सेहत के लिए चलें साथ-साथ

भारत में अमेरिका की हेल्थ अटैशे डॉ. प्रीता राजारमन दुनिया की कुछ बड़ी स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों से निपटने के लिए अमेरिका-भारत नवप्रवर्तन भागीदारी के बारे में बता रही हैं।

सुपर्णा मुखर्जी

मार्च 2020

सेहत के लिए चलें साथ-साथ

डॉ. प्रीता राजारमन वर्ष 2019 में नई दिल्ली में ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स की शुरुआत के अवसर पर एक पैनल चर्चा में भाग लेते हुए। फोटोग्राफः साभार प्रीता राजारमन

भारत में अमेरिकी हेल्थ अटैशे और अमेरिकी स्वास्थ्य एवं मानव सेवा विभाग (एचएचएस) की दक्षिण एशिया प्रतिनिधि डॉ. प्रीता राजारमन भारत में एचएचएस की सभी एजेंसियों के बीच तालमेल, निगरानी और उनके प्रतिनिधित्व का जिम्मा संभालती हैं। इन एजेंसियों में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (एनआईएच), सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीएस) और यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) शामिल हैं।

वह कैंसर और मॉलिक्यूलर महामारी विशेषज्ञ के रूप में प्रशिक्षित हैं और उन्होंने कई साल तक इस क्षेत्र में शोध किया है। उनका मौजूदा दायित्व उससे कहीं ज्यादा व्यापक है जिसमें वह स्वास्थ्य और बायोमेडिकल रिसर्च, स्वास्थ्य नीति, संचारी और गैर संचारी बीमारियां, स्वास्थ्य सुरक्षा, शोध और अन्वेषण के क्षेत्र में संपूर्ण क्षेत्रीय अमेरिकी गतिविधियों का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। डॉ. राजारमन के अनुसार, ‘‘यह एक तरह से कुछ चीजों के बारे में बहुत कुछ जानने की स्थिति से काफी चीजों के बारे में कुछ-कुछ जानने की स्थिति की जाने जैसा है। यह एक दिलचस्प बदलाव है और साथ ही यह एक अनूठा अवसर है कि मुझे ऐसे समय भारत और अमेरिका के बीच स्वास्थ्य और विज्ञान संबंधों को मजबूत करने का मौका मिला है जब इस क्षेत्र में विकास की असीम संभावनाएं मौजूद हैं।’’

प्रस्तुत है डॉ. राजारमन के साथ इंटरव्यू के मुख्य अंश :

आपने रीड कॉलेज, ऑरिगन में साहित्य और थिएटर की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया था। ऐसा क्या हुआ कि आपने वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में बायोलॉजी और फिर एनवायरमेंटल हेल्थ के विषयों की पढ़ाई की तरफ रुख कर लिया?

मेरी हमेशा से बायोलॉजी में दिलचस्पी रही है। लेकिन क़ॉलेज में आने से पहले मैं खुद को ठेठ विज्ञान के विषय क्षेत्र के लिए बहुत प्रतिभाशाली नहीं समझती थी, जो बहुत-से एडवांस्ड बायो-मेडिकल क्षेत्रों के लिए ज़रूरी है। कुछेक कॉलेज प्रोफेसरों ने मेरे इस नजरिए को बदल दिया। सही मार्गदर्शकों के चलते मैंने इसे आसान और आनंददायक पाया। इस अहसास के चलते ही मैंने अध्ययन क्षेत्र और कॅरियर में बदलाव किया।

मैं लिबरल आर्ट्स की शिक्षा की बहुत बड़ी प्रशंसक हूं क्योंकि इसमें ही ऐसे नाटकीय परिवर्तन और अंतर-विषयक विचारों को प्रोत्साहित करने की गुंजाइश है। वास्तव में, साहित्य और नाटक में मेरे शुरुआती प्रशिक्षण से मेरे मौजूदा दायित्व को निभाने में काफी मदद मिलती है।

आपकी राय में भारत के सामने इस समय स्वास्थ्य की दृष्टि से सबसे बड़ी चुनौतियां क्या हैं?

इस क्षेत्र के  तमाम दूसरे देशों की तरह भारत भी इस समय संक्रामक और गैर-संक्रामक बीमारियों जैसे कि हृदय रोग, कैंसर और मानसिक स्वास्थ्य के दोहरे बोझ से जूझ रहा है।

एचएचएस की दृष्टि से क्षेत्र में प्राथमिकता वाले विषय क्षेत्र विश्व स्वास्थ्य सुरक्षा से संबंधित हैं- जैसे कि संक्रामक बीमारियों की रोकथाम, उनका पता लगाना और उनके प्रति लोगों की प्रतिक्रिया, बायोमेडिकल रिसर्च और अन्वेषण एवं डिजिटल स्वास्थ्य। इसके अलावा दुनिया भर में उन व्यावहारिक तरीकों की खोज जिससे सुरक्षित, प्रभावी, सस्ती एवं जीवनरक्षक दवाओं तक लोगों की पहुंच बन सके।

आपको क्या लगता है, किस तरह से अमेरिकी विशेषज्ञ, खासतौर पर स्वास्थ्य और मानव सेवा विभाग से संबंधित विशेषज्ञ इन चुनौतियों से निपटने में भारत की मदद कर सकते हैं?

अमेरिकी वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं, जिसमें एचएचएस एजेंसियों के लोग भी शामिल हैं, के पास ऐसी अनूठी दक्षता और कौशल है जो वे अपने भारतीय समकक्षों के साथ साझा कर सकें। हमें भी इस तरह की सहभागिताओं से काफी कुछ सीखने को मिल सकता है। ग्रांट फंडिंग, तकनीकी सहायता, क्षमता निर्माण और पॉलिसी इंगेजमेंट जैसे कामों के माध्यम से हम भारत, अमेरिका और दुनिया के दूसरे देशों की ज्वलंत स्वास्थ्य समस्याओं का साझा समाधान निकालने की कोशिश में लगे हैं।

क्या आप स्वास्थ्य नवप्रवर्तन के क्षेत्र में अमेरिका-भारत भागीदारी के कुछ उदाहरणों को साझा करना चाहेंगी? 

बायोमेडिकल क्षेत्र में अमेरिका-भारत के बीच स्वास्थ्य सहयोग से जुड़ा सबसे जीवंत क्षेत्र है। उदाहरण के लिए, इंडो-यूएस वैक्सीन एक्शन प्रोग्राम को एक मॉडल द्विपक्षीय पहल के रूप में देखा जा सकता है। इसे अमेरिका का एनआईएच और भारत का बायटेक्नोलॉजी विभाग मिलकर चला रहे हैं। इस कार्यक्रम की सफलता इससे आंकी जा सकती है कि इसके चलते भारत में रोटोवैक नाम की वैक्सीन का विकास हो पाया जिससे बच्चों में रोटावायरस के संक्रमण को रोका जा सकता है जो बच्चों में डायरिया फैलाता है। इस इस वैक्सीन के विकास से भारत और दुनिया के विभिन्न देशों में लाखों जीवन बचाए जाने की उम्मीद की जा सकती है। वैक्सीन एक्शन प्रोग्राम, लगातार मलेरिया, डेंगू और ट्यूबरक्यूलोसिस जैसी बीमारियों की रोकथाम के लिए वैक्सीन शोध में मदद कर रहा है।

एक और वैश्विक स्वास्थ्य समस्या है एंटी माइक्रोबियल रेसिस्टेंस (एएमआर) या रोगाणुओं में उन्हें खत्म करने वाली दवाओं के प्रति प्रतिरोध की क्षमता का विकास। दुनिया भर में प्रतिरोधी संक्रमण के मामलों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। ऐसे संक्रमणों का इलाज मुश्किल होता है, अस्पतालों में ज्यादा समय बिताना पड़ता है, व्यक्ति और समाज के लिए यह ज्यादा खर्चीला होता है और अक्सर ऐसे मामलों में अंत में मरीज की मौत हो जाती है। इस समस्या के विभिन्न आयामों से निराकरण के लिए कई अमेरिकी एजेंसियां जिसमें एचएचएस, सीडीसी, एनआईएच, एफडीए और यूएसएड शामिल हैं, अपने भारतीय समकक्षों के साथ मिलकर काम कर रही हैं। उनके प्रयासों में अस्पतालों में संक्रमण नियंत्रण को मजबूत बनाना, एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंट संक्रमण के लिए एक निगरानी व्यवस्था तैयार करना, इस विषय पर काम करने वाले वैज्ञानिकों और अन्वेषकों की मदद करना और बेहद जरूरी नए एंटी माइक्रोबियल्स के विकास के लिए धन की व्यवस्था जैसे उपाय शामिल है।

अमेरिका और भारत के वैज्ञानिक एचआईवी-एड्स, टीबी, मलेरिया, उभरते संक्रसमक रोग और डायबिटीज, हृदय रोग, कैंसर और पर्यावरण स्वास्थ्य जिसमें प्रदूषण के स्वास्थ्य पर असर जैसे विषय भी शामिल हैं, पर मिल कर शोध कर रहे हैं। इस काम को मजबूती देने के  लिए अमेरिकी एजेंसियां जिनमें एनआईएच और सीडीसी शामिल हैं, हर साल भारत के सैकड़ों वैज्ञानिकों को अपने यहां बुला कर उनके लिए प्रशिक्षण कार्यशालाओं का आयोजन करती हैं।

विश्व स्वास्थ्य राजनय के विस्तार में तकनीक किस तरह की भूमिका निभा सकती है?

तकनीक विश्व स्वास्थ्य राजनय में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि स्वास्थ्य राजनय भी स्वास्थ्य संबंधी तमाम अनसुलझी चुनौतियों की व्याख्या और समाधान के लिए साझा प्रयासों पर ही टिका है। भारत में हाल ही में एक हेल्थ केयर प्रोग्राम आयुष्मान भारत की पहल की गई है जिसका मकसद देश भर में 150,000 हेल्थ और वेलनेस सेंटरों (एचडब्लूसी) के माध्यम से प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार के साथ साथ भारत के 50 करोड़ लोगों को स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध कराना है। अमेरिका में सरकार ने स्वास्थ्य बीमा क्षेत्र में कई सुधारों की पहचान के अलावा दवा नीति और वेल्यू बेस्ड के यर को अपनी प्राथमिकताओं में रखा है।

हालांकि ये कार्यक्रम बेहद ही अलग-अलग माहौल में कार्यन्वित किए जा रहे हैं लेकिन हम अपने नागरिकों को सस्ते और उच्च गुणवत्ता वाले समाधान उपलब्ध कराने का साझा सक्ष्य रखते हैं। इसमें से बहुत का ताल्लुक बायोमेडिकल रिसर्च और नए अविष्कारों से हैं जिनमें दवाएं, वैक्सीन, डायग्नोस्टिक्स और उपकरण शामिल हैं।

कौनसी चिकित्सा तकनीक या शोध क्षेत्र आपको सबसे ज्यादा उम्मीदों से भरा लग रहा है?

एनआईएच के निदेशक डॉ. फ्रांसिस एस. कॉलिंस ने अगले 10 वर्षों के लिए विशेष तौर पर 10 बायोमेडिकल अन्वेषणों का जिक्र किया है। इनमें, सिंगल सेल एनालिसिस है जिसके माध्यम से ऑटोइम्यून बीमारियों और कैंसर के बारे में अंतर्दृष्टि मिल सकती है। इसके अलावा, रीजनरेटिव मेडिसिन, कैंसर इम्यूनोथेरेपी, नई वैक्सीन का विकास, बीमारियों के इलाज के लिए जीन एडिटिंग, प्रिसिजन मेडिसिन और ब्रेन मैपिंग जैसे क्षेत्र शामिल हैं।

अमेरिका और भारत की सरकारों के लिए इस तरह के संबंधों में कौनसे प्रमुख चिंता के बिंदु हैं?

इसमें कोई दोराय नहीं कि बायोमेडिकल नवप्रर्वतनों के लिए मौकों की भरमार है लेकिन इसके अधिकतम प्रसार के लिए महत्वपूर्ण है कि सक्षम व्यवस्था तैयार हो। ऐसा शोध कार्यों के लिए पर्याप्त और लगातार फंडिंग, बिग डेटा और डिजिटल हेल्थ के विस्तार के साथ ऐसी नीतियां और इन्फ्रास्ट्रक्चर चाहिए जो डेटा शेयरिंग को बढ़ावा दे, त्वरिक नियामक स्वीकृतियां मिलें और कुशल वैज्ञानिक और स्वास्थ्य कार्यबल तैयार करने में पर्याप्त निवेश किया जाए।

क्या आपके पास स्वास्थ्य और मेडिकल तकनीक के क्षेत्र में अध्ययनरत और कार्यरत हमारे पाठकों के लिए कोई संदेश है?

जैसे-जैसे हम विज्ञान और तकनीक के माध्यम से वैश्विक बायोमेडिकल नवप्रवर्तन के दौर में आगे बढ़ रहे हैं, अमेरिका दुनिया भर के लोगों के जीवन की रक्षा और स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए ज्ञान और संसाधनों के विकास के हमारे साझा एजेंडे को लेकर प्रतिबद्धता पर कायम है। हमें उम्मीद है कि आप खोज की इस दिलचस्प यात्रा में हमारे सहभागी बनेंगे।



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