महिला उद्यमियों की मदद

अमेरिकी दूतावास के एक कार्यक्रम से महिला उद्यमियों को अपने व्यवसाय के सृजन और विकास में सहायता मिल रही है।

बर्टन बोलाग

मार्च 2023

महिला उद्यमियों की मदद

रेलफूडीज की सोनल पटेल विभिन्न तरह के गुणवत्तापूर्ण खाने को यात्रा के दौरान ही सीधे लोगों तक तेजी से
पहुंचाने का वादा करती हैं। (फोटोग्राफः साभार सोनल पटेल)

सोनल पटेल और रश्मि पटना की वे उद्यमी हैं जिन्होंने अमेरिकी विदेश विभाग के एकेडमी फॉर वुमेन ऑंट्रेप्रेन्योर्स (एडब्लूई) प्रोग्राम में भाग लेने के बाद अपने कारोबार को नई उड़ान दी। इन दोनों में से प्रत्येक ने बिहार सरकार के स्टार्ट-अप पॉलिसी प्रोग्राम के तहत 10 लाख रुपए का ब्याजमुक्त कर्ज भी हासिल किया है।

देश के आर्थिक विकास में उद्यमियों की महत्वपूर्ण भूमिका को ध्यान में रखते हुए और लैंगिक समानता एवं समावेशी विकास की दृष्टि से महिला उद्यमियों की विशेष भूमिका के नजरिए से अमेरिकी विदेश विभाग ने एडब्लूई जैसे प्रोग्राम को शुरू किया। इसका मकसद उद्यमियों और खासकर शुरुआती दौर में व्यापार मालिकों को प्रशिक्षण और सलाहकारी सेवाएं उपलब्ध करा कर सशक्त करने का है।

वर्ष 2019 से एडब्लूई ने 80 देशों की 16000 से ज्यादा महिलाओं को उनके कारोबार की लॉंचिंग के साथ उसे सफल बनाने एवं कार्यबल में महिलाओं की सहभागिता को बढ़ाने की दृष्टि से आवश्यक जानकारी, नेटवर्किंग और पहुंच बनाने में सहायता देकर सशक्त बनाया है। 2021 में इसके मूल्यांकन से यह तथ्य सामने आया कि जिन महिलाओं ने एडब्लूई प्रोग्राम को पूर्ण किया था, उनमें से 74 प्रतिशत ने अपने कारोबार से मुनाफे को बढ़ाया है और 29 प्रतिशत ने पहले से ज्यादा स्टाफ को काम पर रखा है।

मील्स ऑन व्हील्स 

कोलकाता के अमेरिकी कांसुलेट जनरल में एडब्लूई के प्रशिक्षण से पहले पटेल पटना में एक मैनेजमेंट कंपनी की मालिक थीं जो स्थानीय कारीगरों के उत्पाद को संयुक्त अरब अमीरात में बेचने में सहायता किया करती थी। पटेल पेशे से एक लाइफ स्किल ट्रेनर हैं और उन्होंने पहले दुबई, मुंबई और बिहार में कॉरपोरेट ट्रेनर के रूप में काम किया है।

उन्होंने नवंबर 2021 में एडब्लूई के 10 महीने के प्रशिक्षण में एक नए व्यवसाय की मालिक के रूप में हिस्सा लिया, लेकिन उनके पास उसे लेकर कोई बिजनेस प्लान नहीं था। प्रशिक्षण के दौरान, उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि उनकी मौजूदा कंपनी और आगे नहीं बढ़ सकती और उन्होंने रेलवे केटरिंग के बिजनेस में शि़फ्ट करने का फैसला किया।

उन्हें काफी लंबे समय से यह महसूस हो रहा था कि भारतीय रेलवे में यात्रियों को उपलब्ध कराए जाने वाले भोजन की गुणवत्ता में सुघार की बहुत ज्यादा गुंजाइश है, जिसे ध्यान में रखते हुए पटेल ने एडब्लूई में प्रशिक्षण के दौरान ही रेलफूडीज़ नाम के एक बिजनेस प्लान को तैयार किया। रेलफूडीज़ यात्रियों के लिए यात्रा के दौरान त्वरित और गुणवत्तापूर्ण भोजन को सीधे ही उपलब्ध कराने का वादा करता है। इसने 200 स्टेशनों पर 400 से ज्यादा रेस्टोरेंटों ने भोजन उपलब्ध कराने के लिए करार किया। इन स्टेशनों में से अधिकतर बिहार में है।

यात्री सीधे कॉल करके या रेलफूडीज़ वेबसाइट के माध्यम से खाना ऑर्डर करते हैं जो प्रत्येक रेलवे स्टेशन पर सेवा देने वाले रेस्टोरेंट के मेन्यू को प्रदर्शित करती है। यात्री किसी भी स्टेशन पर पहुंचने से एक घंटा पहले तक ऑर्डर दे सकते हैं और उसके लिए ऑनलाइन या डिलीवरी पर भुगतान कर सकते हैं।

रेलफूडीज़ में 8 लोग काम करते हैं। उनमें से आधे सॉफ्टवेयर डवलपमेंट पर काम करते हैं जिसमें इस काम के लिए एक ऐप का विकास भी शामिल है और बाकी लोग इसकी मार्केटिंग पर काम करते हैं।

हालांकि, यह प्रोजेक्ट अभी भी पायलट स्तर पर ही है, लेकिन जैसा कि पटेल का कहना है, ‘‘इस फूड डिलीवरी सेवा के बारे में बहुत ही सकारात्मक प्रतिक्रिया देखने को मिली है।’’ कंपनी का लक्ष्य पहले पांच वर्षों में देश भर में अपना विस्तार करते हुए ‘‘क्लाउड किचेंस’’ की स्थापना का है जो तमाम रेलवे स्टेशनों पर प्रतिस्पर्धी दामों में यात्रियों को गुणवत्तापूर्ण भोजन उपलब्ध करा सके।

पटेल की दृष्टि में, एडब्लूई में मिला प्रशिक्षण ‘‘आंख खोलने वाला’’ अनुभव था।

उनका कहना है, ‘‘मैं सोचती थी कि मैं एक बढिया ट्रेनर हूं। लेकिन प्रशिक्षण के बाद, मुझे महसूस हुआ कि मेरे प्रशिक्षण में कारोबार, वित्त और नियुक्तियों को लेकर काफी कुछ कमी है।’’

निकट भविष्य में, पटेल की योजना अपने खुद के डिलीवरी बेड़े को तैयार करने की है जिसमें रेलफूडीज़ के लिए अंशकालिक तौर पर काम करने के इच्छुक विद्यार्थियों को अर्न एंड लर्न मॉडल भी उपलब्ध कराया जाएगा, जिससे भारत में हजारों लोगों के लिए रोजगार के अवसरों का सृजन संभव हो सकेगा।

स्थानीय शिल्प, वैश्विक बाजार

पटना के राष्ट्रीय फैशन तकनीक संस्थान से ग्रेजुएट रश्मि ने एक हथकरघा कंपनी में बतौर डिजाइनर अपने कॅरियर की शुरुआत की। उन्होंने 2020 की शुरुआत में इस क्षेत्र में अपनी खुद की कंपनी शुरू की, लेकिन कोविड-19 महामारी की वजह से उन्हें उससे बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा। 2021 के अंत में, उन्होंने अपनी मौजूदा कंपनी धजक्रा़फ्ट शुरू की। उस नाम की प्रेरणा उन्हें हिंदी शब्द ‘‘सजावट’’ और ‘‘धागे या सूत’’ से मिली। धजक्रा़फ्ट सूत से बने हथकरघा उत्पाद तैयार करता है।

रश्मि को चार महीनों के एडब्लूई प्रशिक्षण के लिए चुना गया। सबसे पहली चीज़ जो उन्होंने यहां सीखी, वह थी निवेशकों को किस तरह से आकर्षित किया जाए। प्रशिक्षुओं ने बाद में मार्केटिंग, और कंपनियों और उत्पादों की ब्रांडिंग का प्रशिक्षण भी हासिल किया। कोलकाता स्थित अमेरिकी कांसुलेट जनरल में समापन सत्र के साथ यह प्रशिक्षण पूरा हुआ।

रश्मि का कहना है कि, एडब्लूई का प्रशिक्षण उनके जैसे छोटे कारोबारियों के लिए खासा उपयोगी रहा। उनके  अनुसार, ‘‘मैने यहां काफी कुछ सीखा- जैसे कि कैसे निवेशकों को आकर्षित करने के लिए तीन मिनट की पिच तैयार की जानी चाहिए।’’ उन्होंने कहा कि, प्रशिक्षण से उन्हें अपना नेटवर्क तैयार करने में भी मदद मिली। वह बताती हैं, ‘‘मुझे अब यह पता है कि विभिन्न क्षेत्रों में कहां से मदद मिलना संभव है।’’

With the help of local artisans, Rashmi's start-up Dhajcraft manufactures 900 pairs of shoes per month.

रश्मि रानी का स्टार्ट-अप धजक्राफ़्ट स्‍थानीय कारीगरों की मदद से हर महीने 900 जोड़ी जूते तैयार करता है।
(फोटोग्राफः साभार रश्मि रानी)

धजक्रा़फ्ट पैर के आकार के हिसाब से महिलाओं और पुरुषों के जूतों को स्वरूप देता है। रश्मि स्पष्ट करती हैं, ‘‘हममें से अधिकतर लोगों के पैर चपटे या फिर सपाट पैरों के दर्द के शिकार होते हैं या कुछ लोग चौड़े या कुछ अलग तरह के पैरों की बनावट वाले होते हैं।’’ धजक्रा़फ्ट के बिक्री पोर्टल पर ग्राहकों से प्रिंट की जा सकने वाली अपनी पैरों की नाप भेजने को कहा जाता है या फिर उनसे अपने पैरों में कोई समस्या है तो उसका वीडियो शेयर करने को कहा जाता है। उनकी टीम अब स्मार्टफोन्स के वीडियो कैमरे से ली गई आकृति से नाप को तैयार करने वाले ऐप को विकसित करने में जुटी है। धजक्रा़फ्ट के उत्पादों में एंब्रॉइडरी वाली मोजरी, लोफर्स, बिना हील की चप्पलें, जूते, ब्रोकेड वेजेज़, हील्स और स्नीकर्स शामिल हैं।

यह स्टार्ट-अप फुटवेटर तैयार करने के लिए रीसाइकल्ड प्लास्टिक और खादी और जूट जैसे प्राकृतिक फाइबर का इस्तेमाल करता है। ये जूते ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों ही प्लेटफॉर्म पर बिक्री के लिए उपलब्ध होते हैं।

कंपनी में मौजूदा वक्त में तीन कारीगर और पांच दूसरे कर्मचारी हैं। रश्मि का कहना है, ‘‘ऑनलाइन विज्ञापन बढ़ रहा है और कारोबार फैल रहा है।’’ ग्राहकों से पहले ही काफी सकारात्मक फीडबैक मिला है, क्योंकि उनके उत्पाद जैसा कि रश्मि कहती हैं, ‘‘अब ग्राहकों की चलते या ड्राइव करते समय पैरों में दर्द जैसी समस्याओं या फिर उनके चौड़े पैरों में स्टैंडर्ड जूतों के फिट न बैठने की समस्याओं का समाधान कर रहे हैं।’’

बर्टन बोलाग स्वतंत्र पत्रकार हैं और वॉशिगटन,डी.सी. में रहते हैं।



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