खाने की बर्बादी को कम करके, संसाधनों के संरक्षण के साथ पर्यावरण को भी फायदा पहुंचाया जा सकता है।
मई 2021
खाद्य पदार्थों की बर्बादी पर संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण प्रोग्राम की इंडेक्स रिपोर्ट- 2021 में अनुमान लगाया गया कि साल 2019 में करीब 93 करोड़ 10 लाख टन भोजन की बर्बादी हुई और इसका 60 फीसदी हिस्सा लोगों के घरों से निकला। फोटोग्राफ: ताज़/ फ्लिकर
कई बार हम जो चीजें नहीं खाते, वे भी उतनी ही नुकसानदायक हो सकती हैं, जितनी कि वे जिन्हें हम खाते हैं- हालांकि एक अलग स्वरूप से।
भोजन की बर्बादी- भोजन जो तैयार तो हो रहा है लेकिन तमाम कारणों से उसका इस्तेमाल नहीं किया जा रहा, वह भी खाद्य सुरक्षा, पर्यावरण के साथ ही, एक तरह से हम सभी को प्रभावित करता है। इसी वर्ष मार्च में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण प्रोग्राम (यूएनईपी) ने खाद्य पदार्थों की बर्बादी पर अपनी इंडेक्स रिपोर्ट- 2021 को प्रकाशित किया जिसमें बताया गया कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन का 10 प्रतिशत हिस्सा बर्बाद हुए भोजन के कारण होता है। वैश्विक तापमान बढ़ोतरी के बड़ कारकों में से एक ग्रीन हाउस गैसें हैं।
रिपोर्ट की प्रस्तावना में यूएनईपी के कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन ने लिखा है, ‘‘अगर भोजन की बर्बादी और नुकसान को एक देश के रूप में देखा जाए, तो वह ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत होगा।’’ रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया कि साल 2019 में करीब 93 करोड़ 10 लाख टन भोजन की बर्बादी हुई और इसका 60 फीसदी हिस्सा लोगों के घरों से निकला। 26 प्रतिशत खाद्य सेवाओ से जुड़े कारोबार से, जबकि 13 प्रतिशत भोजन की बर्बादी खुदरा तौर पर हुई। इसका एक और मतलब हुआ कि वैश्विक स्तर पर कुल खाद्य उत्पादन का करीब 17 प्रतिशत हिस्सा हर साल बर्बाद हो जाता है।
खाद्य पदार्थों की बर्बादी पर शोध कर रहीं और मैरीलैंड यूनिवर्सिटी में पर्यावरण विज्ञान और तकनीक विभाग में असिस्टेंट रिसर्च प्रोफेसर देबस्मिता पात्रा के अनुसार, ‘‘रिपोर्ट से मिली जानकारियां वहुत कुछ वैसी हैं, जो हमारे पास हैं।’’ पात्रा ने हैदराबाद यूनिवर्सिटी से समाजशास्त्र में पीएच.डी. की है। उन्होंने साल 2020 में हुए एक अध्ययन में पाया कि खाद्य वस्तुओं के उपयोग के बारे में लगने वाले लेबल जैसे कि ‘‘बेस्ट बाई डेट’’ के कारण पिछले दशक में वैश्विक स्तर पर खाद्य पदार्थों की बर्बादी बढ़ी है। इस अध्ययन में वह सह- लेखिका थीं।
खाद्य पदार्थों की बर्बादी कई तरह से होती है। ऐसा खेतों में फसल की कटाई से शुरू होकर, भंडारण केंद्रों, कारोबारियों की दुकानों में खाद्यान्न के अलावा उन लोगों के कारण होता है जो अपना पूरा भोजन नहीं खाते और फ्रिज में रखने पर खराब होने के बाद फेंक दिया जाता है। पात्रा का कहना है कि भोजन की बर्बादी के तमाम तरीकों को समझा जा सकता है लेकिन उसकी मात्रा का अनुमान लगा पाना चुनौतियों भरा काम हो सकता है। वह इसके कारणों का जिक्र करती हैं जैसे कि शिक्षा का अभाव, खाद्य संरक्षण के बारे में कम जानकारी और लेबलिंग के नियमों की समझ का कम होना। सेल-बाई और फ्रेश-बाई डेट को लेकर उपभोक्ता भ्रमित हो सकते हैं और वे खाद्य पदार्थ की वास्तविक संरक्षित अवधि के पूरा होने के पहले ही उसे फेंक देते हैं।
पात्रा का कहना है, ‘‘बर्बाद खाद्य पदार्थ जब कचरा स्थलों का हिस्सा बनते हैं तो वे वायु प्रदूषण और भूजल प्रदूषण जैसे पर्यावरण पर प्रभाव डालने वाले कारणों में शामिल हो जाते हैं।’’
जलवायु में बदलाव का आकलन करने वाली एक अंतर-सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, बर्बाद किए गए खाद्य पदार्थ जब कचरा स्थलों पर पहुंचते हैं तो विघटन से गैसें बनना शुरू हो जाती हैं। इनमें आमतौर पर 50 प्रतिशत मीथेन और 50 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइ़़ड गैस होती है और एक मामूली हिस्सा गैर मीथेन कार्बन यौगिकों का होता हैं। मीथेन ग्रीन हाउस गैसों में पिछले 100 सालों में वातावरण में गर्मी को बनाए रखने में कार्बन डाइऑक्साइड के मुकाबले 28 से 36 प्रतिशत तक ज्यादा प्रभावी पाई गई है।
खाद्य पदार्थों की बर्बादी को रोकना आज की तारीख में बहुत से देशों और कंपनियों की प्राथमिकताओं में नहीं है लेकिन संयुक्त राष्ट्र और दूसरे संगठन इस परिदृश्य को बदलने की उम्मीद रखते हैं। हालांकि इस मामले में आंकड़ों की उपलब्धता कम है लेकिन दिलचस्प बात यह है कि, संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि खाद्य पदार्थों की बर्बादी हर वर्ग में तकरीबन एक जैसी ही है, चाहे वे उच्च आय वर्ग के हों या निम्न आयवर्ग के। लोगों और कंपनियों के जरिए होने वाली बर्बादी भी तकरीबन एक जैसी ही है। हालांकि, खाद्य पदार्थों की बर्बादी के मामले में सप्लाई चेन के स्तर पर दास्तां कुछ और है। ज्यादा पैसा खर्च कर मंगाया गया खाद्य पदार्थ आमतौर पर घरों में ज्यादा बर्बाद किया जाता है जबकि निम्न या मध्यम आय वर्ग के स्तर पर यह खेतों या बीच में कहीं ज्यादा बर्बाद होता है। उदाहरण के लिए, ग्रामीण इलाकों में ज्यादातर खाद्यान्न भंडारों में बर्बाद हो सकता है जहां उसके लिए बुनियादी सुविधाओं और खाद्य प्रसंस्करण का अभाव होता है। पात्रा के अनुसार, खेतों से लेकर खाने की थाली तक खाद्य पदार्थों की बर्बादी पर निगाह रख पाना बहुत मुश्किल काम है।
पात्रा, खाद्यान्न की बर्बादी के क्षेत्र में काम करने को क्यों आकर्षित हुई? उनका कहना है, ‘‘क्योंकि इसमें दुनिया से भूख को मिटाने की क्षमता के अलावा खाद्य असुरक्षा से निजात, साफ पर्यावरण और सदाजीवी कृषि के विकास के साथ तमाम दूसरी संभावनाएं निहित हैं।’’ वह बताती हैं, ‘‘जब आप एक उपभोक्ता के रूप में भोजन को बर्बाद करते हैं, तो आप न सिर्फ खाद्य सामग्री को बर्बाद कर रहे होते हैं बल्कि इसके साथ जुड़े दूसरे खर्चों- जैसे कि, परिवहन, प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और लेबर पर आने वाले खर्चे को भी व्यर्थ कर रहे होते हैं। मैं इसीलिए भोजन की बर्बादी को कम करने के लिए रास्तों की तलाश में जुटी क्योंकि इससे हमारे समाज की बहुत-सी समस्याओं का समाधान हो सकता है।’’
संयुक्त राष्ट्र का सदाजीवी विकास लक्ष्य 12.3 बहुत स्पष्ट है – ‘‘साल 2030 तक खुदरा और उपभोक्ता स्तर पर विश्व में प्रति व्यक्ति भोजन की बर्बादी के औसत को घटा कर आधा करना और फसल कटाई में होने वाली खाद्यान्न बर्बादी समेत उत्पादन एवं सप्लाई चेन के जरिए होने वाले नुकसान को कम करना।’’ अमेरिका का खुद का लक्ष्य साल 2030 तक ऐसे नुकसान को 50 प्रतिशत तक कम करना है।
पात्रा का कहना है कि खाद्यान्न की बर्बादी को रोकने के बहुत-से तरीके हैं, जिनमें निजी स्तर पर उठाए गए कदमों के अलावा कहीं ज्यादा व्यवस्थित सरकार के स्तर पर किए गए प्रयास गिनाए जा सकते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि इस बारे में लोगों को इस तरह से शिक्षित करने की जरूरत है जिससे उनके व्यवहार और तौरतरीकों में बदलाव लाया जा सके। खासतौर पर सोशल मीडिया कैंपेन चलाने के साथ सेल-बाइ और बेस्ट-बाइ डेट की व्याख्या के बारे में लोगों को जानकारी देने और लोगों को भोजन के संरक्षण के बारे में शिक्षित करके खाद्यान्न की बर्बादी को कम करने में मदद की जा सकती है।
पात्रा का सुझाव है कि घरेलू स्तर पर कुछ उपाय किए जा सकते हैं जैसे कि, खरीदे गए सभी खाद्य पदार्थों का उपयोग, बची हुई खाद्य सामग्री का संरक्षण, उत्पादों की एक्सपायरी के पहले उन्हें फ्रिज में संरक्षित करना और इस्तेमाल के लिए सुझाए गए डेट लेबल और फूड सेफ्टी डेडलाइन के अंतर को समझना।
वह बताती हैं, ‘‘हमने अपने शोध में पाया कि, लोगों को इस बात का अहसास ही नहीं कि उनकी खुद की भोजन बर्बाद करने की आदत का समाज पर इतना व्यापक असर पड़ता है।’’ वह कहती हैं, ‘‘हमें उम्मीद हैं कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को जल्दी ही इस बात का अहसास हो जाएगा और वे भोजन को बर्बाद नहीं करेंगे।’’
कैनडिस याकोनो सदर्न कैलिफ़ोर्निया में रहती हैं और वह पत्रिकाओं और अखबारों के लिए लिखती हैं।
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