जलवायु परिवर्तन पर बने एक अंतर-सरकारी पैनल की रिपोर्ट के अनुसार यदि हमने अभी कदम नहीं उठाए तो भविष्य में अत्यधिक गर्मी, आग लगने और बाढ़ जैसे मौसम के अति प्रभाव देखने को मिलेंगे।
सितंबर 2021
कोरिन, यूटा में ग्रेट साल्ट लेक को विभाजित करती रेल पटरियां। पश्चिमी अमेरिका में भयावह सूखे के कारण झील में पानी का स्तर अपने न्यूनतम रिकॉर्ड से नीचे चला गया है। फोटोग्राफ: © जस्टिन सुलिवान/ गेटी इमेजेज
मानव के कदमों से जिस जलवायु परिवर्तन की शुरुआत हुई है, वह अब और तेज़ी से बढ़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है कि ऐसा हो रहा है, चाहे दुनिया इसके लिए तैयार हो या नहीं।
जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की चार हिस्सों की रिपोर्ट का पहला हिस्सा जारी करते हुए अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने अगस्त में कहा, ‘‘जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल की ताज़ा रिपोर्ट ने साफ कर दिया है- जलवायु परिवर्तन एक संकट बन चुका है।’’
आईपीसीसी की 2021 रिपोर्ट को दुनियाभर के 234 वैज्ञानिकों ने मिलकर लिखा है। ये लोग 14,000 अध्ययनों के विश्लेषण के बाद हमारे ग्रह के भविष्य को लेकर इस तरह के नतीज़े पर पहुंचे है।
अत्यंत महत्वपूर्ण नतीज़े: हमारी जलवायु वर्ष 1850 के बाद से ही मानव के क्रियाकलापों के प्रभावों के कारण तेज़ी से बदलती आ रही है। इसके चलते हमारे ग्रह पर जबर्दस्त, अपरिवर्तनीय बदलाव पहले से शुरू हो चुके हैं और यदि हमने कार्बडाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों का वैश्विक उत्सर्जन तुरंत कम नहीं किया तो स्थितियां बदतर होती चली जाएंगीं।
रिपोर्ट के नतीजे बताते हैं कि जलवायु किस दिशा में आगे बढ़ रही है। आग लगने, अत्यधिक गर्मी और सूखे की घटनाएं हमारे भविष्य की तस्वीर का हिस्सा बनने जा रही हैं। यदि दुनिया के देशों ने मिलकर कोई कदम नहीं उठाया तो इस तरह की आपदाएं और ज्यादा भीषण और व्यापक हो जाएंगीं।
रिपोर्ट पर काम करने वाले वैज्ञानिकों ने खासतौर पर इन चीज़ों का पता लगाया है:
-हमारे पास जबसे रिकॉर्ड उपलब्ध है, हर दशक अपने पिछले दशक के मुकाबले में ज़्यादा गर्म रहा है।
-वर्ष 1850-1900 के औसत तापमान के मुकाबले वैश्विक तापमान लगभग 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है।
-पिछले 2,000 सालों में किसी भी 20 साल की अवधि की तुलना में पिछले 50 साल में तापमान तेज़ी से बढ़ा है।
-विगत 150 सालों में आर्कटिक पर बर्फ की परत सबसे कम स्तर पर है।
-विगत 3,000 सालों में किसी भी अन्य अवधि की तुलना में अब समुद्र का जलस्तर तेज़ी से बढ़ रहा है।
ग्लेशियरों के विलुप्त होने की दर कम से कम पिछले 2,000 सालों में असाधारण तौर पर अधिक है।
विश्व अगले कुछ दशकों में 1.5 डिग्री सेल्सियस वैश्विक तापमान वृद्धि की तरफ बढ़ा जा रहा है। यदि तापमान वृद्धि को सीमित कर लिया जाए तो हम जलवायु बदलाव के भीषण खतरों से बच सकते हैं।
-जीवन के लिए खतरनाक साबित होने वाली भीषण लू के शिकार होने वाले लोगों की संख्या में कमी कर सकते हैं।
-अगले सौ से हज़ार साल तक हम समुद्र के जलस्तर में बढ़ोतरी की मात्रा सीमित कर सकते हैं।
-दुनिया के शुष्क क्षेत्रों में सूखे की त्रीवता कम कर सकते हैं।
-विलुप्त होने वाली जीव और पादप प्रजातियों की संख्या कम कर सकते हैं।
-दुनियाभर में मूंगा चट्टानों के नष्ट होने की रोकथाम कर सकते हैं।
इनमें से किसी भी मुद्दे से जूझने के लिए दुनिया के देशों को एकसाथ आना होगा।
अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकेन के अनुसार, ‘‘ऐसे समय जब विभिन्न देश ग्लासगो में होने वाले 26वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु बदलाव सम्मेलन (कोप26) की तैयारी कर रहे हैं, यह रिपोर्ट हमें याद दिलाती है कि हमारे कदम विज्ञान के अनुरूप उठाए जाने चाहिएं। इस समय आवश्यकता इस बात की है कि दुनिया के लीडर, निजी क्षेत्र और वैयक्तिक स्तर पर लोग तेज़ी के साथ मिलकर कदम बढ़ाएं और वे सब काम करें जो इस दशक में और उसके बाद हमारे ग्रह और भविष्य को बचाने के लिए करने आवश्यक हैं।’’
आलेख: शेयरअमेरिका
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