झूठी खबरों की चुनौती

इंटरनेशनल विजिटर लीडरशिप प्रोग्राम (आईवीएलपी) की पूर्व प्रतिभागी श्रुति पंडालाई बता रही हैं कि झूठी खबरों और भ्रामक सूचनाओं की चुनौती से किस तरह निपटा जाए।

स्टीव फ़ॉक्स

मई 2023

झूठी खबरों की चुनौती

(©स्कोरज़ेवियाक/शटरस्टॉक)

तथ्यों और झूठी जानकारियों के बीच धुंधली पड़ती रेखा से उपजी चुनौतियां आज दुनिया के देशों के लिए एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है, जो अपने समाजों के सम्मुख मौजूद मसलों को हल करने के प्रयास कर रहे हैं। हाल ही में अमेरिकी विदेश विभाग के इंटरनेशनल विजिटर लीडरशिप प्रोग्राम (आईवीएलपी) के तहत ‘‘क्वॉड देशों में भ्रामक सूचनाओं की पहचान और उनकी रोकथाम की चुनौती’’ में भागीदारों ने इस पर चर्चा की। यह प्रोग्राम इस मसले पर क्वॉड के उभरते लीडरों को एक मंच पर ले आया। क्वॉड ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका की बीच पार्टनरशिप है, जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में खुलेपन, स्थायित्व और समृद्धि के समर्थन को लेकर प्रतिबद्ध है।

आईवीएलपी प्रतिभागियों ने वॉशिंगटन,डी.सी., सेंट लुइस, मिसूरी, सीएटल, वॉशिंगटन और सैन फ्रांसिस्को कैलिफ़ोर्निया की यात्रा की। इस दौरान उन्होंने भ्रामक जानकारियों और झूठी खबरों की पहचान करने और उससे निपटने के  तरीकों और तकनीकों की पड़ताल की। इस कार्यक्रम ने भ्रामक सूचना अभियानों से निपटने के लिए तथ्यों की जांच, खोजी पत्रकारिता और विशेष सर्वेक्षण जैसे उपायों की गंभीरता को जाहिर किया। प्रतिभागियों ने भ्रामक जानकारियों और झूठी खबरों की रोकथाम के लिए जागरूकता के बारे में अपने अमेरिकी समकक्षों के साथ चर्चा की और इस मसले पर सरकारी एजेंसियों, गैर सरकारी संस्थाओं, शिक्षण समुदाय और पारंपरिक और सोशल मीडिया की भूमिका की पड़ताल की।

मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज़ एंड एनेलिसिस, नई दिल्ली में फेलो और इस प्रोग्राम में प्रतिभागी श्रुति पंडालाई के अनुसार, ‘‘यह बहुत बढि़या और उपयोगी परिचय था, जहां भ्रामक जानकारियों और झूठे समाचारों से निपटने में सफलता और असफलता के बारे में ईमानदारी के साथ बातें हुईं।’’

गलत सूचना को आमतौर पर इस रूप में परिभाषित किया जाता है कि उसे प्रस्तुत करने वाला व्यक्ति या संगठन सही मानता है। जबकि भ्रामक जानकारी एक झूठी सूचना है जिसे जानबूझ कर हेरफेर करने या प्राप्तकर्ता को नुकसान पहुंचाने की नीयत से फैलाया जाता है।

कारण और प्रभाव

ग्लोबल पॉलिसी थिंक टैंक एवं अमेरिकी अलाभकारी संस्था रैंड कॉरपोरेशन के एक अध्ययन के अनुसार, तथ्यों और कल्पना के बीच विभेद की धुंधली पड़ती रेखा के कई कारण हैं जिसमें किन्हीं विषयों पर हमारी खुद की आग्रही दृष्टि, सूचना तंत्र में आए बदलाव जिसमें, सोशल मीडिया का उभार और खबरों के अर्थशास्त्र में बदलाव के साथ राजनीतिक और सामाजिक ध्रुवीकरण जैसे कारण शामिल हैं।

रैंड के अध्ययन में यह बात सामने आई कि लोगों के सम्मुख तथ्यों के रूप में प्रस्तुत की जाने वाली रायों की भरमार, संस्थानों पर सार्वजनिक भरोसे को डिगा सकती हैं, राजनीतिक ध्रुवीकरण को और गहरा कर सकती हैं, स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आवाश्यक नागरिक-संवाद को कमजोर या विस्थापित कर सकती हैं और इससे अलगाव या विघटन को बढ़ावा मिल सकता है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि तथ्यों को खारिज कर किसी राय का पक्ष लेने का किसी भी व्यक्ति पर तुरंत असर पड़ सकता है। अध्ययन में इस बात की तरफ ध्यान दिलाया गया कि कोविड-19 के मामलों में बीमारी और उसके फैलाने को लेकर तथ्यों को खारिज करने के कारण शायद लोगों के लिए और ज्यादा स्वास्थ्य समस्या पैदा हुई।

सक्रिय दृष्टिकोण

चिंता का एक कारण सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव है, जहां गलत सूचनाओं से जुड़ी सामग्री को जांचे बिना या सामग्री को उपलब्ध कराने वाले व्यक्तियों या समूहों की बिना पर्याप्त निगरानी के साझा किया जा सकता है।

पंडालाई का कहना है, ‘‘सोशल मीडिया का इस्तेमाल अच्छे और बुरे, दोनों तरह से किया जा सकता है। आमतौर पर गलत लोग भ्रामक जानकारी के प्रसार में आगे रहते हैं, इसलिए ज़रूरत इस बात की है कि अच्छे लोग सक्रिय होकर उनका मुकाबला कर पाएं।’’

एक अग्रणी अंग्रेजी न्यूज़ नेटवर्क के साथ बतौर न्यूज़ एंकर और ब्रॉडकास्ट जर्नलिस्ट काम कर चुकी पंडालाई का कहना है कि आज प्रिंट और ब्रॉडकास्ट माध्यमों में इस मामले में सुरक्षा के बहुत कम तरीके हैं जिसका एक निष्कर्ष यह भी निकाला जा सकता है पाठकों और दर्शकों  को तथ्यात्मक और झूठी खबरों के निर्धारण के मामले में ज्यादा सक्रिय भूमिका निभानी होगी।

वह बताती हैं, ‘‘समाचारों के मुकाबले अफवाहों की उम्र लंबी होती है, पहले किसी भी खबर के जाने से पहले उसकी जांच के लिए फैक्ट चेकर हुआ करते थे। अब इसका उल्टा होता है और लोगों को क्या चल रहा है, इसकी जानकारी के लिए बहुत से स्रोतों से जानकारी लेनी पड़ती है।’’

फैक्ट चेकिंग, मीडिया साक्षरता और जर्नलिज्म एथिक्स में ट्रेनिंग देने वाले अलाभकारी संस्थान फ्लोरिडा स्थित पॉइंटर इंस्टीट्यूट के अनुसार, भारत जैसे विविधताओं से भरे देश में भ्रामक जानकारियों पर लगाम लगा पाना खासतौर पर बहुत चुनौतीपूर्ण है।

भारत में 82 करोड़ 50 लाख इंटरनेट उपयोगकर्ताओं अनुमान के साथ, पॉइंटर की वेबसाइट पर प्रकाशित एक लेख में बताया गया है कि, ‘‘यहां सोशल मीडिया पर फैलने वाली भ्रामक खबरों की जांच बहुत ही मुश्किल काम है। भारत की भाषाई, सांस्कृतिक और राजनीतिक विविधता इस काम को और ज्यादा मुश्किल बनाती है।’’ लेख में कहा गया है कि, भारतीय संविधान में 22 भाषाओं को मान्यता दी गई है, ‘‘ऐसे में सिर्फ एक या दो भाषाओं में गलत सूचनाओं पर लगाम से देश की बड़ी आबादी तक ऐसी सूचनाओं के प्रसार को रोका नहीं जा सकता।’’

पंडालाई का कहना है, ‘‘मीडिया को समग्रता में और खबरों के निजी उपभोक्ताओं को भी इस बात को लेकर जागरूक रहना होगा कि कोई खबर आ कहां से रही है।’’ उनका कहना है कि, उनके लिए आईवीएलपी से हासिल सीख की सबसे बड़ी बात तो यही रही कि, ‘‘इस समस्या से निपटने को लेकर ईमानदार हो पाने की अमेरिका की अद्भुत क्षमता है।’’

स्टीव फ़ॉक्स स्वतंत्र लेखक हैं और पूर्व अखबार प्रकाशक और रिपोर्टर रहे हैं। वह वेंचुरा, कैलिफ़ोर्निया में रहते हैं।   



  • Ashutosh

    Very Smart....

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