अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रोजेक्ट इको

तकनीक, परामर्श और चिकित्सकीय विशेषज्ञता को मिलाकर प्रोजेक्ट इको तैयार करने वाले डॉक्टर संजीव अरोड़ा भारत में हाशिये पर रहने वाले लोगों तक चिकित्सा सेवाओं की पहुंच बढ़ाना चाहते हैं।

माइकल गलांट

मार्च 2020

अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रोजेक्ट इको

 न्यू मेक्सिको में वर्ष 2003 में प्रोजेक्ट इको की शुरुआत करने वाले अल्बुकर्क, न्यू मेक्सिको के यकृत रोग विशेषज्ञ डॉ. संजीव अरोड़ा। फोटोग्राफः साभार सारा मोटा

अगर आप बड़े शहर में रहते हैं, तो वहां हर बीमारी के लिए विशेषज्ञ डॉक्टरों तक पहुंचना कठिन काम नहीं, लेकिन यदि आप ग्रामीण इलाके में रहते हैं, तो जटिल रोगों के इलाज के लिए क्या करेंगे? जिस विशेषज्ञ की आप तलाश कर रहे हों, संभव है कि वह वहां से हजारों किलोमीटर दूर रहते हों। इसी समस्या के हल के लिए प्रोजेक्ट इको (एक्सटेंशन फॉर कम्युनिटी हेल्थकेयर आउटकम्स) की शुरुआत की गई। यह एक नवाचार भरा व बहुद्देश्यीय मॉडल है, जो हाशिये के समुदायों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की संभावना बढ़ाता है।

न्यू मेक्सिको के अल्बाकर्की में रहने वाले यकृत रोग विशेषज्ञ डॉ. संजीव अरोड़ा ने वर्ष 2003 में इको की शुरुआत एक हैरान करने वाली सच्चाई का सामना करने के बाद की। दरअसल उन्होंने पाया कि उनके अपने गृह राज्य में हेपेटाइटिस-सी के हजारों मरीज अपना इलाज सिर्फ इसलिए नहीं करा पाते थे, क्योंकि जहां वे रहते थे, वहां से इस रोग के विशेषज्ञ डॉक्टर बहुत दूर रहते थे। इस समस्या के समाधान के लिए डॉ. अरोड़ा ने एक फ्री एजुकेशनल मॉडल की स्थापना की। इसके तहत वह तथा उन जैसे डॉक्टर न्यू मेक्सिको में कहीं भी स्थानीय स्तर पर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करने वाले डॉक्टरों तथा संस्थाओं को इस रोग के इलाज के बारे में बताते हैं और चिकित्सा प्रक्रिया पर नजर भी रखते हैं। हालांकि इको की शुरुआत करने वाले डॉ. अरोड़ा का लक्ष्य और भी व्यापक था। साल 2013 के एक टेडेक्स टॉक में उन्होंने कहा, ‘‘हमें जल्दी ही समझ में आ गया कि अगर हम ग्रामीण इलाके में हेपेटाइटिस-सी जैसी बीमारी का इलाज कर पाए… तो विकासशील देशों में दूसरी जटिल बीमारियों का इलाज करने का मॉडल भी हमारे पास होगा।’’

इको की स्थापना के तुरंत बाद डॉ. अरोड़ा ने पूरे न्यू मेक्सिको में 21 ‘‘सेंटर ऑफ एक्सीलेंस’’ खोले। हरेक केंद्र में चिकित्सा सेवा देने वाला एक स्थानीय चिकित्सक होता था, और इन चिकित्सकों पर पूरे राज्य में हेपेटाइटिस-सी का इलाज करने की जिम्मेदारी थी। लेकिन विशेषज्ञ डॉक्टरों के निर्देश का पालन करना एक बात है और बीमारी का इलाज करना अलग बात। डॉ. अरोड़ा के सामने थोड़े ही समय में स्थानीय चिकित्सकों को गंभीर बीमारी के बेहतर इलाज के उन तरीकों के बारे में बताने की चुनौती थी, जिसे उन्होंने वर्षों की पढ़ाई और अनुभव से हासिल किया था। लेकिन डॉ. अरोड़ा को जल्दी ही एक समाधान भी मिल गया, वह था- बीमारी के हर मामले से सीखना।

प्रोजेक्ट इको में स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने वाले स्थानीय कार्यकर्ताओं को टेक्नोलॉजी के जरिए जरूरी जानकारियां प्रदान की जाती हैं। यहां तक कि दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वाले स्वास्थ्य कार्यकर्ता भी साप्ताहिक वेब आधारित कॉल और स्पेशलिस्ट टीमों के साथ वर्चुअल बैठकों के माध्यम से जुड़े रहते हैं। ये टीम स्थानीय कार्यकर्ताओं को सलाह देती हैं कि अलग-अलग मरीजों को किस तरह ठीक किया जा सकता है। प्रोजेक्ट इको पारंपरिक ‘‘टेली मेडिसिन’’ की तरह नहीं है, जिसमें एक विशेषज्ञ मरीज की बेहतर देखभाल के तरीके बताता है, बल्कि यह ‘‘टेली मेंटरिंग’’ यानी गाइडेड प्रेक्टिस मॉडल है, जिसमें भागीदारी करने वाले स्वास्थ्य कार्यकर्ता मरीजों के प्रबंधन की जिम्मेदारी संभालते हैं।

वर्ष 2010 में भारत में नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन और मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के सहयोग से एचआईवी/एड्स रोगियों के इलाज के लिए पहले इको क्लीनिक की शुरुआत हुई। उसके बाद से नशा छुड़ाने, मानसिक स्वास्थ्य, टीबी, हेपेटाइटिस-सी, यकृत की बीमारियों, कैंसर की जांच और रोकथाम तथा दूसरी बीमारियों की चिकित्सा के लिए प्रोजेक्ट इको के अनेक क्लीनिक चल रहे हैं। भारत में संचालित सारे इको प्रोग्राम गैरलाभकारी ट्रस्ट इको इंडिया के तहत आते हैं जिसका पंजीकरण वर्ष 2008 में हुआ। यह ट्रस्ट स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और पर्यावरण सुरक्षा के क्षेत्र में इको मॉडल को दोहराने के लिए काम करता है।

भारत में इसके केंद्र अब 10 राज्यों में काम कर रहे हैं, जबकि भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के साथ इसकी साझेदारी है। वर्ष 2018 में इको इंडिया ने आयुष्मान भारत योजना के तहत क्षमता निर्माण कर्त्ता के तौर पर नेशनल हेल्थ सिस्टम रिसॉर्स सेंटर (एनएचएसआरसी) के साथ साझेदारी की। लक्ष्य है पूरे देश में 153,000 स्वास्थ्य एवं सेहत केंद्र बनाने का। इन केंद्रों में कर्मचारियों की क्षमता बढ़ाने के लिए इको इंडिया की ओर से सहायता की जाएगी। लखनऊ की किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी तथा महाराष्ट्र के नेशनल हेल्थ मिशन पहले से ही इको केंद्रों के तौर पर काम कर रहे हैं, जहां एक्रेडिटेड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट (आशा) कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण के लिए पायलट प्रोग्राम चल रहा है। इस काम में कम्युनिटी एम्पावरमेंट लैब और नेशनल हेल्थ मिशन, उत्तर प्रदेश के साथ गठजोड़ किया गया है। उद्देश्य है कि ऐसे केंद्र सभी राज्यों में शुरु किए जाएं।

आयुष्मान भारत कार्यक्रम का एक लक्ष्य व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करना है। इसके तहत इसके हेल्थ एंड वेलनेस केंद्रों में 12 सेवाओंसकी विस्तृत सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं। इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए हर हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर में एक मध्य स्तर के स्वास्थ्य सेवा कार्यकर्ता की व्यवस्था की जानी है। इन स्वास्थ्य सेवा कार्यकर्ताओं के संयुक्त प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के लिए एनएचएसआरसी ने प्रोजेक्ट इको के साथ साझेदारी की है।

स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में ज्ञान को ऊपर से नीचे तक साझा करने की यानी विशेषज्ञों, डॉक्टरों, अर्द्धचिकित्सकीय पेशेवरों, मध्यवर्ती स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं तथा जमीनी स्तर के कार्यकर्ओं से इसे साझा करने की व्यवस्था की जाएगी, जिससे कि लगतार क्षमता निर्माण का काम हो सके। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने सभी राज्यों को अपने यहां प्रशिक्षण व क्षमता निर्ण के लिए इको के कार्यक्रम लागू करने का निर्देश जारी किया है।

इको इंडिया के चेयरमैन डॉ. कर्नल (सेवानिवृत्त) कुमुद राय ने वर्ष 2017 में डॉक्टरों और स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के एक अनुकूलन कार्यक्रम में कहा, ‘‘भारत का स्वास्थ्य देखभाल वातावरण इको मॉडल को अपनाने का अनूठा अवसर देता है। भारत में विशेषज्ञता क्षेत्र देखभाल की आवश्यकता, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, काफी ज़्यादा है और बढ़ रही है। प्रोजेक्ट इको का सिस्अम अनुरूप समन्वय ऐसा समाधान मुहैया कराता है जिससे संपूर्ण जनसंख्या को लाभ मिलता है।’’

भारत में बहुत-से महत्वपूर्ण स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों ने इको इंडिया के साथ भागीदारी की है। इको इंडिया के 26 सक्रिय केंद्रों में मुंबई का टाटा मेमोरियल सेंटर भी है, जिसने प्रोजेक्ट इको के मंच का इस्तेमाल करते राष्ट्रव्यापी नेशनल कैंसर ग्रिड से अस्पतालों को जोड़ने का महत्वाकांक्षी प्रोग्राम प्रारंभ किया है। ऐसे ही, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंस (निमहान्स) में वर्चुअल नॉलेज नेटवर्क निमहान्स इको प्रोग्राम की शुरुआत हुई। निमहान्स ने इको के 22 प्रोग्राम पूरे कर लिए हैं और इस समय वह भारतीय व विदेशी भागीदारों के लिए आठ और प्रोग्राम चला रहा है। इस प्रोग्राम के तहत अब तक 4,000 से अधिक स्वास्थ्य सेवा पेशेवर प्रशिक्षित हो चुके हैं। यह प्रोग्राम  बिहार, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक सरकारों के साथ काम कर रहा है।

नई दिल्ली स्थित एंबिएन्स पब्लिक स्कूल ने शिक्षा के क्षेत्र में भी इको मॉडल को लागू किया है। इको टीचर मेंटरशिप प्रोग्राम का लक्ष्य शिक्षकों के कौशल में वृद्धि करना है और ऐसी व्यवस्था करना है कि उन शिक्षकों के लिए मेंटरशिप का कार्यक्रम सतत चलता रहे। अंगे्रजी, गणित, प्रारंभिक साक्षरता, विज्ञान आदि पर फोकस करते हुए सात इको कार्यक्रमों के सफल संचालन के बाद एंबिएन्स पब्लिक स्कूल, गुरुग्राम में इसके दूसरे केंद्र की शुरुआत की गई। एंबिएन्स प्रिवेंटिव हेल्थ एंड वेलनेस इको शिक्षकों, मरीजों और काउंसिलरों की मदद करते हुए बच्चों में शुरू होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं का पता करता है। इस कार्यक्रम में भाग लेने वालों की मेंटरिंग एम्स, मैक्स सुपर स्पेशलिएटी और निमहान्स जैसे संस्थानों के डॉक्टर करते हैं।

चाहे किसी भी समुदाय की सेवा की जाए या किसी भी बीमारी का इलाज किया जाए, प्रोजेक्ट इको का लक्ष्य वही रहता है : यह है भारत, अमेरिका और दूसरी जगहों के ग्रामीण इलाकों तथा हाशिये के लोगों के लिए गुणवत्तापूर्ण और व्यापक चिकित्सा सुविधा मुहैया कराना। डॉ. अरोड़ा ने अपनी टेडेक्स टॉक में कहा था, ‘‘हम ज्ञान के क्षेत्र में जारी एकाधिकार को खत्म करना चाहते हैं। आम तौर पर ज्ञान हमारे जैसे विशेषज्ञों के दिमाग में होता है। हम इसे हमारे प्राइमरी हेल्थकेयर सहयोगियों के बीच खुलकर बांटना चाहते हैं। हम गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा तक सबकी पहुंच सुनिश्चित करने के साथ-साथ इस क्षेत्र में व्याप्त असमानता को खत्म करना चाहते हैं।’’

माइकल गलांट गलांट म्यूज़िक के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं। वह न्यू यॉर्क सिटी में रहते हैं। 



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