मिलकर करें शोध

नेशनल साइंस फाउंडेशन (एनएसएफ) के निदेशक सेतुरमन पंचनाथन ने द्विपक्षीय शोध संबंधों को और गहरा बनाने के लिए अमेरिका और भारत के संस्थानों के बीच 30 नई सहभागिताओं की घोषणा की है।

अक्टूबर 2022

मिलकर करें शोध

नेशनल साइंस फाउंडेशन के निदेशक सेतुरमन पंचनाथन  (दाएं) अगस्त 2022 में भारत की यात्रा पर आए और इस दौरान उन्होंने नई दिल्ली, बेंगलुरू, वेल्लूर और चेन्नई में सरकारी अधिकारियों के अलावा, उद्योग जगत के शीर्ष लोगों, शिक्षाविदों और विद्यार्थियों से मुलाकात की।

नेशनल साइंस फाउंडेशन (एनएसएफ), 8.8 अरब डॉलर की हैसियत वाली अमेरिकी संघीय एजेंसी है। इसकी स्थापना अमेरिकी कांग्रेस द्वारा 1950 में की गई थी। यह मेडिकल साइंस को छोड़ कर विज्ञान और तकनीक से जुड़े सभी क्षेत्रों में शोध और शिक्षा के लिए बुनियादी तौर पर ग्रांट देकर सहायता उपलब्ध कराने का काम करती है।

एनएसएफ के मौजूदा निदेशक सेतुरमन पंचनाथन ने सरकार और शिक्षा के क्षेत्र में काम करते हुए तीन दशक से अधिक का समय व्यतीत किया है। उन्होंने उन्नत शोध जनित नवाचारों, उद्यमिता, वैश्विक विकास और आर्थिक समृद्धि की दृष्टि से ज्ञान संबंधी विभिन्न उद्यमों को आकार दिया है। पंचनाथन ने पहले  एरिज़ोना स्टेट यूनिवर्सिटी नॉलेज इंटरप्राइज़ में एक्जीक्यूटिव प्रेसिडेंट के रूप में सेवाएं दी हैं। यहां वह चीफ रिसर्च और इनोवेशन ऑफिसर भी थे।

पंचनाथन ने 1984 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट होने के बाद 1986 में आईआईटी मद्रास से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में मास्टर्स डिग्री हासिल की। 1989 में उन्होंने ओटावा यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रिकल और कंप्यूटर इंजीनियरिंग में डॉक्टरेट डिग्री प्राप्त की।

वह अगस्त 2022 में भारत की यात्रा पर आए और इस दौरान उन्होंने नई दिल्ली, बेंगलुरू, वेल्लूर और चेन्नई में सरकारी अधिकारियों के अलावा, उद्योग जगत के शीर्ष लोगों, शिक्षाविदों और विद्यार्थियों से मुलाकात की।

प्रस्तुत हैं स्पैन पत्रिका के साथ उनके इंटरव्यू  के मुख्य अंश:

आपकी भारत यात्रा का उद्देश्य क्या था और आपको अपनी यात्रा की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि क्या लगी?

भारत की मेरी यात्रा हमारे राष्ट्रों के नेताओं राष्ट्रपति जो बाइडन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच जारी संवाद की प्रक्रिया का ही स्वाभाविक विस्तार है। उन लोगों ने दोनों देशों के बीच विज्ञान और इंजीनयरिंग के क्षेत्र में शोध और शिक्षा सहभागिता का दूरगामी लाभ दोनों देशों के नागरिकों को मिल सके, इस बात पर जोर दिया है।

अपनी यात्रा के दौरान मुझे भारत में विज्ञान और इंजीनियरिंग को लेकर जुनून रखने वाले बहुत से लोगों से मिलने और बात करने का अवसर मिला। उन लोगों से बातचीत से मैं प्रेरित तो हुआ ही, साथ ही भारतीय विज्ञान समुदाय की अकल्पनीय प्रतिभा और सरलता का मैं फिर से कायल हो गया।

अमेरिका और भारत के शोधार्थियों के बीच हमारी अतीत की और मौजूदा सहभागिताओं से हमारे दोनों देशों को बेहतरीन परिणाम मिले हैं। अपनी यात्रा के दौरान, हमने एनएसएफ और विभिन्न भारतीय संस्थानों के बीच 30 से अधिक सहभागिताओं की घोषणा की है जिनमें इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टीट्यूट और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और जोधपुर परिसर शामिल हैं। मैं भविष्य को लेकर आशान्वित हूं क्योंकि मैं देख पा रहा हूं कि तमाम शोधार्थियों और विद्यार्थियों ने अमेरिका में अपने सहपाठियों के साथ मिलकर क्या कुछ हासिल नहीं किया है।

विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में कौन से वे मुख्य क्षेत्र हैं जिनमें अमेरिका और भारत के बीच सहयोग हो सकता है?

उन तमाम क्षेत्रों में हमें सहयोग और एक दूसरे से सीखने का मौका है जिसकी हमारे नागरिकों और समुदायों को बहुत ज़रूरत है और उन्हें किसी तरह से लाभान्वित किया जा सकता है। एकसाथ मिलकर काम करते हुए हम सदाजीवी पर्यावरण, कृषि, वैश्विक स्वास्थ्य, राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ तमाम दूसरे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में वैज्ञानिक शोध और तकनीक का फायदा कहीं ज्यादा उठा सकते हैं।

इस तरह के सहयोग का एक उदाहरण भारतीय विज्ञान और तकनीक विभाग के तकनीकी नवाचार केंद्रों के साथ द्विपक्षीय शोध के काम में मदद देने की हमारी प्रतिबद्धता का है। अमेरिका और भारत के शोधार्थियों के बीच इस तरह के सहयोग से उन्हें टेस्टबेड्स और डेटासेट जैसे विशेष संसाधनों की सुविधा मिल सकेगी। साथ ही, उन्हें आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और उन्नत वायरलेस संचार जैसे महत्वपूर्ण उभरते तकनीकी क्षेत्रों तक अपने काम के दायरे को बढ़ाने का अवसर मिलेगा। इसके अलावा, शिक्षा के क्षेत्र में एक्सचेंज प्रोग्राम को प्रोत्साहन भी मिल सकेगा।

वैसे सामान्य रूप से देखें तो, विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में हमारे संयुक्त काम से हमारे दोनों देशों को विश्व के सामने मौजूद महामारी और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों से निपटने के बेहतर समाधान तलाशने में मदद मिल सकती है।

आपकी नज़र में अमेरिका-भारत सहयोग की विज्ञान के क्षेत्र में वैचारिक आदान-प्रदान को आगे बढ़ाने के नज़रिए से क्या भूमिका हो सकती है? 

मैं अमेरिका और भारत को भागीदारों के रूप में देखता हूं। शोध, पारदर्शिता और पारस्परिकता जैसे वैज्ञानिक ज्ञान के बारे में हमारे साझे मूल्य हैं। इस तरह की मजबूत नींव की बदौलत हमारे दोनों देशों के बीच विज्ञान, तकनीक और इंजीनियरिंग से जुड़े सभी क्षेत्रों में शानदार अवसर उपलब्ध हैं। हमारे वैज्ञानिकों और इंजीनियरों का मूल उद्देश्य आविष्कारों और नवाचारों के ज़रिए शोध के दायरे को विस्तार देने का है लेकिन हमारे सहयोग और सहभागिताओं की ताकत के जरिए ही उनका सकारात्मक सामाजिक असर देखने को मिल सकता है।

गहन वैज्ञानिक शोध के लिए बहुत पैसों की ज़रूरत होती है, कई बार कई जगहों से पैसा लेना पड़ सकता है। इस तरह के शोध के लिए भारत में अमेरिका किस तरह से मदद दे पाएगा?

भारत वैज्ञानिक शोध और विकास के क्षेत्र में दक्षिण एशिया में शीर्ष देश है और सूचना एवं संचार तकनीक, कृषि, सस्ती स्वास्थ्य सेवा, ऊर्जा और जल तकनीक के क्षेत्र में वह वैश्विक रूप से अग्रणी देशों में शामिल है। उसकी ये विशेषज्ञताएं और उसका इन क्षेत्रों में अग्रणी रहना और अमेरिका में समान क्षेत्रों के साथ स्थितियों का मेल खाना भविष्य में तमाम संभावनाओं और सहयोग की उम्मीद जगाता है।

भारत के विज्ञान और तकनीकी विभाग के साथ भागीदारी में एनएसएफ अमेरिकी संस्थानों और भारत में टेक्नोलॉजी इनोवेशन केंद्रों में द्विपक्षीय शोध के काम में मदद कर रहा है। हमें विज्ञान, तकनीक और शिक्षा के क्षेत्र को उन्नत बनाने के काम में जुटे भारतीय सहयोगियों के साथ शोध संबंधी गतिविधियों में सह-निवेशक के रूप में सहयोग देकर गर्व होगा। पिछले पांच वर्षों में एनएसएफ ने 200 ऐसे शोधों को पूरा किया है जिसमें भारतीय संस्थाएं और वैज्ञानिक शामिल रहे और 14.5 करोड़ डॉलर से ज्यादा का शोध निवेश शामिल रहा।

अगले तीन सालों एनएसएफ की 75 वीं वर्षगांठ आने वाली है, आपकी नज़र में एनएसएफ वैश्विक चुनौतियों से निपटने में सक्षम सहभागिताओं को लेकर किस तरह की भूमिका निभा सकता है? 

एनएसएफ की स्थापना 1950 में अमेरिकी कांग्रेस ने बुनियादी वैज्ञानिक शोध के उन वादों को पूरा करने के लिए की थी जो न सिर्फ प्रकृति के बारे में हमारी समझ को बढाते हों बल्कि स्वास्थ्य, समृद्धि, कल्याण और सुरक्षा को भी उन्नत बनाते हों। और तब जबकि पिछले सात दशकों में दुनिया बहुत बदल गई लेकिन हमारा मिशन आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना पहले हुआ करता था।

साझे लोकतांत्रिक मूल्यों के आधार पर निर्मित, वैश्विक सहभागिता के हिस्से के रूप में, हमारी दृष्टि में समतापूर्ण और समृद्ध विश्व के निर्माण में विज्ञान और तकनीक का विकास एक महत्वपूर्ण कारक बन सकता है। विचार, संसाधन और समान विचार वाले सहयोगियों, जिनमें भारत भी शामिल है, के साथ अपनी सर्वश्रेष्ठ विधाओं को साझा करना, हमेशा से एनएफएस की इच्छा रही है और वही वह करता भी रहा है।

आज हम जिन बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, वे राष्ट्रीय सीमाओं, विज्ञान के अनुशासन या शोध की टाइमलाइन को नहीं समझतीं। अब मौसम के बढ़ते अतिवादी स्वरूप को ही लें, जैसे कि क्रूर लू के थपेड़े और सूखा। उनका असर आज हम सभी को उस तरह से प्रभावित कर रहा है जिसकी कल्पना एक दशक पहले कोई कर नहीं सकता था। यह कोई ऐसी समस्या नहीं है जिसका विज्ञान की कोई एक शाखा या कोई अकेला देश इसका समाधान कर सकता है। इसके लिए हम सबको भागीदार के रूप में काम करते हुए मिलकर ऐसे समाधान तलाशना होता है जो उन चुनौतियों का मुकाबला कर सकें।

इस साल, 2022 में अमेरिका-भारत के राजनयिक रिश्तों को भी 75 साल हो रहे हैं। हमारे दोनों देश सहभागिता और वैज्ञानिक शोध और शिक्षा के समृद्ध और उपयोगी इतिहास को साझा करते हैं। और अब जबकि हम भविष्य की तरफ देखते हैं और उन संभावनाओं की तरफ निगाह डालते हैं जो विश्व के नौजवान प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों की देन हैं, तो हमें इस बारे में कोई संदेह नहीं होता कि अमेरिका और भारत वैज्ञानिक खोजों और अविष्कारों के दायरे की सीमाओं को विस्तार देते रहेंगे।

कोविड -19 महामारी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था और मानव जीवन के हर पक्ष पर असर डाला है। इसने एनएसएफ के लक्ष्यों और रणनीतियों को किस तरह से प्रभावित किया है?

कोविड-19 महामारी के दौरान, विज्ञान और इंजीनियरिंग समुदाय को महामारी से जुड़े तमाम अज्ञात पहलुओं और प्रभावों से निपटने की चुनौती मिली थी। हमने ऐसे बहुत से अवसर देखे, जहां शाधार्थी अपनी विशेषज्ञता और प्रशिक्षण के इस्तेमाल से हमें बीमारी को पहचानने और उससे निपटने में मदद दे पाए। इसे बड़े फलक पर देखा जाए तो इसने हमारे समाज पर महामारी के आर्थिक और सामाजिक दुष्प्रभाव के पहलुओं से निपटने में मदद की।

मुझे यह कहने में गर्व है कि एनएसएफ और शोध समुदाय उन चुनौतियों से मुकाबला करने में सक्षम रहा और हमने बहुत ही कम समयावधि में 1200 त्वरित रिस्पॉंस रिसर्च प्रोजेक्टों में निवेश किया। एनएसएफ की मदद से शुरू हुए उन रिसर्च प्रोजेक्टों ने महामारी की प्रकृति को समझने संबंधी कई महत्वपूर्ण चीजों को खोजने में मदद की, जैसे कि यह वायरस कैसे फैलता है और इसकी पहचान का सबसे अच्छा तरीका कौनसा है, अर्थव्यवस्था और सप्लाई चेन पर इसका क्या असर पड़ा। इसके अलावा बच्चों की शिक्षा और कई दूसरे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर इसका क्या असर पड़ा, यह भी समझने में मदद मिली।

यह समाज के सामने मौजूद चुनौतियों से निपटने के लिए एनएसएफ की आतुरता को प्रदर्शित करता है। मैं इसे एनएसएफ की अपने केंद्रीय मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता के साथ एक संगठन के रूप में वैज्ञानिक उद्यमों की सहायता और सबसे बड़ा लोगों के लिए फायदे के मकसद को तरजीह देने के लिहाज से देखता हूं।

जलवायु परिवर्तन एक गंभीर चुनौती है, खासकर भारत में। नवाचार और तकनीक इसमें किस तरह से हमारी मदद कर सकते हैं? 

मेरा दृढ़ विश्वास है कि, वैज्ञानिक नवाचार और सहयोग किसी भी लक्ष्य पर पहुंचने का रास्ता दिखा सकते हैं, और इसमें सभी के लिए समृद्ध और स्वस्थ भविष्य भी शामिल है। उदाहरण के लिए, भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन और जलवायु सुधार के लिए एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। इन लक्ष्यों को हासिल करने में विज्ञान और तकनीक एक सशक्त ज़रिया बनेगा।

एनएसएफ और भारत के बीच सहभागिता, मानव स्वास्थ्य, जलवायु, कृषि और परिवहन जैसे क्षेत्रों में काम करने के लिए हमारी साझी क्षमता को और आगे बढ़ाएगी। उदाहरण के लिए, एनएसएफ फिजिकल साइंस, इंजीनियरिंग और सोशल साइंस के क्षेत्र में सहभागी शोध  के लिए मदद देता है जिसका मकसद जलवायु संकट की चुनौतियों  के प्रयासों से संबंधित है। इन सहभागी प्रोजेक्टों में सौर तकनीक, ऑफशोर विंड, मीथेन उत्सर्जन को कम करने, कार्बन को कैप्चर करने, पावर ग्रिड स्थरीकरण के अलावा और भी विषय  शामिल हैं।

इस तरह के सहयोगी प्रयासों को बढ़ाने से उनके दीर्घकालीन फायदों और प्रभाव में वृद्धि हो सकती है। हमें भागीदारी की प्रक्रिया और साझे नवाचारों को जितना संभव हो सके प्रभावी बनाना चाहिए, जिससे कि हमारे देशों के अलावा समूचे विश्व को उसका फायदा मिल सके।

आईआईटी दिल्ली में आपने नए रास्ते तैयार करने की बात कही, जिससे कि हर क्षेत्र और समुदाय की प्रतिभा स्टेम समुदाय में शामिल हो सके। ऐसा कौन सा एक महत्वपूर्ण कारक है जिससे कि युवा स्टेम क्षेत्र में दूरगामी योगदान देने के लिए प्रोत्साहित हो सकें?

विद्यार्थियों की स्टेम कॅरियर में दिलचस्पी को आगे बढ़ाने के सबसे सशक्त तरीकों में से एक उनके भीतर के अन्वेषी दिमाग को जगाना है जो हम सभी के पास होता है। कम उम्र में स्टेम की बात करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है लेकिन हर किसी में जिज्ञासु सोच को तो जगाया जा सकता है।

हम सभी अपने जन्म के साथ ही अन्वेषक होते हैं। मैं इसे रोजाना अपनी पौत्री के जरिए देख पाता हूं। वह हर बात को लेकर जिज्ञासु रहती है, अपने इर्द-गिर्द की दुनिया के बारे में हर चीज को समझने और तलाशने के लिए वह बेहद उत्साहित रहती है।

इसे जन्मजात जिज्ञासा कहा जा सकता है जो हम सब लेकर ही पैदा होते हैं। यही वह चीज है जो मुझे विज्ञान के क्षेत्र में ले आई। जब मैं आठ साल का था, तब मेरे पिता मुझे मेरे गृहनगर चेन्नई में अपोलो 11 अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा लई गई चंद्रमा की चट्टानों को दिखाने अमेरिकी कॉंसुलेट ले गए। मैं इस विचार से बेहद प्रभावित हुआ कि मानव चंद्रमा के लिए कोई मिशन को डिजाइन और कार्यान्वित कर सकता है, उन चट्टानों को ला सकता है, और उन्हें भारत में बच्चों के सामने रख सकता है ताकि वे उससे प्रेरित हो सकें।

उस शुरुआती अनुभव ने मेरे अंदर विज्ञान के प्रति दिलचस्पी की अलख को जगाया- और यह कुछ वैसा था जिसे हर कोई अनुभव कर सकता है। जिज्ञासा वह चीज है जिसे हमें नौजवानों में जरूर विकसित और पोषित करना चाहिए। हमें नौजवानों को, हर चीज़ संभव है, जैसी भावना के साथ सशक्त बनाना चाहिए और उन्हें यह समझने में मदद करनी चाहिए कि वास्तव में वे कुछ भी कर सकने में सक्षम हैं।

आप अक्सर स्टेम शिक्षा को समावेशी बनाने और सभी की पहुंच में होने की बात कहा करते हैं। वह आपके लिए क्यों इतना महत्वपूर्ण है?

अन्वेषण और नवाचार के मोर्चे पर बने रहने के लिए यह अनिवार्य है कि अमेरिका और भारत जैसे विश्व में विज्ञान के क्षेत्र के शीर्ष देश, मौलिक खोजों, नए दृष्टिकोणों के रूपरेखा और परिवर्तनकारी प्रौद्योगिकी के निर्माण के लिए हर उपलब्ध प्रतिभा का इस्तेमाल कर सकें। मेरा मानना है कि ऐसा कर पाने की कुंजी बड़े शहरों से लेकर कस्बों और गांवों तक हर आकार और वर्ग के समुदायों के बीच अपनी पहुंच को आसान बनाने में ही निहित है।

एनएसएफ आने से पहले, मैं एरिज़ोना स्टेट यूनिवर्सिटी में था जहां हमने उच्च शिक्षा के लिए विविध अनुभवों के साथ विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि वाले विद्यार्थियों तक दायरे को बढ़ा दिया। इससे हमारी कक्षाएं और प्रयोगशालाएं इस तरह से परिष्कृत हुईं कि उसका कोई मोल नहीं लगाया जा सकता।

आपको अमेरिका में शोध और शिक्षण के क्षेत्र में वर्षों का अनुभव है। आपकी उन भारतीय विद्यार्थियों के लिए क्या सलाह होगी जो उच्च शिक्षा या शोध के लिए अमेरिका में पढ़ना चाहते हैं?

भारत और दुनिया भर के विद्यार्थियों के लिए मेरी सलाह है कि जब आप अपनी राह पर आगे बढ़ते हैं, मैं आपसे कहूंगा कि अपने दिमाग को खुला रखें और अपने आसपास की दुनिया को और ज्यादा जानने के लिए प्रयत्नशील रहें। आपको प्रयोग करने और अनुभव लेने से नहीं चूकना चाहिए। आपको चीजों से जुड़े रहना है, जोखिम उठाना है, संपर्क बनाने हैं और मार्गदर्शक तलाशने हैं।

मुझे उपलब्ध कराई गई शिक्षा और अवसरों के लिए मैं अमेरिका और भारत दोनों ही देशों का तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूं, और मैं यह कहना जरूरी समझता हूं कि जो सुविधाएं और अवसर मुझे मिले, वह ऐसे सभी नौजवानों को मिल सकें जिनमें अपनी अन्वेषण भावना को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता है।

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अरुण वेंकटरमण

असिस्टेंट सेक्रेटरी ऑफ कॉमर्स (वैश्विक बाजार) और अमेरिकी और विदेश वाणिज्यिक सेवा के महानिदेशक अरुण वेंकटरमण ने जनवरी 2023 में भारत का दौरा किया। अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने मार्च 2023 में होने वाली अमेरिका-भारत सीईओ फोरम की बैठक से पहले दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से नई दिल्ली में सरकारी अधिकारियों से मुलाकात की। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के संयुक्त सचिव दिनेश दयानंद जगदाले के साथ मुलाकात में वेंकटरमण ने सदाजीवी ऊर्जा के क्षेत्र में भारत के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए अमेरिकी स्वच्छ ऊर्जा कंपनियों से मिल सकने वाली सहायता के अवसरों की पहचान का आग्रह किया।

उन्होंने, गहरे व्यावसायिक सहयोग और जुड़ाव के अवसरों की तलाश के लिए दूरसंचार, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आईटी मंत्रालय और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रायलय में अपने समकक्षों से भी मुलाकात की। अमेरिका-भारत सीईओ फोरम की मार्च में प्रस्तावित बैठक को सार्थक बनाने के लिए उन्होंने मुंबई में भारत में उद्योग जगत के कुछ शीर्ष कारोबारियों से भी मुलाकात की।

कोयंबटूर, तमिलनाडु में जन्मे और ह्यूस्टन, टेक्सस में पले-बढ़े वेंकटरमण ने कोलंबिया लॉ स्कूल से कानून में डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की है। उन्होंने फ्लेचर स्कूल ऑफ लॉ से कानून और कूटनीति में मास्टर ऑफ आर्ट्स और ट़फ्ट्स यूनिवर्सिटी से बैचलर ऑफ आर्ट्स की डिग्री ली है।

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