पूर्वानुमान की ताकत

यदि भारतीय किसानों को समय रहते मौसम के बारे में चेतावनी मिल जाए तो वे जोखिम को कम कर सकते हैं। यूएसएड और स्काईमेट वेदर सर्विसेज की भागीदारी में स्थापित स्वचालित मौसम केंद्र यही काम कर रहे हैं।

माइकल गलांट

सितम्बर 2020

पूर्वानुमान की ताकत

यूएसएड इंडिया और स्काईमेट वेदर सर्विसेज के गठबंधन से हज़ारों किसानों को मौसम संबंधी मुश्किलों का सामना करने में मदद मिली है। बिहार के गया जिले का पुनाकला गांव भी उन्हीं में से एक है। साभार: स्काईमेट वेदर सर्विसेज

भारत में किसानों और कृषि कामगारों को मुश्किल चुनौतियों का सामना करना पड़ता है- बहुत ज्यादा बरसात या आवश्यकता से कम, तेज़ हवाएं और विनाशकारी तूफान, अत्यधिक गर्मी और लगातार सूखा। ये और मौसम संबंधी अन्य जोखिमों से फसल चौपट हो जाती है और लोगों की ज़िंदगियों पर खतरा उत्पन्न हो जाता है।

सौभाग्यवश, अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय सहायता एजेंसी (यूएसएड इंडिया) और नोएडा स्थित स्काईमेट वेदर सर्विसेज के बीच एक अभिनव गठबंधन से ऐसे समाधान उपलब्ध हैं जिससे हज़ारों किसान मौसम संबंधी समस्याओं का मुकाबला कर सकते हैं। पार्टनरशिप इन क्लाइमेट सर्विसेज फ़ॉर रेसिलिएंट एग्रीकल्चर इन इंडिया (पीसीएसआरए) पहल के तहत देशभर में लगभग 700 स्वचालित मौसम केंद्र स्थापित किए गए हैं। इनमें से प्रत्येक में कैमरे और सेंसर लगाए गए हैं जिससे कि मौसम और फसल के बारे में लगातार वास्तविक आंकड़े सीधे प्राप्त होते रहें।

स्काईमेट के स्काईमित्र मोबाइल फोन एप और अन्य संचार तकनीकों से स्थानीय किसान मौसम केंद्रों के नतीज़ों को जान पाते हैं, मौसम संबंधी चेतावनियां समय रहते प्राप्त कर पाते हैं और अपने खेतों और परिवारों के लिए जानकारी के आधार पर सही फैसले ले पाते हैं। एनड्रॉइड आधारित स्काईमित्र एप में मौसम में अत्यधिक बदलाव का अलर्ट, निकटवर्ती स्वचालित मौसम केंद्र से सीधे मौसम संबंधी जानकारी, फसलों की बीमारियों की जानकारी और अपने अनुभव साझा करने और कृषि विशेषज्ञों से सवाल पूछने के लिए एक मंच होता है। इस एप की सामग्री हिंदी, गुजराती, पंजाबी, उडि़या, तेलुगू और कन्नड में उपलब्ध है। स्काईमेट ने एक ऑनलाइन डेटा निगरानी के लिए भी व्यवस्था की है, जिसे स्काईग्रीन नाम दिया गया है। इसमें प्रोग्राम में पंजीकृत किसानों की जानकारियों पर नज़र रखी जाती है।

यह एप किसानों के पंजीकरण के 72 घंटे के अंदर उनके मोबाइल पर जलवायु संबंधी जानकारी को सक्रिय कर देता है।

यूएसएड इंडिया के खाद्य सुरक्षा कार्यालय के निदेशक मुस्तफा अल हैमज़ोई कहते हैं, ‘‘इस पब्लिक-प्राइवेट भागीदारी में कई तरह की भारतीय और अमेरिकी डिजिटल तकनीकों और विशेषज्ञता का इस्तेमाल किया गया, जिससे कि भारतीय किसानों की कार्यान्वयन क्षमता को बढ़ाया जा सके। इसके लिए उन्हें जलवायु सूचनाएं, जोखिम रोकथाम व्यवस्था और परामर्शक सेवाए मुहैया कराई गईं।’’

इस भागीदारी का शुरुआत से नेतृत्व करने वाले स्काईमेट के संस्थापक और प्रबंध निदेशक जतिन सिंह कहते हैं कि पीसीएसआरए का काम जुलाई 2020 में पूरा हो गया और इसने नौ राज्यों के 31 जिलों में करीब 85,000 भारतीय किसानों पर असर डाला है। पीसीएसआरए के जरिये उनका एक अहम लक्ष्य था, ‘‘फसल के स्तर पर सूचना मूहैया कराना, जिससे कि कोई भी रात को भूखे पेट न सोए।’’

सिंह हाल ही की एक घटना बताते हैं जो पीसीएसआरए की लोगों की जिंदगी बेहतर करने की ताकत के बारे में बताता है। मई 2020 में अम्फान चक्रवात के भारत में आने के पहले एक छोटे किसान ने इस भागीदारी के तहत अपना पंजीकरण करया था। उसे स्काईमेट की चेतावनी देने वाली व्यवस्था से समय रहते मैसेज और वॉयस कॉल से आने वाले दिनों में तेज़ हवाओं और खराब मौसम के बारे में जानकारी मिल गई। इस जानकारी के आधार पर उसने ज्यादा मजदूरों को लेकर चक्रवात से पहले ही अपनी फसल काट ली। इससे उसके परिवार की आजीविका नष्ट होने से बच गई।

ऐसी ही दास्तां बहुत-से और लोगों की भी है। कृषि पर फ़ोकस करने वाली यूएसएड के यूएसएड की प्रोजेक्ट मैनेजमेंट स्पेशलिस्ट सिमरत लबाना कहती हैं, ‘‘यूएसएड-स्काईमेट प्रोजेक्ट में 85,000 किसानों का पंजीकरण कराना बताता है कि यह पूरी तरह सफल रहा है।’’

लुबाना इस बात को भी बताती हैं कि पीसीएसआरए के भागीदारों में 60 प्रतिशत छोटे और मझोले किसान हैं, जिनका कृषि कार्य ‘‘सर्वाधिक सेवा वंचित और जलवायु परिवर्तन से सर्वाधिक प्रभावित’’ माना जाता है।

हालांकि इस भागीदारी को भारत के सर्वाधिक संवेदनशील कृषि कामगारों के बीच स्वीकृति में कुछ चुनौतियां सामने आईं। लबाना के अनुसार, ‘‘प्रोजेक्ट की शुरुआत के समय किसानों को पंजीकृत कराना मुश्किल था, क्योंकि वे संशय में थे। उन्हें स्काईमेट के बारे जानकारी नहीं थी। इसलिए फ़ील्ड टीम को कई बार जाकर, उन्हें इसके बारे में बताना पड़ा जिससे कि उनका विश्वास कायम हो।’’

महिलाओं के साथ संवाद के लिए प्रोग्राम में विशेष प्रयास करने पड़े। प्रोग्राम के कुल पंजीकरण में उनकी संख्या नौ प्रतिशत है। लबाना बताती हैं, ‘‘मौजूदा सामाजिक-सांस्कृतिक कारणों के चलते महिलाओं का पंजीकरण चुनोतीपूर्ण काम था। प्रोजेक्ट बैठकों में महिलाओं की मौजूदगी को प्रोत्साहित करने के लिए प्रोजेक्ट टीम को काफी मेहनत करनी पड़ी, जिससे कि महिला किसानों की भी आवाज सुनी जाए और वे नज़र आएं।’’

सिंह के अनुसार, कोविड-19 के दौरान भी प्रोग्राम चलता रहा। संक्रमण के खतरे और लॉकडाउन के चलते स्काईमेट ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल कर अपने मौसम एवं फसल के अलर्ट को और ज्यादा स्वचालित बना दिया। इसने यह भी सुनिश्चित किया कि किसानों को उनकी ज़रूरत की जानकारी स्काईमित्र एप, वाट्सएप, एसएमएस और अन्य मोबाइल प्लेटफ़ॉर्मों के जरिये मिल पाए।

लबाना के अनुसार, ‘‘स्काईमेट के मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाले और कृषि विशेषज्ञों ने सुनिश्चित किया कि समय-संवेदनशील और जगह विशेष के आधार पर जलवायु संबंधी सूचनाएं लगातार मिलती रहें। डिजिटल तकनीक का यही लाभ है। इस पर स्थान से फर्क नहीं पड़ता और अहम सूचनाएं व्यापक पैमाने पर भेजी जा सकती हैं।’’

सिंह को उम्मीद है कि वह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल कर किसानों को एक बटन के क्लिक से सूचनाएं देना जारी रखेंगे। उनके अनुसार फसल पर नज़र के लिए इस्तेमाल होने वाले कैमरे और सेंसर स्काईमेट के सुपरकंप्यूटरों को अपने आंकड़े भेजना जारी रखेंगे। ये सुपरकंप्यूटर आंकड़ों का विश्लेषण कर अहम जानकारियां पंजीकृत किसानों को ऑटोमेटेड चैटबोट के जरिये तुरंत ही प्रदान कर देंगे।

उन भागीदारों के लिए जिन्होंने पीसीएसआरए को किसानों की जीवनरेखा बना दिया, उनके लिए तो यह एक शुरुआत ही है। स्काईमेट की वाइस-प्रेसिडेंट रेखा मिश्रा कहती हैं, ‘‘ऐसी पहल के लिए यूएसएड के साथ जुड़ना सम्मान की बात थी जिससे इतने लोग और इतने विविध इलाके लाभान्वित हुए।’’ उन्होंने भागीदारी के इस पहलू को रेखांकित किया कि इससे न सिर्फ वैयक्तिक स्तर पर लोगों के जीवन में बदलाव आया बल्कि उन्हें सहारा देने वाला सिस्टम भी बेहतर हुआ। ‘‘स्काईमेट के लिए, इसमें मूल योगदान देने वाला होना गर्व की बात है।’’

माइकल गलांट गलांट म्यूज़िक के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं। वह न्यू यॉर्क सिटी में रहते हैं।



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