जानकारी होनी चाहिए। अमेरिका में काम करने वाले भारतीय स्टार्ट-अप के सामने इस समय सबसे बड़ी चुनौती यही है कि उन्होंने किसी दूसरे के लिए कारगर रणनीति और आधीअधूरी जानकारियों पर आधारित नहीं अपनानी चाहिए।’’
चाहर चाहते हैं कि वे आने वाले महीनों में फॉलोअप मास्टर क्लास का आयोजन करें। हालांकि इसके लिए उन्होंने अभी कोई तारीख निर्धारित नहीं की है। इसका स्वरूप बहुत कुछ पहले की कक्षा की विषयवस्तु से आगे बढ़ेगा। यह अमेरिकी बाजार में अपनी क्षमता के बेहतरीन प्रदर्शन के लिए स्टार्ट-अप को कानूनी दृष्टि से दिशा निर्देशन देने का काम करना जारी रखेगी। ‘‘’’
कैरी लॉवेन्थल मैसी स्वतंत्र लेखिका हैं। वह न्यू यॉर्क सिटी में रहती हैं।
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